"एक विलुप्त कविता -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
<poem> | <poem> | ||
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें, | बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें, | ||
आज क्या है कि देख कौम को | आज क्या है कि देख कौम को ग़म है। | ||
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में | कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में | ||
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है? | कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है? | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो | दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो | ||
दो बूँद आँसू न उनको यह भी कोई धरम है? | दो बूँद आँसू न उनको, यह भी कोई धरम है? | ||
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की | देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की | ||
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है? | मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है? | ||
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें | हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें | ||
यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है। | यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है। | ||
सेवा व्रत शूल का पथ है गद्दी नहीं कुसुम की! | सेवा व्रत शूल का पथ है, गद्दी नहीं कुसुम की! | ||
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है। | घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है। | ||
12:02, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें, |
संबंधित लेख