"चन्द्रधर शर्मा गुलेरी": अवतरणों में अंतर
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चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 1883 ई. गुलेर ज़िला कांगड़ा में हुआ था। उनके पिता [[संस्कृत]] के प्रसिद्ध | चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 1883 ई. गुलेर ज़िला कांगड़ा में हुआ था। उनके पिता [[संस्कृत]] के प्रसिद्ध पंडित शिवराम [[जयपुर]] नरेश के राजदरबार में थे। जब गुलेरी जी दस वर्ष के ही थे कि इन्होंने एक बार संस्कृत में भाषण देकर [[भारत]] [[धर्म]] महामंडल के विद्वानों को आश्चर्य चकित कर दिया था। पंडित कीर्तिधर शर्मा गुलेरी का यहाँ तक कहना था कि वे पाँच वर्ष में [[अंग्रेज़ी]] का टैलीग्राम अच्छी तरह पढ़ लेते थे। चन्द्रधर ने सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। चन्द्रधर बी.ए. की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। सन [[1904]] ई. में गुलेरी जी मेयो कॉलेज [[अजमेर]] में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। चन्द्रधर का अध्यापक के रूप में उनका बड़ा मान-सम्मान था। अपने शिष्यों में चन्द्रधर लोकप्रिय तो थे ही इसके साथ अनुशासन और नियमों का वे सख्ती से अनुपालन करते थे। उनकी आसाधारण योग्यता से प्रभावित होकर [[पंडित मदनमोहन मालवीय]] ने उन्हें [[बनारस]] बुला भेजा और हिंन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिलाया।<ref name="चन्द्रधर शर्मा गुलेरी">{{cite web |url=http://hindipatal.com/%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%81/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%B0-%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80/ |title=चन्द्रधर शर्मा गुलेरी |accessmonthday=[[20 जून]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हिंदी पटल – हिन्दी की उत्कृष्ट रचनाओं का उत्तम संग्रह |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (जन्म-1883 गुलेर ज़िला कांगड़ा, मृत्यु- 12 सितम्बर, 1922 काशी) हिन्दी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार थे।
जीवन परिचय
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 1883 ई. गुलेर ज़िला कांगड़ा में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के प्रसिद्ध पंडित शिवराम जयपुर नरेश के राजदरबार में थे। जब गुलेरी जी दस वर्ष के ही थे कि इन्होंने एक बार संस्कृत में भाषण देकर भारत धर्म महामंडल के विद्वानों को आश्चर्य चकित कर दिया था। पंडित कीर्तिधर शर्मा गुलेरी का यहाँ तक कहना था कि वे पाँच वर्ष में अंग्रेज़ी का टैलीग्राम अच्छी तरह पढ़ लेते थे। चन्द्रधर ने सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। चन्द्रधर बी.ए. की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। सन 1904 ई. में गुलेरी जी मेयो कॉलेज अजमेर में अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे। चन्द्रधर का अध्यापक के रूप में उनका बड़ा मान-सम्मान था। अपने शिष्यों में चन्द्रधर लोकप्रिय तो थे ही इसके साथ अनुशासन और नियमों का वे सख्ती से अनुपालन करते थे। उनकी आसाधारण योग्यता से प्रभावित होकर पंडित मदनमोहन मालवीय ने उन्हें बनारस बुला भेजा और हिंन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद दिलाया।[1]
भाषा विशेषज्ञ
प्रतिभा के धनी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने अपने अभ्यास से संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं पर असाधारण अधिकार प्राप्त किया। उन्हें मराठी, बंगला, लैटिन, फ़्रैंच, जर्मन आदि भाषाओं की भी अच्छी जानकारी थी। उनके अध्ययन का क्षेत्र बहुत विस्तृत था। साहित्य, दर्शन, भाषाविज्ञान, प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्त्व ज्योतिष सभी विषयों के वे विद्वान थे। इनमें से कोई विषय ऐसा नहीं था, जिस पर गुलेरी जी ने साधिकार लिखा न हो। वे अपनी रचनाओं में स्थल-स्थल पर वेद, उपनिषद, सूत्र, पुराण, रामायण, महाभारत के संदर्भों का संकेत दिया करते थे। इसीलिए इन ग्रन्थों से परिचित पाठक ही उनकी रचनाओं को भली-भाँति समझ सकता था। ग्रन्थ रचना की अपेक्षा स्फुट के रूप में ही उन्होंने अधिक साहित्य सृजन किया।[2]
कृतियाँ
- निबंध
निबंधकार के रूप में भी चंद्रधर जी बडे प्रसिद्ध रहे हैं। इन्होंने सौ से अधिक निबंध लिखे हैं। सन 1903 ई. में जयपुर से जैन वैद्य के माध्यम से समालोचक पत्र प्रकाशित होना शुरु हुआ था जिसके वे संपादक रहे। इन्होंने पूरे मनोयोग से समालोचक में अपने निबंध और टिप्पणियाँ देकर जीवंत बनाए रखा। चंद्रधर के निबंध अधिकतर विषय-इतिहास, दर्शन, धर्म, मनोविज्ञान और पुरातत्व संबंधी ही हैं।
- शैशुनाक की मूर्तियाँ
- देवकुल
- पुरानी हिन्दी
- संगीत
- कच्छुआ धर्म
- आँख
- मोरेसि मोहिं कुठाऊँ
- सोहम आदि जैसे निबंधों पर उनकी विद्वता की अमिट छाप मौजूद है।
- कविताएँ
- एशिया की विजय दशमी
- भारत की जय
- वेनॉक बर्न
- आहिताग्नि
- झुकी कमान
- स्वागत
- रवि
- ईश्वर से प्रार्थना
- सुनीति आदि इनकी कतिपय श्रेष्ठ कविताएँ हैं। ये कविताएँ गुलेरी विषयक संपादित गंथों में संकलित हैं।
- कहानी संग्रह
- उसने कहा था
- सुखमय जीवन
- बुद्धु का काँटा[1]
ख्याति
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की हिन्दी साहित्य में सबसे अधिक ख्याति 1915 में ‘सरस्वती’ मासिक में प्रकाशित कहानी ‘उसने कहा था’ के कारण हुई। यह कहानी शिल्प और विषय-वस्तु की दृष्टि से आज भी ‘मील का पत्थर’ मानी जाती है।[2]
मृत्यु
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की मृत्यु 12 सितम्बर 1922 ई. में काशी में हुई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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