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*इसका मुख्य उद्देश्य [[पारसी]] समुदाय की सामजिक अवस्था का पुनरुद्धार करना एवं पारसियों के धर्म में पुनः शुद्धता को प्राप्त करना था। | *इसका मुख्य उद्देश्य [[पारसी]] समुदाय की सामजिक अवस्था का पुनरुद्धार करना एवं पारसियों के धर्म में पुनः शुद्धता को प्राप्त करना था। | ||
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*पारसी समाज में सामाजिक तथा राजनीतिक जागृति फैलाने का पहला प्रयास [[बम्बई]] में प्रकाशित ‘बम्बई समाचार पत्र’ के माध्यम से हुआ। | *पारसी समाज में सामाजिक तथा राजनीतिक जागृति फैलाने का पहला प्रयास [[बम्बई]] में प्रकाशित ‘बम्बई समाचार पत्र’ के माध्यम से हुआ। | ||
*संस्था ने पारसी समुदाय की स्त्रियों के कल्याण के लिए ढेर सारे काम किये। | *संस्था ने पारसी समुदाय की स्त्रियों के कल्याण के लिए ढेर सारे काम किये। | ||
*पर्दा प्रथा को प्रतिबन्धित किया गया, विवाह की आयु में वृद्धि की गई, स्त्री शिक्षा की दिशा में बल दिया गया और कालान्तर में भारतीय समाज का पारसी समुदाय पाश्चात्य सभ्यता के सर्वाधिक नजदीक पहुँच गया। | *पर्दा प्रथा को प्रतिबन्धित किया गया, विवाह की आयु में वृद्धि की गई, स्त्री शिक्षा की दिशा में बल दिया गया और [[कालान्तर]] में भारतीय समाज का पारसी समुदाय पाश्चात्य सभ्यता के सर्वाधिक नजदीक पहुँच गया। | ||
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11:01, 17 अप्रैल 2012 का अवतरण
पारसी सुधार आन्दोलन के संस्थापक नौरोजी फरदोजी, दादाभाई नौरोजी, आर.के. कामा और एस.एस. बंगाली थे।
- इस आन्दोलन की शुरुआत वर्ष 1851 ई. में की गई थी।
- इसका मुख्य उद्देश्य पारसी समुदाय की सामजिक अवस्था का पुनरुद्धार करना एवं पारसियों के धर्म में पुनः शुद्धता को प्राप्त करना था।
- इस संस्था ने ‘रास्त-गोफ्तार’ (सत्यवादी) नामक पत्रिका का प्रकाशन किया।
- पारसी समाज में सामाजिक तथा राजनीतिक जागृति फैलाने का पहला प्रयास बम्बई में प्रकाशित ‘बम्बई समाचार पत्र’ के माध्यम से हुआ।
- संस्था ने पारसी समुदाय की स्त्रियों के कल्याण के लिए ढेर सारे काम किये।
- पर्दा प्रथा को प्रतिबन्धित किया गया, विवाह की आयु में वृद्धि की गई, स्त्री शिक्षा की दिशा में बल दिया गया और कालान्तर में भारतीय समाज का पारसी समुदाय पाश्चात्य सभ्यता के सर्वाधिक नजदीक पहुँच गया।
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