"मणिसिंह": अवतरणों में अंतर
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*गुरुजी के देहत्याग के बाद भाई मणिसिंह ने उनके कवियों और लेखकों के द्वारा अनुवादित तथा रचित ग्रन्थों को एक जिल्द में प्रस्तुत कराया, जिसे 'दसवें गुरु का ग्रन्थ' कहते हैं। किन्तु इसे कट्टर सिक्ख लोग सम्मानित ग्रन्थ के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। | *गुरुजी के देहत्याग के बाद भाई मणिसिंह ने उनके कवियों और लेखकों के द्वारा अनुवादित तथा रचित ग्रन्थों को एक जिल्द में प्रस्तुत कराया, जिसे 'दसवें गुरु का ग्रन्थ' कहते हैं। किन्तु इसे कट्टर सिक्ख लोग सम्मानित ग्रन्थ के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं। | ||
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07:15, 19 अप्रैल 2011 का अवतरण
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- भाई मणि सिंह जी गुरु साहिब के एक दीवान (मंत्री) थे।
- भाई मणिसिंह ने गुरु गोविन्द सिंह की रचनाओं को एक जिल्द में प्रस्तुत किया था।
- सिक्खों के अन्तिम गुरु गोविन्दसिंह की आस्था हिन्दू धर्म के ओजस्वी कृत्यों की ओर अधिक थी।
- खालसा पन्थ की स्थापना के पूर्व उन्होंने दुर्गाजी की आराधना की थी। इस समय उन्होंने मार्कण्डेय पुराण में उर्द्धत दुर्गास्तुति का अनुवाद अपने दरबारी कवियों से कराया।
- खालसा सैनिकों के उत्साहवर्द्धनार्थ वे इस रचना तथा अन्य हिन्दू कथानकों का प्रयोग करते थे।
- उन्होंने और भी कुछ ग्रन्थ तैयार करवाये, जिनमें हिन्दी ग्रन्थ अधिक थे, कुछ फ़ारसी भी थे।
- गुरुजी के देहत्याग के बाद भाई मणिसिंह ने उनके कवियों और लेखकों के द्वारा अनुवादित तथा रचित ग्रन्थों को एक जिल्द में प्रस्तुत कराया, जिसे 'दसवें गुरु का ग्रन्थ' कहते हैं। किन्तु इसे कट्टर सिक्ख लोग सम्मानित ग्रन्थ के रूप में स्वीकार नहीं करते हैं।
- इस ग्रन्थ का प्रयोग गोविन्दसिंह के सामान्य श्रद्धालु शिष्य सांसारिक कामनाओं की वृद्धि के लिए करते हैं, जबकि धार्मिक कार्यों में 'आदिग्रंथ' का प्रयोग होता है।
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