"सहस्रकिरण": अवतरणों में अंतर
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06:14, 21 मार्च 2011 का अवतरण
- एक बार राजा सहस्रकिरण अपनी रानियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था।
- उसने जलयंत्र लगाकर पानी रोका हुआ था।
- उसी नदी के तट पर रावण जिनेश्वर देव की प्रतिमाओं की स्वर्ण सिंहासन पर प्रतिष्ठा करके पूजा कर रहा था।
- क्रीड़ा के उपरान्त सहस्रकिरण ने यंत्रों से रोका हुआ जल छोड़ दिया तो किनारे पर बाड़-सी आ गई, जिससे रावण की पूजा में व्यवधान पड़ा।
- अत: उसने क्रुद्ध होकर राजा से युद्ध किया और उसे पाशबद्ध कर लिया।
- उसी समय सहस्रकिरण के पिता शतवाहु वहाँ पहुँचे।
- उन्होंने राज्य पुत्र को सौंपकर स्वयं प्रव्रज्या ले ली।
- उनके अनुरोध पर रावण ने सहस्रकिरण को मुक्त कर दिया।
- वह भी अपना राज्य अपने पुत्र को सौंपकर स्वयं दीक्षा लेकर पिता के साथ चला गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पउम चरित, 10|34-88|