"चित्राधार -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर
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कानन-कुसुम - | कानन-कुसुम - | ||
पुन्य औ पाप न जान्यो जात। | पुन्य औ पाप न जान्यो जात। | ||
सब तेरे ही काज करत हैं और न उन्हे सिरात ॥ | |||
सब तेरे ही काज करत | |||
सखा होय सुभ सीख देत कोउ काहू को मन लाय। | सखा होय सुभ सीख देत कोउ काहू को मन लाय। | ||
सो तुमरोही काज सँवारत ताकों बड़ो बनाय॥ | सो तुमरोही काज सँवारत ताकों बड़ो बनाय॥ | ||
भारत सिंह शिकारी बन-बन मृगया को आमोद। | भारत सिंह शिकारी बन-बन मृगया को आमोद। | ||
सरल जीव की रक्षा तिनसे होत तिहारे गोद॥ | सरल जीव की रक्षा तिनसे होत तिहारे गोद॥ | ||
स्वारथ औ परमारथ सबही तेरी स्वारथ मीत। | स्वारथ औ परमारथ सबही तेरी स्वारथ मीत। | ||
तब इतनी टेढी भृकुटी क्यों? देहु चरण में प्रीत॥ | तब इतनी टेढी भृकुटी क्यों? देहु चरण में प्रीत॥ | ||
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छिपी के झगड़ा क्यों फैलायो? | छिपी के झगड़ा क्यों फैलायो? | ||
मन्दिर मसजिद गिरजा सब में खोजत सब भरमायो॥ | मन्दिर मसजिद गिरजा सब में खोजत सब भरमायो॥ | ||
अम्बर अवनि अनिल अनलादिक कौन भूमि नहि भायो। | अम्बर अवनि अनिल अनलादिक कौन भूमि नहि भायो। | ||
कढ़ि पाहनहूँ ते पुकार बस सबसों भेद छिपायो॥ | कढ़ि पाहनहूँ ते पुकार बस सबसों भेद छिपायो॥ | ||
कूवाँ ही से प्यास बुझत जो, सागर खोजन जावै- | कूवाँ ही से प्यास बुझत जो, सागर खोजन जावै- | ||
ऐसो को है याते सबही निज निज मति गुन गावै॥ | ऐसो को है याते सबही निज निज मति गुन गावै॥ | ||
लीलामय सब ठौर अहो तुम, हमको यहै प्रतीत। | लीलामय सब ठौर अहो तुम, हमको यहै प्रतीत। | ||
अहो प्राणधन, मीत हमारे, देहु चरण में प्रीत॥ | अहो प्राणधन, मीत हमारे, देहु चरण में प्रीत॥ | ||
ऐसो ब्रह्म लेइ का करिहैं? | ऐसो ब्रह्म लेइ का करिहैं? | ||
जो नहि करत, सुनत नहि जो कुछ जो जन पीर न हरिहै॥ | जो नहि करत, सुनत नहि जो कुछ जो जन पीर न हरिहै॥ | ||
होय जो ऐसो ध्यान तुम्हारो ताहि दिखावो मुनि को। | होय जो ऐसो ध्यान तुम्हारो ताहि दिखावो मुनि को। | ||
हमरी मति तो, इन झगड़न को समुझि सकत नहि तनिको॥ | हमरी मति तो, इन झगड़न को समुझि सकत नहि तनिको॥ | ||
परम स्वारथी तिनको अपनो आनंद रूप दिखायो। | परम स्वारथी तिनको अपनो आनंद रूप दिखायो। | ||
उनको दुख, अपनो आश्वासन, मनते सुनौ सुनाओ॥ | उनको दुख, अपनो आश्वासन, मनते सुनौ सुनाओ॥ | ||
करत सुनत फल देत लेत सब तुमही, यहै प्रतीत। | करत सुनत फल देत लेत सब तुमही, यहै प्रतीत। | ||
बढ़ै हमारे हृदय सदा ही, देहु चरण में प्रीत॥ | बढ़ै हमारे हृदय सदा ही, देहु चरण में प्रीत॥ | ||
और जब कहिहै तब का रहिहै। | और जब कहिहै तब का रहिहै। | ||
हमरे लिए प्रान प्रिय तुम सों, यह हम कैसे सहिहै॥ | हमरे लिए प्रान प्रिय तुम सों, यह हम कैसे सहिहै॥ | ||
तव दरबारहू लगत सिपारत यह अचरज प्रिय कैसो? | तव दरबारहू लगत सिपारत यह अचरज प्रिय कैसो? | ||
कान फुकावै कौन, हम कि तुम! रुचे करो तुम तैसो॥ | कान फुकावै कौन, हम कि तुम! रुचे करो तुम तैसो॥ | ||
ये मन्त्री हमरो तुम्हरो कछु भेद न जानन पावें। | ये मन्त्री हमरो तुम्हरो कछु भेद न जानन पावें। | ||
लहि 'प्रसाद' तुम्हरो जग में, प्रिय जूठ खान को जावें॥ | लहि 'प्रसाद' तुम्हरो जग में, प्रिय जूठ खान को जावें॥ | ||
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07:00, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
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कानन-कुसुम - |