"सच्चिदानन्द सिन्हा": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
*[[बिहार]] को [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] से पृथक राज्य के रूप में स्थापित करने वाले लोगों में सबसे प्रमुख नाम '''डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा''' | *[[बिहार]] को [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] से पृथक राज्य के रूप में स्थापित करने वाले लोगों में सबसे प्रमुख नाम '''डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा''' है। | ||
*सच्चिदानन्द सिन्हा [[1910]] के चुनाव में चार महाराजों को परास्त कर केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। | *सच्चिदानन्द सिन्हा [[1910]] के चुनाव में चार महाराजों को परास्त कर केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित हुए। | ||
*प्रथम भारतीय जिन्हें एक प्रान्त का | *प्रथम भारतीय जिन्हें एक प्रान्त का [[राज्यपाल]] और हाउस लार्डस का सदस्य बनने का श्रेय प्राप्त है। वे प्रिवी कौंसिल के सदस्य भी थे। | ||
==बिहार की स्थापना में योगदान== | |||
[[बिहार]] का इतिहास सच्चिदानन्द सिन्हा से शुरू होता है क्योंकि राजनीतिक स्तर पर सबसे पहले उन्होंने ही बिहार की बात उठाई थी। कहते हैं, डा. सिन्हा जब वकालत पास कर [[इंग्लैंड]] से लौट रहे थे। तब उनसे एक पंजाबी वकील ने पूछा था कि मिस्टर सिन्हा आप किस प्रान्त के रहने वाले हैं। डा. सिन्हा ने जब बिहार का नाम लिया तो वह पंजाबी वकील आश्चर्य में पड़ गया। इसलिए क्योंकि तब बिहार नाम का कोई प्रांत था ही नहीं। उसके यह कहने पर कि बिहार नाम का कोई प्रांत तो है ही नहीं, डा. सिन्हा ने कहा था, नहीं है लेकिन जल्दी ही होगा। यह घटना [[फरवरी]], 1893 की बात है। | |||
डॉ. सिन्हा को ऐसी और भी घटनाओं ने झकझोरा, जब बिहारी युवाओं (पुलिस) के कंधे पर ‘बंगाल पुलिस’ का बिल्ला देखते तो गुस्से से भर जाते थे। डॉ. सिन्हा ने बिहार की आवाज को बुलंद करने के लिए नवजागरण का शंखनाद किया। इस मुहिम में महेश नारायण, नन्दकिशोर लाल, राय बहादुर, कृष्ण सहाय जैसे मुट्ठीभर लोग ही थे। उन दिनों सिर्फ ‘द बिहार हेराल्ड’ अखबार था, जिसके संपादक गुरु प्रसाद सेन थे। तमाम बंगाली अखबार बिहार के पृथककरन का विरोध करते थे। [[पटना]] में कई बंगाली पत्रकार थे जो बिहार के हित की बात तो करते थे लेकिन इसके पृथक राज्य बनाने के विरोधी थे। | |||
बिहार अलग राज्य के पक्ष में जनमत तैयार करने या कहें माहौल बनाने के उद्देश्य से 1894 में डॉ. सिन्हा ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ ‘द बिहार टाइम्स’ [[अंग्रेज़ी]] साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया। स्थितियां बदलते देख बाद में ‘बिहार क्रानिकल्स’ भी बिहार अलग प्रांत के आन्दोलन का समर्थन करने लगा। 1907 में महेश नारायण की मृत्यु के बाद डॉ. सिन्हा अकेले हो गए। इसके बावजूद उन्होंने अपनी मुहिम को जारी रखा। 1911 में अपने मित्र सर अली इमाम से मिलकर केन्द्रीय विधान परिषद में बिहार का मामला रखने के लिए उत्साहित किया। [[12 दिसम्बर]] 1911 को ब्रिटिश सरकार ने बिहार और [[उड़ीसा]] के लिए एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इन कौंसिल की घोषणा कर दी। यह डॉ. सिन्हा और उनके समर्थकों की बड़ी जीत थी। डॉ. सिन्हा का बिहार के नवजागरण में वही स्थान माना जाता है जो बंगाल नवजागरण में [[राजा राम मोहन राय]] का। उन्होंने न केवल बिहार में पत्रकारिता की शुरूआत की बल्कि सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक विकास के अग्रदूत भी बने। | |||
==संविधान सभा में डॉ. सिन्हा== | |||
घटना संविधान सभा नियमावली निर्माण के प्रथम दिवस की है और उसका संबंध [[हिंदी भाषा]] से है। [[झाँसी]] के माननीय रघुनाथ विनायक धुलेकर संविधान निर्माण सभा के सदस्य थे जो बाद में [[लोकसभा]] के सांसद तथा [[उत्तर प्रदेश]] विधान परिषद् के अध्यक्ष हुए। वह बडे विद्वान्, धर्मनिष्ठ, कर्मठ और कुशल राजनेता भी थे। संविधान सभा में उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त दक्षिण भारत तथा [[मुस्लिम लीग]] के भी सदस्य थे। गवर्नर जनरल ने [[पटना]] के प्रख्यात विधिवेत्ता सच्चिदानन्द सिन्हा को वरिष्ठता और श्रेष्ठता के कारण इसका अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। [[पं. जवाहरलाल नेहरू]] ने अधिकृत नियम बन जाने तक कार्य संचालन के लिए यह प्रस्ताव रखा कि जब तक संविधान सभा अपने संचालन की नियमावली स्वयं नहीं बना लेती तब तक केंद्रीय धारा सभी के नियमानुसार यथासंभव कार्य किया जाय। तदनुसार कार्य प्रणाली को बनाने के लिए श्री जे.बी. कृपलानी ने केन्द्रीय धारा सभा के नियमों के अनुसार एक लम्बा प्रस्ताव भेजा जिसके अनुसार संविधान सभा को वह नियम निर्माण समिति (प्रोसोडवोर कमेटी) गठित करना था जो संविधान सभा की कार्य प्रणाली के नियम और उसके अधिकारों का नियमन करने के प्रारूप बनाकर संविधान सभा में उसको स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करती। कृपलानी जी का यह प्रस्ताव समस्त संविधान सभा सदस्यों के पास भेजा गया कि अगली बैठक की तिथि के पूर्व तक यदि कोई संशोधन हो तो सचिव संविधान सभा तक पहुँचा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं हो सकता। इस पर माननीय रघुनाथ विनायक धुलेकर ने इस प्रस्ताव पर यह संशोधन भेजा कि यह कार्य नियमावली गठन समिति अपने नियम हिंदुस्तानी में बनाये। वे नियम [[अंग्रेज़ी]] में अनुवाद किये जा सकते हैं। जब कोई सदस्य किसी नियम पर तर्क करे तो वह मूल हिन्दुस्तानी का उपयोग करे और उस पर जो निर्णय किया जाये वह भी हिंदुस्तानी में हो। | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 21: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:बिहार का इतिहास]][[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:22, 7 जून 2011 का अवतरण
- बिहार को बंगाल से पृथक राज्य के रूप में स्थापित करने वाले लोगों में सबसे प्रमुख नाम डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा है।
- सच्चिदानन्द सिन्हा 1910 के चुनाव में चार महाराजों को परास्त कर केन्द्रीय विधान परिषद में प्रतिनिधि निर्वाचित हुए।
- प्रथम भारतीय जिन्हें एक प्रान्त का राज्यपाल और हाउस लार्डस का सदस्य बनने का श्रेय प्राप्त है। वे प्रिवी कौंसिल के सदस्य भी थे।
बिहार की स्थापना में योगदान
बिहार का इतिहास सच्चिदानन्द सिन्हा से शुरू होता है क्योंकि राजनीतिक स्तर पर सबसे पहले उन्होंने ही बिहार की बात उठाई थी। कहते हैं, डा. सिन्हा जब वकालत पास कर इंग्लैंड से लौट रहे थे। तब उनसे एक पंजाबी वकील ने पूछा था कि मिस्टर सिन्हा आप किस प्रान्त के रहने वाले हैं। डा. सिन्हा ने जब बिहार का नाम लिया तो वह पंजाबी वकील आश्चर्य में पड़ गया। इसलिए क्योंकि तब बिहार नाम का कोई प्रांत था ही नहीं। उसके यह कहने पर कि बिहार नाम का कोई प्रांत तो है ही नहीं, डा. सिन्हा ने कहा था, नहीं है लेकिन जल्दी ही होगा। यह घटना फरवरी, 1893 की बात है। डॉ. सिन्हा को ऐसी और भी घटनाओं ने झकझोरा, जब बिहारी युवाओं (पुलिस) के कंधे पर ‘बंगाल पुलिस’ का बिल्ला देखते तो गुस्से से भर जाते थे। डॉ. सिन्हा ने बिहार की आवाज को बुलंद करने के लिए नवजागरण का शंखनाद किया। इस मुहिम में महेश नारायण, नन्दकिशोर लाल, राय बहादुर, कृष्ण सहाय जैसे मुट्ठीभर लोग ही थे। उन दिनों सिर्फ ‘द बिहार हेराल्ड’ अखबार था, जिसके संपादक गुरु प्रसाद सेन थे। तमाम बंगाली अखबार बिहार के पृथककरन का विरोध करते थे। पटना में कई बंगाली पत्रकार थे जो बिहार के हित की बात तो करते थे लेकिन इसके पृथक राज्य बनाने के विरोधी थे। बिहार अलग राज्य के पक्ष में जनमत तैयार करने या कहें माहौल बनाने के उद्देश्य से 1894 में डॉ. सिन्हा ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ ‘द बिहार टाइम्स’ अंग्रेज़ी साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया। स्थितियां बदलते देख बाद में ‘बिहार क्रानिकल्स’ भी बिहार अलग प्रांत के आन्दोलन का समर्थन करने लगा। 1907 में महेश नारायण की मृत्यु के बाद डॉ. सिन्हा अकेले हो गए। इसके बावजूद उन्होंने अपनी मुहिम को जारी रखा। 1911 में अपने मित्र सर अली इमाम से मिलकर केन्द्रीय विधान परिषद में बिहार का मामला रखने के लिए उत्साहित किया। 12 दिसम्बर 1911 को ब्रिटिश सरकार ने बिहार और उड़ीसा के लिए एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इन कौंसिल की घोषणा कर दी। यह डॉ. सिन्हा और उनके समर्थकों की बड़ी जीत थी। डॉ. सिन्हा का बिहार के नवजागरण में वही स्थान माना जाता है जो बंगाल नवजागरण में राजा राम मोहन राय का। उन्होंने न केवल बिहार में पत्रकारिता की शुरूआत की बल्कि सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक विकास के अग्रदूत भी बने।
संविधान सभा में डॉ. सिन्हा
घटना संविधान सभा नियमावली निर्माण के प्रथम दिवस की है और उसका संबंध हिंदी भाषा से है। झाँसी के माननीय रघुनाथ विनायक धुलेकर संविधान निर्माण सभा के सदस्य थे जो बाद में लोकसभा के सांसद तथा उत्तर प्रदेश विधान परिषद् के अध्यक्ष हुए। वह बडे विद्वान्, धर्मनिष्ठ, कर्मठ और कुशल राजनेता भी थे। संविधान सभा में उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त दक्षिण भारत तथा मुस्लिम लीग के भी सदस्य थे। गवर्नर जनरल ने पटना के प्रख्यात विधिवेत्ता सच्चिदानन्द सिन्हा को वरिष्ठता और श्रेष्ठता के कारण इसका अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। पं. जवाहरलाल नेहरू ने अधिकृत नियम बन जाने तक कार्य संचालन के लिए यह प्रस्ताव रखा कि जब तक संविधान सभा अपने संचालन की नियमावली स्वयं नहीं बना लेती तब तक केंद्रीय धारा सभी के नियमानुसार यथासंभव कार्य किया जाय। तदनुसार कार्य प्रणाली को बनाने के लिए श्री जे.बी. कृपलानी ने केन्द्रीय धारा सभा के नियमों के अनुसार एक लम्बा प्रस्ताव भेजा जिसके अनुसार संविधान सभा को वह नियम निर्माण समिति (प्रोसोडवोर कमेटी) गठित करना था जो संविधान सभा की कार्य प्रणाली के नियम और उसके अधिकारों का नियमन करने के प्रारूप बनाकर संविधान सभा में उसको स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करती। कृपलानी जी का यह प्रस्ताव समस्त संविधान सभा सदस्यों के पास भेजा गया कि अगली बैठक की तिथि के पूर्व तक यदि कोई संशोधन हो तो सचिव संविधान सभा तक पहुँचा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य किसी प्रस्ताव पर विचार नहीं हो सकता। इस पर माननीय रघुनाथ विनायक धुलेकर ने इस प्रस्ताव पर यह संशोधन भेजा कि यह कार्य नियमावली गठन समिति अपने नियम हिंदुस्तानी में बनाये। वे नियम अंग्रेज़ी में अनुवाद किये जा सकते हैं। जब कोई सदस्य किसी नियम पर तर्क करे तो वह मूल हिन्दुस्तानी का उपयोग करे और उस पर जो निर्णय किया जाये वह भी हिंदुस्तानी में हो।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ