"परदेशी -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Dinkar.jpg |चि...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 40: | पंक्ति 40: | ||
मैत्री के शीतल कानन में छिपा कपट का शूल यहाँ, | मैत्री के शीतल कानन में छिपा कपट का शूल यहाँ, | ||
कितने कीटों से सेवित है मानवता का मूल यहाँ? | कितने कीटों से सेवित है मानवता का मूल यहाँ? | ||
इस उपवन की पगडण्डी पर बचकर जाना परदेशी। | इस उपवन की पगडण्डी पर बचकर जाना परदेशी। | ||
यहाँ मेनका की चितवन पर मत ललचाना परदेशी! | यहाँ मेनका की चितवन पर मत ललचाना परदेशी! | ||
जगती में मादकता देखी, लेकिन अक्षय तत्त्व नहीं, | जगती में मादकता देखी, लेकिन अक्षय तत्त्व नहीं, | ||
आकर्षण में तृप्ति उर सुन्दरता में अमरत्व नहीं। | आकर्षण में तृप्ति उर सुन्दरता में अमरत्व नहीं। | ||
यहाँ प्रेम में मिली विकलता, जीवन में परितोष नहीं, | यहाँ प्रेम में मिली विकलता, जीवन में परितोष नहीं, | ||
बाल-युवतियों के आलिंगन में पाया संतोष नहीं। | बाल-युवतियों के आलिंगन में पाया संतोष नहीं। | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 52: | ||
महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा , | महाप्रलय की ओर सभी को इस मरू में चलते देखा , | ||
किस से लिपट | किस से लिपट जुडता? सबको ज्वाला में जलते देखा | ||
अंतिम बार चिता-दीपक में जीवन को बलते देखा; | अंतिम बार चिता-दीपक में जीवन को बलते देखा; | ||
चलत समय सिकंदर -से विजयी को कर मलते देखा। | चलत समय सिकंदर-से विजयी को कर मलते देखा। | ||
सबने देकर प्राण मौत की कीमत जानी परदेशी। | सबने देकर प्राण मौत की कीमत जानी परदेशी। | ||
माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी ? | ||
रोते जग की अनित्यता पर सभी विश्व को छोड़ चले, | रोते जग की अनित्यता पर सभी विश्व को छोड़ चले, | ||
कुछ तो चढ़े चिता के रथ पर , कुछ क़ब्रों की ओर चले। | कुछ तो चढ़े चिता के रथ पर, कुछ क़ब्रों की ओर चले। | ||
रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले, | रुके न पल-भर मित्र , पुत्र माता से नाता तोड़ चले, | ||
लैला रोती रही किन्तु, कितने | लैला रोती रही किन्तु, कितने मजनूँ मुँह मोड़ चले। | ||
जीवन का मधुमय उल्लास, औ' यौवन का हास विलास, | |||
रूप-राशि का यह अभिमान, एक स्वप्न है, स्वप्न अजान। | |||
मिटता लोचन -राग यहाँ पर, मुरझाती सुन्दरता प्यारी, | |||
एक-एक कर उजड़ रही है हरी-भरी कुसुमों की क्यारी | |||
मैं ना रुकूंगा इस भूतल पर जीवन, यौवन, प्रेम गंवाकर ; | |||
वायु, उड़ाकर ले चल मुझको जहाँ-कहीं इस जग से बाहर | |||
मिटता लोचन -राग यहाँ पर, | |||
मुरझाती सुन्दरता प्यारी, | |||
एक-एक कर उजड़ रही है | |||
हरी-भरी कुसुमों की क्यारी | |||
मैं ना रुकूंगा इस भूतल पर | |||
जीवन, यौवन, प्रेम गंवाकर ; | |||
वायु, उड़ाकर ले चल मुझको | |||
जहाँ-कहीं इस जग से बाहर | |||
मरते कोमल वत्स यहाँ, बचती ना जवानी परदेशी! | मरते कोमल वत्स यहाँ, बचती ना जवानी परदेशी! |
13:10, 20 अगस्त 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
माया के मोहक वन की क्या कहूँ कहानी परदेशी? |
संबंधित लेख