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-[[भीम]] | -[[भीम]] | ||
{[[भीष्म]] | {[[भीष्म]] थे? | ||
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- | -बारहवें आदित्य | ||
+आठवें वसु | +आठवें वसु | ||
-अश्विनी कुमार | -अश्विनी कुमार | ||
-चोथे रुद्र | -चोथे रुद्र | ||
{[[युधिष्ठिर]] के [[ | {[[युधिष्ठिर]] के [[अश्वमेध यज्ञ]] में निन्दा करने वाले नेवले का नाम एक [[पाण्डव]] का भी था? | ||
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-[[अर्जुन]] | -[[अर्जुन]] | ||
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|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[नील]] | -[[नील]] | ||
- | -युयुत्सु | ||
+ | +नलकूबर | ||
- | -[[धृष्टद्युम्न]] | ||
{[[उर्वशी]]-[[पुरुरवा]] के पुत्र का नाम | {[[उर्वशी]]-[[पुरुरवा]] के पुत्र का नाम था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+शतायु | +शतायु | ||
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-13वें दिन | -13वें दिन | ||
-10वें दिन | -10वें दिन | ||
+ | +15वें दिन | ||
{भोजन बनाने में किस [[पाण्डव]] को महारथ हासिल | {भोजन बनाने में किस [[पाण्डव]] को महारथ हासिल थी? | ||
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-[[अर्जुन]] | -[[अर्जुन]] | ||
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||[[चित्र:Balarama.jpg|बलराम|100px|right]]बलराम- नारायणीयोपाख्यान में वर्णित व्यूहसिद्धान्त के अनुसार विष्णु के चार रूपों में दूसरा रूप 'संकर्षण' (प्रकृति = आदितत्त्व) है। संकर्षण बलराम का अन्य नाम है जो कृष्ण के भाई थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बलराम]] | ||[[चित्र:Balarama.jpg|बलराम|100px|right]]बलराम- नारायणीयोपाख्यान में वर्णित व्यूहसिद्धान्त के अनुसार विष्णु के चार रूपों में दूसरा रूप 'संकर्षण' (प्रकृति = आदितत्त्व) है। संकर्षण बलराम का अन्य नाम है जो कृष्ण के भाई थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बलराम]] | ||
{[[संज्ञा (सूर्य की पत्नी)|संज्ञा]] | {[[संज्ञा (सूर्य की पत्नी)|संज्ञा]] और छाया किसकी पत्नियाँ थी? | ||
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-[[इन्द्र]] | -[[इन्द्र]] | ||
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-कैकेय | -कैकेय | ||
+[[मगध महाजनपद|मगध]] | +[[मगध महाजनपद|मगध]] | ||
||[[चित्र:Magadha-Map.jpg|मगध|100px|right]]मगध प्राचीन [[भारत]] के [[सोलह महाजनपद]] में से एक था । [[बौद्ध]] काल तथा परवर्तीकाल में उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक [[पटना]] तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे । इसकी राजधानी गिरिव्रज थी । भगवान [[बुद्ध]] के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मगध महाजनपद]] | ||[[चित्र:Magadha-Map.jpg|मगध|100px|right]]मगध प्राचीन [[भारत]] के [[सोलह महाजनपद]] में से एक था । [[बौद्ध]] काल तथा परवर्तीकाल में उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक [[पटना]] तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे । इसकी राजधानी गिरिव्रज थी । भगवान [[बुद्ध]] के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मगध महाजनपद|मगध]] | ||
{[[महाभारत]] के | {[[महाभारत]] के अठारहवें दिन के युद्ध का कौरव सेना का सेनापत्तित्व किसने किया था? | ||
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-[[कृपाचार्य]] | -[[कृपाचार्य]] | ||
+शल्य- | +[[शल्य]]-[[अश्वत्थामा]] | ||
-[[दु:शासन]] | -[[दु:शासन]] | ||
-[[जरासंध]] | -[[जयद्रथ]]-[[जरासंध]] | ||
||कर्ण-वध के उपरांत [[कौरव|कौरवों]] ने [[अश्वत्थामा]] के कहने से शल्य को सेनापति बनाया। [[कृष्ण]] ने [[युधिष्ठिर]] को शल्य-वध के लिए उत्साहित करते हुए कहा कि इस समय यह बात भूल जानी चाहिए कि वह [[पांडव|पांडवों]] का मामा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शल्य]] | |||
||[[महाभारत]] का अठारह दिन तक युद्ध चलता रहा। अश्वत्थामा को जब [[दुर्योधन]] के अधर्म-पूर्वक किये गये वध के विषय में पता चला तो वे क्रोध से अंधे हो गये। उन्होंने शिविर में सोते हुए समस्त पांचालों को मार डाला। द्रौपदी को समाचार मिला तो उसने आमरण अनशन कर लिया और कहा कि वह अनशन तभी तोड़ेगी, जब कि अश्वत्थामा के मस्तक पर सदैव बनी रहने वाली मणि उसे प्राप्त होगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अश्वत्थामा]] | |||
{[[अश्वत्थामा]] का फेंका हुआ [[ब्रह्मास्त्र]] किसने शांत | {[[महाभारत]] युद्ध में इनमें से कौन जीवित बचा? | ||
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-[[लक्ष्मण]] | |||
-[[द्रोणाचार्य]] | |||
-[[घटोत्कच]] | |||
+[[कृपाचार्य]] | |||
||[[महाभारत]] युद्ध में कृपाचार्य [[कौरव|कौरवों]] की ओर से सक्रिय थे। [[कर्ण]] के वधोपरांत उन्होंने [[दुर्योधन]] को बहुत समझाया कि उसे [[पांडव|पांडवों]] से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किये हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[व्यास]] | |||
{[[अश्वत्थामा]] का फेंका हुआ [[ब्रह्मास्त्र]] किसने शांत किया? | |||
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+[[व्यास]] | +[[व्यास]] | ||
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||[[चित्र:Vyasadeva-Sanjaya-Krishna.jpg|संजय को दिव्यदृष्टि प्रदान करते हुये वेदव्यास जी|100px|right]]व्यास का अर्थ है 'संपादक'। यह उपाधि अनेक पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण 'आश्वत' कहलाते हैं। यही नाम महाभारत के संकलनकर्ता, वेदान्तदर्शन के स्थापनकर्ता तथा पुराणों के व्यवस्थापक को भी दिया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[व्यास]] | ||[[चित्र:Vyasadeva-Sanjaya-Krishna.jpg|संजय को दिव्यदृष्टि प्रदान करते हुये वेदव्यास जी|100px|right]]व्यास का अर्थ है 'संपादक'। यह उपाधि अनेक पुराने ग्रन्थकारों को प्रदान की गयी है, किन्तु विशेषकर वेदव्यास उपाधि वेदों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने वाले उन महर्षि को दी गयी है जो चिरंजीव होने के कारण 'आश्वत' कहलाते हैं। यही नाम महाभारत के संकलनकर्ता, वेदान्तदर्शन के स्थापनकर्ता तथा पुराणों के व्यवस्थापक को भी दिया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[व्यास]] | ||
{[[युधिष्ठिर]] को [[राजसूय यज्ञ]] करने कि सलाह किसने दी थी? | |||
{[[ | |||
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+[[नारद]] | |||
-[[व्यास]] | |||
-[[ | -[[कृष्ण]] | ||
- | -[[विदुर]] | ||
||[[चित्र: | ||[[चित्र:Narada-Muni.jpg|नारद|100px|right]]महायोगी नारद जी ब्रह्मा जी के मानसपुत्र हैं। वे प्रत्येक युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक-कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते हैं। भक्ति तथा संकीर्तन के ये आद्य-आचार्य हैं। इनकी वीणा भगवन जप 'महती' के नाम से विख्यात है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नारद]] | ||
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12:34, 27 सितम्बर 2011 का अवतरण
महाभारत
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