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*जो भी मनुष्य प्रतिदिन प्रातः काल उठकर इन ज्योतिर्लिंगों से सम्बन्धित श्लोकों का पाठ करता है अर्थात उपर्युक्त श्लोकों को पढ़ता हुआ शिवलिंगों का ध्यान करता है, उसके सात जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। जिस कामना की पूर्ति के लिए मनुष्य नित्य इन नामों का पाठ करता है, शीघ्र ही उस फल की प्राप्ति हो जाती है। इन लिंगो के दर्शन मात्र से सभी पापों का क्षय हो जाता है, यही प्रसन्न भगवान [[शंकर]] की विशेषता है। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने के बाद [[ब्रह्मा]]जी और भगवान [[विष्णु]] ने उनकी स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गये। उन्होंने इन देवताओं से कहा देववरों! मैं आप लोगों पर बहुत प्रसन्न हूँ। आप दोनों ही मेरी इच्छा के अनुरूप प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। मैने अपने निर्गुण स्वरूप को तीन रूपों में बाँटकर अलग-अलग गुणों से युक्त कर दिय है। मेरे दाहिने भाग में लोक पितामह ब्रह्मा, बायें भाग में विष्णु तथा ह्दयप्रदेश में परमात्मा अवस्थित है। यद्यपि मै निर्गुण हूँ, फिर भी गुणों के संयोग से मेरा बन्धन नहीं होता है। | *जो भी मनुष्य प्रतिदिन प्रातः काल उठकर इन ज्योतिर्लिंगों से सम्बन्धित श्लोकों का पाठ करता है अर्थात उपर्युक्त श्लोकों को पढ़ता हुआ शिवलिंगों का ध्यान करता है, उसके सात जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। जिस कामना की पूर्ति के लिए मनुष्य नित्य इन नामों का पाठ करता है, शीघ्र ही उस फल की प्राप्ति हो जाती है। इन लिंगो के दर्शन मात्र से सभी पापों का क्षय हो जाता है, यही प्रसन्न भगवान [[शंकर]] की विशेषता है। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने के बाद [[ब्रह्मा]]जी और भगवान [[विष्णु]] ने उनकी स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गये। उन्होंने इन देवताओं से कहा देववरों! मैं आप लोगों पर बहुत प्रसन्न हूँ। आप दोनों ही मेरी इच्छा के अनुरूप प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। मैने अपने निर्गुण स्वरूप को तीन रूपों में बाँटकर अलग-अलग गुणों से युक्त कर दिय है। मेरे दाहिने भाग में लोक पितामह ब्रह्मा, बायें भाग में विष्णु तथा ह्दयप्रदेश में परमात्मा अवस्थित है। यद्यपि मै निर्गुण हूँ, फिर भी गुणों के संयोग से मेरा बन्धन नहीं होता है। | ||
*इस लोक के सारे दृश्य पदार्थ मेरे ही स्वरूप है। मैं आप दोनों तथा उत्पन्न होने वाले 'रूद्र' नामक व्यक्ति सब एक ही रूप हैं । हम लोगों के अन्दर किसी भी प्रकार का भेद नहीं है, क्योंकि भेद ही बन्धन का कारक बनता है। उसके बाद प्रसन्न शिव ने विष्णु से कहा- ‘हे सनातन विष्णो! आप जीवों की मुक्ति प्रदान करने का दायित्व सम्हालिए। मेरे दर्शन करने से जो भी फल प्राप्त होता है, वही फल आपके दर्शन करने से भी मिलेगा। मेरे ह्वदय़ में निवास करते हैं और मैं आपके ह्वदय में निवास करता हूँ। इस प्रकार का भाव जो भी मनुष्य अपने ह्वदय में रखता है और मेरे तथा आप मैं कोई भेद नहीं देखता है, ऐसा मनुष्य मुझे अत्यन्त प्रिय है। इस प्रकार रहस्यमय उपदेश देने के बाद भगवान शिव अन्तर्धान हो गये। | *इस लोक के सारे दृश्य पदार्थ मेरे ही स्वरूप है। मैं आप दोनों तथा उत्पन्न होने वाले 'रूद्र' नामक व्यक्ति सब एक ही रूप हैं । हम लोगों के अन्दर किसी भी प्रकार का भेद नहीं है, क्योंकि भेद ही बन्धन का कारक बनता है। उसके बाद प्रसन्न शिव ने विष्णु से कहा- ‘हे सनातन विष्णो! आप जीवों की मुक्ति प्रदान करने का दायित्व सम्हालिए। मेरे दर्शन करने से जो भी फल प्राप्त होता है, वही फल आपके दर्शन करने से भी मिलेगा। मेरे ह्वदय़ में निवास करते हैं और मैं आपके ह्वदय में निवास करता हूँ। इस प्रकार का भाव जो भी मनुष्य अपने ह्वदय में रखता है और मेरे तथा आप मैं कोई भेद नहीं देखता है, ऐसा मनुष्य मुझे अत्यन्त प्रिय है। इस प्रकार रहस्यमय उपदेश देने के बाद भगवान शिव अन्तर्धान हो गये। | ||
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चित्र:Bhimshankar.jpg|भीमशंकर मन्दिर<br /> Bhimashankar Temple | |||
चित्र:Kashi-Vishwanath.jpg|काशी विश्वनाथ मन्दिर<br /> Kashi Vishwanath Temple | |||
चित्र:Omkareshwar.jpg|ओंकारश्वर मन्दिर<br /> Omkareshwar Temple | |||
चित्र:Trimbakeshwar.jpg|त्रयंबकेश्वर मंदिर<br /> Trimbakeshwar Temple | |||
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04:54, 2 मई 2010 का अवतरण
द्वाद्वश ज्योतिर्लिंग
शिव पुराण के कोटिरूद्र सहिंता<balloon title="शिव पुराण, कोटिरूद्र सहिंता,1-21-24" style=color:blue>*</balloon> में वर्णित कथानक के अनुसार भगवान शिवशंकर प्राणियों के कल्याण हेतु जगह-जगह तीर्थों में भ्रमण करते रहते हैं तथा लिंग के रूप में वहाँ निवास भी करते हैं कुछ विशेष स्थानों पर शिव के उपासकों ने महती निष्ठा के साथा तन्मय होकर भूतभावन की आराधना की थी। उनके भक्तिभाव के प्रेम से आकर्षित भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तथा उनके मन की अभिलाषा को भी पूर्ण किया था। उन स्थानों में आविर्भूत (प्रकट) दयालु शिव अपने भक्तो के अनुरोध पर अपने अंशों से सदा के लिए वहीं अवस्थित हो गये। लिंग के रूप में साक्षात भगवान शिव जिन-जिन स्थानों में विराजमान हुए, वे सभी तीर्थ के रूप में महत्व को प्राप्त हुए।
शिव द्वारा शिवलिंग रूप धारण
सम्पूर्ण तीर्थ ही लिंगमय है तथा सब कुछ लिंग में समाहित है। वैसे तो शिवलिंगों की गणना अत्यन्त कठिन है। जो भी दृश्य दिखाई पड़ता है अथवा हम जिस किसी भी दृश्य का स्मरण करते हैं, वह सब भगवान शिव का ही रूप है, उससे पृथक कोई वस्तु नहीं है। सम्पूर्ण चराचर जगत पर अनुग्रह करने के लिए ही भगवान शिव ने देवता, असुर, गन्धर्व, राक्षस तथा मनुष्यों सहित तीनों लोकों को लिंग के रूप में व्याप्त कर रखा है। सम्पूर्ण लोकों पर कृपा करने की दृष्टि से ही वे भगवान महेश्वर तीर्थ में तथा विभिन्न जगहों में भी अनेक प्रकार के लिंग धारण करते हैं। जहाँ-जहाँ जब भी उनके भक्तों ने श्रद्धा-भक्ति पूर्वक उनका स्मरण या चिन्तन किया, वहीं वे अवतरित हो गये अर्थात प्रकट होकर वहीं स्थित (विराजमान) हो गये। जगत का कल्याण करने हेतु भगवान शिव ने स्वयम अपने स्वरूप क अनुकूल लिंग की परिकल्पना की और उसी में वे प्रतिष्टित हो गये। ऐसे लिंगों की पूजा करके शिवभक्त सब प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। भूमण्डल के लिंगों की गणना तो नहीं की जा सकती, किन्तु उनमे कुछ प्रमुख शिवलिंग हैं।
शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण के अनुसार प्रमुख द्वादश ज्योतिर्लिंग इस प्रकार हैं, जिनमें नाम श्रवण मात्र से मनुष्य का किया हुआ पाप दूर भाग जाता है।
- प्रथम ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र में अवस्थित 'सोमनाथ' का है। यह स्थान काठियावाड़ के प्रभास क्षेत्र में हैं।
- श्रीशैल पर विराजमान दूसरा ज्योतिर्लिंग 'मल्लिकार्जुन' है। यह स्थान तमिलनाडु प्रदेश के कृष्णा ज़िले में पड़ता है। यहाँ कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल या श्रीपर्वत पर मल्लिकार्जुन नामक ज्योतिर्लिंग अवस्थित हैं।
- तृतीय ज्योतिर्लिंग महाकाल या 'महाकालेश्वर' के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान मध्य प्रदेश के उज्जैन नाम का नगर है, जिसे प्राचीन साहित्य में अवन्तिका पुरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर भगवान महाकालेश्वर का भव्य ज्योतिर्लिंग का मन्दिर विद्यमान है।
- चतुर्थ ज्योतिर्लिंग का नाम 'ओंकारश्वर' या परमेश्रवर है। यह स्थान भी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में ही पड़ता है। यह प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। यहाँ ओकारेश्वर और अमलेश्वर नाम से दो लिंग स्थापित हैं, किन्तु इन दोनों को एक ही ज्योतिर्लिंग का पृथक-पृथक स्वरूप माना जाता है।
- पाँचवाँ ज्योतिर्लिंग हिमालय की चोटी पर विराजमान श्री 'केदारनाथ' जी का है। श्री केदारनाथ को केदारेश्वर भी कहा जाता है, जो केदार नामक शिखर पर विराजमान हैं। इस शिखर से पूरब दिशा में अलकनन्दा नदी के किनारे भगवान श्री बदरीविशाल का मन्दिर है और उससे पश्चिम की ओर मन्दाकिनी नदी के किनारे केदारनाथ विराजमान हैं। यह केदार घाटी उत्तराखंड प्रदेश के उत्तरकाशी जनपद में पड़ता है।
- षष्ठ ज्योतिर्लिंग का नाम ‘भीमशंकर’ है, जो डाकिनी पर अवस्थित है। यह स्थान महाराष्ट्र में मुम्बई से पूरब तथा पूना से उत्तर की ओर स्थित है, जो भीमा नदी के किनारे सहयात्र पर्वत पर हैं भीमा नदी भी इसी पर्वत से निकलती है। यह ज्योतिर्लिंग सहयात्र पर्वत की जिस चोटी पर है, उसका नाम डाकिनी है। भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में कुछ वैमत्य भी है। शिव पुराण में वर्णित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का स्थान असम प्रदेश के कामरूप जिले के गुवाहाटी के समीप ब्रह्मपुर पहाड़ी पर प्रतीत होता है, जब कि कुछ लोग उत्तराखण्ड के नैनीताल ज़िले में उज्जनक नामक स्थान पर स्थित विशाल शिवमन्दिर को भीमशंकर बताते है।
- काशी में विराजमान भूतभावन भगवान श्री 'विश्वनाथ' को सप्तम ज्योतिर्लिंग कहा गया है।
- अष्टम ज्योतिर्लिंग को ‘त्र्यम्बक’ के नाम से भी जाना जाता है, इंन्हें नासिक ज़िले में पंचवटी से लगभग अठारह मील की दूरी पर है। यह मन्दिर ब्रह्मगिरि के पास गोदावरी नदी कें किनारे अवस्थित हैं।
- नवम ज्योतिर्लिंग 'वैद्यनाथ' हैं। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त के संथाल परगना में जसीडीह रेलवे स्टेशन के समीप में है। पुराणों में इस जगह को चिताभूमि कहा गया है। पाठान्तर के आग्रह से इस लिंग को कुछ लोग दक्षिण में बताते हैं, जो हैदराबाद से परभनी जंक्शन की ओर ‘परली’ एक छोटा स्टेशन है, वहाँ से कुछ ही दूर पर परली गाँव के समीप वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग हैं।
- 'नागेश' नामक ज्योतिर्लिंग दशम है, जो गुजरात के बडौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के समीप है। इस स्थान को दारूकावन भी कहा जाता है। कुछ लोग दक्षिण हैदराबाद के औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिंग का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं, तो कोई-कोई उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
- एकादशवें ज्योतिर्लिंग श्री 'रामेश्वर' हैं। रामेश्वरतीर्थ को ही सेतुबन्ध तीर्थ कहा जाता है। यह स्थान तमिलनाडु के रामनाथम जनपद में स्थित है। यहाँ समुद्र के किनारे भगवान श्री रामेश्वरम का विशाल मन्दिर शोभित है।
- द्वादशवें ज्योतिर्लिंग का 'घुश्मेश्वर' है। इन्हें कोई घृष्णेश्वर और घुसृणेश्वर भी कहते हैं। यह स्थान महाराष्ट्र क्षेत्र के अन्तर्गत दौलताबाद से लगभग अठारह किलोमीटर दूर ‘बेरूलठ गाँव के पास है। इस स्थान को ‘शिवालय’ भी कहा जाता है।
- उपर्युक्त द्वादश ज्योतिर्लिंगों के सम्बन्ध में शिव पुराण की कोटि 'रूद्रसंहिता' में निम्नलिखित श्लोक दिया गया है-
सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।
- जो भी मनुष्य प्रतिदिन प्रातः काल उठकर इन ज्योतिर्लिंगों से सम्बन्धित श्लोकों का पाठ करता है अर्थात उपर्युक्त श्लोकों को पढ़ता हुआ शिवलिंगों का ध्यान करता है, उसके सात जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। जिस कामना की पूर्ति के लिए मनुष्य नित्य इन नामों का पाठ करता है, शीघ्र ही उस फल की प्राप्ति हो जाती है। इन लिंगो के दर्शन मात्र से सभी पापों का क्षय हो जाता है, यही प्रसन्न भगवान शंकर की विशेषता है। भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग में प्रकट होने के बाद ब्रह्माजी और भगवान विष्णु ने उनकी स्तुति की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो गये। उन्होंने इन देवताओं से कहा देववरों! मैं आप लोगों पर बहुत प्रसन्न हूँ। आप दोनों ही मेरी इच्छा के अनुरूप प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। मैने अपने निर्गुण स्वरूप को तीन रूपों में बाँटकर अलग-अलग गुणों से युक्त कर दिय है। मेरे दाहिने भाग में लोक पितामह ब्रह्मा, बायें भाग में विष्णु तथा ह्दयप्रदेश में परमात्मा अवस्थित है। यद्यपि मै निर्गुण हूँ, फिर भी गुणों के संयोग से मेरा बन्धन नहीं होता है।
- इस लोक के सारे दृश्य पदार्थ मेरे ही स्वरूप है। मैं आप दोनों तथा उत्पन्न होने वाले 'रूद्र' नामक व्यक्ति सब एक ही रूप हैं । हम लोगों के अन्दर किसी भी प्रकार का भेद नहीं है, क्योंकि भेद ही बन्धन का कारक बनता है। उसके बाद प्रसन्न शिव ने विष्णु से कहा- ‘हे सनातन विष्णो! आप जीवों की मुक्ति प्रदान करने का दायित्व सम्हालिए। मेरे दर्शन करने से जो भी फल प्राप्त होता है, वही फल आपके दर्शन करने से भी मिलेगा। मेरे ह्वदय़ में निवास करते हैं और मैं आपके ह्वदय में निवास करता हूँ। इस प्रकार का भाव जो भी मनुष्य अपने ह्वदय में रखता है और मेरे तथा आप मैं कोई भेद नहीं देखता है, ऐसा मनुष्य मुझे अत्यन्त प्रिय है। इस प्रकार रहस्यमय उपदेश देने के बाद भगवान शिव अन्तर्धान हो गये।
वीथिका
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भीमशंकर मन्दिर
Bhimashankar Temple -
काशी विश्वनाथ मन्दिर
Kashi Vishwanath Temple -
ओंकारश्वर मन्दिर
Omkareshwar Temple -
त्रयंबकेश्वर मंदिर
Trimbakeshwar Temple