"जैन निषद्या संस्कार": अवतरणों में अंतर
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'''जैन निषद्या संस्कार / Jain Nishdya Sanskar'''<br /> | |||
*जन्म से पाँचवें मास में निषद्या वा उपवेशन विधि करना चाहिए। | *जन्म से पाँचवें मास में निषद्या वा उपवेशन विधि करना चाहिए। | ||
*निषद्या वा उपवेशन का अर्थ है बिठाना अर्थात पाँचवें मास में बालक को बिठाना चाहिए। | *निषद्या वा उपवेशन का अर्थ है बिठाना अर्थात पाँचवें मास में बालक को बिठाना चाहिए। |
09:46, 22 अप्रैल 2010 का अवतरण
जैन निषद्या संस्कार / Jain Nishdya Sanskar
- जन्म से पाँचवें मास में निषद्या वा उपवेशन विधि करना चाहिए।
- निषद्या वा उपवेशन का अर्थ है बिठाना अर्थात पाँचवें मास में बालक को बिठाना चाहिए।
- प्रथम ही भूमि-शुद्धि, पूजन और हवन कर पंचबालयति तीर्थंकरों का पूजन करें।
- वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ तीर्थंकर, पार्श्वनाथ और महावीर – इन पाँच बालब्रह्मचारी तीर्थंकरों को कुमार या बालयति कहते हैं।
- अनन्तर चावल, गेहूँ, उड़द, मूँद, तिल, जवा- इनसे रंगावली चौक (रंगोली) बनाकर उस पर एक वस्त्र बिछा दें।
- बालक को स्नान कराकर वस्त्रालंकारों से विभूषित करें।
- पश्चात् 'ओं ह्रीं अहं अ सि आ उ सा नम: बालकं उपवेशयामि स्वाहा'- यह मन्त्र पढ़कर उस रंगावली पर बिछे वस्त्र पर उस बालक को पूर्व दिशा की ओर मुखकर पासन बिठाना चाहिए।
- अनन्तर बालक की आरती उतारकर प्रमुख जनों, विद्वानों आदि सभी का उसे आशीर्वाद प्रदान करावें।