"अनमोल वचन 7": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* आप प्रसन्न है या नहीं यह सोचने के लिए फुरसत होना ही दुखी होने का रहस्य है, और इसका उपाय है व्यवसाय। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ | * आप प्रसन्न है या नहीं यह सोचने के लिए फुरसत होना ही दुखी होने का रहस्य है, और इसका उपाय है व्यवसाय। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ | ||
* किसी पुरुष या महिला के पालन-पोषण की आज़माइश तो एक झगड़े में उनके बर्ताव से होती है. जब सब ठीक चल रहा हो तब अच्छा बर्ताव तो कोई भी कर सकता है। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ | * किसी पुरुष या महिला के पालन-पोषण की आज़माइश तो एक झगड़े में उनके बर्ताव से होती है. जब सब ठीक चल रहा हो तब अच्छा बर्ताव तो कोई भी कर सकता है। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ | ||
* आज अध्ययन करना सब जानते हैं, पर क्या अध्ययन करना चाहिए यह कोई नहीं जानता। ~ जार्ज बर्नाड शॉ | |||
* सबसे कम खर्चीला मनोरंजन होता है श्रेष्ठ पुस्तकों के अध्ययन से और यह स्थाई होता है। ~ जार्ज बनार्ड शॉ | |||
* जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। ~ फुलर | * जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। ~ फुलर | ||
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* क्रोध कभी भी बिना कारण नहीं होता, लेकिन कदाचित ही यह कारण सार्थक होता है। ~ बेंजामिन फ्रेंकलिन | * क्रोध कभी भी बिना कारण नहीं होता, लेकिन कदाचित ही यह कारण सार्थक होता है। ~ बेंजामिन फ्रेंकलिन | ||
* ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है। ~ बेंजामिन फ्रेंकलिन | * ज्ञान में पूंजी लगाने से सर्वाधिक ब्याज मिलता है। ~ बेंजामिन फ्रेंकलिन | ||
* क्रोध से शुरू होने वाली हर बात, लज्जा पर समाप्त होती है। ~ बेंजामिन फ्रेंकलिन | |||
* हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं। ~ शेक्सपीयर | * हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं। ~ शेक्सपीयर | ||
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* अपेक्षा ही मनोव्यथा का मूल है। ~ विलियम शेक्सपियर | * अपेक्षा ही मनोव्यथा का मूल है। ~ विलियम शेक्सपियर | ||
* सभी से प्रेम करें, कुछ पर विश्वास करें और किसी के साथ भी गलत न करें। ~ विलियम शेक्सपियर | * सभी से प्रेम करें, कुछ पर विश्वास करें और किसी के साथ भी गलत न करें। ~ विलियम शेक्सपियर | ||
* जिस श्रम से हमें आनन्द प्राप्त होता है, वह हमारी व्याधियों के लिए अमृत, तुल्य है, हमारी वेदना की निवृत्ित है। ~ शेक्सपीयर | |||
* जिस पर तुम्हारा वश नहीं, उसके लिये दुख करना बंद कर दो। ~ शेक्सपियर | |||
* आँख के बदले आँख' के प्राचीन सिद्धान्त से तो एक दिन सभी अंधे हो जाएंगे। ~ मार्टिन लुथर किंग, जूनियर | * आँख के बदले आँख' के प्राचीन सिद्धान्त से तो एक दिन सभी अंधे हो जाएंगे। ~ मार्टिन लुथर किंग, जूनियर | ||
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* किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। ~ सर विंस्टन चर्चिल | * किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। ~ सर विंस्टन चर्चिल | ||
* सतत प्रयास - न कि ताकत या बुद्धिमानी - ही हमारे सामर्थ्य को साकार करने की कुंजी है। ~ विंस्टन चर्चिल | * सतत प्रयास - न कि ताकत या बुद्धिमानी - ही हमारे सामर्थ्य को साकार करने की कुंजी है। ~ विंस्टन चर्चिल | ||
* सफलता हमेशा के लिए नहीं होती, असफलता कभी घातक नहीं होती: यह तो लगे रहने की प्रवृत्ति है जो मायने रखती है। ~ विंस्टन चर्चिल | * सफलता हमेशा के लिए नहीं होती, असफलता कभी घातक नहीं होती: यह तो लगे रहने की प्रवृत्ति है जो मायने रखती है। ~ विंस्टन चर्चिल | ||
* आशावादी व्यक्ति हर आपदा में एक अवसर देखता है; निराशावादी व्यक्ति हर अवसर में एक आपदा देखता है। ~ विन्सटन चर्चिल | * आशावादी व्यक्ति हर आपदा में एक अवसर देखता है; निराशावादी व्यक्ति हर अवसर में एक आपदा देखता है। ~ विन्सटन चर्चिल | ||
* रणनीति कितनी भी सुंदर क्यों न हो, आप को कभी कभी परिणामों पर भी विचार करना चाहिए। ~ सर विंसटन चर्चिल | * रणनीति कितनी भी सुंदर क्यों न हो, आप को कभी कभी परिणामों पर भी विचार करना चाहिए। ~ सर विंसटन चर्चिल | ||
* मानव के सभी गुणों में साहस पहला गुण है, क्योंकि वह सभी गुणों की जिम्मेदारी लेता है। ~ चर्चिल | |||
* खुशी ही जीवन का अर्थ और उद्देश्य है, और मानव अस्तित्व का लक्ष्य और मनोरथ। ~ अरस्तू | * खुशी ही जीवन का अर्थ और उद्देश्य है, और मानव अस्तित्व का लक्ष्य और मनोरथ। ~ अरस्तू | ||
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* जन्म देने वाले माता पिता से अध्यापक कहीं अधिक सम्मान के पात्र हैं, क्योंकि माता पिता तो केवल जन्म देते हैं, लेकिन अध्यापक उन्हें शिक्षित बनाते हैं, माता पिता तो केवल जीवन प्रदान करते हैं, जबकि अध्यापक उनके लिए बेहतर जीवन को सुनिश्चित करते हैं। ~ अरस्तू | * जन्म देने वाले माता पिता से अध्यापक कहीं अधिक सम्मान के पात्र हैं, क्योंकि माता पिता तो केवल जन्म देते हैं, लेकिन अध्यापक उन्हें शिक्षित बनाते हैं, माता पिता तो केवल जीवन प्रदान करते हैं, जबकि अध्यापक उनके लिए बेहतर जीवन को सुनिश्चित करते हैं। ~ अरस्तू | ||
* मित्र क्या है? एक आत्मा जो दो शरीरों में निवास करती है। ~ अरस्तू | * मित्र क्या है? एक आत्मा जो दो शरीरों में निवास करती है। ~ अरस्तू | ||
* शिक्षा की जड़े भले ही कड़वी हों, इसके फल मीठे होते हैं। ~ अरस्तू | |||
* हम जब तक खुद मां बाप नहीं बन जाएं, मां बाप का प्यार कभी नहीं जान पाते। ~ हेनरी वार्ड बीचर, (1813-1887), अमरीकी पादरी | * हम जब तक खुद मां बाप नहीं बन जाएं, मां बाप का प्यार कभी नहीं जान पाते। ~ हेनरी वार्ड बीचर, (1813-1887), अमरीकी पादरी | ||
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* अपने मित्र को उसके दोषों को बताना मित्रता की सबसे कठोर परीक्षा होती है। ~ हैनरी वार्ड बीचर | * अपने मित्र को उसके दोषों को बताना मित्रता की सबसे कठोर परीक्षा होती है। ~ हैनरी वार्ड बीचर | ||
* विचारों को मूर्त रूप देने की क्षमता ही सफलता का रहस्य है। ~ हैनरी वार्ड बीचर | * विचारों को मूर्त रूप देने की क्षमता ही सफलता का रहस्य है। ~ हैनरी वार्ड बीचर | ||
* कठिनाईयां भगवान का संदेश होती हैं, उनका सामना करते समय हमें भगवान के विश्वास के रूप में, भगवान से अभिनंदन के रूप में उनका सम्मान करना चाहिये। ~ हेनरी वार्ड बीचर | |||
* जीवन का उत्तम उपयोग है इसे ऐसा कुछ करने में बिताना जो इससे अधिक स्थायी हो। ~ विलियम जेम्स | * जीवन का उत्तम उपयोग है इसे ऐसा कुछ करने में बिताना जो इससे अधिक स्थायी हो। ~ विलियम जेम्स | ||
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* मुझे एक पेड़ काटने के लिए यदि आप छह घंटे देते हैं तो मैं पहले चार घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार बनाने में लगाऊँगा। ~ अब्राहम लिंकन | * मुझे एक पेड़ काटने के लिए यदि आप छह घंटे देते हैं तो मैं पहले चार घंटे अपनी कुल्हाड़ी की धार बनाने में लगाऊँगा। ~ अब्राहम लिंकन | ||
* चरित्र एक वृक्ष है और मान एक छाया। हम हमेशा छाया की सोचते हैं; लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है। ~ अब्राहम लिंकन | * चरित्र एक वृक्ष है और मान एक छाया। हम हमेशा छाया की सोचते हैं; लेकिन असलियत तो वृक्ष ही है। ~ अब्राहम लिंकन | ||
* चरित्र वृक्ष के समान है तो प्रतिष्ठा, उसकी छाया है। हम अक्सर छाया के, बारे में सोचते हैं, जबकि असल, चीज तो वृक्ष ही है। ~ अब्राहम लिंकन | |||
* अपने विरोधियो से मित्रता कर लेना क्या विरोधियों को नष्ट करने के समान नहीं है? ~ अब्राहम लिंकन | * अपने विरोधियो से मित्रता कर लेना क्या विरोधियों को नष्ट करने के समान नहीं है? ~ अब्राहम लिंकन | ||
* इंसान जितना अपने मन को मना सके उतना खुश रह सकता है। ~ अब्राहम लिंकन | * इंसान जितना अपने मन को मना सके उतना खुश रह सकता है। ~ अब्राहम लिंकन | ||
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* भारत मानव जाति का पलना है, मानव-भाषा की जन्मस्थली है, इतिहास की जननी है, पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है। ~ मार्क ट्वेन | * भारत मानव जाति का पलना है, मानव-भाषा की जन्मस्थली है, इतिहास की जननी है, पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है। ~ मार्क ट्वेन | ||
* क्रोध एक तेजाब है जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है। ~ मार्क ट्वेन | * क्रोध एक तेजाब है जो उस बर्तन का अधिक अनिष्ट कर सकता है जिसमें वह भरा होता है न कि उसका जिस पर वह डाला जाता है। ~ मार्क ट्वेन | ||
* जो पढ़ता नहीं है, वह उस व्यक्ति से कतई बेहतर नहीं है जो अनपढ़ है। ~ मार्क ट्वेन | |||
* एक शब्द और लगभग सही शब्द में ठीक उतना ही अंतर है जितना कि रोशनी और जुगनू में। ~ मार्क ट्वेन | |||
* मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है; पर असफला की सीढी है, हर किसी को प्रसन्न करने की चाह। ~ बिल कोस्बी | * मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है; पर असफला की सीढी है, हर किसी को प्रसन्न करने की चाह। ~ बिल कोस्बी | ||
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* जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। ~ गेटे | * जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। ~ गेटे | ||
* यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है। और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है। - पाल गेटी | * यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है। और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है। - पाल गेटी | ||
* इस संसार में सबसे सुखी वही व्यक्ति है जो अपने घर में शांति पाता है। ~ गेटे | |||
* सबसे अच्छी सरकार वही है जो हमें स्वयं अपने ऊपर शासन करना सिखाती है। ~ गेटे | |||
* सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है। ~ डबल्यू एच ऑदेन | * सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है। ~ डबल्यू एच ऑदेन | ||
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* प्यार कभी निष्फल नहीं होता, चरित्र कभी नहीं हारता और धैर्य व दृढ़ता से सपने अवश्य सच हो जाते हैं। | * इंसान अगर लोभ को ठुकरा दे तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्योंकि संतोष ही इंसान का माथा हमेशा ऊंचा रख सकता है। ~ शेख सादी | ||
* हर दिन मेरा सर्वश्रेष्ठ दिन है, यह मेरी जिन्दगी है, मेरे पास यह क्षण दुबारा नहीं होगा। | * अज्ञानी आदमी के लिये खामोशी से बढ़कर कोई चीज नहीं, और अगर उसमें यह समझने की बुद्धि है तो वह अज्ञानी नहीं रहेगा। ~ शेखी सादी | ||
* | * वाणी मधुर हो तो सब कुछ वश में हो जाता है, अन्यथा सब शत्रु बन जाते हैं। ~ शेख सादी | ||
* वह आदमी वास्तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी गलत बात मुंह से नहीं निकालता। ~ शेख सादी | |||
* लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। - शेख सादी | |||
* बीता कल आज की याद है, और आने वाला कल आज का स्वप्न। ~ खलील जिब्रान | |||
* मानवता प्रकाश की वह नदी है जो सीमित से असीम की ओर बहती है। ~ खलील जिब्रान | |||
* जिन्दगी वैसी नहीं है जैसी आप इसके लिये कामना करते हैं, यह तो वैसी बन जाती है, जैसा आप इसे बनाते हैं। ~ एंथनी रयान | |||
* जीवन वह नहीं है जिसकी आप चाहत रखते हैं, बल्कि वह तो वैसा बन जाता है जैसा आप इसे बनाते हैं। ~ एंथनी रयान | |||
* सही अवसर न मिलने पर क्षमता के, मायने बेहद सीमित हो जाते हैं। ~ नेपोलियन | |||
* जब तक आप न चाहें तब तक आपको, कोई भी ईर्ष्यालु, क्रोधी प्रतिशोधी या लालची नहीं बना सकता। ~ नेपोलियन हिल | |||
* बिना उचित अवसर के योग्यता किसी काम की, नहीं है भले आप में लाख गुण हों लेकिन यदि, अवसर नहीं मिला तो योग्यता व्यर्थ है। ~ नेपोलियन बोनापार्ट | |||
* अशिक्षित रहने से पैदा न होना अच्छा है, क्योंकि अज्ञान सब बुराईयों का मूल हैं। ~ नेपोलियन बोनापार्ट | |||
* बुरा व्यक्ति उस समय और भी बुरा हो जाता है जब वह अच्छा होने का ढोंग करता है। ~ फ्रांसिस बेकन | |||
* जो नए सुधारों पर अमल नहीं, करेगा वह नए खतरों को न्यौता देगा। ~ फ्रांसिस बेकन | |||
* बुद्धिमान व्यक्ति को जितने, अवसर मिलते हैं उससे अधिक वह स्वयं बनाता है। ~ फ्रांसिस बेकन | |||
* प्रतिशोध लेते समय मनुष्य अपने शत्रु के समान ही होता है, लेकिन उसकी उपेक्षा कर देने पर वह उससे बड़ा हो जाता है। ~ फ्रांसिस बेकन | |||
* हम स्वभाव के मुताबिक सोचते हैं, कायदे के मुताबिक बोलते हैं, रिवाज के मुताबिक आचरण करते हैं। ~ फ्रांसिस बेकन | |||
* हर वर्ष एक बुरी आदत को मूल से खोदकर, फेंका जाए तो कुछ ही वर्षों में बुरे से बुरा, व्यक्ति भला हो सकता है। ~ सुकरात | |||
* धन से अच्छे गुण नहीं मिलते, धन अच्छे गुणों से मिलता है। ~ सुकरात | |||
* ऊंची से ऊंची चोटी पर पहुंचना मकसद हो तो अपना काम निचली सतह से शुरू करना चाहिए। ~ स्वेट मार्डेन | |||
* जो मनुष्य अपने मन का गुलाम बना रहता है वह कभी नेता और प्रभावशाली पुरूष नहीं हो सकता। ~ स्वेट मार्डन | |||
* आशा और आत्मविश्वास से ही हमारी, शक्तियां जागृत होती हैं, इनसे हमारी, उत्पादन शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। ~ स्वेट मार्डेन | |||
* ज्ञान की बातें सुनकर जो उन पर अमल करता है उसी के हृदय में ज्ञान की ज्योति प्रकट होती है। ~ अबू उस्मान | |||
* प्यार कभी निष्फल नहीं होता, चरित्र कभी नहीं हारता और धैर्य व दृढ़ता से सपने अवश्य सच हो जाते हैं। ~ पीट मेराविच | |||
* हर दिन मेरा सर्वश्रेष्ठ दिन है, यह मेरी जिन्दगी है, मेरे पास यह क्षण दुबारा नहीं होगा। ~ बर्नी सीगल | |||
* कुछ लोग चाहे जितने बूढ़े हो जाएं उनकी, सुन्दरता नहीं मिटती, यह बस उनके चेहरों से उतरकर उनके दिलों में आ बसती है। ~ मार्टिन बक्सबाम | |||
* आप जिस कार्य को कर रहे हैं, उस पर पूरे, मनोयोग से ध्यान केन्द्रित करें। सूर्य की किरणों से उस समय तक अग्नि प्रज्वलित नहीं होती जब तक उन्हें केन्द्रित नहीं किया जाता। ~ अलेक्जेंडर ग्राहम बेल | |||
* जीवन वैसे ही बहुत छोटा है, लेकिन हम समय की अंधाधुंध बर्बादी करके इसे और भी छोटा कर देते हैं। ~ विक्टर ह्यूगो | |||
* जीवन की उन सीमाओं को छोड़ कर, कोई और सीमाएं नहीं हैं, जिन्हें आप खुद तय करते हैं। ~ लेस ब्राउन | |||
* जब कोई प्रतिभाशाली हस्ती इस संसार में आती है तो उसे इस लक्षण से पहचाना जा सकता है तमाम मूर्ख उसके खिलाफ उठकर खड़े हो जाते हैं। ~ स्विफ्ट | |||
* न रगड़ के बिना रत्न पर पालिश होती है, न कठिनाइयों के बिना मानव में पूर्णता आती है। ~ लाओत्सेज | |||
* सज्जन लोग स्वभाव से ही, स्वार्थ सिद्धि में आलसी और, परोपकार में दक्ष होते हैं। ~ भास | |||
* समानता ही आजादी की आत्मा है, अगर समानता ही न हो तो आजादी निरर्थक है। ~ फ्रांसिस राईट | |||
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो, इह और पर दोनो लोकों में तुम्हारी, भलाई होती है। ~ तिकन्ना | |||
* सफल होने के लिये असफलता आवश्यक है, ताकि आपको यह पता चल सके कि अगली बार क्या नहीं करना है। ~ एंथनी जे. डिएंजेलो | |||
* किसी के गुणों की प्रशंसा करने में, अपना समय मत बरबाद मत करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो। ~ कार्ल मार्क्स | |||
* अच्छे कार्यों को सोचते ही न रहिए, उन्हें सारे दिन कीजिए ताकि जीवन एक भव्य मधुर गीत बन जाए। ~ चार्ल्स किंग्सले | |||
* असंभव और संभव के बीच में अंतर व्यक्ति के दृढ़ निश्चय पर निर्भर करता है। ~ टॉर्मी लासोर्डा | |||
* आप हमेशा परिस्थितियों को नियंत्रित, नहीं कर सकते, लेकिन आप खुद को जरूर नियंत्रित कर सकते हैं। ~ एंथनी रोबिन्स | |||
* आलसी की कोई भी अच्छी इच्छा, कभी पूर्ण नहीं हुई। ~ सर्वेन्टीज | |||
* प्रेम एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपकी स्वयं की खुशी के लिये दूसरे व्यक्ति की खुशी अनिवार्य होती है। ~ राबर्ट हेन्लेन | |||
* सफलता की खुशियां मनाना ठीक है, लेकिन असफलताओं से सबक सीखना अधिक महत्वपूर्ण है। ~ बिल गेट्स | |||
* क्रोध बुद्धि को घर से बाहर, निकाल देता है और दरवाजे पर, चटकनी लगा देता है। ~ प्लूटार्क | |||
* सच बोलने का सबसे बड़ा फायदा यह, है कि आपको यह याद नहीं रखना, पड़ता की किससे क्या कहा था। ~ राबर्ट बेंसन | |||
* जो शत्रु तुम पर आक्रमण करता है, उससे मत डरो, उन मित्रों से डरो, जो तुम्हारी चापलूसी करते हैं। ~ जनरल ओवगोन | |||
* जिन दोषों को हम दूसरों में देखते हैं, उन्हें अपने में न रहने दें इसका सदा ध्यान रखना चाहिए। ~ मोनेंडर | |||
* अच्छे कार्य करने के लिये किसी शुभ, अवसर की राह मत देखो, बल्कि छोटे- छोटे अवसरों से ही लाभ उठाओ। ~ रिशर | |||
* अज्ञानी रहने से जन्म नहीं लेना अच्छा है, क्योंकि अज्ञान सब दुखों की जड़ है। ~ प्लेटो | |||
* हम दूसरों का अहंकार इसलिए सहन नहीं कर पाते क्योंकि उससे हमारा अपना अहंकार आहत होता है। ~ ला रोशफूको | |||
* कुछ लोग जिसे गलती से जीवन स्तर की बढ़ती कीमतें समझ लेते हैं, वह वास्तव में बढ़-चढ़कर जीने की कीमते होती हैं। ~ डग लारसन | |||
* सबसे ज्यादा बहादुर लोग ही बेहद, क्षमाशील तथा झगड़ों को टालने की कोशिश करने वाले होते हैं। ~ थैकरे | |||
* कड़ी मेहनत के बिना सफलता का प्रयास करना, तो ऐसा है जैसे आप वहां से फसल काटने की कोशिश कर रहे हों, जहां आपने फसल बोई ही नहीं है। ~ डेविड ब्लाए | |||
* धन को बरबाद करे तो आप केवल निर्धन, होते हैं लेकिन समय को बरबाद करते हैं तो आप जीवन का एक अहम हिस्सा गवां देते हैं। ~ मिशेल लेबोएफ | |||
* जिस तरह अच्छे तौर तरीके बनाए रखने के लिए कानून जरूरी है, उसी तरह कानूनों के पालन के लिए अच्छे तौर तरीके जरूरी है। ~ माक्यावैलि | |||
* समय और स्वास्थ्य दो बहुमूल्य संपत्तियां हैं, जिनकी पहचान तथा मूल्य हम उस समय तक नहीं समझते जब तक उनका नाश नहीं हो जाता। ~ डेनिस वेटले | |||
* धनवान बनने के लिये अपने स्वास्थ्य को कभी भी जोखिम में न डालें, क्योंकि यह सच है कि स्वास्थ्य समस्त संपत्तियों में से श्रेष्ठ संपत्ति है। ~ रिचर्ड बेकर | |||
* भाग्य संयोग का नहीं चयन का विषय है, यह कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसके लिए प्रतीक्षा की जाए, यह तो ऐसी वस्तु है जिसे प्राप्त किया जाना चाहिए। ~ विलियम जेन्निंग्स ब्रायन | |||
* अज्ञानता और विचारहीनता मानवता के विनाश के दो सबसे बड़े कारण हैं। ~ जॉन टिलोटसन | |||
* सत्य से प्यार करें और, गल्तियों को क्षमा कर दें। ~ वाल्टेयर | |||
* हमें अपने आपको नहीं बल्कि अपने उत्तदायित्व को गंभीरता से लेना चाहिए। ~ पीटर उस्तीनोव | |||
* यदि एक बड़ा कदम उठाने की आवश्यकता है, तो डरे नहीं आप गहरी खाई को दो छोटे फर्लांग लगाकर पार नहीं कर सकते। ~ डेविड लायड जार्ज | |||
* किसी के गुणों की प्रशंसा करने में, अपना समय मत व्यर्थ करो उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो। ~ कार्ल मार्क्स | |||
* ऐसे सभी व्यक्ति जिन्होंने महान उपलब्धियां हासिल की हैं, वह महान स्वप्नदृष्टा भी होते हैं। ~ ओरिसन स्वेट मार्डन | |||
* दुनिया में सबसे बड़ा अपराध अपनी संभावनाओं, का विकास न करना है, जब आप कोई भी काम बेहतर तरीके से करते हैं तो न केवल अपनी मदद करते हैं बल्कि पूरी दुनिया की मदद करते हैं। ~ रोजर विलियम्स | |||
* सफलता की कामना करने वाले व्यक्ति को शीर्ष पर पहुंचने की प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में असफलता को एक स्वस्थ, अपरिहार्य हिस्सा मानना चाहिए। ~ डॉ. जोएस ब्रदर्स | |||
* अपनी सफलता अथवा असफलता की, संभावनाओं के आंकलन में समय नष्ट न करें, केवल अपना लक्ष्य निर्धारित करें और काम शुरू कर दें। ~ गुआन यिन त्जू | |||
* छोटी-छोटी बातों का आनंद उठाइए क्योंकि हो सकता है कि किसी दिन आप मुड़ कर देखें तो आपको अनुभव हो कि ये तो बड़ी बातें थीं। ~ राबर्ट ब्राइट | |||
* यह मत मानिए की जीत ही सब कुछ है अधिक महत्व इस बात का है कि आप किसी आदर्श के लिए संघर्षरत हों, यदि आप किसी आदर्श पर डट नहीं सकते तो जीतेंगे क्या? ~ लेन कर्कलैंड | |||
* निरंतर सफलता हमें संसार का केवल एक ही पहलू दिखाती है, विपत्ति हमें तस्वीर का दूसरा पहलू भी दिखाती है। ~ कोल्टन | |||
* जीवन में दो मूल विकल्प होते हैं, स्थितियों को उसी रूप में स्वीकार करना जैसी वे हैं या उन्हें, बदलने का उत्तरदायित्व स्वीकार करना। ~ डेनिस वेटले | |||
* प्रकृति का तमाशा भी खूब है, सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। ~ जकिया जुबैरी | |||
* बेहतर जिंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। ~ शिल्पायन | |||
* लिखना तब काफी आसान हो जाता है, यदि आपके पास कहने के लिये बहुत कुछ हो। ~ शोलम आस्च | |||
* अच्छी किताब एक जादुई कालीन की तरह है, जो आहिस्ते से हमें उस दुनिया की सैर कराती है जहां दूसरी किसी चीज के जरिए प्रवेश संभव नहीं है। ~ कैरोलीन गार्डोन | |||
* शब्दों से सबसे ज्यादा भय उन्हें लगना चाहिए जो उनका भार नहीं पहचानते हैं, लेखक, कवि और वे जिनके लिए शब्द ही यथार्थ हैं। ~ अन्ना कामीएन्स्का | |||
* विश्व एक सुन्दर पुस्तक के समान शिक्षापूर्ण है, किन्तु उसके लिए इसका रंच-मात्र भी उपयोग नहीं जो इसको पढ़ नहीं सकता। ~ गोल्डोनी | |||
* आदमी को अज्ञान में रखना संभव है लेकिन उसे अज्ञानी नहीं बनाया जा सकता। ~ टामस पेन | |||
* अगर मनुष्य कुछ सीखना चाहे तो उसकी हर भूल उसे कुछ न कुछ शिक्षा जरूर दे सकती है। ~ डकेन्स | |||
* वह लेखक सबसे अच्छा लिखता है जो अपने पाठकों का सबसे कम समय लेकर उन्हें सबसे अधिक ज्ञान देता है। ~ सिडनी स्मिथ | |||
* जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया जाना चाहिए। - अथर्ववेद | * जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया जाना चाहिए। - अथर्ववेद | ||
* प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। - समर्थ गुरू रामदास | * प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। - समर्थ गुरू रामदास | ||
* सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। - वृंदावनलाल वर्मा | * सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। - वृंदावनलाल वर्मा | ||
* आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। - महात्मा गांधी | * आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। - महात्मा गांधी | ||
* | * उस मनुष्य की सम्पत्ति, जिसे लोग प्यार नहीं करते हैं, गांव के बीचों- बीच किसी विष-वृक्ष के फलने के समान है। ~ तिरूवल्लुवर | ||
* इच्छा रूपी समुद्र सदा अतृप्त रहता है उसकी मांगे ज्यों-ज्यों पूरी की जाती हैं, त्यों-त्यों और गर्जन करता है। - स्वामी विवेकानन्द | * इच्छा रूपी समुद्र सदा अतृप्त रहता है उसकी मांगे ज्यों-ज्यों पूरी की जाती हैं, त्यों-त्यों और गर्जन करता है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* शरीर-बल से प्राप्त सत्ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्मबल से प्राप्त सत्ता अजर-अमर। - महात्मा गांधी | * शरीर-बल से प्राप्त सत्ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्मबल से प्राप्त सत्ता अजर-अमर। - महात्मा गांधी | ||
पंक्ति 397: | पंक्ति 492: | ||
* जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती, वह कला नहीं है। - महात्मा गांधी | * जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती, वह कला नहीं है। - महात्मा गांधी | ||
* जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। - महात्मा बुद्ध | * जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। - महात्मा बुद्ध | ||
* गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। - विनोबा भावे | * गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। - विनोबा भावे | ||
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। - महोपनिषद | * जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। - महोपनिषद | ||
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* ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे व्यक्तियों से अधिक कमजोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर भरोसा नहीं। - स्वामी दयानंद सरस्वती | * ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे व्यक्तियों से अधिक कमजोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर भरोसा नहीं। - स्वामी दयानंद सरस्वती | ||
* मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता, मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाए। - संत ज्ञानेश्वर | * मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता, मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाए। - संत ज्ञानेश्वर | ||
* दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। - प्रेमचन्द | * दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। - प्रेमचन्द | ||
* दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद | * दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद | ||
* काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्मा गांधी | * काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्मा गांधी | ||
* यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि अरविन्द | * यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि अरविन्द | ||
* गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य | * गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य | ||
* सन्यास हृदय की एक दशा का नाम है, किसी ऊपरी नियम या वेशभूषा का नहीं। - श्रीमद् भगवदगीता | * सन्यास हृदय की एक दशा का नाम है, किसी ऊपरी नियम या वेशभूषा का नहीं। - श्रीमद् भगवदगीता | ||
* इच्छा से दुख आता है, इच्छा से भय, आता है, जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्मा गांधी | * इच्छा से दुख आता है, इच्छा से भय, आता है, जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्मा गांधी | ||
* हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्हारे मन की भी। - महात्मा गांधी | * हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्हारे मन की भी। - महात्मा गांधी | ||
* मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद | * मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद | ||
* अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। - अश्वघोष | * अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। - अश्वघोष | ||
* श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय, हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें। - पं. जवाहर लाल नेहरू | * श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय, हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें। - पं. जवाहर लाल नेहरू | ||
* अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास | * अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास | ||
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी | * प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी | ||
* शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल | * शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल | ||
* अन्याय और अत्याचार करने वाला, उतना दोषी नहीं माना जा सकता, जितना कि उसे सहन करने वाला। - बाल गंगाधर तिलक | * अन्याय और अत्याचार करने वाला, उतना दोषी नहीं माना जा सकता, जितना कि उसे सहन करने वाला। - बाल गंगाधर तिलक | ||
* सुन्दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी | * सुन्दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी | ||
* संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है। - प्रेमचन्द | * संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है। - प्रेमचन्द | ||
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* दुनिया में तीन चीजें कभी लम्बे समय तक छिपी नहीं रह सकती, पहली है सूर्य, दूसरी चन्द्रमा और तीसरी है सत्य। - गौतम बुद्ध | * दुनिया में तीन चीजें कभी लम्बे समय तक छिपी नहीं रह सकती, पहली है सूर्य, दूसरी चन्द्रमा और तीसरी है सत्य। - गौतम बुद्ध | ||
* जिसे पुस्तकें पढ़ने का शौक है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्मा गांधी | * जिसे पुस्तकें पढ़ने का शौक है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्मा गांधी | ||
* जब तक तुम्हारें अन्दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने, की आदत मौजूद है ईश्वर का साक्षात, करना अत्यंत कठिन है। - स्वामी रामतीर्थ | * जब तक तुम्हारें अन्दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने, की आदत मौजूद है ईश्वर का साक्षात, करना अत्यंत कठिन है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* अधिक धन- सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष | * अधिक धन- सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष | ||
* जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरूष जगत के लिए जहाज है। | * जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरूष जगत के लिए जहाज है। | ||
* दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का खजाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ | * दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का खजाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* किसी कृतज्ञता को तत्काल चुकाने, का प्रयत्न करना एक प्रकार की, कृतज्ञता ही है। - अज्ञात | * किसी कृतज्ञता को तत्काल चुकाने, का प्रयत्न करना एक प्रकार की, कृतज्ञता ही है। - अज्ञात | ||
* मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। - महात्मा गांधी | * मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। - महात्मा गांधी | ||
* आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्त्र बार, आगे बढ़ों और यदि फिर भी असफल, हो जाओ तो एकबार नया प्रयास, अवश्य करो। - स्वामी विवेकानन्द | * आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्त्र बार, आगे बढ़ों और यदि फिर भी असफल, हो जाओ तो एकबार नया प्रयास, अवश्य करो। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्ल नारायण दासु | * भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्ल नारायण दासु | ||
* लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर, समय उसका चिंतन करो उसी का स्वप्न, देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। - स्वामी विवेकानन्द | * लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर, समय उसका चिंतन करो उसी का स्वप्न, देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत | * लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत | ||
* मनुंष्य का सच्चा जीवन साथी विद्या ही है, जिसके कारण वह विद्वान कहलाता है। - स्वामी दयानन्द | * मनुंष्य का सच्चा जीवन साथी विद्या ही है, जिसके कारण वह विद्वान कहलाता है। - स्वामी दयानन्द | ||
* धैर्यवान व्यक्ति ही समय पर विजय पाता है और असंयमी व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सब कुछ खो देता है। - अज्ञात | * धैर्यवान व्यक्ति ही समय पर विजय पाता है और असंयमी व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सब कुछ खो देता है। - अज्ञात | ||
* मन इच्छाओं की गठरी है, जब तक इच्छाओं को उखाड़कर नहीं फेंका जाएगा, तब तक मन को नष्ट करने की आशा व्यर्थ होगी। - श्री सत्यसाईं | * मन इच्छाओं की गठरी है, जब तक इच्छाओं को उखाड़कर नहीं फेंका जाएगा, तब तक मन को नष्ट करने की आशा व्यर्थ होगी। - श्री सत्यसाईं | ||
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* जितनी हम दूसरों की भलाई करते हैं, उतना ही हमारा ह़दय शुद्ध होता है और उसमें ईश्वर निवास करता है। - विवेकानन्द | * जितनी हम दूसरों की भलाई करते हैं, उतना ही हमारा ह़दय शुद्ध होता है और उसमें ईश्वर निवास करता है। - विवेकानन्द | ||
* संतोष का वृक्ष कड़वा है, लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानन्द | * संतोष का वृक्ष कड़वा है, लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानन्द | ||
* सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के सम्पूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी | |||
* सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के सम्पूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई | |||
* कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रूआब दिखाने से नहीं। - प्रेमचन्द | * कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रूआब दिखाने से नहीं। - प्रेमचन्द | ||
* जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक | * जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्लुवर | ||
* जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है। - दीनानाथ दिनेश | |||
* जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता | |||
* जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। - प्रेमचंद | * जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। - प्रेमचंद | ||
* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का चेहरा प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिन्दगी के उतार-चढ़ाव की देन है, लेकिन पचास वर्ष वर्ष की आयु का चेहरा उसकी अपनी कमाई है। - अष्टावक्र | |||
* बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का चेहरा प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिन्दगी के उतार-चढ़ाव की देन है, लेकिन पचास वर्ष वर्ष की आयु का चेहरा उसकी अपनी कमाई | * पाषाण के भीतर भी मधुर स्त्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद | ||
* पाषाण के भीतर भी मधुर स्त्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती | |||
* मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात | * मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात | ||
* जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक | * जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं। - जवाहरलाल नेहरू | ||
* चन्द्रमा अपना प्रकाश सम्पूर्ण आकाश में फैलाता है परन्तु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवीन्द्र | * चन्द्रमा अपना प्रकाश सम्पूर्ण आकाश में फैलाता है परन्तु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवीन्द्र | ||
* दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। - अज्ञात | * दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। - अज्ञात | ||
* जो भारी कोलाहल में संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता | * जो भारी कोलाहल में संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। - अज्ञात | ||
* जीवन में कोई चीज इतनी हानिकारक और खतरनाक नहीं जितना डांवा डोल स्थिति में रहना। - सुभाष चन्द्र बोस | * जीवन में कोई चीज इतनी हानिकारक और खतरनाक नहीं जितना डांवा डोल स्थिति में रहना। - सुभाष चन्द्र बोस | ||
* आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं, दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। - चाणक्य | * आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं, दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। - चाणक्य | ||
* मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है, पर देने वाला दरिद्र नहीं | * मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है, पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। - अज्ञात | ||
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं, तो विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात | * उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं, तो विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात | ||
* काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। - कालिदास | * काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। - कालिदास | ||
* धन से नहीं, संतान से भी नहीं अमृत स्थिति की प्राप्ति केवल त्याग से ही होती है। - स्वामी विवेकानन्द | * धन से नहीं, संतान से भी नहीं अमृत स्थिति की प्राप्ति केवल त्याग से ही होती है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता | * रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता | ||
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* विजय गर्व और प्रतिष्ठा कि साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरूष के साथ न की जाय तो अपमान का जहर पिला कर चली जाती है। - मुक्ता | * विजय गर्व और प्रतिष्ठा कि साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरूष के साथ न की जाय तो अपमान का जहर पिला कर चली जाती है। - मुक्ता | ||
* खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। - मुंशी प्रेमचंद | * खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। - मुंशी प्रेमचंद | ||
* प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है, उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाये पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद | * प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है, उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाये पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद | ||
* उत्तमता गुणों से आती है, ऊंचे आसन पर बैठ जाने से नहीं, महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं हो जाता। - चाणक्य नीति | * उत्तमता गुणों से आती है, ऊंचे आसन पर बैठ जाने से नहीं, महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं हो जाता। - चाणक्य नीति | ||
* जाति, धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, और इबादत करने के तरीके भी भिन्न हो सकते हैं, लेकिन ईश्वर एक है। - अज्ञात | * जाति, धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, और इबादत करने के तरीके भी भिन्न हो सकते हैं, लेकिन ईश्वर एक है। - अज्ञात | ||
* ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहां, न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। - विनोबा | * ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहां, न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। - विनोबा | ||
* परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। - संत तुकाराम | * परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। - संत तुकाराम | ||
* इस संसार में जो अपने आप पर, भरोसा नहीं करता वह नास्तिक है। - स्वामी विवेकानन्द | * इस संसार में जो अपने आप पर, भरोसा नहीं करता वह नास्तिक है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* सज्जन पुरूष बिना कहे ही दूसरों की, आशा पूरी कर देते हैं, जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर में प्रकाश फैला देता है। - कालिदास | * सज्जन पुरूष बिना कहे ही दूसरों की, आशा पूरी कर देते हैं, जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर में प्रकाश फैला देता है। - कालिदास | ||
* निरंहकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - अज्ञात | * निरंहकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - अज्ञात | ||
* इस विश्व में स्वर्ण, गाय और धरती का, दान देने वाले सुलभ हैं, लेकिन प्राणियों को अभयदान देने वाले इंसान दुर्लभ हैं। - भर्तृहरि | * इस विश्व में स्वर्ण, गाय और धरती का, दान देने वाले सुलभ हैं, लेकिन प्राणियों को अभयदान देने वाले इंसान दुर्लभ हैं। - भर्तृहरि | ||
* असफलता का मौसम सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानन्द | * असफलता का मौसम सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानन्द | ||
* जिसने स्वयं को वश में कर लिया है, संसार की कोई शक्ति उसकी विजय, को पराजय में नहीं बदल | * जिसने स्वयं को वश में कर लिया है, संसार की कोई शक्ति उसकी विजय, को पराजय में नहीं बदल सकती। - महात्मा बुद्ध | ||
* बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता | * बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। - शंकराचार्य | ||
* यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आंसू भरी आंखे सितारे कैसे देख सकेंगी। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | |||
* भोग में रोग का, उच्चा-कुल में पतन का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है, भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर | |||
* इस संसार मे प्यार करने लायक दो, वस्तुएं हैं एक दुख और दूसरा श्रम, दुख के बिना हृदय निर्मल नही होता, और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा | |||
* सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है, और सहयोग से मित्र बनाये जाते हैं। - कौटिल्य | |||
* यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आंसू भरी आंखे सितारे कैसे देख | * पुरूषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, और जप से पाप का, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती, और सजगता से भय की। - चाणक्य | ||
* भोग में रोग का, उच्चा-कुल में पतन का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है, भय रहित तो केवल वैराग्य ही | * कृत्रिम प्रेम बहुत दिनों तक चल नहीं पाता, स्वाभाविक प्रेम की नकल नहीं हो सकती। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* इस संसार मे प्यार करने लायक दो, वस्तुएं हैं एक दुख और दूसरा श्रम, दुख के बिना हृदय निर्मल नही होता, और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं | * केवल प्रकाश का आभाव ही नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की, आंखों के लिये अंधकार है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करे। - रसनिधि | |||
* जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि | |||
* सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है, और सहयोग से मित्र बनाये जाते | * विद्वता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक, और बुढ़ापे में संचित धन है। - हितोपदेश | ||
* नेकी से विमुख हो जाना और बदी, करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरूवल्लुवर | |||
* पुरूषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, और जप से पाप का, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती, और सजगता से भय | * बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमजोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर | ||
* मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद | |||
* कृत्रिम प्रेम बहुत दिनों तक चल नहीं पाता, स्वाभाविक प्रेम की नकल नहीं हो | * नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। - वेदव्यास | ||
* केवल प्रकाश का आभाव ही नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की, आंखों के लिये अंधकार | * सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है। - विनोबा भावे | ||
* अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव | |||
* जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने | |||
* विद्वता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक, और बुढ़ापे में संचित धन | |||
* नेकी से विमुख हो जाना और बदी, करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा | |||
* बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमजोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं | |||
* मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता | |||
* नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता | |||
* सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब | |||
* जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । | * जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । | ||
* हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख | * हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है। - वाल्मीकि | ||
* जंजीरें, जंजीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती | * जंजीरें, जंजीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं | * जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है। - शरतचन्द्र चट्टोपाघ्याय | ||
* जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है, जिसने सचमुच हत्या की हो। - स्वामी रामतीर्थ | |||
* जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है, जिसने सचमुच हत्या की | * हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्तव्य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्य करना ही प्रार्थना बन जाता है। - महात्मा गांधी | ||
* हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्तव्य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्य करना ही प्रार्थना बन जाता | * परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट-जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। - संत तुकाराम | ||
* अगर आप गलतियों को रोकने के लिये दरवाजे बन्द करते हैं तो सत्य भी बाहर ही रह जाएगा। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर | |||
* परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट-जनित करूणा से ओत-प्रोत होता | * महत्व इस बात का नहीं है आप अपने बच्चों के लिये क्या छोड़कर जाते हैं महत्व तो इस बात का है कि आप इन्हें कैसा बना कर जाते हैं। - अज्ञात | ||
* विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। - महात्मा गांधी | |||
* जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है, जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उस ओर जाता ही नहीं है। - महात्मा गांधी | |||
* अगर आप गलतियों को रोकने के लिये दरवाजे बन्द करते हैं तो सत्य भी बाहर ही रह | * वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर | ||
* अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता है। - कर्णपूर | |||
* सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। - विनोबा भावे | |||
* महत्व इस बात का नहीं है आप अपने बच्चों के लिये क्या छोड़कर जाते हैं महत्व तो इस बात का है कि आप इन्हें कैसा बना कर जाते | * आलस्य मृत्यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता | |||
* जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है, जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उस ओर जाता ही नहीं | |||
* वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती | |||
* अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता | |||
* सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने | |||
* आलस्य मृत्यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन | |||
* प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्याचारी और स्वार्थी नहीं होता। - महात्मा गांधी | * प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्याचारी और स्वार्थी नहीं होता। - महात्मा गांधी | ||
* अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रूपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास | * अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रूपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास | ||
* ज्ञान बढ़ने के साथ ही अहंकार घटना चाहिए, और नम्रता में वृद्धि होनी चाहिए!!! - हंसराज सुज्ञ | * ज्ञान बढ़ने के साथ ही अहंकार घटना चाहिए, और नम्रता में वृद्धि होनी चाहिए!!! - हंसराज सुज्ञ | ||
* जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य | * जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य | ||
* जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं!!! - प्रेमचंद | * जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं!!! - प्रेमचंद | ||
* कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्यथा हानि होती है!!! - महात्मा गांधी | * कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्यथा हानि होती है!!! - महात्मा गांधी | ||
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* कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है!!!! - रश्मि प्रभा | * कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है!!!! - रश्मि प्रभा | ||
* विनयहीन ज्ञानी वस्तुत: ज्ञानी ही नहीं है!!! - हंसराज सुज्ञ | * विनयहीन ज्ञानी वस्तुत: ज्ञानी ही नहीं है!!! - हंसराज सुज्ञ | ||
* केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे कागज का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है। - कबीर | * केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे कागज का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है। - कबीर | ||
* लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। - हितोपदेश | * लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। - हितोपदेश | ||
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* नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद | * नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद | ||
* विनय धर्म का मूल है अत: विनय आने पर, अन्य गुणों की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। - हंसराज सुज्ञ | * विनय धर्म का मूल है अत: विनय आने पर, अन्य गुणों की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। - हंसराज सुज्ञ | ||
* तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते!!! - रश्मि प्रभा | * तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते!!! - रश्मि प्रभा | ||
* देह शुद्धि से अधिक, विचारों की शुद्धि आवश्यक है। - हंसराज सुज्ञ | * देह शुद्धि से अधिक, विचारों की शुद्धि आवश्यक है। - हंसराज सुज्ञ | ||
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* जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है, यह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। - विवेकानन्द | * जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है, यह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। - विवेकानन्द | ||
* यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं जाते। और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है। हम अभिमान का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते? - हंसराज सुज्ञ | * यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं जाते। और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है। हम अभिमान का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते? - हंसराज सुज्ञ | ||
* यदि कोई एक बार हमारे साथ धोखा करे हम उससे मुँह मोड़ लेते है। और हमारा यह लोभ हमें बार बार धोखा देता है, हम अपने लोभ का मुख नोच क्यों नहीं लेते? - हंसराज सुज्ञ | * यदि कोई एक बार हमारे साथ धोखा करे हम उससे मुँह मोड़ लेते है। और हमारा यह लोभ हमें बार बार धोखा देता है, हम अपने लोभ का मुख नोच क्यों नहीं लेते? - हंसराज सुज्ञ | ||
* जीवन एक कहानी है, महत्व इस बात का नहीं, यह कहानी कितनी लम्बी है, महत्व इस बात का है, कि कहानी कितनी सार्थक है। - हंसराज सुज्ञ | * जीवन एक कहानी है, महत्व इस बात का नहीं, यह कहानी कितनी लम्बी है, महत्व इस बात का है, कि कहानी कितनी सार्थक है। - हंसराज सुज्ञ | ||
* यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहने वाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभ भाई पटेल | * यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहने वाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभ भाई पटेल | ||
* शरीर के मामले में जो स्थान साबुन का है, वही आत्मा के सन्दर्भ में आंसू का है। - अज्ञात | * शरीर के मामले में जो स्थान साबुन का है, वही आत्मा के सन्दर्भ में आंसू का है। - अज्ञात | ||
* दूसरों के दोष देखने और ढूंढने की तीव्रेच्छा, इतनी गाढ़ हो जाती है कि अपने दोष देखने का वक्त ही नहीं मिलता - हंसराज सुज्ञ | * दूसरों के दोष देखने और ढूंढने की तीव्रेच्छा, इतनी गाढ़ हो जाती है कि अपने दोष देखने का वक्त ही नहीं मिलता - हंसराज सुज्ञ | ||
* | * पतन का मार्ग ढलान का मार्ग है, ढलान में ही हमें रूकना सम्हलना होता है। - हंसराज सुज्ञ | ||
* सच्चा सुधारक वही है जो पहले अपना सुधार करता है। - हंसराज सुज्ञ | * सच्चा सुधारक वही है जो पहले अपना सुधार करता है। - हंसराज सुज्ञ | ||
* अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद | * अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद | ||
* परिस्थिति प्रतिकूल देखकर अपना अच्छा भला स्वभाव बदल देना तो स्वेच्छा बरबाद हो जाने के समान है। - हंसराज सुज्ञ | * परिस्थिति प्रतिकूल देखकर अपना अच्छा भला स्वभाव बदल देना तो स्वेच्छा बरबाद हो जाने के समान है। - हंसराज सुज्ञ | ||
* किताबें समय के महासागर में, जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं - अज्ञात | * किताबें समय के महासागर में, जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं - अज्ञात | ||
* उत्तम वस्तु को पचाने की क्षमता भी उत्तम चाहिए। - हंसराज सुज्ञ | * उत्तम वस्तु को पचाने की क्षमता भी उत्तम चाहिए। - हंसराज सुज्ञ | ||
* खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरूओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर | * खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरूओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर | ||
* जो समय गया सो गया, उसके लिए पश्चाताप करने की अपेक्षा वर्तमान को सार्थक करने की जरूरत है। - हंसराज सुज्ञ | * जो समय गया सो गया, उसके लिए पश्चाताप करने की अपेक्षा वर्तमान को सार्थक करने की जरूरत है। - हंसराज सुज्ञ | ||
* प्रशंसा सब को अच्छी लगती है,शायद ही कोई होगा जिसे प्रशंसा सुनना अच्छा नहीं लगता है, प्रशंसा आवश्यक है ,अच्छे कार्य की प्रशंसा नहीं करना अनुचित है पर ये कतई आवश्यक नहीं है, कि अच्छा करने पर ही प्रशंसा की जाए, प्रोत्साहन के लिए साधारण कार्य की प्रशंसा भी कई बार बेहतर करने को प्रेरित करती है,पर देखा गया है लोग झूंठी प्रशंसा भी करते हैं ,खुश करने के लिए या कडवे सत्य से बचने के लिए या दिखावे के लिए .पर इसके परिणाम घातक हो सकते हैं .व्यक्ति सत्य से दूर जा सकता है,एवं वह अति आत्मविश्वाश और भ्रम का शिकार हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है.वास्तविक स्पर्धा में वह पीछे रह सकता है या असफल हो सकता है इसलिए प्रशंसा कब और कितनी करी जाए,यह जानना भी आवश्यक है.साथ ही झूंठी प्रशंसा को पहचानना भी आवश्यक है .इसलिए सहज भाव से संयमित प्रशंसा करें, और सुनें ,प्रशंसा से अती आत्मविश्वाश से ग्रसित होने से बचें.प्रशंसा करने में कंजूसी भी नहीं बरतें - डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" | * प्रशंसा सब को अच्छी लगती है,शायद ही कोई होगा जिसे प्रशंसा सुनना अच्छा नहीं लगता है, प्रशंसा आवश्यक है ,अच्छे कार्य की प्रशंसा नहीं करना अनुचित है पर ये कतई आवश्यक नहीं है, कि अच्छा करने पर ही प्रशंसा की जाए, प्रोत्साहन के लिए साधारण कार्य की प्रशंसा भी कई बार बेहतर करने को प्रेरित करती है,पर देखा गया है लोग झूंठी प्रशंसा भी करते हैं ,खुश करने के लिए या कडवे सत्य से बचने के लिए या दिखावे के लिए .पर इसके परिणाम घातक हो सकते हैं .व्यक्ति सत्य से दूर जा सकता है,एवं वह अति आत्मविश्वाश और भ्रम का शिकार हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है.वास्तविक स्पर्धा में वह पीछे रह सकता है या असफल हो सकता है इसलिए प्रशंसा कब और कितनी करी जाए,यह जानना भी आवश्यक है.साथ ही झूंठी प्रशंसा को पहचानना भी आवश्यक है .इसलिए सहज भाव से संयमित प्रशंसा करें, और सुनें ,प्रशंसा से अती आत्मविश्वाश से ग्रसित होने से बचें.प्रशंसा करने में कंजूसी भी नहीं बरतें - डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" | ||
* साधारण मानव परिवेश अनुसार ढलता है, असाधारण मानव परिवेश को ही ढालता है। - हंसराज सुज्ञ | * साधारण मानव परिवेश अनुसार ढलता है, असाधारण मानव परिवेश को ही ढालता है। - हंसराज सुज्ञ | ||
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* समस्या तभी पैदा होती है जब दिनचर्या का महत्त्व ज्यादा हो जाता है सोच नेपथ्य में रह जाता है, धीरे धीरे खो जाता है, केवल भ्रम रह जाता है भौतिक सुख, अपने से ज्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता, जो करना चाहता, कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता, उसमें उलझा रहता, जितना दूर भागता उतना ही फंसता जाता। - राजेंद्र तेला | * समस्या तभी पैदा होती है जब दिनचर्या का महत्त्व ज्यादा हो जाता है सोच नेपथ्य में रह जाता है, धीरे धीरे खो जाता है, केवल भ्रम रह जाता है भौतिक सुख, अपने से ज्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता, जो करना चाहता, कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता, उसमें उलझा रहता, जितना दूर भागता उतना ही फंसता जाता। - राजेंद्र तेला | ||
* चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है - सुमन सिन्हा | * चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है - सुमन सिन्हा | ||
* सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें - अब्दुल कलाम | * सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें - अब्दुल कलाम | ||
* अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ | * अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ | ||
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* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानन्द | * पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* सम्बोधन अच्छे होंगे तभी सम्बंध अच्छे बनेंगे। - हंसराज सुज्ञ | * सम्बोधन अच्छे होंगे तभी सम्बंध अच्छे बनेंगे। - हंसराज सुज्ञ | ||
* पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है न दान है और न यज्ञ है। - वाल्मीकि | * पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है न दान है और न यज्ञ है। - वाल्मीकि | ||
* आंतरिक सौन्दर्य का आह्वान करना कठिन काम है, सौन्दर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज।। - अज्ञात | * आंतरिक सौन्दर्य का आह्वान करना कठिन काम है, सौन्दर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज।। - अज्ञात | ||
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* बैर के कारण उत्पन्न होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। - वेदव्यास | * बैर के कारण उत्पन्न होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। - वेदव्यास | ||
* जो अपने को बुद्धिमान समझता है, सामान्यत: सबसे बड़ा मूर्ख होता है।। - सुदर्शन | * जो अपने को बुद्धिमान समझता है, सामान्यत: सबसे बड़ा मूर्ख होता है।। - सुदर्शन | ||
* जो बीत गया है, उसकी परवाह न करें, जो आने वाला है उसके सपने न देखें, अपना ध्यान वर्तमान पर लगाएं। - महात्मा बुद्ध | * जो बीत गया है, उसकी परवाह न करें, जो आने वाला है उसके सपने न देखें, अपना ध्यान वर्तमान पर लगाएं। - महात्मा बुद्ध | ||
* ना तो कोई किसी का मित्र है ना ही शत्रु है, व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं। - हितोपदेश | * ना तो कोई किसी का मित्र है ना ही शत्रु है, व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं। - हितोपदेश | ||
* मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। - भगवतीचरण वर्मा | * मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। - भगवतीचरण वर्मा | ||
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* जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो सकता। - स्वामी ज्योतिनंद | * जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो सकता। - स्वामी ज्योतिनंद | ||
* ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्त होता है।। - गोस्वामी तुलसीदास | * ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्त होता है।। - गोस्वामी तुलसीदास | ||
* सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सर में, बिच्छूं की पूंछ में, किन्तु दुर्जनों के पूरे शरीर में विष रहता है।। - अज्ञात | * सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सर में, बिच्छूं की पूंछ में, किन्तु दुर्जनों के पूरे शरीर में विष रहता है।। - अज्ञात | ||
* फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्ति रहकर भी सज्जन झुक जाते हैं, परोपकारी का यही स्वभाव होता है। - अज्ञात | * फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्ति रहकर भी सज्जन झुक जाते हैं, परोपकारी का यही स्वभाव होता है। - अज्ञात | ||
* समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है लेकिन अच्छी छत नहीं। - अज्ञात | * समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है लेकिन अच्छी छत नहीं। - अज्ञात | ||
* बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएं पूर्ण अंधकार में हैं।। - मुक्ता | * बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएं पूर्ण अंधकार में हैं।। - मुक्ता | ||
* हंसमुख व्यक्ति वह फुहार है, जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं।। - अज्ञात | * हंसमुख व्यक्ति वह फुहार है, जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं।। - अज्ञात | ||
* सपना वो नहीं जो नींद में आए, सपने वे हैं जिसे पूरा किए बिना नींद न आए। - अज्ञात | * सपना वो नहीं जो नींद में आए, सपने वे हैं जिसे पूरा किए बिना नींद न आए। - अज्ञात | ||
* जब हर मनुष्य अपने आप पर व एक - दूसरे पर विश्वास करने लगेगा, आस्थावान बन जाएगा तो यह धरती ही स्वर्ग बन जाएगी।। - स्वामी विवेकानन्द | * जब हर मनुष्य अपने आप पर व एक - दूसरे पर विश्वास करने लगेगा, आस्थावान बन जाएगा तो यह धरती ही स्वर्ग बन जाएगी।। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नही होती!! - महात्मा गांधी | * आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नही होती!! - महात्मा गांधी | ||
* प्रसिद्ध होने का यह एक दण्ड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है।। - अज्ञात | * प्रसिद्ध होने का यह एक दण्ड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है।। - अज्ञात | ||
* श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है। किसी ग्रंथ में कुछ लिखा हुआ या किसी व्यक्ति का कुछ कहा हुआ अपने अनुभव बिना सच मानना श्रद्धा नहीं है। - स्वामी विवेकानन्द | * श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है। किसी ग्रंथ में कुछ लिखा हुआ या किसी व्यक्ति का कुछ कहा हुआ अपने अनुभव बिना सच मानना श्रद्धा नहीं है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्मा गांधी | * अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्मा गांधी | ||
* सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ, उसी मकान में रहता है, बल्िक वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार स्तर पर रहता है। - स्वामी रामतीर्थ | * सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ, उसी मकान में रहता है, बल्िक वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार स्तर पर रहता है। - स्वामी रामतीर्थ | ||
* धन तो वापस किया जा सकता है परन्तु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। - सुदर्शन | * धन तो वापस किया जा सकता है परन्तु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। - सुदर्शन | ||
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* हताश न होना सफलता का मूल है और, यही परम सुख है, उत्साह मनुष्य को कर्मों के लिये प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। - वाल्मीकि | * हताश न होना सफलता का मूल है और, यही परम सुख है, उत्साह मनुष्य को कर्मों के लिये प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। - वाल्मीकि | ||
* वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास | * वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास | ||
* झूठ सबसे बड़ा पाप है, झूठ की थैली में अन्य सभी पाप समा सकते हैं, झूठ को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्य पाप कर्म धीरे-धीरे स्वत: ही छूट जाएंगे। - गौतम बुद्ध | * झूठ सबसे बड़ा पाप है, झूठ की थैली में अन्य सभी पाप समा सकते हैं, झूठ को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्य पाप कर्म धीरे-धीरे स्वत: ही छूट जाएंगे। - गौतम बुद्ध | ||
* उदय होते समय सूर्य लाल होता है, और अस्त होते समय भी, इसी प्रकार सम्पत्ति और विपत्ति के समय महान पुरूषों में एकरूपता होती है। - कालिदास | * उदय होते समय सूर्य लाल होता है, और अस्त होते समय भी, इसी प्रकार सम्पत्ति और विपत्ति के समय महान पुरूषों में एकरूपता होती है। - कालिदास | ||
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* पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | * पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी | ||
* दूसरों पर किये गये व्यंग्य पर हम, हंसते हैं पर अपने ऊपर किये गये व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। - रामचन्द्र शुक्ल | * दूसरों पर किये गये व्यंग्य पर हम, हंसते हैं पर अपने ऊपर किये गये व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। - रामचन्द्र शुक्ल | ||
* आप ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं, कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते। - स्वामी विवेकानन्द | * आप ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं, कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं, शब्द गौण हैं, विचार मुख्य हैं और उनका, असर दूर तक होता है। - स्वामी विवेकानन्द | * हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं, शब्द गौण हैं, विचार मुख्य हैं और उनका, असर दूर तक होता है। - स्वामी विवेकानन्द | ||
* प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परन्तु उससे लाभ उठाने के लिये अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध | * प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परन्तु उससे लाभ उठाने के लिये अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध | ||
* जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू | * जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू |
15:53, 4 अक्टूबर 2011 का अवतरण
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इन्हें भी देखें: अनमोल वचन, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ