"क़ब्ज़": अवतरणों में अंतर

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कब्ज एक प्रकार का ऐसा रोग है जो पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। इस रोग के होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इस रोग के कारण शरीर के अन्दर जहर भी बन जाता है जिसके कारण शरीर में अनेक बीमारी पैदा हो सकती है जैसे- मुंह में घाव, छाले, अफारा, थकान, उदरशूल या पेट मे दर्द, गैस बनना, सिर में दर्द, हाथ-पैरों में दर्द, अपच तथा बवासीर आदि। कब्ज बनने पर शौच खुलकर नहीं आती, जिससे पेट में दर्द होता रहता है।  
कब्ज एक प्रकार का ऐसा रोग है जो पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। इस रोग के होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इस रोग के कारण शरीर के अन्दर जहर भी बन जाता है जिसके कारण शरीर में अनेक बीमारी पैदा हो सकती है जैसे- मुंह में घाव, छाले, अफारा, थकान, उदरशूल या पेट मे दर्द, गैस बनना, सिर में दर्द, हाथ-पैरों में दर्द, अपच तथा बवासीर आदि। कब्ज बनने पर शौच खुलकर नहीं आती, जिससे पेट में दर्द होता रहता है।  


यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है। जब कब्ज का रोग काफी बिगड़ जाता है तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती है और घाव बन जाते है। यदि इस रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं।  
यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है। जब कब्ज का रोग काफ़ी बिगड़ जाता है तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती है और घाव बन जाते है। यदि इस रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं।  


कभी-कभी छोटे बच्चे को होने वाले मल में गेंद जैसे गोल-गोल तथा छोटे-छोटे ढेले होते है। इस अवस्था को संस्थम्भी कब्ज कहते है तथा बच्चों को इस अवस्था में बहुत तेज दर्द होता है जिसके कारण वह अपने मल को रोक लेते है और उन्हे कब्ज की शिकायत हो जाती है। किसी नवजात शिशु को शायद ही कभी कब्ज होती है परन्तु उसके विकास के पहले वर्ष में उसे मलत्याग क्रिया सिखाई जाती है, जिससे वह मलत्याग क्रिया को प्रतिदिन होने वाली क्रिया के रूप में मानने लगता है।  
कभी-कभी छोटे बच्चे को होने वाले मल में गेंद जैसे गोल-गोल तथा छोटे-छोटे ढेले होते है। इस अवस्था को संस्थम्भी कब्ज कहते है तथा बच्चों को इस अवस्था में बहुत तेज दर्द होता है जिसके कारण वह अपने मल को रोक लेते है और उन्हे कब्ज की शिकायत हो जाती है। किसी नवजात शिशु को शायद ही कभी कब्ज होती है परन्तु उसके विकास के पहले वर्ष में उसे मलत्याग क्रिया सिखाई जाती है, जिससे वह मलत्याग क्रिया को प्रतिदिन होने वाली क्रिया के रूप में मानने लगता है।  

12:21, 4 सितम्बर 2011 का अवतरण

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परिचय

कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है या मलक्रिया में कठिनाई होती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है और पेट में गैस बनती है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है।

कब्ज आज के समय का एक साधारण रोग है। आज बहुत से लोग कब्ज रोग से परेशान रहते हैं। कब्ज रोग व्यक्ति के स्वयं के खान-पान में असावधानी रखने का ही परिणाम है। कब्ज उत्पन्न होने का मुख्य कारण अधिक मिर्च-मसाले वाला भोजन करना, कब्ज बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना, भोजन करने के बाद अधिक देर तक बैठना, तेल व चिकनाई वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि है।

कब्ज रोग होने की असली जड़ भोजन का ठीक प्रकार से न पचना होता है। यदि पेट रोगों का घर होता है तो आंत विषैले तत्वों की उत्पति का स्थान होता है। यह बहुत से रोगों को जन्म देता है जिनमें कब्ज प्रमुख रोग होता है। कब्ज में अधिक मात्रा में मल का बड़ी आंत में जमा हो जाना। कब्ज के कारण अवरोही आंतों में तरल पदार्थो के अवशोशण में अधिक समय लगने के कारण उनमे शुष्क (ठंडा) व कठोर मल अधिक एकत्रित होने लगता है। कब्ज उत्पन्न होने का एक आम कारण है जीवन में मल त्याग की साधारण क्रिया का रुकना।

कब्ज एक प्रकार का ऐसा रोग है जो पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। इस रोग के होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इस रोग के कारण शरीर के अन्दर जहर भी बन जाता है जिसके कारण शरीर में अनेक बीमारी पैदा हो सकती है जैसे- मुंह में घाव, छाले, अफारा, थकान, उदरशूल या पेट मे दर्द, गैस बनना, सिर में दर्द, हाथ-पैरों में दर्द, अपच तथा बवासीर आदि। कब्ज बनने पर शौच खुलकर नहीं आती, जिससे पेट में दर्द होता रहता है।

यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है। जब कब्ज का रोग काफ़ी बिगड़ जाता है तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती है और घाव बन जाते है। यदि इस रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं।

कभी-कभी छोटे बच्चे को होने वाले मल में गेंद जैसे गोल-गोल तथा छोटे-छोटे ढेले होते है। इस अवस्था को संस्थम्भी कब्ज कहते है तथा बच्चों को इस अवस्था में बहुत तेज दर्द होता है जिसके कारण वह अपने मल को रोक लेते है और उन्हे कब्ज की शिकायत हो जाती है। किसी नवजात शिशु को शायद ही कभी कब्ज होती है परन्तु उसके विकास के पहले वर्ष में उसे मलत्याग क्रिया सिखाई जाती है, जिससे वह मलत्याग क्रिया को प्रतिदिन होने वाली क्रिया के रूप में मानने लगता है।

कब्ज रोग का लक्षण

  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रोजाना मलत्याग नहीं होता है। कब्ज रोग से पीड़ित रोगी जब मल का त्याग करता है तो उसे बहुत अधिक परेशानी होती है। कभी-कभी मल में गांठे बनने लगती है। जब रोगी मलत्याग कर लेता है तो उसे थोड़ा हल्कापन महसूस होता है।
  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी के पेट में गैस अधिक बनती है। पीड़ित रोगी जब गैस छोड़ता है तो उसमें बहुत तेज बदबू आती है।
  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी की जीभ सफेद तथा मटमैली हो जाती है। कब्ज के रोग से पीड़ित व्यक्ति के मुंह से भी बदबू आती रहती है।
  • रोगी व्यक्ति के आंखों के नीचे कालापन हो जाता है तथा रोगी का जी मिचलता रहता है। इस रोग में रोगी को बहुत कम भूख लगती है।
  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार के और भी रोग हो जाते हैं जैसे - पेट में दर्द होना या सूजन हो जाना, सिर में दर्द, मुंहासे निकलना, मुंह के छाले, अम्लता, चिड़चिड़ापन, गठिया, आंखों का मोतियाबिन्द तथा उच्च रक्तचाप आदि।

कब्ज होने के कारण

खान-पीने में असावधानी -- कब्ज व्यक्तियों में गलत खान-पान के कारण उत्पन्न होता है। भोजन में ऐसे पदार्थों का प्रयोग करना जिन्हे पाचनतंत्र आसानी से नहीं पचा पाता जिससे आंत से मल पूर्ण रूप से साफ नहीं हो पाता और अन्दर ही सड़ने लगता है। अधिक मिर्च-मसालेदार तथा गरिष्ठ भोजन करने से भी कब्ज बनता है। अधिकतर व्यक्तियों में कब्ज के ऐसे लक्षण होते हैं जिसमें आंतों की अपने-आप क्रियाशीलता तथा कब्ज के रचनात्मक असामान्यताओं की कमियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिदिन भोजन में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थो की जांच से पता चला है कि व्यक्ति अपने भोजन में रेशेदार व तरल पदार्थो का प्रयोग नहीं करते, जिससे मिलने वाली प्रोटीन व विटामिन लोगों को नहीं मिल पाता और जिससे कब्ज उत्पन्न होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन 10 से 12 ग्राम रेशेदार शाक-सब्जियां तथा 1 से 2 गिलास तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। साथ ही खाने के बाद या किसी भी समय मल त्याग करने का अनुभव हो तो आलस्य के कारण उसे टालना नहीं चाहिए, बल्कि मलत्याग की इच्छा होने पर मल त्याग जरुर करें।

संरचनात्मक असामान्यताएं -- आंतों में उत्पन्न घाव आदि के कारण मल त्याग के मार्ग में रूकावट उत्पन्न होती है, जिससे मल त्यागते समय जोर लगाने से दर्द उत्पन्न होता है। दर्द के कारण मल का त्याग न करने से मल आंतों में सड़कर कब्ज पैदा करता है।

व्यवस्थाग्रस्त बीमारी -- आंत्रिक नली की तंत्रिकाओं की कुप्रणाली, पेशियों की खराबी, इंडोक्राइन विसंगतियों तथा विद्युत अपघट्य की असामान्यतायें आदि उत्पन्न होकर आंतों में कब्ज बनाते हैं।

  • मनुष्य की पाचन क्रिया मन्द पड़ना, कम मात्रा में मल आना, सुबह के समय में मल करने में आलस्य करना, कम मात्रा में भोजन करने से मल न बनना, भूख न लगना आदि कारणों से यह रोग मनुष्य को हो जाता है।
  • मल तथा पेशाब के वेग को रोकने, व्यायाम तथा शारीरिक श्रम न करने के कारण, शरीर में खून की कमी तथा अधिक सोने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है।
  • कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना, बासी भोजन का सेवन करने और समय पर भोजन न करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
  • तली हुई चीजों का अधिक सेवन करने, गलत तरीके से खान-पान के कारण और मैदा तथा चोकर के बिना भोजन खाने के कारण कब्ज का रोग हो सकता है।
  • ठंडी चीजे जैसे- आइसक्रीम, पेस्ट्री, चाकलेट तथा ठंडे पेय पदार्थ खाने, कम पानी पीने के कारण और तरल पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
  • दर्दनाशक दवाइयों का अधिक सेवन और अधिक धूम्रपान तथा नशीली दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
  • बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण यानि बड़ी आंत में कैंसर होना, थॉयरायड का कम बनना, कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा होना, मधुमेह के रोगियों में पाचन संबंधी समस्या होना, कंपवाद (पार्किंसन बीमारी) होना।

कब्ज रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार

कब्ज रोग का उपचार करने के लिए कभी भी दस्त लाने वाली औषधि का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि कब्ज रोग होने के कारणों को दूर करना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से इसका उपचार कराना चाहिए।

कब्ज रोग से बचने के लिए जब व्यक्ति को भूख लगे तभी खाना खाना चाहिए। कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए चोकर सहित आटे की रोटी तथा हरी पत्तेदार सब्जियां चबा-चबाकर खानी चाहिए। अधिक से अधिक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। अंकुरित अन्न का अधिक सेवन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। गेहूं का रस अधिक मात्रा में पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी का रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। कब्ज न बनने देने के लिए भोजन को अच्छी तरह से चबाकर खाएं तथा ऐसा भोजन करे, जिसे पचाने में आसानी हो। रोगी व्यक्ति को मैदा, बेसन, तली-भुनी तथा मिर्च मसालेन्दार चीजों आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए ये फल इस प्रकार है- पपीता, संतरा, खजूर, नारियल, अमरूद, अंगूर, सेब, खीरा, गाजर, चुकन्दर, बेल, अखरोट, अंजीर आदि। नींबू पानी, नारियल पानी, फल तथा सब्जियों का रस पीने से कब्ज से पीड़ित रोगी को बहुत फायदा मिलता है। कच्चे पालक का रस प्रतिदिन सुबह तथा शाम पीने से कब्ज रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। नींबू का रस गर्म पानी में मिलाकर रात के समय पीने से शौच साफ आती है।

रोगी व्यक्ति को रात के समय में 25 ग्राम किशमिश को पानी में भिगोने के लिए रख देना चाहिए। रोजाना सुबह के समय इस किशमिश को खाने से पुराने से पुराना कब्ज रोग ठीक हो जाता है। कब्ज से पीड़ित रोगी को सुबह तथा शाम 10-12 मुनक्का खाने से बहुत लाभ होता है।

कब्ज के रोग को ठीक करने के लिए त्रिफला चूर्ण को प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।

शौच लगने पर शौच न जाने अथवा शौच के वेग को रोकने से भी कब्ज बनती है। अधिक काम करने तथा मानसिक थकान के कारण भी कब्ज बनता है।

कब्ज का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को अपने पेट पर 20 से 25 मिनट तक मिट्टी की या कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। यह क्रिया प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए।

कब्ज दूर करने के लिए सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर खुली हवा में प्रतिदिन टहलना चाहिए। इससे शरीर स्फूर्तिदायक और तरोताजा रहता है और कब्ज आदि से भी बचाता है।

कब्ज को दूर करने के लिए रात को सोते समय एक बर्तन में पानी रख दें और सुबह सूर्य निकलने से पहले उठकर उस पानी को 2-4 गिलास पी लें। फिर टहलने के बाद शौच जाने से शौच खुलकर आती है और कब्ज दूर होता है। कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में तांबे के बर्तन में पानी को रखकर सुबह के समय में पीने से शौच खुलकर आती है और कब्ज नहीं बनती है।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को शाम के समय में हरे रंग की बोतल का सूर्यतप्त पानी पीना चाहिए। इसके बाद ईसबगोल की भूसी ली जा सकती है। लेकिन इसमें कोई खाद्य पदार्थ नहीं होना चाहिए।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को भोजन करने के बाद लगभग 5 मिनट तक व्रजासन करना चाहिए। यदि सुबह के समय में उठते ही व्रजासन करे तो शौच जल्दी आ जाती है।

कब्ज रोग को ठीक करने के लिए पानी पीकर कई प्रकार के आसन करने से कब्ज रोग ठीक हो जाता हैं- सर्पासन, कटि-चक्रासन, उर्ध्वहस्तोत्तोनासन, उदराकर्षासन तथा पादहस्तासन आदि।

यदि किसी व्यक्ति को बहुत समय से कब्ज हो तो उसे सुबह तथा शाम को कटिस्नान करना चाहिए और सोते समय पेट पर गर्म सिंकाई करनी चाहिए और प्रतिदिन कम से कम 6 गिलास पानी पीना चाहिए।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच आंवले की चटनी गुनगुने दूध में मिलाकर लेने तथा रात को सोते समय एक गिलास गुनगुना पानी पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह के समय में 2 सेब दांतों से काटकर छिलके समेत चबा-चबाकर खाना चाहिए। इससे रोगी का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

सप्ताह में 1 बार गर्म दूध में 1 चम्मच एरण्डी का तेल मिलाकर पीने से कब्ज का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेडू पर ठंडे पानी में भिगोया तौलिया कम से कम 8 मिनट तक रखना चाहिए जिसके फलस्वरूप कब्ज रोग जल्दी ठीक हो जाता है।

कब्ज दूर करने की चिकित्सा

कब्ज को दूर करने के लिए विभिन्न नियमों का पालन करना चाहिए तथा कब्ज को दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा चिकित्सा करनी चाहिए। कब्ज को दूर करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग करना चाहिए। इससे शारीरिक शक्ति बनी रहता है और कब्ज जल्दी दूर होता है। साथ ही प्राकृतिक चिकित्सा का शरीर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता।

शास्त्रों में कहा गया है - मरणं बिन्दुपातेनजीवनं बिन्दु धारणत्। अर्थात अधिक वीर्यस्खलन से शरीर की ऊर्जा शक्ति, तेज, ओजस धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं। इससे सभी स्नायुओं में कमजोरी और चिड़चिड़ापन उत्पन्न होता है। वीर्यस्खलन से पाचनक्रिया खराब होती है और जठराग्नि मन्द पड़ जाती है, जिससे भोजन ठीक से पच नहीं पाता और अपचा हुआ पदार्थ मल के रूप में आतों में ही सड़ता रहता है। आतों में मल सड़ने से पेट में गैस पैदा होती है और खून दूषित होता है। अत: अपने आप पर संयम रखे बिना उपचार से कोई लाभ नहीं हो

एनिमा (डूस) क्रिया

विभिन्न कारणों से जब मल आंतों में जम जाता है, तो वह धीरे-धीरे सूखकर कब्ज को पैदा करता है। अत: कब्ज को दूर करने के लिए आंतों को साफ करना आवश्यक होता है। आंतों को साफ करने के लिए जल चिकित्सा में बतायी गई विधि से ठंडे पानी का एनिमा ले। यदि कब्ज अधिक बन गई हो तो रोगी को हल्के गर्म पानी का एनिमा दिया जा सकता है। यदि एनिमा गर्म पानी का दिया जा रहा हो तो गर्म पानी का एनिमा देने के बाद ठंडे पानी का भी एनिमा दें। इससे कब्ज में जल्द लाभ मिलता है।

पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टी

एनिमा क्रिया करने के बाद रोगी के पेड़ू पर ठंडे पानी की पट्टी रखने से कब्ज में लाभ मिलता है और आंतों को शक्ति मिलती है।

गीली मिट्टी की पुल्टिश

रोगी के पेड़ू पर नाभि के 4 अंगुली नीचे मिट्टी की 1 इंच मोटी लेप करने से कब्ज दूर होता है। इससे आंतें शक्तिशाली होती है और कब्ज के कारण उत्पन्न होने वाले अन्य रोग अपने आप समाप्त हो जाते हैं।

व्यायाम द्वारा चिकित्सा

कब्ज दूर करने के लिए व्यायाम करना भी लाभकारी होता है। व्यायाम से पेट की क्रिया सुधरती है और कब्ज दूर होता है। व्यायाम के लिए पहले पीठ के बल लेट जाएं और दोनों पैरों को उठाकर शरीर के समकोण तक लाकर धीरे-धीरे पुन: नीचे लाएं। इस तरह प्रतिदिन व्यायाम करने से आंत और पेट की स्नायुक्रिया ठीक होती है और कब्ज आदि रोग आदि दूर होते हैं।

सावधानी

ऊपर बताई गई सारी चिकित्सा करने के साथ भोजन आदि पर ध्यान दें। अधिक तली हुई चीजें, मिर्च-मसालेदार, अधिक गर्म भोजन न करें। भोजन में सावधानी रखने पर कब्ज रोग में लाभ जल्द मिलता है। कब्ज बनने पर कामवासना आदि पर नियंत्रण रखें।

विशेष

कब्ज होने पर बताए गए नियमों को पालन करें। इन नियमों का पालन करने से कब्ज दूर हो जाती है और इसके नियम बनाए रखने से कभी कब्ज नहीं होती है। यदि कब्ज तब भी उत्पन्न हो जाए तो सावधानीपूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा से कब्ज दूर करें।

यौगिक क्रिया के द्वारा रोग की चिकित्सा

कब्ज को खत्म करने के लिए प्रतिदिन योगक्रिया का अभ्यास करना चाहिए। इससे किसी भी कारण से उत्पन्न होने वाली कब्ज समाप्त हो जाता है।

षट्क्रिया (हठयोग क्रिया) - अग्निसार क्रिया या नौली व बस्तीक्रिया का अभ्यास करें।

पेट से सम्बंधित सभी कारणों तथा पेट की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने के लिए यौगिक क्रिया -

  1. आसन - सूर्य नमस्कार, पवन मुक्तासन, त्रिकोणासन, हलासन, ताड़ासन, कटि चक्रासन, मत्स्यासन और अर्ध मत्स्यासन का अभ्यास करें।
  2. प्राणायाम - भस्त्रिका प्राणायाम के साथ कुंभक करें अर्थात सांस को रोकने का अभ्यास करें।
  3. बंध - इस रोग में उडि्डया बन्ध व महाबंध का अभ्यास करें।
  4. समय - इस योगिक क्रियाओ का अभ्यास प्रतिदिन 20 मिनट तक करें।
  5. प्रेक्षा - प्राणायाम व बंध के बाद दीर्घ श्वास प्रेक्षा का अभ्यास करें।
  6. अनुप्रेक्षा (मन की भावना) - सांस क्रिया करते हुए मन में विचार करें- ´´मेरे अन्दर का कब्ज रोग दूर हो गया है और मैं स्वस्थ हो रहा हूं। मेरा मन और मस्तिष्क शुद्ध हो गया है। ´´मन में ऐसी भावना करनी चाहिए।

भोजन - इस रोग में हल्का तथा आसानी से पचने वाला भोजन करें। सलाद व सब्जियां रोजाना खायें। पर्याप्त मात्रा में पानी व फलों का रस पीना चाहिए। आधे से ज्यादा चोकर मिलाकर गेहूँ तथा जौ की रोटी खाएं।

परहेज - स्टार्च युक्त पदार्थो का सेवन न करें तथा नमक कम मात्रा में उपयोग करें। ऐसे पदार्थ का सेवन न करें, जो कब्ज पैदा करें।

विशेष - सभी योगक्रियाओं का अभ्यास सावधानीपूर्वक करें। षट्क्रिया का अभ्यास योग चिकित्सक के कहे अनुसार जरूरत पड़ने पर करें। अन्य योगक्रियाओं का अभ्यास प्रतिदिन करें। अभ्यास हमेशा खाली पेट ही करें।

चुम्बक द्वारा उपचार

रोगी को दिन में 3 बार अपने पैर के तलुओं पर शक्तिशाली चुम्बको को लगाना चाहिए तथा दिन में 3 बार चुम्बकित जल दवाई की मात्रानुसार लेना चाहिए।

अन्य उपाय

कब्ज रोग से बचने के लिए छोटे बच्चों को सुबह के समय में मल करने की आदत डालनी चाहिए। इससे बच्चों में मलक्रिया का स्वस्थ विकास होता है। बड़े लोगों को भी रोजाना सुबह के समय में मल करने की आदत डालनी चाहिए। इस क्रिया में कभी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए क्योंकि शरीर की अधिकतर बीमारी पेट की पाचनक्रिया की गड़बड़ी के कारण ही होती है। भोजन में गूदेदार पदार्थो का अधिक प्रयोग करना चाहिए। जल तथा अन्य तरल पदाथों का भी सेवन करना चाहिए। सुबह के समय में उठकर एक गिलास पानी पीना चाहिए इससे मल साफ आता है। ज्यादा समस्या आने पर चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।


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