"सोयाबीन": अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
सोयाबीन दाल की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न दूध और दही देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न विटामिन, धातव, लवण और उच्च श्रेणी के प्रोटीन, शर्करा तथा चर्बी जातीय खाद्ययो से समृद्ध है। सोयाबीन गुणवत्ता कि दृष्टी से भी सभी खाद्यान्नों से बढ़कर है। इन्ही सब विशेषताओं के कारण सोयाबीन को जादुई बीज भी कहा जाता है।
सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ग्लाईसिन मैक्स एल मीर हैं। यह शिम्बी कुल और सेम जाति का धान्य हैं। अंग्रेजी में इसे सोयाबीन तथा हिंदी सोया, सेवदाना भट्वास कहा जाता हैं। यह वसा ह्रदय रोग में हितकर हैं और घी व माखन के सामान रोग प्रतिरोधक हैं।  
सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ग्लाईसिन मैक्स एल मीर हैं। यह शिम्बी कुल और सेम जाति का धान्य हैं। अंग्रेजी में इसे सोयाबीन तथा हिंदी सोया, सेवदाना भट्वास कहा जाता हैं। यह वसा ह्रदय रोग में हितकर हैं और घी व माखन के सामान रोग प्रतिरोधक हैं।  


सोयाबीन दाल की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न दूध और दही देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न विटामिन, धातव, लवण और उच्च श्रेणी के प्रोटीन, शर्करा तथा चर्बी जातीय खादयौं से सम्रिध्ह है। सोयाबीन गुणवत्ता कि दृष्टी से भी सभी खाद्यान्नों से बढ़कर है। इन्ही सब विशेषताओं के कारण सोयाबीन को जादुई बीज भी कहा जाता है।
सोयाबीन कई प्रकार के होते हैं - लाल, पीले, बादामी, काले आदि रंगों के सोयाबीन बाज़ार में बिकते है। मनुष्य केवल हरे तथा सफ़ेद रंग के सोयाबीन खाद्य के रूप में ग्रहण करते हैं।


सोयाबीन प्रोटीन का सर्वोतम स्रोत हैं। सोयाबीन में 43.2% प्रोटीन पाया जाता हैं। इस कारण इस स्वास्थ्यवर्धक आहार को "प्रोटीनो का राजा" कहा जाता हैं। सोयाबीन का प्रोटीन सुपाच्य होता हैं जिसके कारण यह बालक, वृद्ध, कमजोर, रुग्ण, गर्भवती और प्रसूति महिलाओ के लिए बहुत उपयोगी हैं। 100 ग्राम सोयाबीन में जीतनी प्रोटीन होती हैं, उतना ही प्रोटीन पाने के लिए 200 ग्राम पिश्ते की गिरी या 1200 ग्राम गाय-भैस का दूध या 7-8 अंडे या 300 ग्राम हड्डी विहीन मांस की आवश्यकता पड़ती हैं।  
सोयाबीन प्रोटीन का सर्वोतम स्रोत हैं। सोयाबीन में 43.2% प्रोटीन पाया जाता हैं। इस कारण इस स्वास्थ्यवर्धक आहार को "प्रोटीनो का राजा" कहा जाता हैं। सोयाबीन का प्रोटीन सुपाच्य होता हैं जिसके कारण यह बालक, वृद्ध, कमजोर, रुग्ण, गर्भवती और प्रसूति महिलाओ के लिए बहुत उपयोगी हैं। 100 ग्राम सोयाबीन में जीतनी प्रोटीन होती हैं, उतना ही प्रोटीन पाने के लिए 200 ग्राम पिश्ते की गिरी या 1200 ग्राम गाय-भैस का दूध या 7-8 अंडे या 300 ग्राम हड्डी विहीन मांस की आवश्यकता पड़ती हैं।  
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साधारणतः ऐसा सोचा जाता है कि सोयाबीन बहुत मुश्किल से पचने वाला खाद्य है परन्तु ऐसा सोचना व्यर्थ है। जब यह ठीक तरह से पकाया जाता है तब यह अन्य किसी भी खाद्य के समान सुपाच्य हो जाता है।  
साधारणतः ऐसा सोचा जाता है कि सोयाबीन बहुत मुश्किल से पचने वाला खाद्य है परन्तु ऐसा सोचना व्यर्थ है। जब यह ठीक तरह से पकाया जाता है तब यह अन्य किसी भी खाद्य के समान सुपाच्य हो जाता है।  


सोयाबीन कई प्रकार के होते हैं - लाल, पीले, बादामी, काले आदि रंगों के सोयाबीन बाज़ार में बिकते है। मनुष्य केवल हरे तथा सफ़ेद रंग के सोयाबीन खाद्य के रूप में ग्रहण करते हैं।
==सोयाबीन का रोगी में प्रयोग==
डॉक्टरों का मानना है कि दवाओं से कोलेस्ट्राल पर काबू पाने से बेहतर है कि आप अपना खान-पान थोडा बदलें। जैसे- सोया प्रोटीन एलडीएल की मात्रा 14 फीसदी तक घटा सकते हैं। हर दिन 2 गिलास सोया का दूध पीना ही इसके लियें काफी है। इसके अलावा जौ के साबुत दानों में मौजूद रेशे जो कि दालों में भी मिलते हैं, एलडीएल की समस्या से निजात दिलाने में सहायक है।
 
सोयाबीन दिल के स्वास्थ्य का पोषक है। रोजाना 25 ग्राम सोया प्रोटीन को खाने से लाभ होता है। खोजों में यह पाया गया है कि सोयाबीन रक्तवसा को घटाता है और सीएचडी के वृद्धि के खतरे को बढ़ने नही देता। जो लोग रोजाना औसतन 47 ग्राम सोया प्रोटीन खाते हैं, उनकी पूर्ण रक्तवसा में 9 प्रतिशत कमी होती है। एलडीएल खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर प्राय: 13 प्रतिशत कम हुआ। एचडीएल अच्छा कोलेस्ट्रॉल मगर बढ़ा और ट्राइग्लीसेराइड्स घट कर 10 से 11 प्रतिशत कम हुआ। जिनके रक्तवसा के माप शुरू में ही अपेक्षाकृत अधिक थे, उनको आश्चर्यजनक रूप से लाभ हुआ।
;कैंसर के रोगी में सोयाबीन
सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व पायें जाते है। जो कैंसर से बचाव का कार्य करते है। क्योकि इसमें कायटोकेमिकल्स पायें जाते है, खासकर फायटोएस्ट्रोजन और 950 प्रकार के हार्मोन्स। यह सब बहुत लाभदायक है। इन तत्त्वों के कारण स्तन कैंसर एवं एंडोमिट्रियोसिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह देखा गया है कि इन तत्त्वों के कारण कैंसर के टयूमर बढ़ते नही है और उनका आकार भी घट जाता है। सोयाबीन के उपयोग से कैंसर में 30 से 45 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
 
अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का खतरा कम हो जाता है। महिलाओं की सेहत के लियें सोयाबीन बेहद लाभदायक आहार है। ओमेगा 3 नामक वसा युक्त अम्ल महिलाओं में जन्म से पहले से ही उनमें स्तन कैंसर से बचाव करना आरम्भ कर देता है। जो महिलायें गर्भावस्था तथा स्तनपान के समय ओमेगा 3 अम्ल की प्रचुरता युक्त भोजन करती है, उनकी संतानों कें स्तन कैंसर की आशंका कम होती है। ओमेगा-3 अखरोट, सोयाबीन व मछलियों में पाया जाता है। इससे दिल के रोग होने की आंशका में काफी कमी आती है। इसलिये महिलाओं को गर्भावस्था व स्तनपान कराते समय अखरोट और सोयाबीन का सेवन करते रहना चाहियें।
 
कैंसर के रोगी जो केमोथेरेपी, रेडिएशन कराते है उन पर उनके दुष्प्रभाव-असहनीय दर्द, खून बहना, खून की कमी, थकान, वजन घटना, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त, कब्ज, भूख की कमी, कमजोरी, सिर के बाल गिरना, निराशा, रोग की असाध्यता से मानसिक रूप से पड़ते है।
 
===हानिकारक===
गर्भधारण करने वाली स्त्रियों को सोयाबीन का प्रयोग बिलकुल नही करना चाहियें इससे होने वाली सन्तान पर बुरा असर पड़ता है।


==सोयाबीन से बने पदार्थ==
;सोयाबीन का दूध
दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से ज्यादा दिन की भंडारित न हो। सोयाबीन से दूध बनाने के लिए सर्वप्रथम सोयाबीन को 8 घंटे भिगोया जाता है और फिर हाथ से रगड़कर उसका छिलका उतार लिया जाता है। उसके बाद दाल को धोकर उसे सिलबट्टे पर या इलेक्ट्रिक ग्राइंडर में बारीक पीसा जाता है। इसमें पिसी हुई इलायची और शक्कर मिलाकर 15 मिनट तक उबालना चाहिये, जिससे उसमें हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार सोयाबीन से दूध तैयार किया जाता है। इस दूध को फ्रीज में 15 दिन तक रखा जा सकता है। इसमें रंग मिलाकर इसे रंगीन भी बनाया जा सकता है। इस सोया दूध से दही, पनीर, आइसक्रीम और खीर आसानी से बनायी जा सकती है। सोया दूध गाय, भैंस के दूध के समतुल्य पौष्टिक होता है। मसलन - गाय के 100 ग्राम दूध में 3.2 प्रतिशत प्रोटीन, 4 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कारबोज, 0.11 प्रतिशत कैल्शियम, 0.07 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है, वहीं सोया दूध में 4.2 प्रतिशत प्रोटीन, 2.4 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत कारबोज, 0.08 प्रतिशत कैल्शियम, 0.10 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। इस प्रकार सोयादूध पौष्टिक होने के साथ-साथ संपूर्ण आहार भी है।  
दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से ज्यादा दिन की भंडारित न हो। सोयाबीन से दूध बनाने के लिए सर्वप्रथम सोयाबीन को 8 घंटे भिगोया जाता है और फिर हाथ से रगड़कर उसका छिलका उतार लिया जाता है। उसके बाद दाल को धोकर उसे सिलबट्टे पर या इलेक्ट्रिक ग्राइंडर में बारीक पीसा जाता है। इसमें पिसी हुई इलायची और शक्कर मिलाकर 15 मिनट तक उबालना चाहिये, जिससे उसमें हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार सोयाबीन से दूध तैयार किया जाता है। इस दूध को फ्रीज में 15 दिन तक रखा जा सकता है। इसमें रंग मिलाकर इसे रंगीन भी बनाया जा सकता है। इस सोया दूध से दही, पनीर, आइसक्रीम और खीर आसानी से बनायी जा सकती है। सोया दूध गाय, भैंस के दूध के समतुल्य पौष्टिक होता है। मसलन - गाय के 100 ग्राम दूध में 3.2 प्रतिशत प्रोटीन, 4 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कारबोज, 0.11 प्रतिशत कैल्शियम, 0.07 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है, वहीं सोया दूध में 4.2 प्रतिशत प्रोटीन, 2.4 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत कारबोज, 0.08 प्रतिशत कैल्शियम, 0.10 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। इस प्रकार सोयादूध पौष्टिक होने के साथ-साथ संपूर्ण आहार भी है।  


सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से ज्यादा सोया दूध बनाया जा सकता है। हमारे देश में दूध महंगा होने के कारण निर्धन वर्ग इससे वंचित रहता है और कुपोषण के कारण अनेक बीमारियों का शिकार बनता है। ऐसी स्थिति में ग़रीब थोड़ा-सा परिश्रम करके घर में ही 10 रुपये प्रति किलो की दर से सोया दूध तैयार कर सकते हैं और कुपोषण से भी बच सकते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी सोया दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है। सोयादूध ग़रीबों और बेरोज़गारों के लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है।
सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से ज्यादा सोया दूध बनाया जा सकता है। हमारे देश में दूध महंगा होने के कारण निर्धन वर्ग इससे वंचित रहता है और कुपोषण के कारण अनेक बीमारियों का शिकार बनता है। ऐसी स्थिति में ग़रीब थोड़ा-सा परिश्रम करके घर में ही 10 रुपये प्रति किलो की दर से सोया दूध तैयार कर सकते हैं और कुपोषण से भी बच सकते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी सोया दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है। सोयादूध ग़रीबों और बेरोज़गारों के लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है।
;सोयाबीन का दही बड़ा
सामग्री : 100 ग्राम सोयाबीन, 50 ग्राम उड़द की धुली दाल, घी-तेल तलने के लियें, सोंठ पिसी-चौथाई छोटी चम्मच, 500 ग्राम दही, भुना जीरा, लाल मिर्च, काला नमक, सफेद नमक स्वादानुसार।
विधि : सोयाबीन व उड़द की दाल को अलग-अलग रातभर भिगोयें। सोयाबीन के छिलके अलग कर दोनों को मिलाकर पेस्ट बना लें। इसमें सोंठ भी मिलायें इसे खूब अच्छी तरह मिलाकर फेट लें और बड़े बना कर तल लें। थोड़े गुनगुने पानी में नमक मिलाकर तले हुए बड़ों को 2 मिनट पानी में रखकर, निकालकर, दबाकर पानी अलग कर बड़ों को दही में डाल दें। ऊपर से मसाला डालकर परोसें।
स्वाद के लियें : इस बने हुए पेस्ट में सभी मसालें, हरी मिर्च, हरा धनिया आदि डालकर बड़े बनाकर चटनी या सॉस के साथ परोंसें।
;सोयाबीन की छाछ
सोयाबीन को दही में उचित मात्रा में पानी मिलाकर अच्छी तरह मिलाने से छाछ बन जाती है और मक्खन भी निकलता है।





12:06, 2 अगस्त 2011 का अवतरण

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परिचय

सोयाबीन दाल की तरह एक वस्तु है, परन्तु इससे उत्पन्न दूध और दही देखने में और खाने में दूध और दूध की वस्तुओं की तरह ही होते हैं परन्तु इसका मूल्य दूध के मूल्य का सोलवां भाग है। उपकारिता की दृष्टि से भी सोयाबीन का स्थान दूध से किसी तरह कम नहीं हैं। संसार में सोयाबीन के समान पुष्टिकारक कोई अन्य खाद्य मिलना कठिन है। यह विभिन्न विटामिन, धातव, लवण और उच्च श्रेणी के प्रोटीन, शर्करा तथा चर्बी जातीय खाद्ययो से समृद्ध है। सोयाबीन गुणवत्ता कि दृष्टी से भी सभी खाद्यान्नों से बढ़कर है। इन्ही सब विशेषताओं के कारण सोयाबीन को जादुई बीज भी कहा जाता है।

सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ग्लाईसिन मैक्स एल मीर हैं। यह शिम्बी कुल और सेम जाति का धान्य हैं। अंग्रेजी में इसे सोयाबीन तथा हिंदी सोया, सेवदाना भट्वास कहा जाता हैं। यह वसा ह्रदय रोग में हितकर हैं और घी व माखन के सामान रोग प्रतिरोधक हैं।

सोयाबीन कई प्रकार के होते हैं - लाल, पीले, बादामी, काले आदि रंगों के सोयाबीन बाज़ार में बिकते है। मनुष्य केवल हरे तथा सफ़ेद रंग के सोयाबीन खाद्य के रूप में ग्रहण करते हैं।

सोयाबीन प्रोटीन का सर्वोतम स्रोत हैं। सोयाबीन में 43.2% प्रोटीन पाया जाता हैं। इस कारण इस स्वास्थ्यवर्धक आहार को "प्रोटीनो का राजा" कहा जाता हैं। सोयाबीन का प्रोटीन सुपाच्य होता हैं जिसके कारण यह बालक, वृद्ध, कमजोर, रुग्ण, गर्भवती और प्रसूति महिलाओ के लिए बहुत उपयोगी हैं। 100 ग्राम सोयाबीन में जीतनी प्रोटीन होती हैं, उतना ही प्रोटीन पाने के लिए 200 ग्राम पिश्ते की गिरी या 1200 ग्राम गाय-भैस का दूध या 7-8 अंडे या 300 ग्राम हड्डी विहीन मांस की आवश्यकता पड़ती हैं।

सोयाबीन बुढ़ापारोधी, मधुमेह कन्सर, से बचाओ, ह्रदय रोग, बाँझपन आदि में उपयोगी है। 100 ग्राम सोयाबीन में 118 मिलीग्राम विटामिन इ होता हैं। 100 ग्राम सोयाबीन से 432 किलो कैलोरी उर्जा प्राप्त होती हैं। अतः सोयाबीन दूध और सोयाबीन तेल का नियमित उपयाग करना चाहिए।

इसके अन्दर अधिक मात्रा में लोह रहने के कारण रक्तालापता में यह विशेष रूप से हितकर है। सोयाबीन विभिन्न दुर्लभ विटामिनों से समृद्ध है, इसलिय यह स्मरण शक्ति बढ़ता है, स्नायुओं को शांत रखता है, चिड़चिड़े स्वभाव को दूर रखता है, देह स्वस्थ रखता है, यौवन दीर्घ और लम्बी आयु प्रदान करता है। यह कैल्सियम और फोस्फोरस का एक मूल्य प्राप्ति स्थान है।

हजारों वर्ष से चीन, जापान, मंचूरिया, मंगोलिया आदि में सोयाबीन का सेवन होता आ रहा है। लोगों का मानना है कि सोयाबीन खाने से वज़न और शरीर में शीग्रता से वृद्धि होती है, देह का रंग उज्जवल होता है, तथा बदन स्वस्थ और सुदोठित हो उठता है। जापान में ऐसा कोई ग्राम नहीं है जहाँ पर सोयाबीन के दूध, दही तथा पनीर की दूकान नहीं मिलती हों।

साधारणतः ऐसा सोचा जाता है कि सोयाबीन बहुत मुश्किल से पचने वाला खाद्य है परन्तु ऐसा सोचना व्यर्थ है। जब यह ठीक तरह से पकाया जाता है तब यह अन्य किसी भी खाद्य के समान सुपाच्य हो जाता है।

सोयाबीन का रोगी में प्रयोग

डॉक्टरों का मानना है कि दवाओं से कोलेस्ट्राल पर काबू पाने से बेहतर है कि आप अपना खान-पान थोडा बदलें। जैसे- सोया प्रोटीन एलडीएल की मात्रा 14 फीसदी तक घटा सकते हैं। हर दिन 2 गिलास सोया का दूध पीना ही इसके लियें काफी है। इसके अलावा जौ के साबुत दानों में मौजूद रेशे जो कि दालों में भी मिलते हैं, एलडीएल की समस्या से निजात दिलाने में सहायक है।

सोयाबीन दिल के स्वास्थ्य का पोषक है। रोजाना 25 ग्राम सोया प्रोटीन को खाने से लाभ होता है। खोजों में यह पाया गया है कि सोयाबीन रक्तवसा को घटाता है और सीएचडी के वृद्धि के खतरे को बढ़ने नही देता। जो लोग रोजाना औसतन 47 ग्राम सोया प्रोटीन खाते हैं, उनकी पूर्ण रक्तवसा में 9 प्रतिशत कमी होती है। एलडीएल खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर प्राय: 13 प्रतिशत कम हुआ। एचडीएल अच्छा कोलेस्ट्रॉल मगर बढ़ा और ट्राइग्लीसेराइड्स घट कर 10 से 11 प्रतिशत कम हुआ। जिनके रक्तवसा के माप शुरू में ही अपेक्षाकृत अधिक थे, उनको आश्चर्यजनक रूप से लाभ हुआ।

कैंसर के रोगी में सोयाबीन

सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व पायें जाते है। जो कैंसर से बचाव का कार्य करते है। क्योकि इसमें कायटोकेमिकल्स पायें जाते है, खासकर फायटोएस्ट्रोजन और 950 प्रकार के हार्मोन्स। यह सब बहुत लाभदायक है। इन तत्त्वों के कारण स्तन कैंसर एवं एंडोमिट्रियोसिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह देखा गया है कि इन तत्त्वों के कारण कैंसर के टयूमर बढ़ते नही है और उनका आकार भी घट जाता है। सोयाबीन के उपयोग से कैंसर में 30 से 45 प्रतिशत की कमी देखी गई है।

अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का खतरा कम हो जाता है। महिलाओं की सेहत के लियें सोयाबीन बेहद लाभदायक आहार है। ओमेगा 3 नामक वसा युक्त अम्ल महिलाओं में जन्म से पहले से ही उनमें स्तन कैंसर से बचाव करना आरम्भ कर देता है। जो महिलायें गर्भावस्था तथा स्तनपान के समय ओमेगा 3 अम्ल की प्रचुरता युक्त भोजन करती है, उनकी संतानों कें स्तन कैंसर की आशंका कम होती है। ओमेगा-3 अखरोट, सोयाबीन व मछलियों में पाया जाता है। इससे दिल के रोग होने की आंशका में काफी कमी आती है। इसलिये महिलाओं को गर्भावस्था व स्तनपान कराते समय अखरोट और सोयाबीन का सेवन करते रहना चाहियें।

कैंसर के रोगी जो केमोथेरेपी, रेडिएशन कराते है उन पर उनके दुष्प्रभाव-असहनीय दर्द, खून बहना, खून की कमी, थकान, वजन घटना, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त, कब्ज, भूख की कमी, कमजोरी, सिर के बाल गिरना, निराशा, रोग की असाध्यता से मानसिक रूप से पड़ते है।

हानिकारक

गर्भधारण करने वाली स्त्रियों को सोयाबीन का प्रयोग बिलकुल नही करना चाहियें इससे होने वाली सन्तान पर बुरा असर पड़ता है।

सोयाबीन से बने पदार्थ

सोयाबीन का दूध

दुग्धोत्पादन के लिए यह ज़रूरी है कि सोयाबीन स्वस्थ पीली और ताजी हो अर्थात तीन माह से ज्यादा दिन की भंडारित न हो। सोयाबीन से दूध बनाने के लिए सर्वप्रथम सोयाबीन को 8 घंटे भिगोया जाता है और फिर हाथ से रगड़कर उसका छिलका उतार लिया जाता है। उसके बाद दाल को धोकर उसे सिलबट्टे पर या इलेक्ट्रिक ग्राइंडर में बारीक पीसा जाता है। इसमें पिसी हुई इलायची और शक्कर मिलाकर 15 मिनट तक उबालना चाहिये, जिससे उसमें हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार सोयाबीन से दूध तैयार किया जाता है। इस दूध को फ्रीज में 15 दिन तक रखा जा सकता है। इसमें रंग मिलाकर इसे रंगीन भी बनाया जा सकता है। इस सोया दूध से दही, पनीर, आइसक्रीम और खीर आसानी से बनायी जा सकती है। सोया दूध गाय, भैंस के दूध के समतुल्य पौष्टिक होता है। मसलन - गाय के 100 ग्राम दूध में 3.2 प्रतिशत प्रोटीन, 4 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कारबोज, 0.11 प्रतिशत कैल्शियम, 0.07 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है, वहीं सोया दूध में 4.2 प्रतिशत प्रोटीन, 2.4 प्रतिशत वसा, 3.2 प्रतिशत कारबोज, 0.08 प्रतिशत कैल्शियम, 0.10 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है। इस प्रकार सोयादूध पौष्टिक होने के साथ-साथ संपूर्ण आहार भी है।

सोयादूध में लैक्टोज बिल्कुल नहीं होता, जबकि गाय-भैंस के दूध में लैक्टोज की मात्रा पायी जाती है। इस कारण से भी बच्चों और डायबिटीज के मरीजों के लिए सोयादूध वरदान है। बाज़ार में आमतौर पर सोयादूध 20 रुपये प्रति लीटर मिलता है। सोयाबीन के दाम भी लगभग 20 रुपये प्रति किलो हैं। इस प्रकार 1 किलोग्राम सोयाबीन में 2 लीटर से ज्यादा सोया दूध बनाया जा सकता है। हमारे देश में दूध महंगा होने के कारण निर्धन वर्ग इससे वंचित रहता है और कुपोषण के कारण अनेक बीमारियों का शिकार बनता है। ऐसी स्थिति में ग़रीब थोड़ा-सा परिश्रम करके घर में ही 10 रुपये प्रति किलो की दर से सोया दूध तैयार कर सकते हैं और कुपोषण से भी बच सकते हैं। व्यावसायिक स्तर पर भी सोया दुग्ध उत्पादन किया जा सकता है। सोयादूध ग़रीबों और बेरोज़गारों के लिए अलादीन के चिराग से कम नहीं है।

सोयाबीन का दही बड़ा

सामग्री : 100 ग्राम सोयाबीन, 50 ग्राम उड़द की धुली दाल, घी-तेल तलने के लियें, सोंठ पिसी-चौथाई छोटी चम्मच, 500 ग्राम दही, भुना जीरा, लाल मिर्च, काला नमक, सफेद नमक स्वादानुसार।

विधि : सोयाबीन व उड़द की दाल को अलग-अलग रातभर भिगोयें। सोयाबीन के छिलके अलग कर दोनों को मिलाकर पेस्ट बना लें। इसमें सोंठ भी मिलायें इसे खूब अच्छी तरह मिलाकर फेट लें और बड़े बना कर तल लें। थोड़े गुनगुने पानी में नमक मिलाकर तले हुए बड़ों को 2 मिनट पानी में रखकर, निकालकर, दबाकर पानी अलग कर बड़ों को दही में डाल दें। ऊपर से मसाला डालकर परोसें।

स्वाद के लियें : इस बने हुए पेस्ट में सभी मसालें, हरी मिर्च, हरा धनिया आदि डालकर बड़े बनाकर चटनी या सॉस के साथ परोंसें।

सोयाबीन की छाछ

सोयाबीन को दही में उचित मात्रा में पानी मिलाकर अच्छी तरह मिलाने से छाछ बन जाती है और मक्खन भी निकलता है।


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