"शिवताण्डवस्तोत्रम्": अवतरणों में अंतर
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-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .<br /> | -वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .<br /> | ||
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं<br /> | स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं<br /> | ||
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. | गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. 9.. | ||
अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी<br /> | अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी<br /> |
09:03, 7 अप्रैल 2010 का अवतरण
शिवताण्डवस्तोत्रम् / Shivtandavstrotam
रावण द्वारा भगवान शिव की स्तुति
- कथा है की अहंकार वश रावण ने अपने आराध्य देव शिव के निवास स्थान कैलास पर्वत को अपने हाथों पर उठा लिया था|
- क्रोधित हो शिव ने रावण के हाथों को पर्वत के नीचे दबा दिया|
- रावण ने शिव की स्तुति में निम्न स्त्रोत कहा तो शिव ने प्रसन्न हो कर रावण को क्षमा कर दिया|
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत् प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा- अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस- दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर् कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन् इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः |