"अरविंद केजरीवाल": अवतरणों में अंतर

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अरविंद केजरीवाल वर्ष 1968 में जन्मे सरकार के कार्यो में अधिक से अधिक पारदर्शिता के लिए आंदोलन करते रहे हैं और एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता है। खड़गपुर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से स्नातक केजरीवाल को आरटीआई (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। उन्हें 2006 में 'आकस्मिक नेतृत्व (इमरजिंग लीडरशिप)' के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया, सूचना आंदोलन को जमीनी स्तर पर और सबसे गरीब नागरिकों को सरकार को जवाबदेह बनाकर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सक्रिय करने के लिए।
अरविंद केजरीवाल वर्ष 1968 में जन्मे सरकार के कार्यो में अधिक से अधिक पारदर्शिता के लिए आंदोलन करते रहे हैं और एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता है। खड़गपुर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से स्नातक केजरीवाल को आरटीआई (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। उन्हें 2006 में 'आकस्मिक नेतृत्व (इमरजिंग लीडरशिप)' के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया, सूचना आंदोलन को जमीनी स्तर पर और सबसे गरीब नागरिकों को सरकार को जवाबदेह बनाकर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सक्रिय करने के लिए।


अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार में हुआ और उन्होंने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल (यांत्रिक) इंजीयरिंग में स्नातक (बीटेक) की उपाधि प्राप्त की। पिता गोविंदराम केजरीवाल जिंदल स्टील में इंजीनियर थे। अरविंद हमेशा भ्रष्टाचार और लोगों की निष्क्रियता से परेशान थे। टाटा स्टील कंपनी के साथ अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, वह मिशनरीज ऑफ चैरिटी और पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में रामकृष्ण मिशन के साथ काम करते रहें। बाद में, 1992 में वे भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस/सिविल सर्विसेस, भारतीय सिविल सेवा का एक हिस्सा) में आ गए, और पहली पोस्टिंग में उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त (कमिश्नर) के कार्यालय में नियुक्त किया गया। उन्होंने कुछ विदेशी कंपनियों के काले कारनामे पकड़े कि किस तरह वे भारतीय आयकर कानून को तोड़ती हैं। उन्हें धमकियां मिलीं और फिर तबादला भी हो गया, जिसके बाद उनका सरकारी सेवा से मोहभंग हो गया। जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।
अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार में हुआ और उन्होंने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल (यांत्रिक) इंजीयरिंग में स्नातक (बीटेक) की उपाधि प्राप्त की। पिता गोविंदराम केजरीवाल जिंदल स्टील में इंजीनियर थे। अरविंद हमेशा भ्रष्टाचार और लोगों की निष्क्रियता से परेशान थे। टाटा स्टील कंपनी के साथ अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, वह मिशनरीज ऑफ चैरिटी और पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में रामकृष्ण मिशन के साथ काम करते रहें। बाद में, 1992 में वे भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस/सिविल सर्विसेस, भारतीय सिविल सेवा का एक हिस्सा) में आ गए, और पहली पोस्टिंग में उन्हें दिल्ली में आयकर विभाग में आयकर आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त किया गया। उन्होंने कुछ विदेशी कंपनियों के काले कारनामे पकड़े कि किस तरह वे भारतीय आयकर कानून को तोड़ती हैं। उन्हें धमकियां मिलीं और फिर तबादला भी हो गया, जिसके बाद उनका सरकारी सेवा से मोहभंग हो गया। जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।


अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी। प्रारंभ में, अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनवरी 2000 में, उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन 'परिवर्तन' की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है। इसके बाद, फरवरी 2006 में, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया, और पूरे समय के लिए सिर्फ 'परिवर्तन' में ही काम करने लगे।
अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी। अरविंद केजरीवाल ने आयकर विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। प्रारंभ में, अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनवरी 2000 में, उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन 'परिवर्तन' नामक संस्था की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है। इस संस्था के जरिये अरविंद और उनके दोस्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। आज वे न सिर्फ विभाग, बल्कि पूरे तंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चे पर डटे हुए हैं। इसके बाद, फरवरी 2006 में, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया, और पूरे समय के लिए सिर्फ 'परिवर्तन' में ही काम करने लगे। विभाग में कमिश्नर की नौकरी छोड़ने का उन्हें कोई दुख नहीं है। अरविंद कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि जो जिंदगी पैसा कमाने के लिए खर्च कर दी जाए, वह जिंदगी ही खराब है।’


राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्दी ही एक मूक सामाजिक आन्दोलन बन गया। दिल्ली में ''सूचना अधिकार अधिनियम'' को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया। इसके बाद, जुलाई 2006 में, उन्होंने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। दूसरों को प्रेरित करने के लिए अरविन्द ने अब अपने संस्थान के माध्यम से एक आरटीआई पुरस्कार की शुरुआत की है। 2006 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
एक अच्छे छात्र के गुण तो अरविंद केजरीवाल में थे, यह तो आईआईटी में उनके प्रवेश से साबित होता है, लेकिन इसके अलावा वे एक अच्छे अभिनेता भी रहे हैं। कॉलेज के दिनों से ही अरविंद कॉलेज के नाटक ग्रुप के साथ जुड़ गए थे। शायद कॉलेज के इन्हीं नाटकों ने अरविंद में एक जिम्मेदार नागरिक के बीज को अंकुरित कर दिया और वहीं से उनके दिल में देश के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा हुआ। आज अरविंद केजरीवाल को सूचना के अधिकार से जोड़ कर देखा जाता है।
 
राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्दी ही एक मूक सामाजिक आन्दोलन बन गया। दिल्ली में ''सूचना अधिकार अधिनियम'' को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया। इसके बाद, जुलाई 2006 में, उन्होंने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। दूसरों को प्रेरित करने के लिए अरविन्द ने अब अपने संस्थान के माध्यम से एक आरटीआई पुरस्कार की शुरुआत की है।  


सूचना का अधिकार गरीब लोगों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही आम जनता और पेशेवर लोगों के लिए भी यह उतना ही महत्वपूर्ण है। आज भी कई भारतीय सरकार के निर्वाचन की प्रक्रिया में निष्क्रिय दर्शक ही बने हुए हैं। अरविंद सूचना के अधिकार के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को अपनी सरकार से प्रश्न पूछने की शक्ति देते हैं। अपने संगठन परिवर्तन के माध्यम से वे लोगों को प्रशासन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते हैं।
सूचना का अधिकार गरीब लोगों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही आम जनता और पेशेवर लोगों के लिए भी यह उतना ही महत्वपूर्ण है। आज भी कई भारतीय सरकार के निर्वाचन की प्रक्रिया में निष्क्रिय दर्शक ही बने हुए हैं। अरविंद सूचना के अधिकार के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को अपनी सरकार से प्रश्न पूछने की शक्ति देते हैं। अपने संगठन परिवर्तन के माध्यम से वे लोगों को प्रशासन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते हैं।


6 फरवरी 2007 को, अरविन्द को वर्ष 2006 के लिए लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन 'इन्डियन ऑफ़ द इयर' के लिए नामित किया गया।
6 फरवरी 2007 को, अरविन्द को वर्ष 2006 के लिए लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन 'इन्डियन ऑफ़ द इयर' के लिए नामित किया गया।


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20:29, 12 अगस्त 2011 का अवतरण

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अरविंद केजरीवाल वर्ष 1968 में जन्मे सरकार के कार्यो में अधिक से अधिक पारदर्शिता के लिए आंदोलन करते रहे हैं और एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता है। खड़गपुर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से स्नातक केजरीवाल को आरटीआई (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है। उन्हें 2006 में 'आकस्मिक नेतृत्व (इमरजिंग लीडरशिप)' के लिए रमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया, सूचना आंदोलन को जमीनी स्तर पर और सबसे गरीब नागरिकों को सरकार को जवाबदेह बनाकर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सक्रिय करने के लिए।

अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार में हुआ और उन्होंने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल (यांत्रिक) इंजीयरिंग में स्नातक (बीटेक) की उपाधि प्राप्त की। पिता गोविंदराम केजरीवाल जिंदल स्टील में इंजीनियर थे। अरविंद हमेशा भ्रष्टाचार और लोगों की निष्क्रियता से परेशान थे। टाटा स्टील कंपनी के साथ अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, वह मिशनरीज ऑफ चैरिटी और पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में रामकृष्ण मिशन के साथ काम करते रहें। बाद में, 1992 में वे भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस/सिविल सर्विसेस, भारतीय सिविल सेवा का एक हिस्सा) में आ गए, और पहली पोस्टिंग में उन्हें दिल्ली में आयकर विभाग में आयकर आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त किया गया। उन्होंने कुछ विदेशी कंपनियों के काले कारनामे पकड़े कि किस तरह वे भारतीय आयकर कानून को तोड़ती हैं। उन्हें धमकियां मिलीं और फिर तबादला भी हो गया, जिसके बाद उनका सरकारी सेवा से मोहभंग हो गया। जल्द ही, उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।

अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी। अरविंद केजरीवाल ने आयकर विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। प्रारंभ में, अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जनवरी 2000 में, उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन 'परिवर्तन' नामक संस्था की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है। इस संस्था के जरिये अरविंद और उनके दोस्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। आज वे न सिर्फ विभाग, बल्कि पूरे तंत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चे पर डटे हुए हैं। इसके बाद, फरवरी 2006 में, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया, और पूरे समय के लिए सिर्फ 'परिवर्तन' में ही काम करने लगे। विभाग में कमिश्नर की नौकरी छोड़ने का उन्हें कोई दुख नहीं है। अरविंद कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि जो जिंदगी पैसा कमाने के लिए खर्च कर दी जाए, वह जिंदगी ही खराब है।’

एक अच्छे छात्र के गुण तो अरविंद केजरीवाल में थे, यह तो आईआईटी में उनके प्रवेश से साबित होता है, लेकिन इसके अलावा वे एक अच्छे अभिनेता भी रहे हैं। कॉलेज के दिनों से ही अरविंद कॉलेज के नाटक ग्रुप के साथ जुड़ गए थे। शायद कॉलेज के इन्हीं नाटकों ने अरविंद में एक जिम्मेदार नागरिक के बीज को अंकुरित कर दिया और वहीं से उनके दिल में देश के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा हुआ। आज अरविंद केजरीवाल को सूचना के अधिकार से जोड़ कर देखा जाता है।

राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्दी ही एक मूक सामाजिक आन्दोलन बन गया। दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया। इसके बाद, जुलाई 2006 में, उन्होंने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। दूसरों को प्रेरित करने के लिए अरविन्द ने अब अपने संस्थान के माध्यम से एक आरटीआई पुरस्कार की शुरुआत की है।

सूचना का अधिकार गरीब लोगों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही आम जनता और पेशेवर लोगों के लिए भी यह उतना ही महत्वपूर्ण है। आज भी कई भारतीय सरकार के निर्वाचन की प्रक्रिया में निष्क्रिय दर्शक ही बने हुए हैं। अरविंद सूचना के अधिकार के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को अपनी सरकार से प्रश्न पूछने की शक्ति देते हैं। अपने संगठन परिवर्तन के माध्यम से वे लोगों को प्रशासन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

6 फरवरी 2007 को, अरविन्द को वर्ष 2006 के लिए लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन 'इन्डियन ऑफ़ द इयर' के लिए नामित किया गया।


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