"मेगुती जैन मंदिर": अवतरणों में अंतर
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*इसका शिखर विकास की प्रारंभिक अवस्था का द्योतक है। इस मंदिर के निर्माण में लघु शिलाखण्डों का प्रयोग हुआ है। बाह्म-स्तम्भों के कोष्ठकीय शीर्षकों का निर्माण कुशल और अलंकृत है। | *इसका शिखर विकास की प्रारंभिक अवस्था का द्योतक है। इस मंदिर के निर्माण में लघु शिलाखण्डों का प्रयोग हुआ है। बाह्म-स्तम्भों के कोष्ठकीय शीर्षकों का निर्माण कुशल और अलंकृत है। | ||
*इस मंदिर में केन्द्रीय देवगृह के बाहर स्तम्भयुक्त संस्थागार (सभागृह) है। भवन के कई भागों में तक्षणकला अपूर्ण है, इससे यह परिलक्षित होता है कि शिल्पी पहले भवन को निर्मित कर लेते थे तदुपरांत काट-छाँट और पच्चीकारी करते थे। | *इस मंदिर में केन्द्रीय देवगृह के बाहर स्तम्भयुक्त संस्थागार (सभागृह) है। भवन के कई भागों में तक्षणकला अपूर्ण है, इससे यह परिलक्षित होता है कि शिल्पी पहले भवन को निर्मित कर लेते थे तदुपरांत काट-छाँट और पच्चीकारी करते थे। | ||
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10:50, 4 मार्च 2011 का अवतरण
- यह कर्नाटक राज्य के बीजापुर ज़िले में स्थित है। 634 ई. में चालुक्य वास्तुशैली में निर्मित एक महत्त्वपूर्ण जैन मंदिर है। इसके गर्भगृह के चारों ओर पटा हुआ प्रदक्षिणापथ है।
- इसका शिखर विकास की प्रारंभिक अवस्था का द्योतक है। इस मंदिर के निर्माण में लघु शिलाखण्डों का प्रयोग हुआ है। बाह्म-स्तम्भों के कोष्ठकीय शीर्षकों का निर्माण कुशल और अलंकृत है।
- इस मंदिर में केन्द्रीय देवगृह के बाहर स्तम्भयुक्त संस्थागार (सभागृह) है। भवन के कई भागों में तक्षणकला अपूर्ण है, इससे यह परिलक्षित होता है कि शिल्पी पहले भवन को निर्मित कर लेते थे तदुपरांत काट-छाँट और पच्चीकारी करते थे।
- इससे यह भी स्पष्ट है कि ऐहोल के इन मन्दिरों की निर्माण कला में बौद्ध गिरि-कीर्तित चैत्य गृहों की निर्माण कला का प्रभाव पड़ा था। पुरातत्त्वज्ञों का मत है कि मेगुती का मंदिर तथा बीजापुर ज़िले के अन्य चालुक्यकालीन मंदिर मुख्यतः उत्तर तथा मध्य भारत के पूर्व-गुप्तकालीन मंदिरों की परम्परा में है। अंतर केवल शिखर की उपस्थिति के कारण है जो प्राचीन परम्परा के विकसित रूप का परिचायक है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ