"ले चल वहाँ भुलावा देकर -जयशंकर प्रसाद": अवतरणों में अंतर
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ले चल वहाँ भुलावा देकर | ले चल वहाँ भुलावा देकर | ||
मेरे नाविक ! धीरे-धीरे । | मेरे नाविक ! धीरे-धीरे । | ||
जिस निर्जन में सागर लहरी, | |||
जिस निर्जन में सागर लहरी, | |||
अम्बर के कानों में गहरी, | |||
निश्छल प्रेम-कथा कहती हो- | |||
तज कोलाहल की अवनी रे । | |||
जहाँ साँझ-सी जीवन-छाया, | |||
ढीली अपनी कोमल काया, | |||
नील नयन से ढुलकाती हो- | |||
ताराओं की पाँति घनी रे । | |||
जिस गम्भीर मधुर छाया में, | |||
जिस गम्भीर मधुर छाया में, | |||
विश्व चित्र-पट चल माया में, | |||
विभुता विभु-सी पड़े दिखाई- | |||
दुख-सुख बाली सत्य बनी रे । | |||
श्रम-विश्राम क्षितिज-वेला से | |||
जहाँ सृजन करते मेला से, | |||
अमर जागरण उषा नयन से- | |||
बिखराती हो ज्योति घनी रे ! | |||
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07:59, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
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ले चल वहाँ भुलावा देकर |