"चरकुला नृत्य": अवतरणों में अंतर

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वर्तमान में 38 गोल पंखड़ियों के आकार वाली चिड़ियों के आकार के लकड़ी से बने लगभग 20 किलो वजन के चौखटा के मिट्टी या धातु बर्तन के ऊपर रखकर और पंखड़ियों पर 38 जलते दीपक के साथ आकर्षक मुद्रा में यह नृत्य किया जाता है । नृत्य के दौरान सभी दीपक जलते रहते हैं । जनपद के उमरी, रामपुर और मुखराई गांव का चरकुला नृत्य प्रसिद्धि पा चुका है । यहाँ की महिला कलाकारों ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मंचन किये हैं ।
वर्तमान में 38 गोल पंखड़ियों के आकार वाली चिड़ियों के आकार के लकड़ी से बने लगभग 20 किलो वज़न के चौखटा के मिट्टी या धातु बर्तन के ऊपर रखकर और पंखड़ियों पर 38 जलते दीपक के साथ आकर्षक मुद्रा में यह नृत्य किया जाता है । नृत्य के दौरान सभी दीपक जलते रहते हैं । जनपद के उमरी, रामपुर और मुखराई गांव का चरकुला नृत्य प्रसिद्धि पा चुका है । यहाँ की महिला कलाकारों ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मंचन किये हैं ।
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[[उत्तर प्रदेश]] सांस्कृतिक कार्य विभाग, संगीत नाटक अकादमी तथा सूचना विभाग की ओर से प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों के लिए चरकुला नृत्य के कलाकारों को आमन्त्रित किया गया है । कला मनीषियों के परिचित हो जाने से वर्तमान में चरकुला नृत्य काफ़ी प्रसिध्द है । इस नृत्य के कलाकारों को मारीशस, नेपाल और इसके बाद जर्मनी में आयोजित भारत महोत्सव के दौरान भाग लेने का भी अवसर प्राप्त हुआ है । जर्मनी के साथ कलाकारों ने सोवियत संघ सहित तीन अन्य देशों की भी यात्रा की ।
[[उत्तर प्रदेश]] सांस्कृतिक कार्य विभाग, संगीत नाटक अकादमी तथा सूचना विभाग की ओर से प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों के लिए चरकुला नृत्य के कलाकारों को आमन्त्रित किया गया है । कला मनीषियों के परिचित हो जाने से वर्तमान में चरकुला नृत्य काफ़ी प्रसिध्द है । इस नृत्य के कलाकारों को मारीशस, नेपाल और इसके बाद जर्मनी में आयोजित भारत महोत्सव के दौरान भाग लेने का भी अवसर प्राप्त हुआ है । जर्मनी के साथ कलाकारों ने सोवियत संघ सहित तीन अन्य देशों की भी यात्रा की ।

14:25, 6 मई 2010 का अवतरण

चरकुला नृत्य, होली, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा
Charkula Dance, Holi, Krishna Janm Bhumi, Mathura

चरकुला नृत्य / Charkula Dance

जनपद की इस नृत्य कला ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम मचायी है पूर्व में होली या उसके दूसरे दिन रात्रि के समय गांवों में स्त्री या पुरुष स्त्री वेश धारण कर सिर पर मिट्टी के सात घड़े तथा उसके ऊपर जलता हुआ दीपक रखकर अनवरत रूप से चरकुला नृत्य करता था । गांव के सभी पुरुष नगाड़ों, ढप, ढोल, वादन के साथ रसिया गायन करते थे ।


वर्तमान में 38 गोल पंखड़ियों के आकार वाली चिड़ियों के आकार के लकड़ी से बने लगभग 20 किलो वज़न के चौखटा के मिट्टी या धातु बर्तन के ऊपर रखकर और पंखड़ियों पर 38 जलते दीपक के साथ आकर्षक मुद्रा में यह नृत्य किया जाता है । नृत्य के दौरान सभी दीपक जलते रहते हैं । जनपद के उमरी, रामपुर और मुखराई गांव का चरकुला नृत्य प्रसिद्धि पा चुका है । यहाँ की महिला कलाकारों ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मंचन किये हैं ।


उत्तर प्रदेश सांस्कृतिक कार्य विभाग, संगीत नाटक अकादमी तथा सूचना विभाग की ओर से प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों के लिए चरकुला नृत्य के कलाकारों को आमन्त्रित किया गया है । कला मनीषियों के परिचित हो जाने से वर्तमान में चरकुला नृत्य काफ़ी प्रसिध्द है । इस नृत्य के कलाकारों को मारीशस, नेपाल और इसके बाद जर्मनी में आयोजित भारत महोत्सव के दौरान भाग लेने का भी अवसर प्राप्त हुआ है । जर्मनी के साथ कलाकारों ने सोवियत संघ सहित तीन अन्य देशों की भी यात्रा की ।