"याद -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर
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विदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर, | |||
मेरे एकाकी आँगन में मौन मधुर स्मृतियाँ भर! | मेरे एकाकी आँगन में मौन मधुर स्मृतियाँ भर! | ||
वह केसरी दुकूल अभी भी फहरा रहा क्षितिज पर, | वह केसरी दुकूल अभी भी फहरा रहा क्षितिज पर, | ||
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अंतरतम में एक मधुर स्मृति जग जग उठती प्रतिपल! | अंतरतम में एक मधुर स्मृति जग जग उठती प्रतिपल! | ||
कम्पित करता वक्ष धरा का घन | कम्पित करता वक्ष धरा का घन गंभीर गर्जन स्वर, | ||
भू पर ही आगया उतर शत धाराओं में अंबर! | भू पर ही आगया उतर शत धाराओं में अंबर! | ||
भीनी भीनी भाप सहज ही साँसों में घुल मिल कर | भीनी भीनी भाप सहज ही साँसों में घुल मिल कर |
12:41, 29 अगस्त 2011 का अवतरण
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विदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर, |
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