"चांद का कुर्ता -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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सिलवा दो | हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला, | ||
सन सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता | "सिलवा दो मां, मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला। | ||
ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता | |||
आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का | सन-सन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं, | ||
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही | ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं। | ||
बच्चे की सुन बात | |||
कुशल | आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का, | ||
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती | न हो अगर तो ला दो, कुर्ता ही कोई भाड़े का।" | ||
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती | |||
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा | बच्चे की सुन बात कहा माता ने, " अरे सलोने, | ||
बड़ा किसी दिन हो जाता है | कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने। | ||
घटता | |||
नहीं किसी की | जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूं, | ||
अब तू ही | एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूं। | ||
कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा, | |||
बड़ा किसी दिन हो जाता है और किसी दिन छोटा। | |||
घटता बढ़ता रोज, किसी दिन ऐसा भी करता है, | |||
नहीं किसी की आंखों को दिखलाई पड़ता है। | |||
अब तू ही तो बता, नाप तेरा किस रोज लिवायें, | |||
सीं दें एक झिंगोला जो हर दिन बदन में आये।" | |||
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12:16, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
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