"गुरुत्व -वैशेषिक दर्शन": अवतरणों में अंतर

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05:08, 20 अगस्त 2011 का अवतरण

महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

गुरुत्व का स्वरूप

गुरुत्व उस धर्मविशेष (गुण) को कहते हैं, जिसके कारण किसी द्रव्य का प्रथम पतन होता है। किसी वस्तु की ऊपर से नीचे की ओर जाने की क्रिया का नाम पतन है। पतन-क्रिया जिस वस्तु में होती है, वह वस्तु पतन का समवायिकारण होती है और स्वयं उस वस्तु का जो अपना भारीपन है वह उस वस्तु में संयोग, वेग या प्रयत्न का अभाव हो जाता है। अत: पतन का समवायिकारण कोइर न कोई द्रव्य होता है, असमवायिकारण गुरुत्व होता है। परमाणु का गुरुत्व नित्य होता है। परमाणु से भिन्न पृथ्वी और जल का गुरुत्व अनित्य होता है। पहली पतन-क्रिया से वस्तु में जो वेग उत्पन्न होता है, वह बाद की पतन-क्रिया का असमवायिकारण है। वृन्त से टूट कर भूमि पर पहुँचने तक फल में अनेक क्रियाएँ होती हैं। उनमें पहली पतन-क्रिया का असमवायिकारण फल का गुरुत्व होता है और बाद की पतनक्रियाओं का असमवायिकारण पहली पतन-क्रिया से उत्पन्न फलगत वेग होता है।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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