"बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5 ब्राह्मण-5 से 12": अवतरणों में अंतर

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*[[बृहदारण्यकोपनिषद]] के [[बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-5|अध्याय पांचवाँ]] का यह पांचवाँ से बारहवाँ ब्राह्मण है।
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*पांचवें से आठवें ब्राह्मण तक 'सत्य' को आदित्य-रूप ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।  
*पांचवें से आठवें ब्राह्मण तक 'सत्य' को आदित्य-रूप ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।  
*तदुपरान्त उसे मनोमय पुरुष, विद्युत वाक्, गाय, अग्नि, मरणोत्तर ऊर्ध्व गति, अन्न व प्राण-रूप में 'ब्रह्म' को स्वीकार कर उसकी उपासना की बात कही गयी है।
*तदुपरान्त उसे मनोमय पुरुष, विद्युत वाक्, गाय, अग्नि, मरणोत्तर ऊर्ध्व गति, अन्न व प्राण-रूप में 'ब्रह्म' को स्वीकार कर उसकी उपासना की बात कही गयी है।

11:03, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण

  • पांचवें से आठवें ब्राह्मण तक 'सत्य' को आदित्य-रूप ब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
  • तदुपरान्त उसे मनोमय पुरुष, विद्युत वाक्, गाय, अग्नि, मरणोत्तर ऊर्ध्व गति, अन्न व प्राण-रूप में 'ब्रह्म' को स्वीकार कर उसकी उपासना की बात कही गयी है।


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