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भारत की [[संसद]] को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। मंत्री के रूप में जगजीवन राम को जो भी काम मिला, उसे बहुत ही अच्छी तरह से निभाया। [[1952]] के चुनाव के बाद उन्हें नेहरूजी ने संचार मंत्री बनाया। उन दिनों संचार मत्रालय में ही विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांव-गांव तक डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में [[जवाहर लाल नेहरू]] ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उन्हीं के कार्यकाल में रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद पड़ी और रेलवे कर्मचारियों के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई। पद की लालसा उन्हें बिलकुल नहीं थी, इसलिए जब कामराज योजना आई तो उन्होंने सबसे पहले सरकार से अलग होकर संगठन का काम शुरू किया। | भारत की [[संसद]] को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। मंत्री के रूप में जगजीवन राम को जो भी काम मिला, उसे बहुत ही अच्छी तरह से निभाया। [[1952]] के चुनाव के बाद उन्हें नेहरूजी ने संचार मंत्री बनाया। उन दिनों संचार मत्रालय में ही विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांव-गांव तक डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में [[जवाहर लाल नेहरू]] ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उन्हीं के कार्यकाल में रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद पड़ी और रेलवे कर्मचारियों के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई। पद की लालसा उन्हें बिलकुल नहीं थी, इसलिए जब कामराज योजना आई तो उन्होंने सबसे पहले सरकार से अलग होकर संगठन का काम शुरू किया। | ||
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जब [[लालबहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद [[इंदिरा गांधी]] ने [[प्रधानमंत्री]] पद संभाला तो बाबूजी को एक अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। यह भारत के लिए निश्चित रूप से कठिन दौर था। [[1962]] में [[चीन]] और 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई हो चुकी थी। गरीब आदमी और किसान भुखमरी के कगार पर खड़ा था। अमेरिका से पीएल- 480 के तहत सहायता में मिलने वाला [[गेहूँ]] और ज्वार ही भूख मिटाने का मुख्य साधन बन चुका था। ऐसी विकट परिस्थिति में डॉ. नॉरमन बोरलाग भारत आए और हरितक्रांति का सूत्रपात किया। नई सोच और आधुनिक तकनीक के पक्षधर बाबू जगजीवन राम उस समय कृषि मंत्री थे। उन्होंने ही डॉ. नॉरमन बोरलाग के हरित क्रांति के विचार को कार्यांवित करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया। भारत में दो- ढाई साल में ही हालात बदल गए और देश की जरूरत से अधिक खाद्यान्न पैदा होने लगा। भारत में हरित क्रांति के लिए तकनीकी मदद तो निश्चित रूप से डॉ. नॉरमन बोरलाग से मिली, लेकिन भारत में कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम ने जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए हरित क्रांति के लिए जरूरी प्रशासनिक इंतजाम किया। डॉ. बोरलाग का अविष्कार था बौना गेहूँ और धान, जिसने भारत और पाकिस्तान में भुखमरी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। बाद में चीन ने भी इस प्रौद्योगिकी का | जब [[लालबहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद [[इंदिरा गांधी]] ने [[प्रधानमंत्री]] पद संभाला तो बाबूजी को एक अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। यह भारत के लिए निश्चित रूप से कठिन दौर था। [[1962]] में [[चीन]] और 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई हो चुकी थी। गरीब आदमी और किसान भुखमरी के कगार पर खड़ा था। अमेरिका से पीएल- 480 के तहत सहायता में मिलने वाला [[गेहूँ]] और ज्वार ही भूख मिटाने का मुख्य साधन बन चुका था। ऐसी विकट परिस्थिति में डॉ. नॉरमन बोरलाग भारत आए और हरितक्रांति का सूत्रपात किया। नई सोच और आधुनिक तकनीक के पक्षधर बाबू जगजीवन राम उस समय कृषि मंत्री थे। उन्होंने ही डॉ. नॉरमन बोरलाग के हरित क्रांति के विचार को कार्यांवित करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया। भारत में दो- ढाई साल में ही हालात बदल गए और देश की जरूरत से अधिक खाद्यान्न पैदा होने लगा। भारत में हरित क्रांति के लिए तकनीकी मदद तो निश्चित रूप से डॉ. नॉरमन बोरलाग से मिली, लेकिन भारत में कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम ने जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए हरित क्रांति के लिए जरूरी प्रशासनिक इंतजाम किया। डॉ. बोरलाग का अविष्कार था बौना गेहूँ और धान, जिसने भारत और पाकिस्तान में भुखमरी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। बाद में चीन ने भी इस प्रौद्योगिकी का फ़ायदा उठाया। [[1962]] और [[1965]] की लड़ाई के बाद उपजी भूख की समस्या को उन्होंने बहुत ही सूझ-बूझ से परास्त किया। [[1971]] की भारत-पाकिस्तान जंग में बाबूजी ने जिस तरह से अपनी सेनाओं के लिए राजनीतिक समर्थन दिया वह सैन्य इतिहास में मिसाल बन गया है। बाद में भी जब इंदिरा गांधी का सबसे बुरा दौर था, कांग्रेस के पुराने नेता उनका साथ छोड़ चुके थे, तो बाबू जगजीवन राम ने उनके साथ खड़े होकर उन्हें मजबूती दी थी, लेकिन उन्होंने कभी भी लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता नहीं किया। वह सच्चे अर्थों में भारत निर्माता थे। | ||
==जीवनी के मुख्य बिन्दु== | ==जीवनी के मुख्य बिन्दु== | ||
*जगजीवन राम ने [[1928]] में [[कोलकाता]] के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग 50 हज़ार लोग शामिल हुए। | *जगजीवन राम ने [[1928]] में [[कोलकाता]] के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग 50 हज़ार लोग शामिल हुए। |
12:26, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
बाबू जगजीवन राम
- बाबू जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है।
- वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्होंने देश की राजनीति के साथ ही दलित समाज को भी दिशा प्रदान की।
जन्म
अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में आरा के नजदीक चंदवा में हुआ। जगजीवन राम ने अपने नाम के अनुरूप जीवन में कभी हार नहीं मानी और भारतीय राजनीति में एक अमिट हस्ती बन गए। बाबू जगजीवन राम के जन्म दिवस को भारत में समता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
जीवन परिचय
बाबू जगजीवन राम का जीवन एक ऐसे व्यक्ति का जीवन है जिसने कभी अन्याय से समझौता नहीं किया। वह जीवनपर्यंत दलितों व दबे-कुचले वर्गों के सम्मान के लिए संघर्ष करते रहे। छात्र जीवन से ही उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी। बाबू जगजीवन राम के जीवन के कई पहलू हैं। उनमें से ही एक है भारत में संसदीय लोकतंत्र विकास में उनका अमूल्य योगदान। 28 साल की उम्र में ही 1936 में उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य नामांकित कर दिया गया था। जब गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए तो बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध विधायक चुने गए। अंग्रेज़ बिहार में अपनी पिट्ठू सरकार बनाने के प्रयास में थे। उनकी कोशिश थी कि जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए। उन्हें मंत्री पद और पैसे का लालच दिया गया, लेकिन जगजीवन राम ने अंग्रेज़ों का साथ देने से माफ इनकार कर दिया। उसके बाद ही बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वह मंत्री बने। साल भर के अंदर ही अंग्रेज़ों के गैरजिम्मेदार रुख के कारण महात्मा गांधी की सलाह पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे थे। पद का लालच उन्हें छू तक नहीं गया था। बाद में वह महात्मा गांधी सिविल नाफरमानी आंदोलन में जेल गए। जब मुंबई में 9 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो जगजीवन राम वहीं थे। तय योजना के अनुसार उन्हें बिहार में आंदोलन को तेज करना था, लेकिन दस दिन बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब अंग्रेज़ भारत छोड़ने के लिए मज़बूर हो गए तो उनकी कोशिश थी पाकिस्तान की तरह भारत के और कई टुकड़े कर दिए जाएं, लेकिन शिमला में कैबिनेट मिशन के सामने बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए और दलितों और शेष भारतीयों के बीच मतभेद पैदा करने की अंग्रेज़ों की कोशिश को नाकाम कर दिया। अंतरिम सरकार में जब बाहर लोगों को लॉर्ड वॉवेल की कैबिनेट में शामिल होने लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे। उनको श्रम विभाग का जिम्मा दिया गया। इसी दौर में उन्होंने कुछ ऐसे क़ानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मजदूरों और दबे-कुचले वर्गों के हित की दिशा में मील का पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने मिनिमम वेजेज एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट और ट्रेड यूनियन एक्ट लागू कराएं, जिन्हें मज़दूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में आज भी इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने इम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट और प्राविडेंट फंड एक्ट भी बनवाया। कल्पना कीजिए अगर बाबूजी ने इन क़ानूनों को न बनाया होता तो आज मजदूरों और कर्मचारियों की कितनी दुर्दशा होती।
कुशल राजनीतिज्ञ
भारत की संसद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे। मंत्री के रूप में जगजीवन राम को जो भी काम मिला, उसे बहुत ही अच्छी तरह से निभाया। 1952 के चुनाव के बाद उन्हें नेहरूजी ने संचार मंत्री बनाया। उन दिनों संचार मत्रालय में ही विमानन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और गांव-गांव तक डाकखानों का नेटवर्क विकसित किया। बाद में जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें रेल मंत्री बनाया। उन्हीं के कार्यकाल में रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद पड़ी और रेलवे कर्मचारियों के लिए बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की गई। पद की लालसा उन्हें बिलकुल नहीं थी, इसलिए जब कामराज योजना आई तो उन्होंने सबसे पहले सरकार से अलग होकर संगठन का काम शुरू किया।
कृषि मंत्री
जब लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो बाबूजी को एक अति कुशल प्रशासक के रूप में अपने साथ लिया। यह भारत के लिए निश्चित रूप से कठिन दौर था। 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई हो चुकी थी। गरीब आदमी और किसान भुखमरी के कगार पर खड़ा था। अमेरिका से पीएल- 480 के तहत सहायता में मिलने वाला गेहूँ और ज्वार ही भूख मिटाने का मुख्य साधन बन चुका था। ऐसी विकट परिस्थिति में डॉ. नॉरमन बोरलाग भारत आए और हरितक्रांति का सूत्रपात किया। नई सोच और आधुनिक तकनीक के पक्षधर बाबू जगजीवन राम उस समय कृषि मंत्री थे। उन्होंने ही डॉ. नॉरमन बोरलाग के हरित क्रांति के विचार को कार्यांवित करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया। भारत में दो- ढाई साल में ही हालात बदल गए और देश की जरूरत से अधिक खाद्यान्न पैदा होने लगा। भारत में हरित क्रांति के लिए तकनीकी मदद तो निश्चित रूप से डॉ. नॉरमन बोरलाग से मिली, लेकिन भारत में कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम ने जबरदस्त राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए हरित क्रांति के लिए जरूरी प्रशासनिक इंतजाम किया। डॉ. बोरलाग का अविष्कार था बौना गेहूँ और धान, जिसने भारत और पाकिस्तान में भुखमरी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। बाद में चीन ने भी इस प्रौद्योगिकी का फ़ायदा उठाया। 1962 और 1965 की लड़ाई के बाद उपजी भूख की समस्या को उन्होंने बहुत ही सूझ-बूझ से परास्त किया। 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग में बाबूजी ने जिस तरह से अपनी सेनाओं के लिए राजनीतिक समर्थन दिया वह सैन्य इतिहास में मिसाल बन गया है। बाद में भी जब इंदिरा गांधी का सबसे बुरा दौर था, कांग्रेस के पुराने नेता उनका साथ छोड़ चुके थे, तो बाबू जगजीवन राम ने उनके साथ खड़े होकर उन्हें मजबूती दी थी, लेकिन उन्होंने कभी भी लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता नहीं किया। वह सच्चे अर्थों में भारत निर्माता थे।
जीवनी के मुख्य बिन्दु
- जगजीवन राम ने 1928 में कोलकाता के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग 50 हज़ार लोग शामिल हुए।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस तभी भांप गए थे कि जगजीवन राम में एक बड़ा नेता बनने के तमाम गुण मौजूद हैं।[1]
- महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भी जगजीवन राम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह उन बड़े नेताओं में शामिल थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को झोंकने के अंग्रेज़ों के फैसले की निन्दा की थी। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा।[1]
- वर्ष 1946 में वह जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने। भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का दर्जा मिला और 1946 से 1952 तक इस पद पर रहे।
- जगजीवन राम 1952 से 1986 तक संसद सदस्य रहे। 1956 से 1962 तक उन्होंने रेल मंत्री का पद संभाला। 1967 से 1970 और फिर 1974 से 1977 तक वह कृषि मंत्री रहे।
- इतना ही नहीं 1970 से 1971 तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1970 से 1974 तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया।
- 23 मार्च, 1977 से 22 अगस्त, 1979 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे।
- आपातकाल के दौरान वर्ष 1977 में वह कांग्रेस से अलग हो गए और 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किया और जनता गठबंधन में शामिल हो गए। इसके बाद 1980 में उन्होंने कांग्रेस (जे) का गठन किया।
निधन
6 जुलाई, 1986 को 78 साल की उम्र में इस महान राजनीतिज्ञ का निधन हो गया।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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