"दिल्ली दरबार": अवतरणों में अंतर
शिल्पी गोयल (वार्ता | योगदान) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[अंग्रेज़]] सरकार ने 1877, [[1903]] तथा [[1911]] ई. में कुल तीन बार [[दिल्ली]] में विशाल दरबार किये। इन दरबारों को दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है। | [[अंग्रेज़]] सरकार ने [[1877]], [[1903]] तथा [[1911]] ई. में कुल तीन बार [[दिल्ली]] में विशाल दरबार किये। इन दरबारों को दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है। | ||
====<u>पहला दरबार</u>==== | ====<u>पहला दरबार</u>==== | ||
पहला दरबार [[लार्ड लिटन]] ने किया था, जिसमें [[महारानी विक्टोरिया]] को [[भारत]] की सम्राज्ञी घोषित किया गया। इस दरबार की शान-शौक़त पर बेशुमार धन खर्च किया गया, जबकि 1876-1878 ई. तक दक्षिण के लोग [[अकाल]] से पीड़ित थे, जिसमें हज़ारों की संख्या में व्यक्तियों की जानें गईं। इस समय दरबार के आयोजन को जन-धन की बहुत बड़ी बरबादी समझा गया। | पहला दरबार [[लार्ड लिटन]] ने किया था, जिसमें [[महारानी विक्टोरिया]] को [[भारत]] की सम्राज्ञी घोषित किया गया। इस दरबार की शान-शौक़त पर बेशुमार धन खर्च किया गया, जबकि [[1876]]-[[1878]] ई. तक दक्षिण के लोग [[अकाल]] से पीड़ित थे, जिसमें हज़ारों की संख्या में व्यक्तियों की जानें गईं। इस समय दरबार के आयोजन को जन-धन की बहुत बड़ी बरबादी समझा गया। | ||
====<u>दूसरा दरबार</u>==== | ====<u>दूसरा दरबार</u>==== | ||
दूसरा दरबार [[लार्ड कर्जन]] ने [[1903]] ई. में आयोजित किया, जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ताज़पोशी की घोषणा की गई। यह दरबार पहले से भी ज़्यादा ख़र्चीला सिद्ध हुआ। इसका कुछ नतीजा नहीं निकला। यह केवल [[ब्रिटिश साम्राज्य|ब्रिटिश]] सरकार का शक्ति प्रदर्शन ही था। | दूसरा दरबार [[लार्ड कर्जन]] ने [[1903]] ई. में आयोजित किया, जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ताज़पोशी की घोषणा की गई। यह दरबार पहले से भी ज़्यादा ख़र्चीला सिद्ध हुआ। इसका कुछ नतीजा नहीं निकला। यह केवल [[ब्रिटिश साम्राज्य|ब्रिटिश]] सरकार का शक्ति प्रदर्शन ही था। |
07:30, 15 मार्च 2011 का अवतरण
अंग्रेज़ सरकार ने 1877, 1903 तथा 1911 ई. में कुल तीन बार दिल्ली में विशाल दरबार किये। इन दरबारों को दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है।
पहला दरबार
पहला दरबार लार्ड लिटन ने किया था, जिसमें महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया। इस दरबार की शान-शौक़त पर बेशुमार धन खर्च किया गया, जबकि 1876-1878 ई. तक दक्षिण के लोग अकाल से पीड़ित थे, जिसमें हज़ारों की संख्या में व्यक्तियों की जानें गईं। इस समय दरबार के आयोजन को जन-धन की बहुत बड़ी बरबादी समझा गया।
दूसरा दरबार
दूसरा दरबार लार्ड कर्जन ने 1903 ई. में आयोजित किया, जिसमें बादशाह एडवर्ड सप्तम की ताज़पोशी की घोषणा की गई। यह दरबार पहले से भी ज़्यादा ख़र्चीला सिद्ध हुआ। इसका कुछ नतीजा नहीं निकला। यह केवल ब्रिटिश सरकार का शक्ति प्रदर्शन ही था।
तीसरा दरबार
तीसरा दरबार लार्ड हार्डिज के जमाने में 1911 में आयोजित हुआ। बादशाह जार्ज पंचम और उसकी महारानी इस अवसर पर भारत आये थे और उनकी ताज़पोशी का समारोह भी हुआ था। इसी दरबार में एक घोषणा के द्वारा बंगाल के विभाजन को भी रद्द कर दिया गया, साथ ही राजधानी कलकत्ता से दिल्ली लाने की घोषणा भी की गई।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-204
संबंधित लेख