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*ख़ाकी वर्दियों की शुरूआत सर हैरी बर्नेट लम्स्डेन ने [[भारत]] में ब्रिटिश औपनिवेशिक सैनिकों के लिए की थी और ये मैदानी सेवाओं और युद्ध में विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध हुईं। | *ख़ाकी वर्दियों की शुरूआत सर हैरी बर्नेट लम्स्डेन ने [[भारत]] में ब्रिटिश औपनिवेशिक सैनिकों के लिए की थी और ये मैदानी सेवाओं और युद्ध में विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध हुईं। | ||
*भारतीय विद्रोह (1857-1858) के समय ख़ाकी वर्दियाँ व्यापक रूप से प्रयोग की गईं और इसके बाद इसे भारत में देशज और औपनिवेशिक ब्रिटिश सेनाओं की वर्दियों के आधिकारिक रंग के रूप में प्रयोग किया गया। | *[[सिपाही क्रांति 1857|भारतीय विद्रोह]] (1857-1858) के समय ख़ाकी वर्दियाँ व्यापक रूप से प्रयोग की गईं और इसके बाद इसे भारत में देशज और औपनिवेशिक ब्रिटिश सेनाओं की वर्दियों के आधिकारिक [[रंग]] के रूप में प्रयोग किया गया। बाद में इसे ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य भागों और अन्य राष्ट्रों ने भी अपनाया। | ||
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10:37, 2 अक्टूबर 2011 का अवतरण
- ख़ाकी मुख्यत: सैनिक वर्दी के लिए प्रयुक्त हल्का धूसर भूरा कपड़ा होता है।
- यह सूती, ऊनी, सूत और इन धागों में मिश्रण व कृत्रिम धागों के संयोग से बनाया जाता है और इसमें कई प्रकार की बुनाइयाँ, जैसे सर्ज भी सम्मिलित हो सकती हैं।
- ख़ाकी वर्दियों की शुरूआत सर हैरी बर्नेट लम्स्डेन ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सैनिकों के लिए की थी और ये मैदानी सेवाओं और युद्ध में विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध हुईं।
- भारतीय विद्रोह (1857-1858) के समय ख़ाकी वर्दियाँ व्यापक रूप से प्रयोग की गईं और इसके बाद इसे भारत में देशज और औपनिवेशिक ब्रिटिश सेनाओं की वर्दियों के आधिकारिक रंग के रूप में प्रयोग किया गया। बाद में इसे ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य भागों और अन्य राष्ट्रों ने भी अपनाया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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