"रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ। | इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ। | ||
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने,जिसकी | मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी | ||
कल्पना की जीभ में भी धार होती है, | कल्पना की जीभ में भी धार होती है, | ||
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल, | |||
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। | स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है। | ||
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे, | स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे, | ||
"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, | "रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे, | ||
रोकिये, जैसे बने इन | रोकिये, जैसे बने इन स्वप्न वालों को, | ||
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।" | स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।" | ||
12:44, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
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रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, |
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