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द्रविड़ [[तमिलनाडु]] का प्राचीन नाम, अर्थात् [[चेन्नई]] से लेकर दक्षिण में [[कन्याकुमारी]] तक दक्षिण भारत का भूभाग है।<ref>'पांड्याश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोंड्र केरलै: आंध्रास्तालवनांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्'- [[महाभारत]] [[महाभारत सभा पर्व|सभापर्व]] 31, 71</ref> इस उल्लेख के अनुसार सहदेव ने द्रविड़ तथा अन्य दक्षिणात्य राज्यों पर दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में विजय प्राप्त की थी। [[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]] में द्राविड़ों का चोलों और आंध्रों के साथ उल्लेख है।<ref>'सवंगांगान् सपौंड्रोड्रानू सचोल द्राविड़ांध्रकान्। [[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]] 51, 22</ref> कहा जाता है कि द्रविड़ और तमिल शब्द मूलत: एक ही हैं, केवल उच्चारण के भेद के कारण अलग-अलग हो गए हैं। मनु के अनुसार द्राविड़ मूलत: क्षत्रिय थे।  
द्रविड़ [[तमिलनाडु]] का प्राचीन नाम, अर्थात् [[चेन्नई]] से लेकर दक्षिण में [[कन्याकुमारी]] तक दक्षिण भारत का भूभाग है।<ref>'पांड्याश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोंड्र केरलै: आंध्रास्तालवनांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्'- [[महाभारत]] [[महाभारत सभा पर्व|सभापर्व]] 31, 71</ref> इस उल्लेख के अनुसार सहदेव ने द्रविड़ तथा अन्य दक्षिणात्य राज्यों पर दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में विजय प्राप्त की थी। [[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]] में द्राविड़ों का चोलों और आंध्रों के साथ उल्लेख है।<ref>'सवंगांगान् सपौंड्रोड्रानू सचोल द्राविड़ांध्रकान्। [[वन पर्व महाभारत|वनपर्व]] 51, 22</ref> कहा जाता है कि द्रविड़ और तमिल शब्द मूलत: एक ही हैं, केवल उच्चारण के भेद के कारण अलग-अलग हो गए हैं। मनु के अनुसार द्राविड़ मूलत: क्षत्रिय थे।  
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07:28, 8 मई 2011 का अवतरण

द्रविड़ एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- द्रविड़ (बहुविकल्पी)

द्रविड़ तमिलनाडु का प्राचीन नाम, अर्थात् चेन्नई से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक दक्षिण भारत का भूभाग है।[1] इस उल्लेख के अनुसार सहदेव ने द्रविड़ तथा अन्य दक्षिणात्य राज्यों पर दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में विजय प्राप्त की थी। वनपर्व में द्राविड़ों का चोलों और आंध्रों के साथ उल्लेख है।[2] कहा जाता है कि द्रविड़ और तमिल शब्द मूलत: एक ही हैं, केवल उच्चारण के भेद के कारण अलग-अलग हो गए हैं। मनु के अनुसार द्राविड़ मूलत: क्षत्रिय थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'पांड्याश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोंड्र केरलै: आंध्रास्तालवनांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्'- महाभारत सभापर्व 31, 71
  2. 'सवंगांगान् सपौंड्रोड्रानू सचोल द्राविड़ांध्रकान्। वनपर्व 51, 22