"एक विलुप्त कविता -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा | बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें, | ||
आज क्या है कि देख कौम को गम है। | आज क्या है कि देख कौम को गम है। | ||
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में | कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में | ||
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आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए, | आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए, | ||
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है। | लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है। | ||
दुह-दुह कर | |||
दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो | |||
दो बूँद आँसू न उनको यह भी कोई धरम है? | दो बूँद आँसू न उनको यह भी कोई धरम है? | ||
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की | देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की | ||
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो | मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है? | ||
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे | हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें | ||
यह महफ़िल कहने वालों | यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है। | ||
सेवा व्रत शूल का पथ है गद्दी नहीं कुसुम की! | सेवा व्रत शूल का पथ है गद्दी नहीं कुसुम की! | ||
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है। | घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है। |
12:26, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
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बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें, |
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