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08:32, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
हिन्दी | कान्ति, तेज, (काव्यशास्त्र) भाषा या रचना के तीन गुणों में से एक, रचना का वह गुण जो मन में दीप्ती, आवेग, वीरता का भाव उत्पन्न करता है, दीप्ती। |
-व्याकरण | पुल्लिंग |
-उदाहरण | प्रातःकाल में व्यायाम शरीर में ओज और उत्साह का भाव उत्पन्न करता है। |
-विशेष | रचना में ओज गुण के लिए कठोर वर्णों, संयुक्त वर्णों, वर्णो के द्वित्व, रेफ तथा लम्बे समासों का प्रयोग होता है। रसगंगाधर में ओज के पाँच भेद बतलाये गये हैं। |
-विलोम | |
-पर्यायवाची | ताप, अवदाह, आतप, इद्ध, उष्णता, उष्णा, उष्मा, ऊष्मानुभूति, औष्ण, गरमाहट, गरमी, तप, तप्ति, तापानुभूति, ताब, ताव, तेज, तेज़ी, दाघ, दाह, विदाह, सोज़, सोज़िश, वीर्य, धात, धातु, नरबीज, नुफ़ता, पौरुष, शारीरिक बल, चेतना, ज़ोर, ताक़त, दम, प्राण। |
संस्कृत | नपुंसक लिंग [उब्ज्+असुन् बलीपः, गुणश्च], शारीरिक सामर्थ्य, बल, शक्ति, वीर्य, जननात्मक, आभा, प्रकाश, शैली का विस्तृत रुप, समास की बहुलता[1]-ओजः समासभूतस्त्वमेतदूगद्यस्य जीवितम्-[2], पानी, धातु की चमक। |
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