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| * मैं इस आसान धर्म में विश्वास रखता हूं। मन्दिरों की कोई आवश्यकता नहीं; जटिल दर्शनशास्त्र की कोई आवश्यकता नहीं। हमारा मस्तिष्क, हमारा हृदय ही हमारा मन्दिर है; और दयालुता जीवन-दर्शन है। ~ दलाई लामा | | * मैं इस आसान धर्म में विश्वास रखता हूं। मन्दिरों की कोई आवश्यकता नहीं; जटिल दर्शनशास्त्र की कोई आवश्यकता नहीं। हमारा मस्तिष्क, हमारा हृदय ही हमारा मन्दिर है; और दयालुता जीवन-दर्शन है। ~ दलाई लामा |
| * जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को न गंवाएं। ~ दलाई लामा | | * जब आप कुछ गंवा बैठते हैं, तो उससे प्राप्त शिक्षा को न गंवाएं। ~ दलाई लामा |
| | * हमारी खुशी का स्रोत हमारे ही भीतर है, यह स्रोत दूसरों के प्रति संवेदना से पनपता है। - दलाईलामा |
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| ==अब्राहम लिंकन== | | ==अब्राहम लिंकन== |
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| * वह आदमी वास्तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी गलत बात मुंह से नहीं निकालता। ~ शेख सादी | | * वह आदमी वास्तव में बुद्धिमान है जो क्रोध में भी गलत बात मुंह से नहीं निकालता। ~ शेख सादी |
| * लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। - शेख सादी | | * लोभी को पूरा संसार मिल जाए तो भी वह, भूखा रहता है, लेकिन संतोषी का पेट, एक रोटी से ही भर जाता है। - शेख सादी |
| | * ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। - शेख़ सादी |
| | * घमंड करना जाहिलों का काम है। - शेख सादी |
| | * जो नसीहतें नहीं सुनता, उसे लानत-मलामत सुनने का सुख होता है। - शेख़ सादी |
| | * बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। – शेख सादी |
| | * खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। – शेख सादी |
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| * जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। ~ फुलर | | * जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। ~ फुलर |
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| * कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्वपूर्ण हैं। - साई बाबा | | * कर्म की उत्पत्ति विचार में है, अतः विचार ही महत्वपूर्ण हैं। - साई बाबा |
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| * आयु आपकी सोच में है। जितनी आप सोचते हैं उतनी ही आपकी उम्र है। - मुहम्मद अली | | * आयु आपकी सोच में है। जितनी आप सोचते हैं उतनी ही आपकी उम्र है। - मुहम्मद अली |
| * बच्चों को देखकर इच्छा होती है कि जीवन फिर से शुरू करें। - मुहम्मद अली | | * बच्चों को देखकर इच्छा होती है कि जीवन फिर से शुरू करें। - मुहम्मद अली |
| | * मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ' – मुहम्मद अली |
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| * इतने मधुर न हों कि लोग आपको निगल लें, इतने कटु भी नहीं कि वे आपको उगल दें। - पश्तो की कहावत | | * इतने मधुर न हों कि लोग आपको निगल लें, इतने कटु भी नहीं कि वे आपको उगल दें। - पश्तो की कहावत |
| * हर शिशु इस संदेश के साथ आता है कि ईश्वर अभी इंसान से थका नहीं है। - टेगोर | | * हर शिशु इस संदेश के साथ आता है कि ईश्वर अभी इंसान से थका नहीं है। - टेगोर |
| * सम्पत्ति उस व्यक्ति की होती है जो इसका आनन्द लेता है न कि उस व्यक्ति को जो इसे अपने पास रखता है। - अफगानी कहावत | | * सम्पत्ति उस व्यक्ति की होती है जो इसका आनन्द लेता है न कि उस व्यक्ति को जो इसे अपने पास रखता है। - अफगानी कहावत |
| | * जो जानता नही कि वह जानता नही,वह मुर्ख है - उसे दुर भगाओ। जो जानता है कि वह जानता नही, वह सीधा है - उसे सिखाओ। जो जानता नही कि वह जानता है, वह सोया है - उसे जगाओ। जो जानता है कि वह जानता है, वह सयाना है - उसे गुरू बनाओ। — अरबी कहावत |
| * यदि आपको भगवान का भय है, तो आपको मनुष्यों से डर नहीं लगेगा। - अल्बानियाई कहावत | | * यदि आपको भगवान का भय है, तो आपको मनुष्यों से डर नहीं लगेगा। - अल्बानियाई कहावत |
| * हमारे आँगन में भी सूरज की धूप अवश्य आएगी। - रूसी कहावत | | * हमारे आँगन में भी सूरज की धूप अवश्य आएगी। - रूसी कहावत |
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| * ऐसे कानून व्यर्थ हैं जिनके अमल की व्यवस्था ही न हो। - इटली की कहावत | | * ऐसे कानून व्यर्थ हैं जिनके अमल की व्यवस्था ही न हो। - इटली की कहावत |
| * अच्छे पत्ते जिसे मिले हों वह कभी नहीं कहेगा कि गलत बांटे हैं। - आयरलैंड की कहावत | | * अच्छे पत्ते जिसे मिले हों वह कभी नहीं कहेगा कि गलत बांटे हैं। - आयरलैंड की कहावत |
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| * शिक्षक द्वार खोलते हैं; लेकिन प्रवेश आपको स्वयं ही करना होता है। - चीनी कहावत | | * शिक्षक द्वार खोलते हैं; लेकिन प्रवेश आपको स्वयं ही करना होता है। - चीनी कहावत |
| * अगर आप चाहते हैं कि किसी को मालूम न पड़े, तो ऐसा काम ही न करें। - चीनी कहावत | | * अगर आप चाहते हैं कि किसी को मालूम न पड़े, तो ऐसा काम ही न करें। - चीनी कहावत |
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| * अच्छा क्या है, इसे सीखने के लिए एक हजार दिन भी अपर्याप्त हैं; लेकिन बुरा क्या है, यह सीखने के लिए एक घंटा भी ज्यादा है। - चीनी कहावत | | * अच्छा क्या है, इसे सीखने के लिए एक हजार दिन भी अपर्याप्त हैं; लेकिन बुरा क्या है, यह सीखने के लिए एक घंटा भी ज्यादा है। - चीनी कहावत |
| * अध्यापक मार्गदर्शक का काम करते हैं. चलता आपको स्वयं पड़ता है। - चीनी कहावत | | * अध्यापक मार्गदर्शक का काम करते हैं. चलता आपको स्वयं पड़ता है। - चीनी कहावत |
| | * उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - चीनी कहावत |
| | * हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। — चीनी कहावत |
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| * उस्ताद वह नहीं जो आरंभ करता है, बल्कि वह है जो पूर्ण करता है। - स्लोवाकिया की कहावत | | * उस्ताद वह नहीं जो आरंभ करता है, बल्कि वह है जो पूर्ण करता है। - स्लोवाकिया की कहावत |
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| * जो स्वयं संयमित व नियंत्रित है उसे, व्यर्थ में और अधिक नियंत्रित नहीं करना चाहिये, जो अभी अनियंत्रित है, उसी को नियंत्रित किया जाना चाहिए। - अथर्ववेद
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| * प्रयत्न देवता की तरह है जबकि भाग्य दैत्य की भांति, ऐसे में प्रयत्न देवता की उपासना करना ही श्रेष्ठ काम है। - समर्थ गुरू रामदास
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| * सत्ता की महत्ता तो मोहक भी बहुत होती है, एक बार हांथ में आने पर और कंटीली होने पर भी छोड़ी नहीं जाती। - वृंदावनलाल वर्मा
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| * आशा अमर है उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। - महात्मा गांधी
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| * उस मनुष्य की सम्पत्ति, जिसे लोग प्यार नहीं करते हैं, गांव के बीचों- बीच किसी विष-वृक्ष के फलने के समान है। ~ तिरूवल्लुवर
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| * इच्छा रूपी समुद्र सदा अतृप्त रहता है उसकी मांगे ज्यों-ज्यों पूरी की जाती हैं, त्यों-त्यों और गर्जन करता है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * शरीर-बल से प्राप्त सत्ता मानव देह की, तरह क्षणभंगुर रहेगी, जबकि आत्मबल से प्राप्त सत्ता अजर-अमर। - महात्मा गांधी
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| * मन ज्यों-ज्यों हिंसा से दूर हटता है, त्यों-त्यों दुख शांत हो जाता है। - महात्मा बुद्ध
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| * सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है,सत्य से वायु बहती है सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। - वेदव्यास
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| * व्यक्ति को हानि, पीड़ा और चिंताएं, उसकी किसी आंतरिक दुर्बलता के कारण होती है, उस दुर्बलता को दूर करके कामयाबी मिल सकती है। - स्वामी रामतीर्थ
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| * बल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद कोई नहीं सुनता। - प्रेमचन्द
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| * जो कला आत्मा को आत्मदर्शन की शिक्षा नहीं देती, वह कला नहीं है। - महात्मा गांधी
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| * जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना, प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते उसी तरह क्रोध की अवस्था में यह नहीं समझ पाते कि हमारी भलाई किस बात में है। - महात्मा बुद्ध
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| * गरीब वह नहीं जिसके पास कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है, वह सबसे अधिक गरीब है। - विनोबा भावे
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| * जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है। - महोपनिषद
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| * आत्मसंयम, अनुशासन और बलिदान के बिना राहत या मुक्ति की आशा नहीं की जा सकती। - महात्मा गांधी
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| * जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। - मनुस्मृति
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| * शेष ऋण, शेष अग्नि, तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिये। - अज्ञात
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| * ताकतवर होने के लिए अपनी शक्ति में भरोसा रखना जरूरी है, वैसे व्यक्तियों से अधिक कमजोर कोई नहीं होता जिन्हें अपने सामर्थ्य पर भरोसा नहीं। - स्वामी दयानंद सरस्वती
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| * मूर्खों से बहस करके कोई भी व्यक्ति, बु्द्धिमान नहीं कहला सकता, मूर्ख पर विजय पाने का एकमात्र उपाय यही है कि उसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाए। - संत ज्ञानेश्वर
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| * दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है। - प्रेमचन्द
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| * दरिद्रता सब पापों की जननी है, तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है। - जयशंकर प्रसाद
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| * काहिली और मन की पवित्रता, एक साथ नहीं रह सकतीं। - महात्मा गांधी
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| * यदि आप चाहते हैं कि लोग आपके साथ सच्चा व्यवहार करें तो आप खुद सच्चे बनें और अन्य लोगों से भी सच्चा व्यवहार करें। - महर्षि अरविन्द
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| * गुणों से ही मानव की पहचान होती है, ऊंचे सिंहासन पर बैठने से नहीं। महल के उच्च शिखर पर बैठने के बावजूद कौवे का गरूड़ होना असंभव है। - चाणक्य
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| * सन्यास हृदय की एक दशा का नाम है, किसी ऊपरी नियम या वेशभूषा का नहीं। - श्रीमद् भगवदगीता
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| * इच्छा से दुख आता है, इच्छा से भय, आता है, जो इच्छाओं से मुक्त है वह न दुख जानता है न भय। - महात्मा गांधी
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| * हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है मेरे मन की भी और तुम्हारे मन की भी। - महात्मा गांधी
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| * मनुष्यता का एक पक्ष वह भी है, जहां वर्ण, धर्म और देश को भूलकर मनुष्य, मनुष्य के लिए प्यार करता हैं। - जयशंकर प्रसाद
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| * अधिक धन सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है वह सदा धनी है। - अश्वघोष
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| * श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय, हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें। - पं. जवाहर लाल नेहरू
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| * अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा एक दिन उसे डुबा दे्गा। - कालिदास
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| * प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है, भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
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| * शत्रु का लोहा भले ही गर्म हो जाए, पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम, दे सकता है। - सरदार पटेल
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| * अन्याय और अत्याचार करने वाला, उतना दोषी नहीं माना जा सकता, जितना कि उसे सहन करने वाला। - बाल गंगाधर तिलक
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| * सुन्दर दिखने के लिये भड़कीले, कपड़े पहनने की बजाय अपने, गुणों को बढ़ाना चाहिए। - महात्मा गांधी
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| * संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं, जहां स्नेह नहीं वहां कुछ नहीं है। - प्रेमचन्द
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| * आलस्य में दरिद्रता बसती है, लेकिन जो, व्यक्ति आलस्य नहीं करते उनकी मेहनत में लक्ष्मी का निवास होता है। - तिरूवल्लुर
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| * दुनिया में तीन चीजें कभी लम्बे समय तक छिपी नहीं रह सकती, पहली है सूर्य, दूसरी चन्द्रमा और तीसरी है सत्य। - गौतम बुद्ध
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| * जिसे पुस्तकें पढ़ने का शौक है, वह सब जगह सुखी रह सकता है। - महात्मा गांधी
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| * जब तक तुम्हारें अन्दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने, की आदत मौजूद है ईश्वर का साक्षात, करना अत्यंत कठिन है। - स्वामी रामतीर्थ
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| * अधिक धन- सम्पन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है, धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
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| * जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरूष जगत के लिए जहाज है।
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| * दुनियावी चीजों में सुख की तलाश, फिजूल होती है। आनन्द का खजाना, तो कहीं हमारे भीतर ही है। - स्वामी रामतीर्थ
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| * किसी कृतज्ञता को तत्काल चुकाने, का प्रयत्न करना एक प्रकार की, कृतज्ञता ही है। - अज्ञात
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| * मौन सर्वोत्तम भाषण है, अगर बोलना, जरूरी हो तो भी कम से कम बोलो, एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। - महात्मा गांधी
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| * आदर्श को पकड़ने के लिए सहस्त्र बार, आगे बढ़ों और यदि फिर भी असफल, हो जाओ तो एकबार नया प्रयास, अवश्य करो। - स्वामी विवेकानन्द
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| * भलाई से बढ़कर जीवन और, बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्ल नारायण दासु
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| * लक्ष्य को ही अपना जीवन कार्य समझो हर, समय उसका चिंतन करो उसी का स्वप्न, देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। - स्वामी विवेकानन्द
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| * लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, अत्यन्त निपुणता से, जड़े जमाती है और संयम से स्थिर रहती है। - महाभारत
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| * मनुंष्य का सच्चा जीवन साथी विद्या ही है, जिसके कारण वह विद्वान कहलाता है। - स्वामी दयानन्द
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| * धैर्यवान व्यक्ति ही समय पर विजय पाता है और असंयमी व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सब कुछ खो देता है। - अज्ञात
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| * मन इच्छाओं की गठरी है, जब तक इच्छाओं को उखाड़कर नहीं फेंका जाएगा, तब तक मन को नष्ट करने की आशा व्यर्थ होगी। - श्री सत्यसाईं
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| * धर्म जीवन को परमात्मा में जीने की विधि है, संसार में ऐसे जिया जा सकता है जैसे, कमल सरोवर के कीचड़ में जीते हैं। - आचार्य रजनीश
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| * ईर्ष्या या घृणा के के विचार मन में प्रवेश होते ही खुशी गायब हो जाती है, प्रेम व शुभ-भावना युक्त विचारों से उदासी दूर हो जाती है। - अज्ञात
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| * पीछे मत देखो आगे देखो, अनंत उर्जा, अनंत उत्साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य तभी महान कार्य, किये जा सकते हैं। - विवेकानन्द
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| * अपने सामने एक ही साध्य रखना चाहिए, जब तक वह सिद्ध न हो तब तक उसी की, धुन में मगन रहो, तभी सफलता मिलती है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं, जो सदा भाग्य को कोसते हैं और जिनके, पास शिकायतों का अंबार होता है। - जवाहर लाल नेहर
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| * कांच का कटोरा, नेत्रों का जन, मोती और मन यह, एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति नहीं होती, अत: पहले से ही सावधानी बरतनी चाहिए। - लोकोक्ति
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| * जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वहीं इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
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| * जिस प्रकार काठ अपने ही भीतर से प्रकट हुई अग्नि से भस्म होकर खत्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने ही भीतर रहने वाली तृष्णा से नष्ट हो जाता है। - बाणभट्ट
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| * जिन्दगी हमारे साथ खेल खेलती है, जो इसे खेल नहीं मानते, वे ही एक दूसरे की शिकायत व आलोचना करते हैं। - जैनेंद्र कुमार
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| * जितनी हम दूसरों की भलाई करते हैं, उतना ही हमारा ह़दय शुद्ध होता है और उसमें ईश्वर निवास करता है। - विवेकानन्द
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| * संतोष का वृक्ष कड़वा है, लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानन्द
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| * सत्याग्रह बल प्रयोग के विपरीत होता है, हिंसा के सम्पूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी
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| * कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सद्व्यवहार से होती है, हेकड़ी और रूआब दिखाने से नहीं। - प्रेमचन्द
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| * जो सबके दिल को खुश कर देने वाली वाणी बोलता है, उसके पास दरिद्रता कभी नहीं फटक सकती। - तिरूवल्लुवर
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| * जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है। - दीनानाथ दिनेश
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| * जिस बंदे को पेट भर रोटी नहीं मिलती, उसके लिए मर्यादा और इज्जत ढोंग है। - प्रेमचंद
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| * बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का चेहरा प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिन्दगी के उतार-चढ़ाव की देन है, लेकिन पचास वर्ष वर्ष की आयु का चेहरा उसकी अपनी कमाई है। - अष्टावक्र
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| * पाषाण के भीतर भी मधुर स्त्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद
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| * मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात
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| * जो पुस्तकें सबसे अधिक सोचने के लिए मजबूर करती हैं, वही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं। - जवाहरलाल नेहरू
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| * चन्द्रमा अपना प्रकाश सम्पूर्ण आकाश में फैलाता है परन्तु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवीन्द्र
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| * दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। - अज्ञात
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| * जो भारी कोलाहल में संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। - अज्ञात
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| * जीवन में कोई चीज इतनी हानिकारक और खतरनाक नहीं जितना डांवा डोल स्थिति में रहना। - सुभाष चन्द्र बोस
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| * आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं, दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। - चाणक्य
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| * मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है, पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। - अज्ञात
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| * उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं, तो विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात
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| * काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। - कालिदास
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| * धन से नहीं, संतान से भी नहीं अमृत स्थिति की प्राप्ति केवल त्याग से ही होती है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता
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| * जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है वह व्यक्ति कर्म और चिंतन द्वारा कभी महान नहीं बन सकता। - सुभाष चन्द्र बोस
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| * जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। - विनोबा भावे
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| * बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है। - सत्यसाईं बाबा
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| * धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं। - भर्तृहरि
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| * विजय गर्व और प्रतिष्ठा कि साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरूष के साथ न की जाय तो अपमान का जहर पिला कर चली जाती है। - मुक्ता
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| * खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है, जीवन नाम है, आगे बढ़ते रहने की लगन का। - मुंशी प्रेमचंद
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| * प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है, उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाये पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद
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| * उत्तमता गुणों से आती है, ऊंचे आसन पर बैठ जाने से नहीं, महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरूड़ नहीं हो जाता। - चाणक्य नीति
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| * जाति, धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, और इबादत करने के तरीके भी भिन्न हो सकते हैं, लेकिन ईश्वर एक है। - अज्ञात
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| * ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहां, न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। - विनोबा
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| * परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। - संत तुकाराम
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| * इस संसार में जो अपने आप पर, भरोसा नहीं करता वह नास्तिक है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * सज्जन पुरूष बिना कहे ही दूसरों की, आशा पूरी कर देते हैं, जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर में प्रकाश फैला देता है। - कालिदास
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| * निरंहकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है और अहंकार से घटती है। - अज्ञात
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| * इस विश्व में स्वर्ण, गाय और धरती का, दान देने वाले सुलभ हैं, लेकिन प्राणियों को अभयदान देने वाले इंसान दुर्लभ हैं। - भर्तृहरि
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| * असफलता का मौसम सफलता के बीज बोने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। - परमहंस योगानन्द
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| * जिसने स्वयं को वश में कर लिया है, संसार की कोई शक्ति उसकी विजय, को पराजय में नहीं बदल सकती। - महात्मा बुद्ध
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| * बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। - शंकराचार्य
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| * यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आंसू भरी आंखे सितारे कैसे देख सकेंगी। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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| * भोग में रोग का, उच्चा-कुल में पतन का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है, भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर
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| * इस संसार मे प्यार करने लायक दो, वस्तुएं हैं एक दुख और दूसरा श्रम, दुख के बिना हृदय निर्मल नही होता, और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा
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| * सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है, और सहयोग से मित्र बनाये जाते हैं। - कौटिल्य
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| * पुरूषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, और जप से पाप का, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती, और सजगता से भय की। - चाणक्य
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| * कृत्रिम प्रेम बहुत दिनों तक चल नहीं पाता, स्वाभाविक प्रेम की नकल नहीं हो सकती। - स्वामी रामतीर्थ
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| * केवल प्रकाश का आभाव ही नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की, आंखों के लिये अंधकार है। - स्वामी रामतीर्थ
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| * अपनी पीड़ा तो पशु-पक्षी भी महसूस करते हैं, मनुष्य वह है जो दूसरों की वेदना को अनुभव करे। - रसनिधि
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| * जब तक शरीर स्वस्थ है, इन्द्रियों की शक्ति क्षीण नहीं हुई तथा बुढ़ापा नहीं आया है, तब तक समझदार को अपने हित साध लेने चाहिए। - भर्तृहरि
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| * विद्वता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक, और बुढ़ापे में संचित धन है। - हितोपदेश
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| * नेकी से विमुख हो जाना और बदी, करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरूवल्लुवर
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| * बड़प्पन सदैव ही दूसरों की कमजोरियों, पर पर्दा डालना चाहता है, लेकिन ओछापन, दूसरों की कमियों बताने के सिवा और कुछ करना ही नहीं जानता। - तिरूवल्लुवर
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| * मानव जिस लक्ष्य में मन लगा देता है, उसे वह श्रम से हासिल कर सकता है। - ऋग्वेद
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| * नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। - वेदव्यास
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| * सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है। - विनोबा भावे
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| * जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता ।
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| * हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है। - वाल्मीकि
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| * जंजीरें, जंजीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ
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| * जो शिक्षा मनुष्य को संकीर्ण और स्वार्थी बना देती है, उसका मूल्य किसी युग में चाहे जो रहा हो, अब नहीं है। - शरतचन्द्र चट्टोपाघ्याय
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| * जो मनुष्य अपने साथी से घृणा करता है, वह उसी मनुष्य के समान हत्यारा है, जिसने सचमुच हत्या की हो। - स्वामी रामतीर्थ
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| * हृदय की सच्ची प्रार्थना से ही हमें सच्चे कर्तव्य का पता चलता है, आखिर में तो कर्तव्य करना ही प्रार्थना बन जाता है। - महात्मा गांधी
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| * परोपकारी अपने कष्ट को नहीं देखता, क्योंकि वह परकष्ट-जनित करूणा से ओत-प्रोत होता है। - संत तुकाराम
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| * अगर आप गलतियों को रोकने के लिये दरवाजे बन्द करते हैं तो सत्य भी बाहर ही रह जाएगा। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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| * महत्व इस बात का नहीं है आप अपने बच्चों के लिये क्या छोड़कर जाते हैं महत्व तो इस बात का है कि आप इन्हें कैसा बना कर जाते हैं। - अज्ञात
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| * विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं, जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। - महात्मा गांधी
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| * जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है, जिनमें योग्यता है उनका ध्यान उस ओर जाता ही नहीं है। - महात्मा गांधी
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| * वह पुरूष धन्य है जो काम करने में कभी पीछे नहीं हटता, भाग्यलक्ष्मी उसके घर की राह पूछती हुई चली आती है। - भगवान महावीर
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| * अपना चरित्र उज्जवल होने पर भी सज्जन, अपना दोष ही सामने रखते हैं, अग्नि का तेज उज्जवल होने पर भी वह पहले धुंआ ही प्रकट करता है। - कर्णपूर
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| * सेवा के लिये पैसे की जरूरत नहीं होती जरूरत है अपना संकुचित जीवन छोड़ने की, गरीबों से एकरूप होने की। - विनोबा भावे
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| * आलस्य मृत्यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है। - स्वामी रामतीर्थ
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| * प्रेम करने वाला व्यक्ति कभी भी उद्दंड, अत्याचारी और स्वार्थी नहीं होता। - महात्मा गांधी
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| * अवसर आने पर मनुष्य यदि कौड़ी (दाम) देने में चूक जाये जो तो फिर लाख रूपया देने से क्या होता है ? द्वितीया के चंद्रमा को न देखा जाए फिर पक्ष भर चंद्रमा उदय रहे, उससे क्या होगा? - तुलसीदास
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| * ज्ञान बढ़ने के साथ ही अहंकार घटना चाहिए, और नम्रता में वृद्धि होनी चाहिए!!! - हंसराज सुज्ञ
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| * जो वर्तमान में कमाया हुआ धन जोड़ता नहीं, उसे भविष्य में पछताना पड़ता है। - चाणक्य
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| * जीवन की दुर्घटनाओं में अक्सर बड़े महत्व के नैतिक पहलू छिपे हुए होते हैं!!! - प्रेमचंद
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| * कर्म को सचेत होकर और सोच समझकर विवेक द्वारा करना चाहिए अन्यथा हानि होती है!!! - महात्मा गांधी
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| * हिंदी हमारी मातृभाषा है, हमारा गर्व है क्या करें - दूर के ढोल सुहाने लगते हैं और उस ढोल पर चाल (स्टाइल) बदल जाती है!!! - रश्मि प्रभा
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| * तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता, मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। - श्री परमहंस योगानंद
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| * कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है!!!! - रश्मि प्रभा
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| * विनयहीन ज्ञानी वस्तुत: ज्ञानी ही नहीं है!!! - हंसराज सुज्ञ
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| * केवल ज्ञान की कथनी से क्या होता है, आचरण में, स्थिरता नहीं है, जैसे कागज का महल देखते ही गिर पड़ता है, वैसे आचरण रहित मनुष्य शीघ्र पतित होता है। - कबीर
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| * लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। - हितोपदेश
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| * जिस तरह फूल पौधों के उचित विकास के लिए समय समय पर काट छांट ज़रूरी है ठीक उसी तरह बच्चों को उचित बात सिखाने के लिए समय समय पर डांट ज़रूरी है!!!! - रश्मि प्रभा
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| * जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते - भगवान बुद्ध
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| * नमस्कार करने वाला व्यक्ति विनम्रता को ग्रहण करता है और समाज में सभी के प्रेम का पात्र बन जाता है। - प्रेमचंद
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| * विनय धर्म का मूल है अत: विनय आने पर, अन्य गुणों की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। - हंसराज सुज्ञ
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| * तुम स्वतंत्र होना चाहते तो हो पर स्वतंत्रता देना नहीं चाहते!!! - रश्मि प्रभा
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| * देह शुद्धि से अधिक, विचारों की शुद्धि आवश्यक है। - हंसराज सुज्ञ
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| * वही पुत्र है जो पितृभक्त है, वही पिता है जो ठीक से पालन करता है, वही मित्र है जिस पर भरोसा किया जा सके और वही देश है जहां जीविका हो। - चाणक्य
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| * जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है, यह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। - विवेकानन्द
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| * यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं जाते। और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है। हम अभिमान का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते? - हंसराज सुज्ञ
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| * यदि कोई एक बार हमारे साथ धोखा करे हम उससे मुँह मोड़ लेते है। और हमारा यह लोभ हमें बार बार धोखा देता है, हम अपने लोभ का मुख नोच क्यों नहीं लेते? - हंसराज सुज्ञ
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| * जीवन एक कहानी है, महत्व इस बात का नहीं, यह कहानी कितनी लम्बी है, महत्व इस बात का है, कि कहानी कितनी सार्थक है। - हंसराज सुज्ञ
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| * यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहने वाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहने वाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभ भाई पटेल
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| * शरीर के मामले में जो स्थान साबुन का है, वही आत्मा के सन्दर्भ में आंसू का है। - अज्ञात
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| * दूसरों के दोष देखने और ढूंढने की तीव्रेच्छा, इतनी गाढ़ हो जाती है कि अपने दोष देखने का वक्त ही नहीं मिलता - हंसराज सुज्ञ
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| * पतन का मार्ग ढलान का मार्ग है, ढलान में ही हमें रूकना सम्हलना होता है। - हंसराज सुज्ञ
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| * सच्चा सुधारक वही है जो पहले अपना सुधार करता है। - हंसराज सुज्ञ
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| * अच्छे कामों की सिद्धि में बड़ी देर लगती है, पर बुरे कामों की सिद्धि में यह बात नहीं। - प्रेमचंद
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| * परिस्थिति प्रतिकूल देखकर अपना अच्छा भला स्वभाव बदल देना तो स्वेच्छा बरबाद हो जाने के समान है। - हंसराज सुज्ञ
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| * किताबें समय के महासागर में, जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं - अज्ञात
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| * उत्तम वस्तु को पचाने की क्षमता भी उत्तम चाहिए। - हंसराज सुज्ञ
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| * खेत और बीज उत्तम हो तो भी, किसानों के बोने में मुट्ठी के अंतर से बीज कहीं ज्यादा कहीं कम पड़ते हैं, इसी प्रकार शिष्य उत्तम होने पर भी गुरूओं की भिन्न-भिन्न शैली होने पर भी शिष्यों को कम ज्ञान हुआ तो इसमें शिष्यों का क्या दोष। - संत कबीर
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| * जो समय गया सो गया, उसके लिए पश्चाताप करने की अपेक्षा वर्तमान को सार्थक करने की जरूरत है। - हंसराज सुज्ञ
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| * प्रशंसा सब को अच्छी लगती है,शायद ही कोई होगा जिसे प्रशंसा सुनना अच्छा नहीं लगता है, प्रशंसा आवश्यक है ,अच्छे कार्य की प्रशंसा नहीं करना अनुचित है पर ये कतई आवश्यक नहीं है, कि अच्छा करने पर ही प्रशंसा की जाए, प्रोत्साहन के लिए साधारण कार्य की प्रशंसा भी कई बार बेहतर करने को प्रेरित करती है,पर देखा गया है लोग झूंठी प्रशंसा भी करते हैं ,खुश करने के लिए या कडवे सत्य से बचने के लिए या दिखावे के लिए .पर इसके परिणाम घातक हो सकते हैं .व्यक्ति सत्य से दूर जा सकता है,एवं वह अति आत्मविश्वाश और भ्रम का शिकार हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है.वास्तविक स्पर्धा में वह पीछे रह सकता है या असफल हो सकता है इसलिए प्रशंसा कब और कितनी करी जाए,यह जानना भी आवश्यक है.साथ ही झूंठी प्रशंसा को पहचानना भी आवश्यक है .इसलिए सहज भाव से संयमित प्रशंसा करें, और सुनें ,प्रशंसा से अती आत्मविश्वाश से ग्रसित होने से बचें.प्रशंसा करने में कंजूसी भी नहीं बरतें - डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" | | * प्रशंसा सब को अच्छी लगती है,शायद ही कोई होगा जिसे प्रशंसा सुनना अच्छा नहीं लगता है, प्रशंसा आवश्यक है ,अच्छे कार्य की प्रशंसा नहीं करना अनुचित है पर ये कतई आवश्यक नहीं है, कि अच्छा करने पर ही प्रशंसा की जाए, प्रोत्साहन के लिए साधारण कार्य की प्रशंसा भी कई बार बेहतर करने को प्रेरित करती है,पर देखा गया है लोग झूंठी प्रशंसा भी करते हैं ,खुश करने के लिए या कडवे सत्य से बचने के लिए या दिखावे के लिए .पर इसके परिणाम घातक हो सकते हैं .व्यक्ति सत्य से दूर जा सकता है,एवं वह अति आत्मविश्वाश और भ्रम का शिकार हो सकता है, जो घातक सिद्ध हो सकता है.वास्तविक स्पर्धा में वह पीछे रह सकता है या असफल हो सकता है इसलिए प्रशंसा कब और कितनी करी जाए,यह जानना भी आवश्यक है.साथ ही झूंठी प्रशंसा को पहचानना भी आवश्यक है .इसलिए सहज भाव से संयमित प्रशंसा करें, और सुनें ,प्रशंसा से अती आत्मविश्वाश से ग्रसित होने से बचें.प्रशंसा करने में कंजूसी भी नहीं बरतें - डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" |
| * साधारण मानव परिवेश अनुसार ढलता है, असाधारण मानव परिवेश को ही ढालता है। - हंसराज सुज्ञ
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| * प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है। - अज्ञात
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| * दूसरों का दिल जीतने के लिए फटकार नहीं मधुर व्यवहार चाहिए। - हंसराज सुज्ञ
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| * विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है. बेसब्री में सही निर्णय लेना व् उचित व्यवहार असंभव हो जाता है. लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है. धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है - डा.राजेंद्र तेला," निरंतर '' | | * विपत्ती के समय में इंसान विवेक खो देता है, स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है. बेसब्री में सही निर्णय लेना व् उचित व्यवहार असंभव हो जाता है. लोग व्यवहार से खिन्न होते हैं, नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझ जाती हैं जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है, उसी तरह विपत्ती के समय शांत रहने और सब्र रखने में ही भलाई है. धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी एक शांत मष्तिष्क ही सही फैसले आर उचित व्यवहार कर सकता है - डा.राजेंद्र तेला," निरंतर '' |
| * अपने देश की भाषा और संस्कृति के समुचित ज्ञान के बिना देशप्रेम की बातें करने वाले केवल स्वार्थी होते हैं। - मुक्ता
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| * मनुष्य निरंतर दूसरों का अनुसरण करता है, उनके जीवन से प्रभावित हो कर या उनके कार्य कलापों से प्रभावित होता है अधिकतर अन्धानुकरण ही होता है. क्यों किसी ने कुछ कहा? किन परिस्थितियों में कुछ करा या कहा कभी नहीं सोचता .परिस्थितियाँ और कारण सदा इकसार नहीं होते, महापुरुषों का अनुसरण अच्छी बात है फिर भी अपने विवेक और अनुभव का इस्तेमाल भी आवश्यक है.यह भी निश्चित है जो भी ऐसा करेगा उसे विरोध का सामना भी करना पडेगा.उसे इसके लिए तैयार रहना पडेगा. अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो केवल मात्र एक या दो ही महापुरुष होते. नया कोई कभी पैदा नहीं होता .इसलिए मेरा मानना है जितना ज़िन्दगी को करीब से देखोगे. अपने को दूसरों की स्थिती में रखोगे तो स्थितियों को बेहतर समझ सकोगे, जीवन की जटिलताएं स्वत:सुलझने लगेंगी - राजेंद्र तेला | | * मनुष्य निरंतर दूसरों का अनुसरण करता है, उनके जीवन से प्रभावित हो कर या उनके कार्य कलापों से प्रभावित होता है अधिकतर अन्धानुकरण ही होता है. क्यों किसी ने कुछ कहा? किन परिस्थितियों में कुछ करा या कहा कभी नहीं सोचता .परिस्थितियाँ और कारण सदा इकसार नहीं होते, महापुरुषों का अनुसरण अच्छी बात है फिर भी अपने विवेक और अनुभव का इस्तेमाल भी आवश्यक है.यह भी निश्चित है जो भी ऐसा करेगा उसे विरोध का सामना भी करना पडेगा.उसे इसके लिए तैयार रहना पडेगा. अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो केवल मात्र एक या दो ही महापुरुष होते. नया कोई कभी पैदा नहीं होता .इसलिए मेरा मानना है जितना ज़िन्दगी को करीब से देखोगे. अपने को दूसरों की स्थिती में रखोगे तो स्थितियों को बेहतर समझ सकोगे, जीवन की जटिलताएं स्वत:सुलझने लगेंगी - राजेंद्र तेला |
| * यदि हमारे विचार सकारात्मक होंगे तो सब कुछ सकारात्मक हो जायेगा। - हंसराज सुज्ञ
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| * समस्या तभी पैदा होती है जब दिनचर्या का महत्त्व ज्यादा हो जाता है सोच नेपथ्य में रह जाता है, धीरे धीरे खो जाता है, केवल भ्रम रह जाता है भौतिक सुख, अपने से ज्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता, जो करना चाहता, कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता, उसमें उलझा रहता, जितना दूर भागता उतना ही फंसता जाता। - राजेंद्र तेला | | * समस्या तभी पैदा होती है जब दिनचर्या का महत्त्व ज्यादा हो जाता है सोच नेपथ्य में रह जाता है, धीरे धीरे खो जाता है, केवल भ्रम रह जाता है भौतिक सुख, अपने से ज्यादा" लोग क्या कहेंगे "की चिंता प्रमुख हो जाते हैं आदमी स्वयं, स्वयं नहीं रहता कठपुतली की तरह नाचता रहता, जो करना चाहता, कभी नहीं कर पाता, जो नहीं करना चाहता, उसमें उलझा रहता, जितना दूर भागता उतना ही फंसता जाता। - राजेंद्र तेला |
| * चतुराई और चालबाजी दो चीजें हैं, एक में ईश्वर की प्रेरणा होती है और दूसरा हमारी फितरत से पैदा होता है - सुमन सिन्हा
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| * सपने पूरे होंगे लेकिन आप सपने देखना शुरू तो करें - अब्दुल कलाम
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| * अच्छे विचार और अच्छी सोच से आचरण भी अच्छा बनता है। - हंसराज सुज्ञ
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| * जहाँ सारे तर्क ख़त्म हो जाते हैं, वहाँ से आध्यात्म शुरू होता है। - रश्मि प्रभा
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| * पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * सम्बोधन अच्छे होंगे तभी सम्बंध अच्छे बनेंगे। - हंसराज सुज्ञ
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| * पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है न दान है और न यज्ञ है। - वाल्मीकि
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| * आंतरिक सौन्दर्य का आह्वान करना कठिन काम है, सौन्दर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज।। - अज्ञात
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| * अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि, एक दीपक जलाया जाए।। - उपनिषद
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| * बैर के कारण उत्पन्न होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। - वेदव्यास
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| * जो अपने को बुद्धिमान समझता है, सामान्यत: सबसे बड़ा मूर्ख होता है।। - सुदर्शन
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| * जो बीत गया है, उसकी परवाह न करें, जो आने वाला है उसके सपने न देखें, अपना ध्यान वर्तमान पर लगाएं। - महात्मा बुद्ध
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| * ना तो कोई किसी का मित्र है ना ही शत्रु है, व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं। - हितोपदेश
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| * मृत्यु और विनाश बिना बुलाए ही आया करते हैं क्योंकि ये हमारे मित्रों के रूप में नहीं शत्रुओं के रूप में आते हैं। - भगवतीचरण वर्मा
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| * यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने का साहस है, यदि इसकी कठिनाईयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता तुम्हारा अनुगमन करता है। - धीरूभाई अंबानी
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| * श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें!! - जवाहर लाल नेहरू
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| * जो व्यक्ति इंसान की बनाई मूर्ति की पूजा करता है, लेकिन भगवान की बनाई मूर्ति (इंसान) से नफरत करता है, वह भगवान को कभी प्रिय नहीं हो सकता। - स्वामी ज्योतिनंद
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| * ईश्वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्त होता है।। - गोस्वामी तुलसीदास
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| * सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सर में, बिच्छूं की पूंछ में, किन्तु दुर्जनों के पूरे शरीर में विष रहता है।। - अज्ञात
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| * फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, सम्पत्ति रहकर भी सज्जन झुक जाते हैं, परोपकारी का यही स्वभाव होता है। - अज्ञात
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| * समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है लेकिन अच्छी छत नहीं। - अज्ञात
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| * बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएं पूर्ण अंधकार में हैं।। - मुक्ता
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| * हंसमुख व्यक्ति वह फुहार है, जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं।। - अज्ञात
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| * सपना वो नहीं जो नींद में आए, सपने वे हैं जिसे पूरा किए बिना नींद न आए। - अज्ञात
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| * जब हर मनुष्य अपने आप पर व एक - दूसरे पर विश्वास करने लगेगा, आस्थावान बन जाएगा तो यह धरती ही स्वर्ग बन जाएगी।। - स्वामी विवेकानन्द
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| * आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नही होती!! - महात्मा गांधी
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| * प्रसिद्ध होने का यह एक दण्ड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है।। - अज्ञात
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| * श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है। किसी ग्रंथ में कुछ लिखा हुआ या किसी व्यक्ति का कुछ कहा हुआ अपने अनुभव बिना सच मानना श्रद्धा नहीं है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है, वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - महात्मा गांधी
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| * सच्चा पड़ोसी वह नहीं जो तुम्हारे साथ, उसी मकान में रहता है, बल्िक वह है जो तुम्हारे साथ उसी विचार स्तर पर रहता है। - स्वामी रामतीर्थ
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| * धन तो वापस किया जा सकता है परन्तु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। - सुदर्शन
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| * अवसर तो सभी को जिन्दगी में मिलते हैं, किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीके से इस्तेमाल कुछ ही कर पाते हैं। - श्रीराम शर्मा
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| * प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोंपले फूटते रहना, नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं। - विनोबा
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| * कलियुग में रहना है या सतयुग में, यह तुम स्वयं चुनो तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। - विनोबा
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| * यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें। - कालिदास
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| * बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है। - सत्यसाईं बाबा
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| * हताश न होना सफलता का मूल है और, यही परम सुख है, उत्साह मनुष्य को कर्मों के लिये प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। - वाल्मीकि
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| * वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी, छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास
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| * झूठ सबसे बड़ा पाप है, झूठ की थैली में अन्य सभी पाप समा सकते हैं, झूठ को छोड़ दो तो तुम्हारे अन्य पाप कर्म धीरे-धीरे स्वत: ही छूट जाएंगे। - गौतम बुद्ध
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| * उदय होते समय सूर्य लाल होता है, और अस्त होते समय भी, इसी प्रकार सम्पत्ति और विपत्ति के समय महान पुरूषों में एकरूपता होती है। - कालिदास
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| * पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास
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| * गलत को गलत कहना हमें आसान नहीं लगता, सही इतना कमजोर होता है इतना अकेला कि, उसके खिलाफ ही जंग का ऐलान आसान लगता है। - रश्मि प्रभा
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| * जिस काम की तुम कल्पना करते हो, उसमें जुट जाओ, साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है, साहस से काम शुरू करो पूरा अवश्य होगा। - अज्ञात
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| * धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। - विदुर
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| * पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती, बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी
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| * दूसरों पर किये गये व्यंग्य पर हम, हंसते हैं पर अपने ऊपर किये गये व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। - रामचन्द्र शुक्ल
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| * आप ईश्वर में तब तक विश्वास नहीं, कर पाएंगे जब तक आप अपने आप में विश्वास नहीं करते। - स्वामी विवेकानन्द
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| * हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में है, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं, शब्द गौण हैं, विचार मुख्य हैं और उनका, असर दूर तक होता है। - स्वामी विवेकानन्द
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| * प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, परन्तु उससे लाभ उठाने के लिये अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध
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| * जीवन ताश के खेल के समान है, आप को जो पत्ते मिलते हैं वह नियति है, आप कैसे खेलते हैं वह आपकी स्वेच्छा है। - पं. जवाहर लाल नेहरू
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| * जिसने अकेले रहकर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। - विवेकानन्द
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| * जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है, वह शक्तिमान होकर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - रामप्रताप
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| * वही काम करना ठीक है, जिसे करने के बाद पछताना न पड़े और जिसके फल को प्रसन्न मन से भोग सकें। - गौतम बुद्ध
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| * जब तक व्यक्ति असत्य को ही सत्य समझता रहता है, तब तक उसके मन में सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न नहीं होती है। - पं. श्रीराम शर्मा
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| * जब भगवान आपकी समस्याएं हल करते हैं, तब आपको उन पर विश्वास रहता है और जब, भगवान आपकी समस्याएं हल नहीं करते तब, उन्हें आप पर विश्वास रहता है। - अज्ञात
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