"बेनी": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
('*बेनी 'असनी' के बंदीजन थे और इनका समय संवत 1700 के आसपास क...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:रीति काल (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | ||
[[Category:रीति काल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
09:55, 10 मई 2011 का अवतरण
- बेनी 'असनी' के बंदीजन थे और इनका समय संवत 1700 के आसपास का था।
- इनका कोई भी ग्रंथ नहीं मिलता, किंतु फुटकर कवित्त बहुत से सुने जाते हैं, जिनसे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नख शिख और षट्ऋतु पर पुस्तकें लिखी होंगी।
- कविता इनकी साधारणत: अच्छी होती थी।
- भाषा चलती, कामचलाऊ होने पर भी अनुप्रास युक्त होती थी -
छहरैं सिर पै छवि मोरपखा, उनकी नथ के मुकुता थहरैं।
फहरै पियरो पट बेनी इतै, उनकी चुनरी के झबा झहरैं
रसरंग भिरे अभिरे हैं तमाल दोऊ रसख्याल चहैं लहरैं।
नित ऐसे सनेह सों राधिका स्याम हमारे हिए में सदा बिहरैं
कवि बेनी नई उनई है घटा, मोरवा बन बोलत कूकन री।
छहरै बिजुरी छितिमंडल छ्वै, लहरै मन मैन भभूकन री।
पहिरौ चुनरी चुनिकै दुलही, सँग लाल के झूलहु झूकन री।
ऋतु पावस यों ही बितावत हौ, मरिहौ, फिरि बावरि! हूकन री
|
|
|
|
|