"गाँधी -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Dinkar.jpg |चि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
<poem>
<poem>
देश में जिधर भी जाता हूँ,
देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ।
"जडता को तोडने के लिए
 
भूकम्प लाओ।
"जडता को तोडने के लिए भूकम्प लाओ।
घुप्प अँधेरे में फिर
घुप्प अँधेरे में फिर अपनी मशाल जलाओ।
अपनी मशाल जलाओ।
पूरे पहाड हथेली पर उठाकर पवनकुमार के समान तरजो।
पूरे पहाड हथेली पर उठाकर
कोई तूफान उठाने को कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"
पवनकुमार के समान तरजो।
कोई तूफान उठाने को
कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"


सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?
पंक्ति 48: पंक्ति 45:


तब भी हम ने गाँधी के
तब भी हम ने गाँधी के
तूफान को ही देखा,
तूफान को ही देखा, गाँधी को नहीं।
गाँधी को नहीं।


वे तूफान और गर्जन के
वे तूफान और गर्जन के पीछे बसते थे।
पीछे बसते थे।
सच तो यह है कि अपनी लीला में
सच तो यह है
तूफान और गर्जन को शामिल होते देख
कि अपनी लीला में
तूफान और गर्जन को
शामिल होते देख
वे हँसते थे।
वे हँसते थे।


तूफान मोटी नहीं,
तूफान मोटी नहीं, महीन आवाज से उठता है।
महीन आवाज से उठता है।
वह आवाज जो मोम के दीप के समान
वह आवाज
एकान्त में जलती है, और बाज नहीं,
जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है।
कबूतर के चाल से चलती है।


गाँधी तूफान के पिता
गाँधी तूफान के पिता
और बाजों के भी बाज थे।
और बाजों के भी बाज थे
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।  
क्योंकि वे नीरवता की आवाज थे।  
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}

11:17, 20 अगस्त 2011 का अवतरण

गाँधी -रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ।

"जडता को तोडने के लिए भूकम्प लाओ।
घुप्प अँधेरे में फिर अपनी मशाल जलाओ।
पूरे पहाड हथेली पर उठाकर पवनकुमार के समान तरजो।
कोई तूफान उठाने को कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"

सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था।

तब भी हम ने गाँधी के
तूफान को ही देखा, गाँधी को नहीं।

वे तूफान और गर्जन के पीछे बसते थे।
सच तो यह है कि अपनी लीला में
तूफान और गर्जन को शामिल होते देख
वे हँसते थे।

तूफान मोटी नहीं, महीन आवाज से उठता है।
वह आवाज जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है, और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है।

गाँधी तूफान के पिता
और बाजों के भी बाज थे
क्योंकि वे नीरवता की आवाज थे।

संबंधित लेख