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*यह [[बौद्ध]] महायान के प्रसिद्ध [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|आचार्य नागार्जुन]] (द्वितीय शताब्दी) ई. के नाम पर प्रसिद्ध है। | *यह [[बौद्ध]] महायान के प्रसिद्ध [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|आचार्य नागार्जुन]] (द्वितीय शताब्दी) ई. के नाम पर प्रसिद्ध है। | ||
*प्रथम शताब्दी में यहाँ[[सातवाहन साम्राज्य|सातवाहन]] नरेशों का राज्य था। | *प्रथम शताब्दी में यहाँ [[सातवाहन साम्राज्य|सातवाहन]] नरेशों का राज्य था। | ||
*'हाल' नामक सातवाहन राजा ने [[नागार्जुन]] के लिए श्री पर्वत शिखर पर एक विहार बनवाया था। | *'हाल' नामक सातवाहन राजा ने [[नागार्जुन]] के लिए श्री पर्वत शिखर पर एक विहार बनवाया था। | ||
*यह स्थान [[बौद्ध धर्म]] की महायान शाखा का भी काफ़ी समय तक प्रचार केन्द्र रहा। | *यह स्थान [[बौद्ध धर्म]] की महायान शाखा का भी काफ़ी समय तक प्रचार केन्द्र रहा। | ||
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*नागार्जुनकोंडा इक्ष्वाकु राजाओं के समय एक सुन्दर नगर था। | *नागार्जुनकोंडा इक्ष्वाकु राजाओं के समय एक सुन्दर नगर था। | ||
*[[कृष्णा नदी]] के तट पर स्थित तथा चतुर्दिक पर्वत मालाओं से | *[[कृष्णा नदी]] के तट पर स्थित तथा चतुर्दिक पर्वत मालाओं से परिवृत्त यह नगर प्राकृतिक सौन्दर्य से समंवित होने के साथ ही दुर्भेद्य दुर्ग की भाँति सुरक्षित भी था। | ||
*यहाँ से नौ बौद्ध [[स्तूप|स्तूपों]] के अवशेष लगभग 50 वर्ष पूर्व उत्खनित किये गये थे। | *यहाँ से नौ बौद्ध [[स्तूप|स्तूपों]] के अवशेष लगभग 50 वर्ष पूर्व उत्खनित किये गये थे। | ||
*ये इस नगर के प्राचीन गौरव एवं ऐश्वर्य के साक्षी हैं। | *ये इस नगर के प्राचीन गौरव एवं ऐश्वर्य के साक्षी हैं। | ||
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*[[हिन्दू धर्म]] के पुनरुत्थान से नागार्गुनकोंडा का महत्त्व घटने लगा। | *[[हिन्दू धर्म]] के पुनरुत्थान से नागार्गुनकोंडा का महत्त्व घटने लगा। | ||
*नागार्जुनकोंडा से प्राप्त अभिलेखों से यह ज्ञात होता | *नागार्जुनकोंडा से प्राप्त अभिलेखों से यह ज्ञात होता है, कि पहली शताब्दी ई. में [[भारत]] का [[चीन]], यूनानी जगत तथा [[लंका]] से सम्बन्ध स्थापित था। | ||
*नागार्जुनकोंडा के एक अभिलेख से स्थविरों के संघों का ज्ञान होता है, जिन्होंने [[कश्मीर]], [[गांधार]], चीन, किरात, तोसलि, [[यवन]], ताम्रपर्णी द्वीपों में बौद्ध धर्म फैलाया था। | *नागार्जुनकोंडा के एक अभिलेख से स्थविरों के संघों का ज्ञान होता है, जिन्होंने [[कश्मीर]], [[गांधार]], चीन, किरात, तोसलि, [[यवन]], ताम्रपर्णी द्वीपों में बौद्ध धर्म फैलाया था। | ||
06:42, 1 जून 2011 का अवतरण
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- हैदराबाद से 100 मील दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित नागार्जुनकोंडा एक प्राचीन स्थान है।
- यह बौद्ध महायान के प्रसिद्ध आचार्य नागार्जुन (द्वितीय शताब्दी) ई. के नाम पर प्रसिद्ध है।
- प्रथम शताब्दी में यहाँ सातवाहन नरेशों का राज्य था।
- 'हाल' नामक सातवाहन राजा ने नागार्जुन के लिए श्री पर्वत शिखर पर एक विहार बनवाया था।
- यह स्थान बौद्ध धर्म की महायान शाखा का भी काफ़ी समय तक प्रचार केन्द्र रहा।
- सातवाहनों के पश्चात इक्ष्वाकु नरेशों ने यहाँ राज्य किया।
- नागार्जुनकोंडा इक्ष्वाकु राजाओं के समय एक सुन्दर नगर था।
- कृष्णा नदी के तट पर स्थित तथा चतुर्दिक पर्वत मालाओं से परिवृत्त यह नगर प्राकृतिक सौन्दर्य से समंवित होने के साथ ही दुर्भेद्य दुर्ग की भाँति सुरक्षित भी था।
- यहाँ से नौ बौद्ध स्तूपों के अवशेष लगभग 50 वर्ष पूर्व उत्खनित किये गये थे।
- ये इस नगर के प्राचीन गौरव एवं ऐश्वर्य के साक्षी हैं।
- उत्खनन में प्राप्त यहाँ के अवशेषों में एक स्तूप, दो चैत्य और एक विहार हैं।
- स्तूप के निकट बुद्ध के जीवन के दृश्यों को व्यक्त करने वाले चूने के पत्थर के टुकड़े मिले हैं।
- हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान से नागार्गुनकोंडा का महत्त्व घटने लगा।
- नागार्जुनकोंडा से प्राप्त अभिलेखों से यह ज्ञात होता है, कि पहली शताब्दी ई. में भारत का चीन, यूनानी जगत तथा लंका से सम्बन्ध स्थापित था।
- नागार्जुनकोंडा के एक अभिलेख से स्थविरों के संघों का ज्ञान होता है, जिन्होंने कश्मीर, गांधार, चीन, किरात, तोसलि, यवन, ताम्रपर्णी द्वीपों में बौद्ध धर्म फैलाया था।
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