"व्यास स्मृति": अवतरणों में अंतर
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*4 अध्यायों 250 श्लोकों में धर्माचरण योग्य उत्तम देश, षोडस संस्कारों की विधि, गुरुमहिमा, गृहस्थ, पातिव्रत, रजोधर्म, गृहस्थ के नैमित्तिक एवं काम्यकर्मादि का तथा सदाचार आदि का तथा चौथे अध्याय के 50 श्लोकों में दानधर्म का महत्व प्रतिपादित है। | *4 अध्यायों 250 श्लोकों में धर्माचरण योग्य उत्तम देश, षोडस संस्कारों की विधि, गुरुमहिमा, गृहस्थ, पातिव्रत, रजोधर्म, गृहस्थ के नैमित्तिक एवं काम्यकर्मादि का तथा सदाचार आदि का तथा चौथे अध्याय के 50 श्लोकों में दानधर्म का महत्व प्रतिपादित है। | ||
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13:57, 20 मई 2010 का अवतरण
- इसे स्मृतियों में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
- इसमें वर्णाश्रम-धर्म सम्बन्धी उपदेश संकलित हैं 'धर्मान वर्ण व्यवस्यितान्'- (व्यास स्मृति)।
- 4 अध्यायों 250 श्लोकों में धर्माचरण योग्य उत्तम देश, षोडस संस्कारों की विधि, गुरुमहिमा, गृहस्थ, पातिव्रत, रजोधर्म, गृहस्थ के नैमित्तिक एवं काम्यकर्मादि का तथा सदाचार आदि का तथा चौथे अध्याय के 50 श्लोकों में दानधर्म का महत्व प्रतिपादित है।