"गोलोक": अवतरणों में अंतर

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13:44, 3 मार्च 2011 का अवतरण

  • गोलोक का शाब्दिक अर्थ है ज्योतिरूप विष्णु का लोक।[1]
  • विष्णु के धाम को गोलोक कहते हैं।
  • यह कल्पना ऋग्वेद के विष्णुसूक्त से प्रारम्भ होती है।
  • विष्णु वास्तव में सूर्य का ही एक रूप है।
  • सूर्य की किरणों का रूपक भूरिश्रृंगा (बहुत सींग वाली) गायों के रूप में बाँधा गया है। अत: विष्णुलोक को गोलोक कहा गया है।
  • ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं पद्म पुराण तथा निम्बार्क मतानुसार राधा कृष्ण नित्य प्रेमिका हैं। वे सदा उनके साथ 'गोलोक' में, जो सभी स्वर्गों से ऊपर है, रहती हैं। अपने स्वामी की तरह ही वे भी वृन्दावन में अवतरित हुईं एवं कृष्ण की विवाहिता स्त्री बनीं।
  • निम्बार्कों के लिए कृष्ण केवल विष्णु के अवतार ही नहीं, वे अनन्त ब्रह्म हैं, उन्हीं से राधा तथा अंसख्य गोप एवं गोपी उत्पन्न होते हैं, जो कि उनके साथ 'गोलोक' में भाँति-भाँति की लीला करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (गौर्ज्योतिरूपो ज्योतिर्मयपुरुष: तस्य लोक: स्थानम्)