"देह धरे का दंड": अवतरणों में अंतर
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<poem>देह धरे का दंड है, हर काहू को होय। | <blockquote><poem>देह धरे का दंड है, हर काहू को होय। | ||
ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।</poem> | ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।</poem></blockquote> | ||
*अर्थ- जीवन में शरीर के साथ कष्ट तो लगा रहता है, बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से और बेवकूफ रो रोकर जीवन जीता है । | *अर्थ- जीवन में [[मानव शरीर|शरीर]] के साथ कष्ट तो लगा रहता है, बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से और बेवकूफ रो-रोकर जीवन जीता है । | ||
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08:30, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
- यह लोकोक्ति एक प्रचलित कहावत है।
देह धरे का दंड है, हर काहू को होय।
ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय।।
- अर्थ- जीवन में शरीर के साथ कष्ट तो लगा रहता है, बुद्धिमान व्यक्ति युक्ति से और बेवकूफ रो-रोकर जीवन जीता है ।
इन्हें भी देखें: कहावत लोकोक्ति मुहावरे
टीका टिप्पणी और संदर्भ