"जैन विवाह संस्कार": अवतरणों में अंतर
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*सुयोग्य वर एवं कन्या के जीवन पर्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध सहयोग और दो हृदयों के अखण्ड मिलन या संगठन को विवाह कहते हैं। | *सुयोग्य वर एवं कन्या के जीवन पर्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध सहयोग और दो हृदयों के अखण्ड मिलन या संगठन को विवाह कहते हैं। | ||
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09:52, 22 अप्रैल 2010 का अवतरण
जैन विवाह संस्कार / Jain Vivah Sanskar
- विवाह संस्कार सोलह संस्कारों में अन्तिम एवं महत्वपूर्ण संस्कार है।
- सुयोग्य वर एवं कन्या के जीवन पर्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध सहयोग और दो हृदयों के अखण्ड मिलन या संगठन को विवाह कहते हैं।
- विवाह, विवहन, उद्वह, उद्वहन, पाणिग्रहण, पाणिपीडन- ये सब ही एकार्थवाची शब्द हैं।
- 'विवहनं विवाह:' ऐसा व्याकरण से शब्द सिद्ध होता है।
- विवाह के पाँच अंग-
वाग्दानं च प्रदानं च, वरणं पाणिपीडनम्।
सप्तपदीति पंचांगो, विवाह: परिकीर्तित:॥
- वाग्दान (सगाई करना),
- प्रदान (विधिपूर्वक कन्यादान),
- वरण (माला द्वारा परस्पर स्वीकारना),
- पाणिग्रहण (कन्या एवं वर का हाथ मिलाकर, उन हाथों पर जलधारा छोड़ना),
- सप्तपदी (देवपूजन के साथ सात प्रदक्षिणा (फेरा) करना)- ये विवाह के पाँच अंग आचार्यों ने कहे हैं।