"कीर्तिवर्मा द्वितीय": अवतरणों में अंतर
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*[[विक्रमादित्य द्वितीय]] के बाद | *'''कीर्तिवर्मा द्वितीय''' (745 से 753 ई.), [[विक्रमादित्य द्वितीय]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। | ||
*अपने पिता की मृत्यु के बाद वह विशाल [[चालुक्य साम्राज्य]] का स्वामी बना। | |||
*इसने अपने युवराज काल में ही [[पल्लव वंश|पल्लव]] नरेश नन्दि वर्मन को परास्त कर बहुमूल्य [[रत्न]], [[हाथी]] एवं सुवर्ण प्राप्त किया था। | |||
*कीर्तिवर्मा द्वितीय ही सम्भवतः [[बादामी कर्नाटक|बादामी]] के चालुक्य शासकों की श्रृंखला का अंतिम शासक था। | |||
*उसने 'सार्वभौम', 'लक्ष्मी', 'पृथ्वी का प्रिय', 'राजाओं का राज' एवं 'महाराज' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं। | |||
*चालुक्यों के सामंत [[दंतिदुर्ग]] ([[राष्ट्रकूट वंश|राष्टकूट]]) ने कीर्तिवर्मा द्वितीय को परास्त कर लगभग 753 ई. में अपने को स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित किया। | |||
*दंतिदुर्ग की इस विजय के विषय में 'समनगढ़' अभिलेख से जानकारी मिलती है। | |||
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10:51, 15 फ़रवरी 2011 का अवतरण
- कीर्तिवर्मा द्वितीय (745 से 753 ई.), विक्रमादित्य द्वितीय का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था।
- अपने पिता की मृत्यु के बाद वह विशाल चालुक्य साम्राज्य का स्वामी बना।
- इसने अपने युवराज काल में ही पल्लव नरेश नन्दि वर्मन को परास्त कर बहुमूल्य रत्न, हाथी एवं सुवर्ण प्राप्त किया था।
- कीर्तिवर्मा द्वितीय ही सम्भवतः बादामी के चालुक्य शासकों की श्रृंखला का अंतिम शासक था।
- उसने 'सार्वभौम', 'लक्ष्मी', 'पृथ्वी का प्रिय', 'राजाओं का राज' एवं 'महाराज' आदि की उपाधियाँ धारण की थीं।
- चालुक्यों के सामंत दंतिदुर्ग (राष्टकूट) ने कीर्तिवर्मा द्वितीय को परास्त कर लगभग 753 ई. में अपने को स्वतंत्र शासक के रूप में स्थापित किया।
- दंतिदुर्ग की इस विजय के विषय में 'समनगढ़' अभिलेख से जानकारी मिलती है।
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