"घसीटी बेगम": अवतरणों में अंतर
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'''सिराजुद्दौला''' ने इसी दौरान जब सुना कि घसीटी बेगम और हुसेन कुली ख़ाँ के बीच अवैध सम्बन्ध हैं, तो वह आगबबूला हो गया और उसने मुर्शिदाबाद की सड़क पर खुलेआम हुसेन कुली ख़ाँ की हत्या कर दी। इससे घसीटी बेगम और सिराजुद्दौला के बीच मनमुटाव और बढ़ गया। जब 1756 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ बहुत बीमार था और उसके जीवित रहने की कोई आशा नहीं नहीं थी, घसीटी बेगम ने [[राजवल्लभ सेन]] की सलाह पर मुर्शिदाबाद स्थित महल को छोड़ दिया और नगर के बाहर दक्षिण में दो मील दूर मोतीझील पर वह अपने 10 हज़ार अंगरक्षकों के साथ रहकर सिराजुद्दोला के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगी। | '''सिराजुद्दौला''' ने इसी दौरान जब सुना कि घसीटी बेगम और हुसेन कुली ख़ाँ के बीच अवैध सम्बन्ध हैं, तो वह आगबबूला हो गया और उसने मुर्शिदाबाद की सड़क पर खुलेआम हुसेन कुली ख़ाँ की हत्या कर दी। इससे घसीटी बेगम और सिराजुद्दौला के बीच मनमुटाव और बढ़ गया। जब 1756 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ बहुत बीमार था और उसके जीवित रहने की कोई आशा नहीं नहीं थी, घसीटी बेगम ने [[राजवल्लभ सेन]] की सलाह पर मुर्शिदाबाद स्थित महल को छोड़ दिया और नगर के बाहर दक्षिण में दो मील दूर मोतीझील पर वह अपने 10 हज़ार अंगरक्षकों के साथ रहकर सिराजुद्दोला के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगी। | ||
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(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-140 | (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-140 |
05:21, 5 जुलाई 2011 का अवतरण
घसीटी बेगम, बंगाल के अलीवर्दी ख़ाँ (1740-53) की सबसे बड़ी पुत्री थी। वह अपने चचेरे भाई नवाजिश मुहम्मद को ब्याही थी। नवाब सिराजुद्दौला उसका भाँजा था।
पति की मृत्यु
नवाजिश को ढाका का हाक़िम नियुक्त किया गया, जहाँ पर उसकी मृत्यु हो गई। उसकी विधवा घसीटी बेगम मुर्शिदाबाद लौट आई। राजवल्लभ सेन उसका दीवान तथा हुसेन कुली ख़ाँ उसका विश्वस्त गुमाश्ता (नियुक्त किया हुआ) था। अलीवर्दी ख़ाँ के पश्चात् घसीटी बेगम ने अपने भांजे सिराजुद्दौला को गद्दी पर बैठाने का समर्थन नहीं किया। उसने अपनी दूसरी छोटी बहन के पुत्र शौकतजंग को, जो पूर्णिया का हाक़िम था, बंगाल का नवाब बनाना चाहा।
अवैध सम्बन्ध
सिराजुद्दौला ने इसी दौरान जब सुना कि घसीटी बेगम और हुसेन कुली ख़ाँ के बीच अवैध सम्बन्ध हैं, तो वह आगबबूला हो गया और उसने मुर्शिदाबाद की सड़क पर खुलेआम हुसेन कुली ख़ाँ की हत्या कर दी। इससे घसीटी बेगम और सिराजुद्दौला के बीच मनमुटाव और बढ़ गया। जब 1756 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ बहुत बीमार था और उसके जीवित रहने की कोई आशा नहीं नहीं थी, घसीटी बेगम ने राजवल्लभ सेन की सलाह पर मुर्शिदाबाद स्थित महल को छोड़ दिया और नगर के बाहर दक्षिण में दो मील दूर मोतीझील पर वह अपने 10 हज़ार अंगरक्षकों के साथ रहकर सिराजुद्दोला के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगी।
सिराजुद्दोला की चतुराई
सिराजुद्दौला गद्दी पर बैठने के बाद बड़ी चतुराई से घसीटी बेगम को मोतीझील से नवाब के महल में ले आया। राजवल्लभ सेन घसीटी बेगम का बहुत सा धन हड़पकर अंग्रेज़ों की शरण में चला गया। किन्तु घसीटी बेगम अब सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्रों में कोई सक्रिय भाग लेने की स्थिति में नहीं रह गई थी। 1756 ई. में सिराजुद्दौला ने घसीटी बेगम की छोटी बहन के पुत्र शौकतजंग को लड़ाई में हराकर मार डाला। इसके बाद घसीटी बेगम का बंगाल की राजगद्दी पर प्रभाव समाप्त हो गया। आज भी मोतीझील के खंडहर विद्यमान हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-140