"पढ़क्कू की सूझ -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे। | जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे। | ||
एक रोज़ वे पड़े | एक रोज़ वे पड़े फ़िक्र में समझ नहीं कुछ न पाए, | ||
"बैल घूमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए?" | "बैल घूमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए?" | ||
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नहीं देखते क्या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है? | नहीं देखते क्या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है? | ||
जब तक यह बजती रहती है, मैं न | जब तक यह बजती रहती है, मैं न फ़िक्र करता हूँ, | ||
हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ" | हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ" | ||
14:14, 4 सितम्बर 2011 का अवतरण
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एक पढ़क्कू बड़े तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे, |
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