"अनमोल वचन 11": अवतरणों में अंतर

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===सुंदर दिखना===
===डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है===
* यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
* डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। ~ प्रेमचंद
* सुंदरता चलती है तो साथ ही देखने वाली आंख, सुनने वाले कान और अनुभव करने वाले ह्रदय चलते हैं।  ~ सुदर्शन
* डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं।  ~ विनोबा भावे
* जो अहित करने वाली चीज है, वह थोड़ी देर के लिए सुंदर बनाने पर भी असुंदर है, क्योंकि वह अकल्याणकारी है। सुंदर वही हो सकता है जो कल्याणकारी हो।  ~ भगवतीचरण वर्मा
* तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है।  ~ चाणक्य
* सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। ~ अज्ञात


===स्त्री विश्वास चाहती है===
===डॉक्टर आशावादी होते हैं===
* जब मनुष्य मन में उठती हुई सभी कामनाओं का त्याग कर देता है और आत्मा द्वारा ही आत्मा में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहलाता है। ~ गीता
* डॉक्टर असंख्य गलतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं।  ~ सैम्युअल बटलर
* स्वार्थ में मनुष्य बावला हो जाता है। ~ प्रेमचंद
* डॉक्टर ज्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फर्क यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। ~ एंटन चेखव
* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। ~ वेदव्यास
* डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं। ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
* संदेह का भार पुरुष ढोता है, स्त्री विश्वास चाहती है।  ~ लक्ष्मीनारायण लाल
* बीमारी से भी कहीं ज्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत
* प्रेम में विश्वास से बढ़कर कुछ नहीं होता।  ~ जैनेंद्र कुमार
* डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को जमीन छिपा लेती है।  ~ एक फ्रांसीसी कहावत


===सत्याग्रह की तलवार===
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* सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है।  ~ महात्मा गांधी
===तीन प्रकार के इंसान===
* सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। ~ ईशावास्योपनिषद
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
* प्रत्येक प्राणी में सत्य की एक चिंगारी है। उसके बिना कोई जीवित नहीं रह सकता। ~ सत्य साईं बाबा
* मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
* सत्य से ही सूर्य तप रहा है। सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य भाषण सबसे बड़ा धर्म है। सत्य पर ही स्वर्ग प्रतिष्ठित है।  ~ विश्वामित्र
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास


===संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है===
===तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है===
* संपत्ति जल के बुलबुले के समान होती है। वह विद्युत की भांति एकाएक उदय होती है और नष्ट हो जाती है।  ~ दण्डी
* सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है।  ~ अज्ञात
* पवित्रता वह संपत्ति है जो प्रेम के बाहुल्य से पैदा होती है।  ~ रवीन्द्र
* तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है।  ~ शिव
* विपत्ति में पड़े हुए पुरुषों की पीड़ा हर लेना ही सत्पुरुषों की संपत्ति का सच्चा फल है। संपत्ति पाकर भी मनुष्य अगर विपत्ति-ग्रस्त लोगों के काम न आया तो वह संपत्ति किस काम की। ~ कालिदास
* संवेदनशील बनो पर निर्मल भी। प्रेमी बनो पर पवित्र भी।  ~ बायरन
* बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी। ~ अज्ञात
* अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है।  ~ श्रीहर्ष
* ईश्वर को सिर झुकाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक


===संतुलन की कला===
===तृष्णा संतोष की बैरिन है===
* जीने का सबसे अच्छा और सर्वाधिक सुरक्षित तरीका जीवन में संतुलन रखना है। आपने आसपास और अपने भीतर की ताकत को पहचानना है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं और इस तरह जीते हैं तो आप सचमुच एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं। ~ यूरीपिडीज
* तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है।  ~ सुदर्शन
* इस बारे में कोई दो राय नहीं कि किसी भी जीवन-स्थिति में संतुलित रहने की आशा हमारे भीतर से उपजती है।  ~ फ्रांसिस जे. ब्रेसलैंड
* जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मजदूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है।  ~ वेदव्यास
* मैं जिस चीज का स्वप्न देखता हूं वह है संतुलन की कला। ~ हेनरी मातीस
* जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। ~ चाणक्य
* इस दुनिया की बनावट इतनी दैवीय है कि यहां हममें से हर कोई अपने स्थान और समय में अन्य दूसरी चीजों से एक विरल संतुलन में अवस्थित है।  ~ गाइथे
* त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है।  ~ प्लूटार्क


===सच्ची शिक्षा===
===तुम आगे बढ़े चलो===
* सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा का आधार है।  ~ महात्मा गांधी  
* फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियां हैं, शिक्षा सबसे बढ़कर है।  ~ निराला
* आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।  ~ महात्मा गांधी  
* शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है।  ~ अज्ञात
* आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है।  ~ प्रेमचंद्र
* जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं, तब आयु रूपी नदी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है।  ~ संत ज्ञानेश्वर


===साहस और धैर्य===
===तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम===
* साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में बहुत आवश्यकता होती है।  ~ महात्मा गांधी  
* अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है।  ~ संत तिरुवल्लुवर
* साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है।  ~ नारायण पंडित
* तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है।  ~ महात्मा गांधी  
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
* कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है।  ~ दीनानाथ दिनेश
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है।  ~ सत्य साईं बाबा
* सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो। ~ स्वामी शंकराचार्य
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूतिर् प्रतिष्ठा के द्वारा होती है।  ~ मोहन राकेश
* ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है।  ~ चाणक्य


===साहस के मुताबिक संकल्प===
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* जिस मनुष्य में जितना साहस होता है, उसी के अनुसार उसके संकल्प भी होते हैं।  ~ मुतनब्बी
===दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो===
* यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन्न नहीं हुई है तो तुम दूसरों के हृदय को कदापि प्रसन्न नहीं कर सकते। ~ गेटे
* लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं।  ~ डेल कारनेगी
* हमारी बुद्धियां विविध प्रकार की हैं। मनुष्य के कर्म भी विविध प्रकार के हैं।  ~ ऋग्वेद
* सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। ~ रस्किन
* निष्काम होकर नित्य पराक्रम करने वाले की गोद में उत्सुक होकर सफलता आती ही है। ~ भारवि
* दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। ~ बाइबिल
* सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। ~ जॉनसन
* महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। ~ कार्लाइल


===सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति===
===दूसरों का भरोसा मत करो===
* बैर के कारण उत्पन होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती।  ~ वेदव्यास
* अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। ~ स्वामी रामतीर्थ
* ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी
* उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। ~ अज्ञात
* सच्चे ईश्वरभक्त की भक्ति किसी भी लोक-परलोक की कामना के लिए नहीं होती, वह तो अहैतुकी हुआ करती है। ~ राबिया
* मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है।  ~ महात्मा गांधी
* ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग ही भक्ति है।  ~ भक्तिदर्शन


===सरलता कुटिलों के प्रति नीति नहीं===
===दूसरों की महानता को गौरव देनी ही असली महानता है===
* देवता श्रम करने वाले के अतिरिक्त किसी और से मित्रता नहीं करते हैं।  ~ ऋग्वेद
* विवाद और असहमति किसी भी क्रियाशील समाज की प्राणशक्ति हैं।  ~ ह्युबर्ट हम्फ्री
* सरलता कुटिल व्यक्तियों के प्रति नीति नहीं है। ~ नैषिधीपंचारत
* स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं। ~ अरविंद
* युक्तिपूर्वक कार्य करनेवाले मनुष्य के कार्य भी असावधान हो जाने से नष्ट हो जाते हैं। ~ शिशुपालवध
* दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है। ~ रस्किन
* धन में आसक्त लोगों का न कोई गुरु होता है और न कोई बंधु।  ~ नीतिशास्त्र
* धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दुख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दुख में महान धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं। ~ वल्लभदेव
* चींटी चलती रहे तो हजारों योजन पार कर जाती है। न चलता हुआ गरुण भी एक कदम आगे नहीं चलता। ~ मार्कण्डेय पुराण


===सोच-विचार कर करो===
===दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है===
* कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। ~ शेक्सपियर
* कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
* हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल
* धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है।  ~ अलेक्जेंडर पोप
* अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है।  ~ फारसी कहावत
* सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ जयशंकर प्रसाद
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता।  ~ जॉर्ज इलियट
* दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट


===सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है===
===दो प्रकार के सच===
* सत्य बहुधा लोक में अप्रिय होता है।  ~ एडलाइ स्टीवेन्स
* सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है।  ~ रामतीर्थ
* दुख, प्रेम के साथ ही निरन्तर घूमता रहता है।  ~ वीणावासवदत्ता
* तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* भिक्षु हो या राजा, जो निष्काम है, वही शोभित होता है।  ~ अष्टावक्र गीता
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।  ~ रामचंद्र शुक्ल
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ बाण भट्ट
* ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। ~ खलील जिब्रान
* बुद्धिमान व्यक्ति अपने शत्रुओं से भी बहुत सी बातें सीखते हैं। ~ एरिस्टोफेनिज
* जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। ~ नवविधान


===सत्य सदा का है===
===दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं===
* सत्य सदा का है, सत्य का अतीत और वर्तमान नहीं होता। ~ विमल मित्र
* जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता। ~ वेदव्यास
* प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों निकला हो, ईश्वरीय सत्य है।  ~ सेंट एम्ब्रोज
* मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है।  ~ इस्माइल इबन् अबीबकर
* सत्य की सरिता अपने भूलों की वाहिकाओं से होकर बहती है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
* अंतनिर्हित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटका हुआ सत्य उसका सबसे मूल्यवान रत्न हे। ~ अरविंद
* दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना। ~ शेख सादी


===सभी आभूषण भार हैं===
===दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प===
* सभी गीत विलाप हैं। सभी नृत्य विडंबना हैं। सभी आभूषण भार हैं और सभी काम दुखदायी हैं। ~ उत्तराध्ययन
* दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ है। ~ माघ
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
* जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख दुख परिणाम में मिलता है। ~ अज्ञात
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है।  ~ सत्य साईं बाबा
* दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
* इस संसार में दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए।  ~ योगवाशिष्ठ
* पार्थिव सुख ही एकमात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए, दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है।  ~ शरतचंद


===सोच-विचार कर करो===
===दुख में मिलते हैं ईश्वर===
* कोई भी काम सोच-विचार कर ही करना चाहिए। मनुष्य की बुराइयां उसके मरने के पीछे तक कलंकित रहती हैं। भलाइयों को लोग मरते ही भूल जाते हैं। ~ शेक्सपियर
* दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन। ~ वेदव्यास
* हम जो कुछ कर रहे हैं, उसमें अच्छा या बुरा क्या और कितना है, यह अवश्य सोच लेना चाहिए। बुराइयां गुप्त रह कर जीवित रहती हैं और अच्छी तरह पनपती हैं। ~ वर्जिल
* धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है। ~ तुलसीदास
* अच्छी तरह सोचना बुद्धिमत्ता है। अच्छी योजना बनाना उत्तम है। और अच्छी तरह काम को पूरा करना सबसे अच्छी बुद्धिमत्ता है।  ~ फारसी कहावत
* ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दुख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दुख का साथी ईश्वर है।  ~ रामचंद डोंगरे
* बुद्बिमान बनने के लिए पहले मूल सुविधाएं जरूरी हैं। खाली पेट कोई भी आदमी बुद्बिमान नहीं हो सकता। ~ जॉर्ज इलियट
* स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दुख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है। ~ शरत


===संयम से वैर नहीं बढ़ता है===
===दुख-दर्द जीनियस के भाग्य में होते हैं===
* जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। - वेदव्यास
* तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक कदम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं।  ~ खलील जिब्रान
* सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। - दशवैकालिक
* दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है। ~ दिनकर
* जिसने इंद्रियों पर विजय पा ली है उसके मन में विघन्कार वस्तुएं थोड़ा भी छोभ उत्पन्न नहीं कर सकतीं। - कालिदास
* अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* संयम का अर्थ घुटना और सड़ना नहीं है, स्वस्थ बहाव है। - रांगेय राघव
* जब प्रकृति को कोई कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। - उदान


===सत्य सदैव निराला होता है===
===दुख का दर्शन===
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। - महोपनिषद
* पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते।  ~ भानुदत्त
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। - महात्मा गांधी
* दुख स्वयं ही एक औषधि है। ~ विलियम कोपर
* झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। - सहजोबाई
* तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। ~ खलील जिब्रान
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। - बाणभट्ट
* दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। - बायरन
* दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे।  ~ तिरुवल्लुवर


===संगत से चरित्र में परिवर्तन===
===दुखी के प्रति करुणा===
* मनुष्य जिस संगति में रहता है, उसकी छाप उस पर पड़ती है। उसका निज का गुण छिप जाता है और वह संगति का गुण प्राप्त कर लेता है।  ~ एकनाथ
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि
* यदि तुम चाहते हो कि यह निश्चित रूप से जानो कि नरक क्या है तो जान लो कि अज्ञानी व्यक्ति की संगति ही नरक है।  ~ उमर खैयाम
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चित्त वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब है।  ~ महोपनिषद
* मुझे बताओ कि तुम किनके साथ रहते हो और मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम कौन हो। ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
* समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है। ~ गुरजाडा अप्पाराव
* संगत से चरित्र में परिवर्तन नहीं होता। ढाल और तलवार सदा एक साथ रहती है, पर फिर भी एक घातक है और दूसरी रक्षक। दोनों का स्वभाव भिन्न है।  ~ दयाराम
* एक पंथ बनाते ही तुम विश्वबंधुता के विरुद्ध हो जाते हो। जो सच्ची विश्वबंधुता की भावना रखते हैं, वे अधिक बोलते नहीं, उनका कर्म बोलता है।  ~ विवेकानंद


===संतोष में सर्वोत्तम सुख है===
===दुख के भीतर मुक्ति है===
* अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
* जरूरी नहीं कि जो रूप-रंग में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो।  ~ शेख सादी
* मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ नहीं। ~ वेदव्यास
* जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप। ~ सुकरात
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है न सुख- वह संतुष्ट कहा जा सकता है। ~ महोपनिषद्
* सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दुख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब
* संतोष से सर्वोत्तम सुख प्राप्त होता है।  ~ पतंजलि
* सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं। ~ जार्ज बर्कली
* जो कुछ तुझे मिल गया है, उसी पर संतोष कर और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करता रह। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। ~ हाफिज
* नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं। ~ भारवि


===स्वार्थ बड़ा बलवान है===
===दुख या सुख सदा नहीं रहते===
* स्वार्थ बड़ा बलवान है। इसी कारण कभी-कभी मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र। ~ वेदव्यास
* दुख या सुख किसी पर सदा नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभ नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
* दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंक कर आगे बढ़ जाती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* प्रत्येक व्यक्ति का सुख-दुख अपना-अपना है।  ~ आचारांग
* प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र
* सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दुख छीर्घकालिक। ~ बाणभट्ट
* मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है।  ~ अज्ञात
* संसार में अपने पंखों को फैलाना सीखो क्योंकि दूसरों के पंखों के सहारे उड़ना संभव नहीं।  ~ इकबाल
* मनुष्य को चाहिए कि वह दुख से घिरा होने पर भी सुख की आशा छोड़े। ~ जातक
* तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठे पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते।  ~ उमर खैयाम
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।  ~ वेदव्यास
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है।  ~ टेनिसन
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी


===संकल्प बनाए छोटा-बड़ा===
===दैव का भरोसा, कौन करता है===
* संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होता है और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराता है।  ~ जेम्स एलेन
* जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है।  ~ वाल्मीकि
* सबकुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है।  ~ योगवासिष्ठ
* भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं।  ~ योगवासिष्ठ
* संकल्प और भावना जीवन के दो पलड़े हैं। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए वही नीचे चला जाएगा। संकल्प कर्त्तव्य है और भावना कला। दोनों में समान समन्वय की आवश्यकता है। ~  वृंदावन लाल वर्मा
* पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है।  ~ वेदव्यास  
* संकल्प शक्ति मानसिक शक्तियों का शिरोमणि है।  ~ शिवानंद
* भाग्य, पुरुषार्थ और काल तीनों संयुक्त हाकर मनुष्य को फल देते हैं।  ~ मत्स्यपुराण
* मनुष्य में शक्ति की कमी नहीं होती, संकल्प की कमी होती है।  ~ मेरी विक्टर ह्यूगो
* जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा भी पुरुषार्थ सफल हो जाता है।  ~ शुक्रनीति
 
===सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है===
* सुमार्ग पर चलने, कुमार्ग से बचने और जगत के प्रबंध की उत्तमता के लिए विश्वास एकमात्र सहारा है।  ~ बालकृष्ण भट्ट
* जिसे धर्म की शक्ति पर, धर्मस्वरूप भगवान की अनंत करुणा पर पूर्ण विश्वास है, नैराश्य का दुख उसके पास नहीं फटक सकता।  ~ रामचंद्र शुक्ल
* साधन की सफलता विश्वास पर ही निर्भर करती है। ~ अशोकानंद
* मनुष्य जिस बात के सत्य होने को वरीयता देता है, उसी में विश्वास को भी वरीयता देता है।  ~ बेकन
* वे विजयी हो सकते हैं जिन्हें विश्वास है कि वे कर सकते हैं।  ~ एमर्सन
 
===सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है===
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कह दे कि यदि वे मित्र बन जाएं, तो तू लज्जित न हो। - शेख सादी
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। - वाल्मीकि
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मा तत्व में स्थित हैं। - शंकराचार्य
* जिसके जीने से बहुत से लोग जीवित रहें, वही इस संसार में वास्तव में जीता है। - विष्णु शर्मा
* सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। - वेदव्यास
 
===सुख दूसरों को सुखी करने में है===
* जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं। - प्रेमचंद
* पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। - अज्ञात
* साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। - महात्मा गांधी
* दूध पीने वाला शिशु जैसी निर्दोष हंसी हंसता है, वैसी ही हंसी, मस्ती बिखेरने वाली हंसी कष्टों को विदा करने की अचूक दवा है। - रामचरण महेंद्र
* साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है। - नारायण पंडित
* सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं। - जेम्स एलेन
 
===सेवा करके विज्ञापन मत करो===
* जो स्वाभवत: सुंदर हैं, उनकी विकृति भी शोभादायक होती है।  ~ भारवि
* सामने वाले आदमी में जिस गुण की कमी है, उस सद्गुण के प्रत्यक्ष दर्शन उसे अपने व्यवहार द्वारा करा देना ही उसकी बड़ी से बड़ी सेवा है।  ~ अरुण्डेल
* सेवा करने वाले हाथ स्तुति करने वाले होठों की अपेक्षा अधिक पवित्र हैं।  ~ सत्य साईं बाबा
* सेवा करके विज्ञापन मत करो, जिसकी सेवा की है, उस पर बोझ मत बनो।  ~ हनुमानप्रसाद पोद्दार
* सेवा छोटी है या बड़ी, इसकी कीमत नहीं है। किस भावना से, किस दृष्टि से वह की जा रही है, उसकी कीमत है।  ~ विनोबा
 
===संगति बुद्धि के अंधकार को हरती===
* अच्छी संगति बुद्धि के अंधकार को हरती है, वचनों को सत्य की धार से सींचती है, मान को बढ़ती है, पाप को दूर करती है, चित्त को प्रसन्न रखती है और चारों ओर यश फैलाकर मनुष्यों को क्या क्या लाभ नहीं पहुंचाती?  ~ भर्तृहरि
* मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव, दानव सभी पराजित हो जाते हैं।  ~ एमर्सन
* संकट का समय ही मनुष्य की आत्मा को परखता है। ~ टॉमस पेन
* वास्तव में वे ही लोग श्रेष्ठ हैं जिनके हृदय में सर्वदा दया और धर्म बसता है, जो अमृत-वाणी बोलते हैं तथा जिनके नेत्र नम्रतावश सदा नीचे रहते हैं।  ~ मलूकदास
 
===संतुष्ट मनवाला सदा सुखी रहता है===
* मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है।  ~ वेदव्यास  
* अधिक धन-संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह निर्धन है। धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है।  ~ अश्वघोष
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, वह संतुष्ट कहा जा सकता है।  ~ महोपनिषद्
* संतुष्ट मन वाले के लिए सदा सभी दिशाएं सुखमयी हैं।  ~ भागवत
 
===सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है===
* जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।  ~ प्रेमचंद
* पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं।  ~ अज्ञात
* साफ पैर में कीचड़ लपेटकर धोने की अपेक्षा उसे न लगने देना ही अच्छा है।  ~ नारायण पंडित
* सहानुभूति एक ऐसी विश्वव्यापी भाषा है, जिसे सभी प्राणी समझते हैं।  ~ जेम्स एलेन
* हितकर, किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं।  ~ वाल्मीकि
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता।  ~ वेदव्यास
 
===सच पर विश्वास रखो===
* वह सत्य नहीं हे जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया-युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है।  ~ देवीभागवत
* सच पर विश्वास रखो, सच ही बोलो, सच ही करो। असत्य जीतता क्यों न लगे, सत्य का मुकाबला नहीं कर सकता।  ~ महात्मा गांधी
* प्रत्येक सत्य, चाहे वह किसी के मुख से क्यों न निकला हो, ईश्वरीय सत्य है।  ~ संत एम्ब्रोज
* सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही सनातन ब्रह्मा है, सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है।  ~ वेदव्यास
 
===साधारण प्रतिभा को त्रुटियों की पहचान नहीं होती===
* अज्ञानी होना उतनी शर्म की बात नहीं है, जितनी कि किसी काम को सही ढंग से सीखने की इच्छा न होना।  ~ बेंजामिन फ्रैंकलिन
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे।  ~ महादेवी वर्मा
* कठिन समय, विपत्ति और घेर संग्राम, और कुछ नहीं, केवल प्रकृति की काट-छांट हैं।  ~ गणेश शंकर विद्यार्थी
* प्रकृति हर एक व्यक्ति को सभी उपहार नहीं प्रदान करती, वरन हर एक को वह कुछ-कुछ देती है और इस प्रकार सभी को मिलाकर वह समस्त उपहार देती है।  ~ लाला हरदयाल
 
===सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं===
* शोक के मूल में प्रिय व्यक्ति या वस्तु होता है।  ~ आचार्य नारायण राम
* किसे हमेश सुख मिला है और किसे हमेशा दुख मिला है। सुख-दुख सबके साथ लगे हुए हैं।  ~ कालिदास
* मन से दुखों का चिंतन न करना ही दुखों के निवारण की औषधि है।  ~ वेदव्यास
* सब कुछ दूसरे के वश में होना दुख है और सब कुछ अपने वश में होना सुख है।  ~ मनुस्मृति
* जो दुख अभी तक आया नहीं है, वह दूर किया जा सकता है।  ~ योगसूत्रम


===समग्र विश्व एक ही परिवार है===
===दीर्घायु होना सब चाहते हैं===
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि
* सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं। ~ भगवान महावीर
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है।  ~ महोपनिषद्
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है ओर मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं।  ~ महात्मा गांधी
* जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है।  ~ अज्ञात
* समग्र विश्व एक ही परिवार है। वर्णभेद सब असत्य है। प्रेम बंधन अमूल्य है।  ~ गुरजाडा अप्पाराव


===सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है===
===दानशीलता हृदय का गुण है===
* सत्य वह नहीं हें जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आंतरिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडीसन
* सभी दीपक नहीं हैं। बुद्धिमानों के लिए सत्य वचन रूपी दीपक ही दीपक है। ~ तिरुवल्लुवर
* दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं।  ~ स्थानांग
* अंतर्निहित सत्य असत्य का मुकुट है और एक भटकरा हुआ सत्य उसका सबसे अधिक मूल्यवान रत्न है।  ~ अरविंद
* दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है।  ~ जातक
* मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं।  ~ खलील जिब्रान
* प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है।  ~ विमानवत्थु
* सत्य का सबसे बड़ा मित्र समय है। उसका सबसे बड़ा शत्रु पूर्वग्रह है और उसका स्थायी साथी विनम्रता है।  ~ चार्ल्स कैलब काल्टन


===स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है===
===दिन को प्रेम से प्रारंभ करो===
* हृदयों को अर्पित करो पर उसे एक-दूसरे के संरक्षण में मत रखो।  ~ खलील जिब्रान
* सभी प्रकार की घृणा का अर्थ है आत्मा के द्वारा आत्मा का हनन। इसलिए प्रेम ही जीवन का यथार्थ नियामक है। प्रेम की अवस्था को प्राप्त करना ही सिद्धावस्था है।  ~ विवेकानंद
* स्वाधीनता का अर्थ उत्तरदायित्व है। यही तो कारण है कि अधिकांश मनुष्य उससे डरते हैं। ~ जॉर्ज बर्नार्ड शा
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असंत को संत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद
* एक का कर्म देखकर दूसरा भी निंदनीय कर्म करता है। लोक गतानुगतिक होता है, वास्तविकता का विचार कर कार्य नहीं करता। ~ विष्णु शर्मा
* दिन को प्रेम से प्रारंभ करो, दिन को प्रेम से भरो, दिन को प्रेम से बिताओ, दिन को प्रेम से समाप्त करो- यही परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है।  ~ सत्य साईं
* प्रत्येक पदार्थ प्रति क्षण उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और नित्य भी रहता है।  ~ प्राकृत
* प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है।  ~ उमाशंकर जोशी
* इस संसार को बाजार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है।  ~ विद्यापति


===संकल्पित लोग इतिहास बदल सकते हैं===
===दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला===
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है।  ~ शंकराचार्य  
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है।  ~ शंकराचार्य  
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए।  ~ मैजिनी  
* कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए।  ~ मैजिनी  
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी  
* मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी  
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं।  ~ माधवदेव
* सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं।  ~ माधवदेव
* विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं।  ~ अज्ञात
* विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा गलत है।  ~ अभिनंद


===संवेदनशील बनो और निर्मल भी===
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* ईश्वर के सामने शीष नवाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
===धन का उपयोग===
* संवेदनशील बनो और निर्मल भी। प्रेमी बनो और पवित्र भी। ~ बायरन
* अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
* अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष
* प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
* पराई स्त्री और पराया धन जिसके मन को अपवित्र नहीं करते, गंगादि तीर्थ उसके चरण-स्पर्श करने की अभिलाषा करते हैं।  ~ एकनाथ
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
* हम पवित्र विचार करें, पवित्र बोलें और पवित्र काम करें। ~ अवेस्ता
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स


===सुकर्म के बीज से ही महान फल===
===धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है===
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। ~ कथासरित्सागर
* धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। ~ हाल सातवाहन
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है।  ~ चाणक्य
* आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है।  ~ महात्मा गांधी
* द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। ~ विनोबा
* धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है।  ~ प्रेमचंद
* बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। ~ यशपाल
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
* धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं।  ~ वेमना


===सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है===
===धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो===
* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
* सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है।  ~ साधु वासवानी
* मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है।  ~ वेदव्यास
* सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है।  ~ अरस्तु
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। ~ महात्मा गांधी
* जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी
* स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। ~ विनोबा
* सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है। ~ शेक्सपियर


===सत्य का पालन करो, सज्जन बनो===
===धन की तीन गति- दान, भोग और नाश===
* सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं, उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं। ~ वेदव्यास
* दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। ~ भर्तृहरि
* सज्जनों के मन थोड़े से गुणों के कारण फूलों की भांति ग्रहण करने योग्य हो जाते हैं। ~ बाणभट्ट
* मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। ~ कथासरित्सागर
* प्रत्येक पर्वत पर जिस तरह माणिक्य नहीं होते और जिस तरह चंदन हर जगह नहीं पाया जाता, सज्जन लोग भी सब जगह नहीं होते। ~ अज्ञात
* अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। ~ भगदत्त जल्हण
* जो सत्य का पालन करता है, वही सज्जन है। ~ तुकाराम
* संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। ~ विष्णु शर्मा


===सत्य ही सबका मूल है===
===धन का अर्जन और रक्षण करो===
* सब प्राणियों के प्रति स्वयं को संयत रखना ही अहिंसा की पूर्ण दृष्टि है। ~ दशवैकालिक
* संपत्ति तो जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था, शोक और राग के बीज का उत्तम अंकुर है। इसके प्रभाव में अंधा हुआ मानव मुक्ति के मार्ग को नहीं देख सकता। ~ देवीभागवत
* वह सत्य नहीं है, जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दयायुक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिससे मनुष्यों का हित होता हो, वही सत्य है।  ~ देवीभागवत
* धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरुवत होने पर भी नष्ट हो जाता है।  ~ शाड़ंधर-पद्धति
* सत्य ही सबका मूल है। सत्य से बढ़कर अन्य कोई परम पद नहीं है। ~ वाल्मीकि
* तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखोगे। ~ महात्मा गांधी
* जैसा चित्त में है, वैसी वाणी है। जैसा वाणी में है, वैसी ही क्रियाएं हैं। सज्जनों के चित्त, वाणी और क्रिया में एकरूपता होती है। ~ अज्ञात
* धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं। ~ प्रेमचंद


===संकल्प और भावना दो पलड़े हैं===
===धन आता-जाता रहता है===
* संकल्प और भावना जीवन-तखड़ी के दो पलड़े हैं। जिसको अधिक भार से लाद दीजिए वही नीचे चला जाएगा। संकल्प कर्त्तव्य है और भावना कला। दोनों के समान समन्वय की आवश्यकता है। ~ वृंदावनलाल वर्मा
* जैसे रथ का पहिया इधर-उधर नीचे-ऊपर घूमता रहता है, वैसे ही धन भी विभिन्न व्यक्तियों के पास आता-जाता रहता है, वह कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। ~ ऋग्वेद
* मनुष्य में शक्ति की कमी नहीं होती, संकल्प की कमी होती है।  ~ विक्टर ह्युगो
* हे राजन्, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है।  ~ नारायण पंडित
* संकट पहले अज्ञान और दुर्बलता से उत्पन्न होते हैं और फिर ज्ञान और शक्ति की प्राप्ति कराते हैं। ~ जेम्स एलेन
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
* खतरा हमारी छिपी हुई हिम्मतों की कुंजी है। खतरे में पड़कर हम भय की सीमाओं से आगे बढ़ जाते हैं। ~ प्रेमचंद
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है। ~ कालिदास
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है।  ~ वेदव्यास


===संसार वीरों की चित्रशाला है===
===धन पाला हुआ शत्रु===
* वीर कभी बड़े मौकों का इंतजार नहीं करते, छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं। ~ सरदार पूर्णसिंह
* जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। ~ भगवान बुद्ध
* शूर जनों को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना सहन नहीं होता। वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके दुष्कर कर्म ही करते हैं।  ~ वाल्मीकि
* उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं।  ~ एक चीनी कहावत
* संपूर्ण संसार कर्मण्य वीरों की चित्रशाला है। वीरता भी एक सुंदर कला है, उस पर मुग्ध होना आश्चर्य की बात नहीं।  ~ जयशंकर प्रसाद
* 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। ~ गार्डनर
* बिना विवेक के वीरता महासमुद में डोंगी-सी डूब जाती है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है।  ~ सोलन
* वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है।  ~ महात्मा गांधी
* यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है।  ~ वेदव्यास
===संसार को बाजार समझो===
* धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं।  ~ चाणक्यनीति
* परोपकार संतों का सहज स्वभाव होता है। वे वृक्ष के समान हैं, जो अपने पत्तों, फूल-फल, छाल, जड़ और छाया से सबका उपकार करते हैं।  ~ एकनाथ
* इस संसार को बाजार समझो। यहां सभी आदमी व्यापारी हैं। जो जैसा व्यापार करता है, वैसा फल पाता है। मूर्ख और गंवार व्यर्थ ही मर जाते हैं, लाभ नहीं पाते।  ~ विद्यापति
* समय आए बिना वज्रपात होने पर भी मृत्यु नहीं होती और समय आ जाने पर पुष्प भी प्राणी के प्राण ले लेता है।  ~ कल्हण
* जो साधक कामनाओं को पार कर गए हैं, वस्तुत: वे ही मुक्त पुरुष हैं।  ~ आचारांग


===सावधानी से करें धन का उपयोग===
===धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है===
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है।  ~ गेटे
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है।  ~ महात्मा गांधी
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  ~ वेद व्यास
* सारे ही धर्म एक समान बात करते हैं। मनुष्यता के ऊंचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है। ~ हरिकृष्ण 'प्रेमी'
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
* धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाकी कामों के समय उसे भूल जाएं। ~ दिनकर
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लगता है।  ~ योग वासिष्ठ
* जितने बंधे - बंधाए नियम और आचार हैं उनमें धर्म अंटता नहीं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* श्रेष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है। ~ तिरुवल्लुवर


===सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता===
===धर्म व्यवहार अधिक है===
* सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता। उसे तो पैदा करती है उसकी धरती जिस पर वह पैदा होता है। इसी धरती के गुण और स्वभाव के अनुसार हमारा स्वभाव बनता है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है।  ~ विवेकानंद
* चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। ~ अज्ञात
* जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है।  ~ दुर्गा भागवत
* उपदेश से स्वभाव को बदला नहीं जा सकता, भली प्रकार गर्म किया हुआ पानी भी पुन: शीतल हो जाता है।  ~ विष्णु शर्मा
* मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* सब गुणों को दबाकर स्वभाव सबके सिर पर बैठ रहता है। ~ नारायण पंडित
* धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है।  ~ राधाकृष्णन
* धर्म के विषय में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं होती। ~ कुरान


===सज्जन लोग अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते===
===धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं===
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी तरह सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
* वही बात बोलनी चाहिए जिससे न स्वयं को कष्ट हो और न दूसरों को ही। वस्तुत: सुभाषित वाणी ही श्रेष्ठ वाणी है। ~ थेरगाथा
* परिचित गुणों का स्मरण रखने वाले उत्तम लोग सारे दोषों को स्मरण रखने में कुशल नहीं होते।  ~ माघ
* धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय
* आए हुए उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना सज्जनों का कुलव्रत है। ~ विशाखदत्त
* जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है। ~ विष्णु शर्मा
* सज्जन पुरुष दुष्टों के संसर्ग से अपना सहज स्वभाव नहीं छोड़ते। ~ क्षेमेन्द्र
* न्यून वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विग्न करता है।  ~ धनंजय
* सज्जनों को दूसरों की तुलना में से अधिक लज्जा आती है।  ~ श्री हर्ष


===सत्य सदैव निराला होता है===
===धर्म का अर्थ===
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख-वह संतुष्ट कहा जाता है। ~ महोपनिषद
* धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है।  ~ विवेकानंद
* सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है।  ~ महात्मा गांधी  
* विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह
* झूठा नाता जगत का, झूठा है घरवास। यह तन झूठा देखकर सहजो भई उदास। ~ सहजोबाई
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है।  ~ महात्मा गांधी  
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
* स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। ~ वेदव्यास
* सत्य सदैव निराला होता है, कल्पना से भी अधिक निराला। ~ बायरन
* अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। ~ प्रेमचंद्र


===संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं===
===धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं===
* हम इस संसार को ठहरने का घर बनाकर बैठे हैं, किंतु यहां से तो नित्य चलने का धोखा बना रहता है। ठहरने का पक्का स्थान तो इसे तभी जाना जा सकता है, यदि यह लोक अचल हो। ~ गुरुनानक
* धर्म से अर्थ उत्पन होता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है।  ~ वाल्मीकि
* संत कौन हैं? संपूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गई है, जिनका अज्ञान नष्ट हो चुका है और जो कल्याणस्वरूप परमात्मतत्व में स्थित हैं। ~ शंकराचार्य
* जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
* धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद
* संयम का अर्थ घुट-घुटकर जीना नहीं है, स्वस्थ पवन की तरह बहना है।  ~ रांगेय राघव
* धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है।  ~ राधाकृष्णन


===सारा संसार ही कुटुंब है===
===धोखा देने वाला धोखा खाता है===
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है।  ~ महोपनिषद
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है।  ~ सत्य साईं बाबा
* धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो।  ~ जार्ज सांतायना
* आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है।  ~ महात्मा गांधी
* जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। ~ वेदव्यास
* यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है।  ~ विवेकानंद
* विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है।  ~ सोमदेव


===सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है===
===धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है===
* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है।  ~ शिवानंद
* प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है।  ~ सुदर्शन
* सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है।  ~ साधु वासवानी
* प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है।  ~ विल्मट
* सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है।  ~ अरस्तु
* धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है।  ~ डिजरायली
* जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी
* महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। ~ नेहरू
* सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है।  ~ शेक्सपियर
* जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है।  ~ गेटे


===संसार और स्वप्न===
===धीरज हो तो दरिद्रता भी शोभायमान===
* संसार स्वप्न की तरह है। जिस प्रकार जागने पर स्वप्न झूठा प्रतीत होता है, उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान प्राप्त होने पर यह संसार मिथ्या प्रतीत होता है।  ~ याज्ञवल्क्य
* धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं, घटिया भोजन भी गर्म होने से सुस्वादु लगता है और सुंदर स्वाभाव के कारण कुरूपता भी शोभा देती है।  ~ चाणक्यनीति
* आवेश और क्रोध को वश में कर लेने पर शक्ति बढ़ती है और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित कर दिया जा सकता है।  ~ महात्मा गांधी
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक करते हैं। ~ वेदव्यास
* अमरत्व को प्राप्त करना अखिल विश्व का स्वामी बनना है।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* जो हानि हो चुकी है, उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना है।  ~ शेक्सपियर
* जो मनुष्य दूसरों के व्यवहार से ऊबकर क्षण प्रतिक्षण अपने मन बदलते रहते हैं, वे दुर्बल हैं। उनमें आत्मबल नहीं है।  ~ सुभाष चन्द्र बोस
* शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शैनकीयनीतिसार
* आत्म-विजय अनेक आत्मोत्सर्गों से भी श्रेष्ठतर है। ~ स्वामी रामतीर्थ


===संसार में रहो, संसार को अपने अंदर मत रखो===
===धीर पुरुष अस्थिर नहीं होता===
* दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। ~ एपिक्युरस
* अच्छे लोग जिस बात को अपने ऊपर लेते हैं, उसका निर्वाह करते हैं। ~ बिल्हन
* यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चरित्र वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब होता है। ~ महोपनिषद
* अपना अहित करनेवाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं। ~ विष्णु शर्मा
* संसार में रहो, परंतु संसार को अपने अंदर मत रहने दो। यही विवेक का लक्षण है।  ~ सत्य साईं बाबा
* तीर्थों के सेवन का फल समय आने पर मिलता है, किंतु सज्जनों की संगति का फल तुरंत मिलता है।  ~ चाणक्य
* जो श्रम नहीं करता, दूसरों के श्रम से जीवित रहता है, सबसे बड़ा हिंसक होता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* सज्जन नारियल के समान ऊपर से कठोर, किंतु भीतर से कोमल होते हैं। ~ नारायण पंडित
* उस मनुष्य पर विश्वास करो, जो बोलने में संकोच करता है, पर कार्य में परिश्रमी और तत्पर है, लेकिन लंबे तर्कों वालों से सावधान रहो। ~ जार्ज सांतायना
* वास्तव में धीर पुरुष वे ही हैं, जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता। ~ कालिदास


===सौंदर्य पवित्रता में रहता है===
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* सौंदर्य पवित्रता में रहता है और गुणों में चमकता है। ~ शिवानंद
===निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है===
* सच्चे सौंदर्य का रहस्य सच्ची सरलता है। ~ साधु वासवानी
* निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। ~ अज्ञात
* सौंदर्य संसार की सभी संस्तुतियों से बढ़कर है।  ~ अरस्तु
* अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ संत तिरुवल्लुवर
* जरूरी नहीं कि जो रूप में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो।  ~ शेख सादी
* अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है।  ~ कालिदास
* सौंदर्य देखने वाले की आंख में होता है।  ~ शेक्सपियर
* नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। ~ सुदर्शन
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है।  ~ शाह अब्दुल लतीफ
* सत्य हजार ढंग से कहा जा सकता है और फिर भी हर ढंग सत्य हो सकता है।  ~ स्वामी विवेकानंद
* अधिक कहने से रस नहीं रह जाता, जैसे गूलर के फल को फोड़ने पर रस नहीं निकलता।  ~ तुलसीदास
* जैसे ही कहीं पर भगवान का मंदिर बनकर तैयार होता है, शैतान उसके पास ही अपना प्रार्थना गृह बना लेता है। ~ जॉर्ज हरबर्ट


===निंदा सहना===
* जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली।  ~ वेदव्यास
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है।  ~ कन्फ्यूशस
* यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो।  ~ चाणक्य
* चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है।  ~ महात्मा गांधी


===सुदिन सबके लिए आते हैं===
===नीति का जानकार===
* हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हुए हैं जिस प्रकार प्रकाश के साथ छाया। सच्चा सुखी वही है जिसकी दृष्टि में दोनों समान हैं।  ~ धम्मपद
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
* लोभ के कारण पाप होते हैं, रस के कारण रोग होते हैं और स्नेह के कारण दुख होते हैं। अत: लोभ, रस और स्नेह का त्याग करके सुखी हो जाओ। ~ नारायण स्वामी
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।  ~ वेदव्यास
* सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है।  ~ अज्ञात
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
* सुधार आंतरिक होना चाहिए, बाह्य नहीं। तुम सद्गुणों के लिए नियम नहीं बना सकते। ~ गिबन
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित


===सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है===
===न मित्र न शत्रु===
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋग्वेद
* न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता, तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त ही है। ~ हालसातवाहन
* महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य
* प्रेरणा की हर अभिव्यक्ति में पुरुषार्थ और पराक्रम की आवश्यकता है।  ~ जैनेंद्र
* गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है।  ~ भट्टनारायण
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता। ~ कालिदास
* अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
* सुरूप हो या कुरुप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है, रंभा है तथा वही तिलोत्तमा है।  ~ अतिरात्रयाजी
* नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस


===संसार एक यात्रा और मनुष्य यात्री===
===नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है===
* क्षीण हुआ चंद्रमा पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते। ~ भर्तृहरि
* किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति।  ~ अरस्तू
* यद्यपि संतोष कड़वा वृक्ष है, तथापि इसका फल बड़ा ही मीठा और लाभदायक है। ~ मौलाना रूमी
* अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
* संयम करने से वैर नहीं बढ़ता है। उदान
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
* संसार एक यात्रा है और मनुष्य यात्री है। यहां पर किसी का विश्राम करना केवल एक धोखा है।  ~ सनाई
* ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन
* आपत्ति काल में प्रकृति बदल देना अच्छा, परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छी नहीं।  ~ अभिनंद
* नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है।  ~ हरमन हेस


===सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं===
===निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति===
* सत्य वह नहीं है जो मुख से बोलते हैं। सत्य वह है जो मनुष्य के आत्यंतिक कल्याण के लिए किया जाता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* यदि कोई मनुष्य निश्चिंतताओं से प्रारंभ करेगा तो अंत संदेहों में होगा, लेकिन वह यदि वह संदेहों से प्रारंभ कर सके तो अंत में उसे निश्चिंततओं की प्राप्ति होगी। ~ बेकन
* जब हम सत्य को पाते हैं तब वह अपने सारे अभाव और अपूर्णता के बावजूद हमारी आत्मा को तृप्त करता है।  ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति होती है।  ~ तुकाराम
* सत्य सर्वदा स्वाबलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है।  ~ महात्मा गांधी
* निष्काम होकर नित्य अपना काम करनेवाले की गोद में ही उत्सुक होकर सफलता आती है।  ~ भारवि
* सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है।  ~ सुत्तनिपात
* केवल वही व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य कर सकता है, जो पूर्णतया नि:स्वार्थी है।  ~ विवेकानंद


===सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता===
===नूर फ़कीर जानै नहीं===
* सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी
* नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। ~ नूरूद्दीन
* प्रेम हृदय के समस्त सद्भावों का शांत, स्थिर, उद्गारहीन समावेश है। ~ प्रेमचंद
* किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? ~ बृहस्पति नीति सार
* प्रेम दुख और वेदना का बंधु है। इस संसार में जहां दुख और वेदना का अथाह सागर है, वहां प्रेम की अधिक आवश्यकता है।  ~ डॉ. रामकुमार वर्मा
* अपने को विद्वान मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है।  ~ कल्हण
* पारस्परिक प्रेम हमारे सभी आनंदों का शिरोमणि है। ~ मिल्टन
* उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। ~ माघ
* प्रेम बिना तर्क का तर्क है।  ~ शेक्सपियर
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है।  ~ डिजरायली


==म==
===निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है===
===मनुष्य की चाहत===
* मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
* एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। - भारवि
* जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद
* मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। - शरतचंद्र
* बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया।  ~ सोमदेव
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। - विनाबा भावे
* उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात
* कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। - वृंद


===मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है===
===नीति का जानकार===
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। - स्वामी हरिहर चैतन्य
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ pवेदव्यास
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। - शेख सादी
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। - नवविधान
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। - भारवि
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है।  ~ नारायण पंडित


===मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती===
===निष्कपट प्रेम===
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। - गुरु नानक
* निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम्
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। - टेनिसन
* विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं।  ~ भामिनी-विलास
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
* बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है। ~ व्यास
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
* गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण रखा जाए।  ~ कविता-कौमुदी
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन देना। - वेद व्यास


===मन से सत्य शुद्ध होता है===
===नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है===
* जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।  ~ मनुस्मृति
* आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख।  ~ धम्मपद
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
* मनुष्य पराक्रम के द्वारा दुखों से पार पाता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है।  ~ सुत्तनिपात
* शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार
* सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है। ~ पिंगलि सूरना
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता हे और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं।  ~ वेदव्यास
* घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है।  ~ प्रेमचंद
* गलती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं।  ~ रामतीर्थ


===मन को शुभ संकल्प बनाओ===
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* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
===प्रेम के मार्ग में चतुराई बुरी है===
* इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। - अलंकारसर्वस्व
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है।  ~ मौलाना रूम
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। - अज्ञात
* प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं।  ~ जॉर्ज हरबर्ट
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। - ऋगवेद
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है।  ~ भारवि
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है।  ~ चाणक्य
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है।  ~ कालिदास
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है।  ~ गेटे
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन देना।  ~ वेद व्यास
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स ऐंथनी फ्राउड
* जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं।  ~ वल्लभदेव
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है।  ~ विवेकानंद
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। केवल पुन: किया हुआ पुण्य ही बुद्धि को बढ़ाता है।  ~ वेदव्यास


===मुहब्बत रूह की खुराक===
===प्रेम में स्मृति का ही सुख है===
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। - प्रेमचंद
* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। ~ महात्मा गांधी
* प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। - महात्मा गांधी
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों करे।  ~ प्रेमचंद
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। - जयशंकर प्रसाद  
* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। ~ जयशंकर प्रसाद  
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद शुक्ल  
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। ~ रामचंद्र शुक्ल
* कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। - ठाकुर गोपालशरण सिंह
* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थ और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थ है, वहां प्रेम नहीं है।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
* प्रेम में द्वेष की गुंजाइश ही नहीं, प्रेम में अहम-भाव नहीं, प्रेम सब कुछ सहन करता और मान लेता है।  ~ महात्मा गांधी
* प्रेम एक बीज है जो एक बार जम कर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है। ~ प्रेमचंद


===महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें===
===प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है===
* विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। - महात्मा गांधी
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरु जी
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। - अज्ञात
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे।  ~ प्रेमचंद
* किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। - भागवत
* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है वहां प्रेम नहीं है।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। - बाण
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। ~ जयशंकर प्रसाद


===मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर===
===प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना===
* ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है।  ~ भर्तृहरि
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरुजी
* प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की।  ~ प्रेमचंद
* जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
* मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है।  ~ विवेकानंद
* स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।  ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
* मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है।  ~ वेदव्यास


===मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे===
===प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए===
* कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति
* जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। ~ शेक्सपियर
* ऐच्छिक प्रेम उत्तम है, परंतु बिना याचना के दिया हुआ प्यार बेहतर है।  ~ शेक्सपियर
* बंधन बहुत तरह के हैं, पर प्रेम की डोर से बंध जाना तो कुछ और ही है।  ~ अज्ञात
* प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है। ~ महात्मा गांधी
* संसार में स्नेह के बंधनपाश लोहे से भी बढ़कर कठोर होते हैं। ~ बाणभट्ट
* मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे। ~ मारकस आंटोनियस
* अतिशय प्रेम अनेक बार परिचित वस्तु को भी नया-नया कर देता है। ~ माघ
* जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। ~ अज्ञेय
* प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए। ~ कालिदास


===मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं===
===प्रेम का एक कण संसार पर भारी===
* निरंतर अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। ~ नारायण पंडित
* परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। - सोमदेव
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है।  ~ मुक्तिकोपनिषद्
* परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है। - कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
* प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार
* जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। - बिशप रिचर्ड कंबरलैंड
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद


===मनुष्य अकेला आता है===
===प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है===
* मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
* सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। ~ रहीम
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
* प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। ~ सीगर
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
* जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। ~ गुरु रामदास
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
* प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है।  ~ शेक्सपियर
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेम चंद
* प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। ~ अमृतलाल नागर


===मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है===
===प्रेम की शक्ति===
* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
* जगत में जो भी उन्नति वह प्रेम की शक्ति से ही हुई है। दोष बता बताकर कभी भी अच्छा काम नहीं किया जा सकता। ~ विवेकानंद
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है।  ~ वाल्मीकि
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है।  ~ तुकाराम
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय। ~ बंकिमचंद्र


===मनुष्य गोत्र और धन से शुद्ध नहीं होता===
===प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है===
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि
* बिना प्रेम किए मर जाने से ज्यादा दुखद कुछ कोई और नहीं हो सकता। लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह है कि जिसे आप प्रेम करते हों, उसे बिना यह बताए ही दुनिया से विदा हो जाएं, कि आप उससे प्रेम करते थे।  ~ अज्ञात
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। ~ मिल्टन
* प्रेम निकाल दो तो यह पृथ्वी कब्र है।  ~ रॉबर्ट ब्राउनिंग
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिम निकाय
* जितनी गहराई, ऊंचाई और विस्तार तक मेरी आत्मा जा सकती है, वहां तक मैं तुमसे प्रेम करती हूं। ~ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
* किसी के धन का लालच मत करो। ~ ईशावास्योपनिषद्
* जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी
* हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट (कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास) ~ कोलरिज


===मान-बड़ाई मीठी छुरी है===
===प्रेम से शांत होता है वैर===
* प्रशंसा कीजिए जब हम दौड़ें, सांत्वना दीजिए जब हम गिरें, प्रोत्साहित कीजिए जब हमारा पुनरुत्थान हो, किंतु भगवान के लिए हमें बढ़ने दीजिए।  ~ एडमंड बर्क
* संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होता है।  ~ धम्मपद
* देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता।  ~ ऋग्वेद
* तृण वृत्ति वाले मृग, जल वृत्ति वाले मीन और संतोष वृत्ति वाले सज्जनों के भी इस संसार में शिकारी, मछुवा और चुगलखोर बिना कारण के ही वैरी रहते हैं। ~ भर्तृहरि
* तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* व्यंग्य वचन दूसरों का हृदय छेदने में तीर का काम करते हैं। ~ अज्ञात
* ईश्वर के सामने सिर झुकाने से ही क्या बनता है, जब हृदय अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
* मान-बड़ाई मीठी छुरी है। विष भरा सोने का घड़ा है।  ~ शिव
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उडि़या लोकोक्ति


===मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए===
===प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है===
* जो दूसरों में दोष निकालते हैं, वे अपने दोषों से अनभिज्ञ रहते हैं।  ~ वेमना
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है।  ~ हालसातवाहन
* धन तो असमय के मेघ के समान अकस्मात आता है और चला जाता है।  ~ सोमदेव
* सुरूप हो या कुरूप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है।  ~ अतिरात्रयाजी
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
* परस्पर न मिलते हुए, दूरस्थित प्राणियों में भी स्नेह देखा जाता है, जैसे सूर्य गगन तल में रहता है, परंतु नीचे पृथ्वी पर कमलिनी विकसित होती है। ~ नयनंदी
* यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा?  ~ कालिदास
* प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है।  ~ महात्मा गांधी
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
* जहां धन होता है, वहां त्याग-बुद्धि नहीं होती है। जहां शौर्य होता है, वहां विवेक शून्य होता है।  ~ पानुगंटि


===मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है===
===प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तो===
* पार्थिव सुख ही एक मात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है।  ~ शरतचंद
* जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो, तब तुम अपने आप से, एक दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो।  ~ खलील जिब्रान
* निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। ~ वेदव्यास
* सीखे गए को भूल जाने पर भी जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है।  ~ स्किनर
* दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में, दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है।  ~ विसुद्धिमग्ग
* सब कुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है।  ~ योग वसिष्ठ
* मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है। ~ विष्णु शर्मा
* वह वैभव, जिसका कभी पतन संभव न हो, साधुओं और फकीरों का ही है।  ~ हाफिज
* समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को खोज निकालती है। परंतु विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है।  ~ बेकन


===मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है===
===प्रेमी हृदय उदार होता है===
* भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
* प्रेमी हृदय उदार होता है, वह दया और क्षमा का सागर है, ईर्ष्या और दंभ के नाले उसमें मिल कर उसे विशाल बना देते हैं।  ~ प्रेमचंद
* उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है।  ~ भट्टनारायण
* जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह चढ़ता है।  ~ गांधी
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
* जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न पाने पर खिन्न होता है।  ~ वाल्मीकि
* पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो।  ~ यूरोपिडीज
* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है।  ~ जयशंकर प्रसाद


===मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है===
===प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है===
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
* प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है।  ~ बाणभट्ट
* वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कालरिज
* अतिशय संपन्नता को पाकर भी गर्वरहित लोग किसी को तनिक नहीं भूलते। ~ माघ
* जो जिसका प्रिय व्यक्ति है, वह उसका कोई विलक्षण धन है। प्रिय व्यक्ति कुछ न करता हुआ भी सामीप्यादि दुखों को दूर कर देता है।  ~ भवभूति
* यह स्त्री है, यह पुरुष है- यह निरर्थक बात है। वास्तव में तो सत्पुरुषों का चरित्र ही पूजा योग्य होता है।  ~ कालिदास
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है। ~ भास
* सज्जन लोग रत्न पाकर उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने प्रसन्न उस रत्न को किसी निर्लोभ पात्र को देकर होते हैं। ~ भास  
* यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन नहीं हुई है तो तुम कदापि दूसरों के हृदय प्रभावित नहीं कर सकते।  ~ गेटे
* जो धर्माचरण करता है, जीव मात्र के प्रति तितिक्षा रखता है, जो अन्यों से तप्त किए जाने पर भी तप्त नहीं होता, वही मनुष्य श्रेय का पात्र है।  ~ मत्स्यपुराण
* प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं करता।  ~ जयशंकर प्रसाद
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है।  ~ भास
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ - पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात


===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके===
===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं===
* जो प्रकृति से ही महान हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक)ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती। - चाणक्य
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है।  ~ विमल मित्र
* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। - विष्णु शर्मा
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है।  ~ उमाशंकर जोशी
* विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। - इत्तिवृत्तक
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है।  ~ खलील जिब्रान
* मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। - गुरुदत्त
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है।  ~ बंकिमचंद्र
* प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है।  ~ ड्राइडेन


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===प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है===
===प्रेम के मार्ग में चतुराई बुरी है===
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता।  ~ कालिदास
* प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। - मौलाना रूम
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
* प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। - जॉर्ज हरबर्ट
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
* हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। - भारवि
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे।  ~ उत्तराध्ययन
* राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है।   - कालिदास
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। - गेटे
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना।  - वेद व्यास
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  - सोमेश्वर
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स ऐंथनी फ्राउड
* जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। - वल्लभदेव
* जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। - हजारी प्रसाद द्विवेदी
* जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। - विवेकानंद
* जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। केवल पुन: किया हुआ पुण्य ही बुद्धि को बढ़ाता है। - वेदव्यास


===पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है===
===पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है===
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। - जयशंकर प्रसाद
* दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा।  ~ नवविधान
* जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। - स्वामी रामतीर्थ
* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो।  ~ तुकाराम
* जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है। - महात्मा गांधी
* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। ~ स्वामी विवेकानंद
* पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है। - सुदर्शन
* असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। ~ शेख सादी
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ।  ~ एमर्सन


===पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं===
===पहले जैसी स्थिति===
* पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। - अथर्ववेद
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं।  ~ शेख फरीद
* जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। - ऋग्वेद
* पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है।  ~ लल्लेश्वरी
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। - मनुस्मृति
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन: ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते।  ~ लोकोक्ति
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है।  ~ एकनाथ


===परोपकार से पुण्य होता है===
===प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है===
* जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। - क्षेमेंद्र
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे।  ~ महादेवी वर्मा
* दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। - भर्तृहरि
* जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है।  ~ एमर्सन
* परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। - पंचतंत्र
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है।  ~ शाह अब्दुल लतीफ
* वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है। - कालिदास
* प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। ~ बफां
* त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। - आचार्य नारायण राम
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल्स


===पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है===
===प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता===
* दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। - नवविधान
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है।  ~ शाह अब्दुल लतीफ
* यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। - तुकाराम
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं।  ~ अज्ञात
* पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे।  ~ महादेवी वर्मा
* असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। - शेख सादी
* प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता।  ~ कार्लाइल
* यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। - एमर्सन


===प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है===
===प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती===
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। - महादेवी वर्मा
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं।  ~ वल्लभदेव
* जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। - एमर्सन
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती। जो परिश्रमी है, वही सब कुछ प्राप्त करता है। ~ महादेवी वर्मा
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। - शाह अब्दुल लतीफ
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
* प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। - बफां
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात
* प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। - जॉन स्टुअर्ट मिल्स
* जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।  ~ मिल्टन


===प्रीति नहीं प्रयोजन ने किया बेड़ा गर्क===
===प्रीति नहीं प्रयोजन ने किया बेड़ा गर्क===
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* मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।  ~ जयशंकर प्रसाद  
* मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है।  ~ जयशंकर प्रसाद  


===पहले जैसी स्थिति===
==='प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'===
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख फरीद
* इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है।  ~ अलंकारसर्वस्व
* पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। - लल्लेश्वरी
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं।  ~ भागवत
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन : ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। - लोकोक्ति
* 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है।  ~ आंगिरसस्मृति
* राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। - एकनाथ
* आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। ~ बोधिचर्यावतार
 
===परोपकार का आचरण मत त्यागो===
* मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है।  ~ भगवतीचरण वर्मा
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है।  ~ सुप्रभाचार्य
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है।  ~ महात्मा गांधी
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। ~ अज्ञात


==='प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'===
===परोपकार से पुण्य होता है===
* इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। - अलंकारसर्वस्व
* जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं।  ~ क्षेमेंद्र
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। - भागवत
* दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं।  ~ भर्तृहरि
* 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है। - आंगिरसस्मृति
* परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप।  ~ पंचतंत्र
* आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। - बोधिचर्यावतार
* वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है।  ~ कालिदास
* त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन।  ~ आचार्य नारायण राम


===परोपकार का आचरण मत त्यागो===
===परोपकार का आचरण मत त्यागो===
* मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। - भगवतीचरण वर्मा
* मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं।  ~ मत्स्य पुराण
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। - सुप्रभाचार्य  
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।  ~ प्रेमचंद
* अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। - अश्वघोष
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
* संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। - महात्मा गांधी
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है?  ~ सुप्रभाचार्य  
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - अज्ञात
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
 
===परोपकार ही धर्म है===
* परोपकार ही धर्म है, परपीड़न ही पाप।  ~ विवेकानंद
* छिपाने के द्वारा पाप का पोषण किया जाता है और उसे जीवित रखा जाता है। ~ वर्जिल
* भय और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते।  ~ रामतीर्थ
* दूसरों के पाप गिनाने से पहले अपने पाप गिनो।  ~ काजी नजरुल इस्लाम


===प्रेम में स्मृति का ही सुख है===
===परंपरा और विद्रोह===
* प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। - महात्मा गांधी
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, परायी बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है।  ~ उड़िया लोकोक्ति
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। - प्रेमचंद
* जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। - जयशंकर प्रसाद
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं।  ~ जॉन मेसफील्ड
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। - रामचंद्र शुक्ल
* परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है।  ~ रामधारी सिंह दिनकर
* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थ और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थ है, वहां प्रेम नहीं है। - अश्विनीकुमार दत्त
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी जरूरत पड़ती है।  ~ गेटे
* प्रेम में द्वेष की गुंजाइश ही नहीं, प्रेम में अहम-भाव नहीं, प्रेम सब कुछ सहन करता और मान लेता है। - महात्मा गांधी
 
* प्रेम एक बीज है जो एक बार जम कर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है। - प्रेमचंद
===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है===
* परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही असली प्रगति है। ~ दिनकर
* परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि जीवंत आत्मा का सतत आवास है।  ~ राधाकृष्णन
* परंपरा बंधन नहीं है, वह मनुष्य की मुक्ति (अपने लिए ही नहीं, सबके लिए मुक्ति) की निरंतर तलाश है। ~ विद्यानिवास मिश्र
* आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। ~ धम्मपद


===पत्नी और पति===
===पत्नी और पति===
* पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। - बाल्जाक  
* पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। ~ बाल्जाक  
* हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। - मदर टेरेसा  
* हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। ~ मदर टेरेसा  
* अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। - रिचर्ड बाख  
* अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। ~ रिचर्ड बाख  
* जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। - ऑस्कर वाइल्ड  
* जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। ~ ऑस्कर वाइल्ड  
* पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। - हेलन रौलां  
* पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। ~ हेलन रौलां  


===परिवर्तन ही सृष्टि है===
===परिवर्तन ही सृष्टि है===
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* पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है।  ~ महात्मा गांधी  
* पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है।  ~ महात्मा गांधी  
* परोपकार के लिए कुछ जाल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है।  ~ प्रेमचंद  
* परोपकार के लिए कुछ जाल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है।  ~ प्रेमचंद  
===प्रार्थना धर्म का निचोड़ है===
* प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। प्रार्थना दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है, यह हृदय के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम है।  ~ महात्मा गांधी
* मैं भगवान से अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता। मेरी यही एक प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अंत:करण में स्थित होकर मैं ही उनके समस्त दुखों को सहूं।  ~ श्रीमद्भागवत
* बारिश का परिणाम शरीर पर और उसके द्वारा मन पर होता है तो प्रार्थना का परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है।  ~ विनोबा
===प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती===
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं।  ~ वल्लभदेव
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती। जो परिश्रमी है, वही सब कुछ प्राप्त करता है।  ~ महादेवी वर्मा
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात
* जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।  ~ मिल्टन
===प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है===
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरु जी
* जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे।  ~ प्रेमचंद
* प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है वहां प्रेम नहीं है।  ~ अश्विनीकुमार दत्त
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है।  ~ जयशंकर प्रसाद


===पूजा हमेशा गुण की होती है===
===पूजा हमेशा गुण की होती है===
पंक्ति 646: पंक्ति 565:
* जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है।  ~ भगवान महावीर  
* जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है।  ~ भगवान महावीर  
* सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं।  ~ अज्ञात  
* सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं।  ~ अज्ञात  
===प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना===
* हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है।  ~ साने गुरुजी
* जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है?  ~ दयाराम
* स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है।  ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र
===प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए===
* जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए।  ~ शेक्सपियर
* बंधन बहुत तरह के हैं, पर प्रेम की डोर से बंध जाना तो कुछ और ही है।  ~ अज्ञात
* संसार में स्नेह के बंधनपाश लोहे से भी बढ़कर कठोर होते हैं।  ~ बाणभट्ट
* अतिशय प्रेम अनेक बार परिचित वस्तु को भी नया-नया कर देता है।  ~ माघ
* प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए।  ~ कालिदास
===परोपकार का आचरण मत त्यागो===
* मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं।  ~ मत्स्य पुराण
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।  ~ प्रेमचंद
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है।  ~ गेटे
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है?  ~ सुप्रभाचार्य
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है।  ~ शिव
===प्रेमी हृदय उदार होता है===
* प्रेमी हृदय उदार होता है, वह दया और क्षमा का सागर है, ईर्ष्या और दंभ के नाले उसमें मिल कर उसे विशाल बना देते हैं।  ~ प्रेमचंद
* जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह चढ़ता है।  ~ गांधी
* जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न पाने पर खिन्न होता है।  ~ वाल्मीकि
===पीड़ितों की सेवा===
* जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे।  ~ गौतम बुद्ध
* सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है।  ~ स्वामी शिवानंद
* सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है।  ~ महात्मा गांधी
* निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती।  ~ विनोबा
===प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तो===
* जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो, तब तुम अपने आप से, एक दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो।  ~ खलील जिब्रान
* सीखे गए को भूल जाने पर भी जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है।  ~ स्किनर
* सब कुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है।  ~ योग वसिष्ठ
* दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है।  ~ विष्णु शर्मा
* वह वैभव, जिसका कभी पतन संभव न हो, साधुओं और फकीरों का ही है।  ~ हाफिज
* समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को खोज निकालती है। परंतु विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है।  ~ बेकन


===प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें===
===प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें===
पंक्ति 690: पंक्ति 571:
* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान  
* मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं।  ~ खलील जिब्रान  
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
* जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है।  ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
===परंपरा और विद्रोह===
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, परायी बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है।  ~ उड़िया लोकोक्ति
* जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं।  ~ जॉन मेसफील्ड
* परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है।  ~ रामधारी सिंह दिनकर
* किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी जरूरत पड़ती है।  ~ गेटे


===पतित होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है===
===पतित होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है===
पंक्ति 723: पंक्ति 597:
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।  ~ रामचंद्र शुक्ल  
* सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है।  ~ रामचंद्र शुक्ल  
* यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए।  ~ लाओ - त्से
* यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए।  ~ लाओ - त्से
===प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं===
* भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। - विमल मित्र
* प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। - उमाशंकर जोशी
* प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। - खलील जिब्रान
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। - बंकिमचंद्र
* प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। - ड्राइडेन
===प्रेम का एक कण संसार पर भारी===
* नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। - नारायण पंडित
* जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। - मुक्तिकोपनिषद्
* प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
* सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। - स्वामी विवेकानंद
===प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है===
* सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। - रहीम
* प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। - सीगर
* जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। - गुरु रामदास
* प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। - शेक्सपियर
* प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। - अमृतलाल नागर
===परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है===
* परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही असली प्रगति है। - दिनकर
* परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि जीवंत आत्मा का सतत आवास है। - राधाकृष्णन
* परंपरा बंधन नहीं है, वह मनुष्य की मुक्ति (अपने लिए ही नहीं, सबके लिए मुक्ति) की निरंतर तलाश है। - विद्यानिवास मिश्र
* आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। - धम्मपद


===प्रतीक्षा भी सेवा===
===प्रतीक्षा भी सेवा===
पंक्ति 755: पंक्ति 603:
* यदि मन में प्रपंच हो तो मन में भगवान का वास नहीं हो सकता, और यदि मन में भगवान हों तो प्रपंच हो नहीं सकता।  ~ दयाराम  
* यदि मन में प्रपंच हो तो मन में भगवान का वास नहीं हो सकता, और यदि मन में भगवान हों तो प्रपंच हो नहीं सकता।  ~ दयाराम  
* जब तक अन्त:करण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता।  ~ प्रेमचंद  
* जब तक अन्त:करण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता।  ~ प्रेमचंद  
===पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें===
* तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठ पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते।  ~ उमर खैयाम
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें। यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।  ~ मनुस्मृति
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है।  ~ ओलिवर वेंडल होम्स
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है।  ~ सत्य साईं बाबा


===पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं===
===पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं===
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* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है।  ~ महात्मा गांधी
* जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है।  ~ महात्मा गांधी


===परोपकार ही धर्म है===
===पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है===
* परोपकार ही धर्म है, परपीड़न ही पाप। ~ विवेकानंद
* समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है।  ~ भास
* छिपाने के द्वारा पाप का पोषण किया जाता है और उसे जीवित रखा जाता है।  ~ वर्जिल
* मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है।  ~ प्रेमचंद
* भय और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते। ~ रामतीर्थ
* दूसरों की प्राण रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है।  ~ बाणभट्ट
* दूसरों के पाप गिनाने से पहले अपने पाप गिनो। ~ काजी नजरुल इस्लाम
* पुण्य रूपी वृक्ष में तत्काल ही अचिंतनीय फल उत्पन्न होते हैं। ~ सोमदेव
* पीड़ा का सीमातीत हो जाना ही उसकी चिकित्सा है। जैसे बिंदु का समुद्र में विलीन होना ही उसका सुख व विश्राम पा जाना है।  ~ गालिब
 
===पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें===
* तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठ पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते।  ~ उमर खैयाम
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें। यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।  ~ मनुस्मृति
* युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है।  ~ ओलिवर वेंडल होम्स
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा


===पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है===
===पीड़ितों की सेवा===
* समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर ) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। - भास
* जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे।  ~ गौतम बुद्ध
* मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। - प्रेमचंद
* सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद
* दूसरों की प्राण रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है। - बाणभट्ट
* सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी
* पुण्य रूपी वृक्ष में तत्काल ही अचिंतनीय फल उत्पन्न होते हैं। - सोमदेव
* निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती।  ~ विनोबा
* पीड़ा का सीमातीत हो जाना ही उसकी चिकित्सा है। जैसे बिंदु का समुद्र में विलीन होना ही उसका सुख व विश्राम पा जाना है। - गालिब


===परिचय के पीछे स्वार्थ न हो===
===परिचय के पीछे स्वार्थ न हो===
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* पराजय से सत्याग्रही और अहिंसक की आत्मा को निराशा नहीं होती। उससे तो कार्य-क्षमता और लगन बढ़ती है और सत्य से मनुष्य की बुद्धि परिष्कृत होकर उसका मार्ग-दर्शन करती है।  ~ महात्मा गांधी  
* पराजय से सत्याग्रही और अहिंसक की आत्मा को निराशा नहीं होती। उससे तो कार्य-क्षमता और लगन बढ़ती है और सत्य से मनुष्य की बुद्धि परिष्कृत होकर उसका मार्ग-दर्शन करती है।  ~ महात्मा गांधी  
* किसी को अपना परिचय देना बुरा नहीं है, बुरा तभी है जब वह किसी स्वार्थ या अहंकार से दिया जाता है।  ~ अज्ञात
* किसी को अपना परिचय देना बुरा नहीं है, बुरा तभी है जब वह किसी स्वार्थ या अहंकार से दिया जाता है।  ~ अज्ञात
===पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है===
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है।  ~ महात्मा गांधी
* पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है।  ~ सुदर्शन
===पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं===
* पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं।  ~ अथर्ववेद
* जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं।  ~ ऋग्वेद
* तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें।  ~ मनुस्मृति


===प्रार्थना===
===प्रार्थना===
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* जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं।  ~ अज्ञात  
* जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं।  ~ अज्ञात  


===प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता===
===प्रार्थना धर्म का निचोड़ है===
* प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ
* प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। प्रार्थना दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है, यह हृदय के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम है। ~ महात्मा गांधी
* उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं। ~ अज्ञात
* मैं भगवान से अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता। मेरी यही एक प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अंत:करण में स्थित होकर मैं ही उनके समस्त दुखों को सहूं। ~ श्रीमद्भागवत
* असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा
* बारिश का परिणाम शरीर पर और उसके द्वारा मन पर होता है तो प्रार्थना का परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है। ~ विनोबा
* प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता। ~ कार्लाइल


===प्रेम की शक्ति===
===प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है===
* जगत में जो भी उन्नति वह प्रेम की शक्ति से ही हुई है। दोष बता बताकर कभी भी अच्छा काम नहीं किया जा सकता। ~ विवेकानंद
* सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। ~ जातक
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम
* निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। ~ तिरुवल्लुवर
* प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय।  ~ बंकिमचंद्र
* वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। ~ अज्ञात  
 
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
===प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है===
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
* बिना प्रेम किए मर जाने से ज्यादा दुखद कुछ कोई और नहीं हो सकता। लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह है कि जिसे आप प्रेम करते हों, उसे बिना यह बताए ही दुनिया से विदा हो जाएं, कि आप उससे प्रेम करते थे। ~ अज्ञात  
* हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है।  ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
* प्रेम निकाल दो तो यह पृथ्वी कब्र है।  ~ रॉबर्ट ब्राउनिंग
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है।  ~ अज्ञात
* जितनी गहराई, ऊंचाई और विस्तार तक मेरी आत्मा जा सकती है, वहां तक मैं तुमसे प्रेम करती हूं।  ~ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
* वही अच्छी प्रार्थना है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है।  ~ कॉलरिज
* जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी
* हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट(कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास)  ~ कोलरिज
 
===प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है===
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
* सुरूप हो या कुरूप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है।  ~ अतिरात्रयाजी
* परस्पर न मिलते हुए, दूरस्थित प्राणियों में भी स्नेह देखा जाता है, जैसे सूर्य गगन तल में रहता है, परंतु नीचे पृथ्वी पर कमलिनी विकसित होती है। ~ नयनंदी
* प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है।  ~ महात्मा गांधी
 
===प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है===
* प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है।  ~ बाणभट्ट
* अतिशय संपन्नता को पाकर भी गर्वरहित लोग किसी को तनिक नहीं भूलते।  ~ माघ
* यह स्त्री है, यह पुरुष है- यह निरर्थक बात है। वास्तव में तो सत्पुरुषों का चरित्र ही पूजा योग्य होता है।  ~ कालिदास
* सज्जन लोग रत्न पाकर उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने प्रसन्न उस रत्न को किसी निर्लोभ पात्र को देकर होते हैं।  ~ भास
* जो धर्माचरण करता है, जीव मात्र के प्रति तितिक्षा रखता है, जो अन्यों से तप्त किए जाने पर भी तप्त नहीं होता, वही मनुष्य श्रेय का पात्र है।  ~ मत्स्यपुराण


===प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है===
===प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है===
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* विपत्ति आती है और चली जाती है, वीर वही है जो धीर रहे और न्याय, सचाई का त्याग न करे।  ~ सुदर्शन  
* विपत्ति आती है और चली जाती है, वीर वही है जो धीर रहे और न्याय, सचाई का त्याग न करे।  ~ सुदर्शन  
* प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है।  ~ जयशंकर प्रसाद
===प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है===
* सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। - जातक
* निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। - तिरुवल्लुवर
* वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। - अज्ञात
* जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। - जॉन मेसफील्ड
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
* हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। - वासुदेवशरण अग्रवाल
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। - अज्ञात
* वही अच्छी प्रार्थना है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। - कॉलरिज
===प्रेम से शांत होता है वैर===
* संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होता है।  ~ धम्मपद
* तृण वृत्ति वाले मृग, जल वृत्ति वाले मीन और संतोष वृत्ति वाले सज्जनों के भी इस संसार में शिकारी, मछुवा और चुगलखोर बिना कारण के ही वैरी रहते हैं।  ~ भर्तृहरि
* व्यंग्य वचन दूसरों का हृदय छेदने में तीर का काम करते हैं।  ~ अज्ञात


===पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है===
===पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है===
पंक्ति 853: पंक्ति 681:
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर  
* वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर  
* जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है।  ~ सेनेका
* जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है।  ~ सेनेका
===प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है===
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता।  ~ कालिदास
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है।  ~ हालसातवाहन
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है।  ~ टामस फुलर
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे।  ~ उत्तराध्ययन


===परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर===
===परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर===
* चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। - तिरुवल्लुवर  
* चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। ~ तिरुवल्लुवर  
* करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। - भतृहरि  
* करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। ~ भतृहरि  
* वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। - कालिदास  
* वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। ~ कालिदास  
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। - भारवि
* परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ भारवि


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===विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है===
===फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा===
* विरोध हर सरकार के लिए जरूरी है। कोई भी सरकार प्रबल विरोध के बिना अधिक दिन टिक नहीं सकती। - डिजरायली
* इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा।  ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
* जो हमसे कुश्ती लड़ता है, हमारे अंगों को मजबूत करता है। वह हमारे गुणों को तेज करता है। एक तरह से हमारा विरोधी हमारी मदद ही करता है। - बर्क
* शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता।  ~ अज्ञात
* विकास के लिए यूं तो कई चीजें जरूरी होती हैं, लेकिन कठिनाई और विरोध वह देसी मिट्टी है जिसमें पराक्रम और आत्मविश्वास का विकास होता है। - जॉन नेल
* संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान पाप है। ~ लोकमान्य तिलक
* विरोध बहुत रचनात्मक होता है। वह उत्साहियों को सदैव उत्तेजित करता है, उन्हें बदलता नहीं। - शिलर
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद
* विपत्ति ही ऐसी तुला है जिस पर हम मित्रों को तोल सकते हैं। सुदिन अच्छी तुला नहीं है। - प्लूटार्क


===विश्राम की बात कैसे===
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* जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। - महादेवी वर्मा
===बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है===
* विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। - वेदव्यास
* बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
* सभी सच्चे काम आराम हैं। - रामतीर्थ
* बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
* इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। - विवेकानंद
* किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
* विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। - लक्ष्मीनारायण मिश्र
* जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी


===विचार ही कार्य का मूल है===
===बुराई के बीज===
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। - ऋग्वेद
* बुराई के बीज चाहे गुप्त से गुप्त स्थान में बोओ, वह स्थान किले की तरह चाहे सुरक्षित ही क्यों न हो, पर प्रकृति के अत्यंत कठोर, निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य कानून के अनुसार तुम्हें ब्याज सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। - चाणक्य
* सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है। ~ रामचन्द्र शुक्ल
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव समाज पर एक लांछन है। ~ विवेकानंद
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। - योगवासिष्ठ
* जिस आदमी का मान उसके अपने ख्याल से मर चुका है, वह जितनी हानि अपने को पहुंचा सकता है उतनी दूसरा कोई और नहीं पहुंचा सकता।  ~ महात्मा गांधी
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। - महात्मा गांधी


===विजय सदा ही भव्य होती है===
===बिना त्याग के धन की शोभा नहीं===
* अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। - धम्मपद
* बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती।  ~ अग्नि पुराण
* विजय सदा ही भव्य होती है, चाहे वह संयोग से प्राप्त हो या दक्षता से। - एरिओस्टो
* रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना।  ~ महात्मा गांधी
* विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। - वेदव्यास
* दुखती आंखों वाले को सामने रखी दीपशिखा अच्छी नहीं लगती है।  ~ कालिदास
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है। - मिल्ट
* लोभी न परमार्थ को समझता है और न धर्म को।  ~ इतिवुत्तक
* राग मिलाने वाला वासना है और द्वेष अलग करने वाली।  ~ रामचंद्र शुक्ल
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष


===वह पशुओं से भी गया-बीता है===
===बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है===
* मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
* दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना। ~ वेदव्यास
* जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है।  ~ दयानंद
* 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो।  ~ डिजरायली
* बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। ~ सोमदेव
* बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है।  ~ बेकन
* उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है।  ~ अज्ञात
* शरीर जल से पवित्र होता है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है। ~ मनुस्मृति
* परोपकार के लिए कुछ छल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है।  ~ प्रेमचंद


===विवेकहीन बल===
===बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक===
* जैसे-जैसे हम बाह्य रूपों की विविधता में उलझते जाते हैं, वैसे-वैसे उनके मूलगत जीवन को भूलते जाते हैं। ~ महादेवी वर्मा
* मनुष्य को कभी अपना अनादर नहीं करना चाहिए। जो स्वयं अपना अनादर करता है, उसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता।  ~ वेदव्यास
* विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। ~ वेदव्यास
* जिस प्रकार दीवाल पर फेंकी गेंद अपने ऊपर आ गिरती है उसी प्रकार दूसरे के लिए चाही हुई हानि अपने ऊपर आ पड़ती है।  ~ सोमदेव
* सभी सच्चे काम आराम हैं। रामतीर्थ
* भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित
* इस समय विश्राम की बात तुम कैसे कर सकते हो? जब हम लोग शरीर त्यागेंगे, तभी विश्राम करेंगे। ~ विवेकानंद
* जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट
* विवेकहीन बल काल के समुद्र में ढोंगी की भांति डूब जाता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक
* जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन


===विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत===
===बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत करें===
* आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। - विवेकानंद
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कहें कि यदि वे मित्र बन जाएं तो आपको लज्जित न होना पड़े।  ~ शेख सादी
* न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। - चाणक्य नीति
* कर्णि, नालीक और नाराच नामक बाणों को शरीर से निकाल सकते हैं, पर कटु वचन रूपी बाण नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि वह हृदय के भीतर धंस जाता है। ~ वेदव्यास
* भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? - माघ
* हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
* मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। - खलील जिब्रान
* जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं।  ~ ऋग्वेद
* अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। - नारायण पंडित


===विचार ही कार्य का मूल है===
===बलवान का बल उसकी विनयशीलता===
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद
* बलवान का बल उसकी विनयशीलता में है। शत्रुओं को परिवतिर्त करने के लिए बुद्धिमान का शस्त्र यही है।  ~ तिरुवल्लुवर
* मर्यादा का उल्लंघन कभी मत करो। ~ चाणक्य
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूद्रक
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं -जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है।  ~ विवेकानंद
* दयालुता से दयालुता का और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। ~ सैमुअल स्माइल्स
* अपने भीतर शांति प्राप्त हो जाने पर सारा संसार ही शांत दिखाई देने लगता है। ~ योगवासिष्ठ
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल।  ~ बल्लाल
* विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी
* समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है।  ~ चाणक्यनीति
===बेवकूफी से अश्रद्धा अच्छी===
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है।  ~ काका कालेकर
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हैं। ~ समर्थ रामदास
* मनुष्य की श्रद्धा जितनी तीव्र होती है, उतनी ही अधिक वह मनुष्य की बुद्धि को पैनी और प्रखर बनाती है। जब श्रद्धा अंधी हो जाती है, तब वह मर जाती है।  ~ महात्मा गांधी  
* मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है।  ~ मिलिंदप्रश्न


===विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है===
===बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है===
* विद्या शील के अभाव में शोचनीय हो जाती है और द्वेष से अपवित्र हो जाती है।  ~ क्षेमेंद्र
* जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां धान्य भविष्य के लिए संगृहित किया हुआ है, जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं- वहां मानो लक्ष्मी स्वयंमेव आई हुई है।  ~ चाणक्यनीति
* जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है।  ~ विष्णु पुराण
* बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है।  ~ सत्य साईं बाबा  
* विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न है, वह सदा फल देने वाली है। परदेश में माता के समान है। विद्या को गुप्त धन कहा गया है।  ~ वृद्ध चाणक्य
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष  
* विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है। भाग्य का नाश होने के बावजूद यह मनुष्य का आश्रय बनी रहती है।  ~ अज्ञात
* लोक-निंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य-मार्ग में बाधक है तो उससे डरना कायरता है।  ~ प्रेमचंद  
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया- वह उसके समान है जिसने बैल जोता है और बीज नहीं बिखेरा।  ~ शेख सादी
* वचन का पालन करने वाला कंजूस की भांति तोल कर अपने मुख से शब्द निकालता है।  ~ महात्मा गांधी  
 
===विशेष भाव से प्रेम करना बंधन है===
* प्राणों में छिपा हुआ प्रेम पवित्र होता है। हृदय के अंधकार में वह माणिक्य के समान जलता है, किंतु प्रकाश में वह काले कलंक के समान दिखाई देता है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। उसके अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है?  ~ दयाराम
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता, दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है।  ~ तुकाराम
* किसी व्यक्ति से विशेष भाव से प्रेम करना बंधन है। सभी से समान रूप से प्रेम करो, तब तुम्हारी सभी वासनाएं विलीन हो जाएंगी।  ~ विवेकानंद
* पुष्प से भी मृदुल होता है प्रेम। बिरले ही उसकी वास्तविकता को समझ कर उससे लाभान्वित होते हैं।  ~ तिरुवल्लुवर
 
===वीर संसार को हिला सकते हैं===
* शूर जन जल हीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते।  ~ वाल्मीकि
* वीर तो अपने अंदर ही 'मार्च' करते हैं, क्योंकि हृदयाकाश के केंद्र में खड़े होकर वे कुल संसार को हिला सकते हैं।  ~ सरदार पूर्णसिंह
* वरात्माएं सत्कार्य में विरोध की परवा नहीं करतीं और अंत में उस पर विजय ही पाती हैं।  ~ प्रेमचंद्र
* जो महान है वह महान पर ही वीरता दिखाता है।  ~ नारायण पंडित
* बिना विवेक की वीरता महासमुद्र की लहर में डोंगी-सी डूब जाती है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
 
===विरोध अनिवार्य है===
* हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं।  ~ महात्मा गांधी
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो।  ~ शेख सादी
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है।  ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।  ~ नवविधान
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं।  ~ भारवि
 
===विद्या ही पूजनीय बनाती है===
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। - वेद व्यास
* दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। - शंकराचार्य
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। - कल्हण
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। - चाणक्य
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां। - विष्णु शर्मा
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले। - विमल मित्र
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो। - कार्लाइल
 
===विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न होती है===
* जो विद्या केवल पुस्तकों में रहती है और जो धन दूसरे के हाथों में रहता है, समय पड़ने पर न वह विद्या है और न वह धन।  ~ लघुचाणक्य
* विद्या कामधेनु के गुणों से संपन्न होती है। वह सदा फल देनेवाली है। परदेश में वह माता के समान है। विद्या को इसीलिए गुप्त धन कहा जाता है।  ~ वृद्धचाणक्य
* जिसने विद्या पढ़ी और आचरण नहीं किया, वह उसके समान है जिसने बैल जोता पर बीज नहीं बिखेरे।  ~ शेख सादी
* विद्या शील के अभाव में शोचनीय और द्वेष से अपवित्र हो जाती है।  ~ क्षेमेंद्र
* जो जिस विद्या से युक्त है, वही उसके लिए परम देवता है। वह पूज्य और अर्चनीय है और वही उसके लिए उपकारिका है।  ~ विष्णुपुराण
 
===वही मंगल है जिससे मन प्रसन्न हो===
* वही मंगल है जिससे मन प्रसन्न हो। वही जीवन है जो परसेवा में बीते। वही अर्जित है जिसका भोग स्वजन करें।  ~ गरुड़पुराण
* गलती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं।  ~ रामतीर्थ
* जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है।  ~ रिचर्ड कंबरलैंड
* परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है।  ~ सोमदेव
* निरंतर और अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देंगे।  ~ तिरुवल्लुवर
 
===विद्या, तप और कीर्ति अतिधन है===
* धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरु पर्वत के समान होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शांड़्धर-पद्धति
* अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है और विद्या, तप और कीर्ति अतिधन है। ~ भगदत्त जल्हण
* मनस्विता धन की गरमी से लता के समान झुलस जाती है।  ~ बाणभट्ट
* मोहांध और अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं रहती।  ~ सोमदेव
 
===वाणी न होती तो धर्म-अधर्म का ज्ञान भी न होता===
* वाणी न होती तो धर्म-अधर्म का ज्ञान भी न होता। सत्य, असत्य, साधु, असाधु ये सब वाणी की वजह से ही हमें ज्ञात हैं।  ~ छन्दोग्योपनिषद
* बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किंतु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता।  ~ वेदव्यास
* शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझते हैं।  ~ अश्वघोष
* उचित अवसर पर कही गई असुंदर वाणी भी उसी तरह सुशोभित होती जिस तरह भूख में नितांत अस्वादु भोजन भी सुस्वादु हो जाता है। ~ वल्लभदेव
 
===वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है===
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है।  ~ विवेकानंद
* वह विजय महान होती है जो बिना रक्तपात के मिलती है।  ~ स्पेनी लोकोक्ति
* अमृत और मृत्यु- दोनों ही इस शरीर में स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है।  ~ वेदव्यास
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले।  ~ विमल मित्र
 
===वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले===
* जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल है, बुद्धिहीन में बल कहां।  ~ विष्णु शर्मा
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को भी अपना बना ले।  ~ विमल मित्र
* जब तक तुम्हारे पास कुछ कथनीय न हो, तब तक किसी भी प्रकार से किसी से भी कुछ न कहो।  ~ कार्लाइल
* संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।  ~ कल्हण
* कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है।  ~ चाणक्य
 
===विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है===
* श्रेष्ठ व्यक्ति का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थ से भी अधिक दुर्लभ है।  ~ तिरुवल्लुवर
* हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। इसलिए धर्म मूर्ख लोगों के लिए भी है।  ~ महात्मा गांधी
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।  ~ प्रेमचंद
* हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा दे रहा है।  ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
 
===विष पीकर शिव सुख से जागते हैं===
* विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं।  ~ अज्ञात
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है।  ~ सत्य साईं बाबा  
* लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता, वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है।  ~ वेदव्यास
* तू छोटा बन, बस छोटा बन। गागर में आएगा सागर।  ~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, किंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष  
* जैसा तुम्हारा लक्ष्य होगा, वैसा ही तुम्हारा जीवन भी होगा।  ~ श्रीमां
 
===वाचाल के कथन रुचिकर नहीं लगते===
* जैसे नमक के बिना अन्न स्वादरहित और फीका लगता है, वैसे ही वाचाल के कथन निस्सार होते हैं और किसी को रुचिकर नहीं लगते।  ~ तुकाराम
* गूंगा कौन है? जो समयानुकूल प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता है।  ~ अमोघवर्ष
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है।  ~ मिल्टन
* असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है।  ~ शेख सादी
* कटा हुआ वृक्ष भी बढ़ता है। क्षीण हुआ चंद्रमा भी पुन: बढ़कर पूरा हो जाता है। इस बात को समझकर संत पुरुष अपनी विपत्ति में नहीं घबराते हैं।  ~ भर्तृहरि
 
===विनयी जनों को क्रोध कहां===
* आपत्तिकाल में प्रकृति बदल देना अच्छा, परंतु अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा अच्छी नहीं।  ~ अभिनंद
* विनयी जनों को क्रोध कहां? और निर्मल अंत:करण में लज्जा का प्रवेश कहां?  ~ भास
* जो जमीन पर बैठता है, उसे कौन नीचे बिठा सकता है, जो सबका दास है, उसे कौन दास बना सकता है?  ~ महात्मा गांधी
* विद्वान तो बहुत होते हैं, लेकिन विद्या के साथ जीवन का आचरण करने वाले कम होते हैं।  ~ सरदार पटेल
* मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, परंतु वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है।  ~ इस्माइल इब्न अबीबकर
 
===विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है===
* प्रेम से शोक उत्पन्न होता है, प्रेम से भय उत्पन होता है, प्रेम से मुक्त को शोक नहीं, फिर भय कहां से? - धम्मपद
* विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? - अज्ञात
* पदार्थों का कोई आंतरिक हेतु ही मिलाता है। प्रेम बाहरी उपाधियों पर आश्रित नहीं होता। - भवभूति
* जिसका घर है, उसके लिए वह मथुरापुरी जैसा है। जिसका वर है, उसके लिए तो वह श्रीकृष्ण जैसा है। - उडि़या लोकोक्ति
 
===विकास कृत्रिम निर्धनता है===
* मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बड़कर संसार में कुछ भी नहीं है।  ~ वेदव्यास
* जो अप्राप्त वस्तु के लिए चिंता नहीं करता और प्राप्त वस्तु के लिए सम रहता है, जिसने न दुख देखा है, न सुख- वह संतुष्ट कहा जाता है।  ~ महोपनिषद
* जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं।  ~ अज्ञात
* संतोष स्वाभाविक संपत्ति है, विकास कृत्रिम निर्धनता।  ~ सुकरात
 
===विनम्रता शरीर की अंतरात्मा है===
* अनुभव बीस वर्ष में जो सिखाता है, विद्वता एक वर्ष में उससे अधिक सिखा देती है।  ~ रोगर ऐस्कम
* अपनी विद्वता को पॉकिट घड़ी की तरह अपनी जेब में रखो, और उसे केवल यह दिखाने के लिए कि तुम्हारे पास भी है, न बाहर निकालो और न पटको।  ~ लॉर्ड चेस्टरफील्ड
* विनम्रता शरीर की अंतरात्मा है।  ~ ऐडिसन
* जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा।  ~ जॉन बनयन
* यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सबसे छोटा और सबका सेवक बने।  ~ नवविधान
 
===विलास सच्चे सुख की छाया मात्र है===
* मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है और मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं।  ~ महात्मा गांधी
* जब तक तुम स्वयं में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते।  ~ विवेकानंद
* वीरता कभी-कभी हृदय की कोमलता का भी दर्शन कराती है। ऐसी कोमलता देखकर सारी प्रकृति कोमल हो जाती है, ऐसी सुंदरता देख लोग माहित हो जाते हैं।  ~ सरदार पूर्णसिंह
* विलास सच्चे सुख की छाया मात्र है।  ~ प्रेमचंद  
 
==श==
===शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं===
* शास्त्र पढ़कर भी लोग मूर्ख होते हैं, किंतु जो उसके अनुसार आचरण करता है, वस्तुत: वही विद्वान है। - हितोपदेश
* निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। - महात्मा गांधी
* अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती। और जो विश्वासपात्र नहीं है, उससे कुछ लेने को जी भी नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। - वेद व्यास
* जब कोई व्यक्ति अहिंसा की कसौटी पर खरा उतर जाता है तो दूसरे व्यक्ति स्वयं ही उसके पास आकर वैरभाव भूल जाते हैं। - पतंजलि
* मनुष्य जिस समय पशु तुल्य आचरण करता है उस समय वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है। - रवींद्रनाथ
 
===शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं===
* अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परंतु शील के बिना संसार में सब फीका है । - वेदव्यास
* शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। - गांधी
* शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं, वह तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं। - सत्य साईं बाबा
* अपने भीतर ही यदि शांति मिल गई तो सारा संसार शांतिमय प्रतीत होता है। - योगवाशिष्ठ
 
===शांति की अपनी विजयें होती हैं===
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। - मिल्टन
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। - मज्झिम निकाय
* जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। - वेदव्यास
* किसी के धन का लालच मत करो। - ईशावास्योपनिषद्
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। - पतंजलि
 
===शोक का भागी होता है===
* जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल-प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न खाने पर खिन्न होता है।  ~ वाल्मीकि
* जब तक तकलीफ सहने की तैयारी नहीं होती तब तक फायदा दिखाई दे ही नहीं सकता। फायदे की इमारत नुकसान की धूप में बनी है।  ~ विनोबा
* समय गंवाना सभी खर्चों से कीमती और व्यर्थ होता है।  ~ अज्ञात
* प्रेम द्वेष को परास्त करता है।  ~ गांधी
 
===शंका का अंत शांति का प्रारंभ है===
* शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। - महात्मा गांधी
* दही में जितना भी दूध डालिए, दही होता जाएगा। शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* अपने दोषों के कारण ही मनुष्य शंकित होता है। - शूद्रक
* गंभीरता से शंका करने वाला मन सजीव मन है। - सिस्टर निवेदिता
* शंका का अंत शांति का प्रारंभ है। - पेट्रार्क
 
===शांति से क्रोध को जीतें===
* अपने सम्मान, सत्य और वास्तविकता के लिए प्राण देनेवाला ही वास्तविक विजेता होता है।  ~ हरिकृष्ण प्रेमी
* जो बल से विजय प्राप्त करता है, वह शत्रु पर आधी विजय ही प्राप्त करता है।  ~ मिल्टन
* वाकपटु, निरालस्य व निर्भीक व्यक्ति से विरोध करके कोई नहीं जीत सकता।  ~ तिरुवल्लुर
* जीतता वह है जिसमें शौर्य होता है, धैर्य होता है, साहस होता है, सत्व होता है, धर्म हाता है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* शांति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें तथा संतोष से लाभ को जीतें।  ~ दशवैकालिक
 
===शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती===
* लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। - एली वाइजेला
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। - सोमदेव
* सच्चे संन्यासी तो अपनी मुक्ति की भी उपेक्षा करते हैं- जगत के मंगल के लिए ही उनका जन्म होता है। - विवेकानंद
* हे राजन, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। - नारायण पंडित
* कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। - सत्य साईंबाबा
 
===शक्ति भय के अभाव में रहती है===
* अपने खजाने में वृद्धि करने के लिए दूसरे के हिस्से को हड़प लेने वाला व्यक्ति निकृष्ट है। - तिरुवल्लुवर
* धन्य वह है जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। - अलेक्जेंडर पोप
* शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांस या पुट्ठों के गुणों में, जो कि हमारे शरीर में होते हैं। - महात्मा गांधी  
* जिनके भीतर आचरण की दृढ़ता रहती है, वे ही विचार में निर्भीक और स्पष्ट हुआ करते हैं। - हजारीप्रसाद द्विवेदी
* केवल शरीर के मैल उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता। मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही वह भीतर से उत्पन्न होता है। - स्कंदपुराण
 
===शस्त्र जहां हार जाते हैं, वहीं बुद्धि जीतती है===
* पराई बुद्धि से राजा होने से कहीं बेहतर है अपनी बुद्धि से पथिक होना।  ~ लोकोक्ति
* बुद्धि बिना शक्ति के छल और कलपना मात्र है और शक्ति के बिना बुद्धि मूर्खता और उन्माद है।  ~ शेख सादी
* मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए।  ~ जयशंकर प्रसाद
* ब्रह्मांड कितना बड़ा है, यह सवाल नहीं है, मनुष्य की बुद्धि कितनी बड़ी है, यही सवाल है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* शस्त्र जहां हार जाते हैं, वहीं बुद्धि जीतती है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
 
===शील के लिए सात्विक हृदय===
* केवल नाम की इच्छा रखनेवाला पाखंडी भी नियम का पालन कर सकता है और पूरी तरह कर सकता है, पर शील के लिए सात्विक हृदय चाहिए।  ~ रामचंद्र शुक्ल
* अपार संपन्नता पाकर भी अहंकार से मुक्त सज्जन किसी को तनिक भी नहीं भूलता।  ~ माघ
* साधु जन दुर्लभ वस्तु प्राप्त करके भी स्वार्थ-साधन में प्रवृत्त नहीं होते।  ~ सोमदेव
* सज्जनों का हृदय समृद्धि में कोमल और विपत्ति के समय कठोर हो जाता है।  ~ क्षेमेन्द्र
 
===शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है===
* वृद्धावस्था विचार करती है और यौवन साहस करता है। - राउपाख
* शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। - सैमुअल स्माइल्स
* मैं जितने दीपक जलाता हूं, उनमें से केवल लपट और कालिमा ही प्रकट होती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
* परमेश्वर विद्वानों की संगति से प्राप्त होता है। - ऋग्वेद
* प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? - अज्ञात
 
===शांति सदा अच्छी नहीं होती===
* जीवन का सुख दूसरों को सुखी करने में है, उनको लूटने में नहीं।  ~ प्रेमचंद
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो।  ~ शेख सादी
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।  ~ नवविधान
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं।  ~ भारवि
* किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता।  ~ लाला लाजपत राय
 
===शिष्टाचार का मूल सिद्धांत===
* पक्षपात, गुणों को दोष और दोष को गुण बना देता है।  ~ राजशेखर
* धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी सब शील के ही आश्रय पर रहते हैं। शील ही सबकी नींव है।  ~ वेदव्यास
* शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना।  ~ अज्ञात
* योग्य शिष्य को जो शिक्षा दी जाती है, वह अवश्य फलती है।  ~ कालिदास


==भ==
==भ==
===भलाई का जीवन===
===भलाई का जीवन===
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। - उमर खैयाम  
* दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। ~ उमर खैयाम  
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। - प्रेमचंद  
* नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। ~ प्रेमचंद  
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। - आदिभट्टल नारायण दासु  
* भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्टल नारायण दासु  
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। - तिक्कना  
* अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। ~ तिक्कना  
* जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। - पब्लिलियस साइरस  
* जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। ~ पब्लिलियस साइरस  


===भलाई करने वाला भलाई सिखाता है===
===भलाई करने वाला भलाई सिखाता है===
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। - कालिदास  
* चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। ~ कालिदास  
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। - हालसातवाहन  
* प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन  
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। - महात्मा गांधी  
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी  
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। - टामस फुलर  
* जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर  
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। - उत्तराध्ययन
* साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन


===भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं===
===भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं===
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं - बाल्मीकि  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं।  ~ बाल्मीकि  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद  
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्रनाथ  
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ  
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। - स्वेट मार्डेन  
* जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। ~ स्वेट मार्डेन  


===भूखा मनुष्य===
===भूखा मनुष्य===
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===भगवान तुम्हारे सामने है===
===भगवान तुम्हारे सामने है===
* मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। - विनोबा  
* मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। ~ विनोबा  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। - हनुमान प्रसाद  
* भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद  
* भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। - सत्य साईं बाबा  
* भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। ~ सत्य साईं बाबा  
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। - रवींद्र  
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्र  
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। - इमर्सन  
* जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। ~ इमर्सन  


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===हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति की तरह हो===
===मनुष्य की चाहत===
* एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। - अज्ञात
* एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं।  ~ भारवि
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। - भागवत
* मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। ~ शरतचंद्र
* प्रेम का एक-एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। - फरीदुद्दीन अत्तार
* जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है।  ~ विनाबा भावे
* माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। - अज्ञात
* कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। ~ वृंद
* जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। - खलील जिब्रान
* हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। - महात्मा गांधी
* चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हो जाती हैं। - समर्थ रामदास
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील ही श्रेष्ठ आभूषण और रक्षा करनेवाला कवच है। - थेर गाथा


===हृदय की पुस्तक===
===मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है===
* संसार में धन पाकर जो लोग उसे मित्रों और धर्म में लगाते हैं, उनके धन सारवान हैं, नष्ट होने पर अन्त में वे धन ताप नहीं पैदा करते हैं। - अश्वघोष
* मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है।  ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
* ईर्ष्या, लोभ, क्रोध एवं कठोर वचन-इन चारों से सदा बचते रहना ही वस्तुत: धर्म है। - तिरुवल्लुवर
* जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* संसार के धर्म-ग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं। - रामतीर्थ
* दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो।  ~ शेख सादी
* मनुष्य की यह विशेषता है कि केवल उसी को अच्छे-बुरे का या उचित-अनुचित आदि का ज्ञान है और ऐसे ज्ञान से युक्त प्राणियों के साहचर्य से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है। - अरस्तू
* यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे।  ~ नवविधान
* जिसके हृदय की पुस्तक खुल चुकी है, उसे अन्य किसी पुस्तक की आवश्यकता नहीं रह जाती। पु्स्तकों का महत्व केवल इतना भर है कि वे हममें लालसा जगाती है। वे प्राय: अन्य व्यक्ति के अनुभव होती हैं। - विवेकानन्द
* समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं।  ~ भारवि
* प्राचीनता और भी अधिक प्राचीनता की प्रशंसा से परिपूर्ण मिलती है। - वाल्टेयर


===हर मन एक माणिक्य है===
===मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती===
* वैराग्य भीरु की आत्म-प्रवंचना मात्र है। जीवन की प्रवृत्ति प्रबल और असंदिग्ध सत्य है। - यशपाल
* जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती।  ~ गुरु नानक
* समाज में रहकर समाज को हानि पहुंचाना और आत्महत्या कर लेना दोनों ही समान हैं। - शरतचंद्र
* जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है।  ~ टेनिसन
* शूर जन जलहीन बादल के समान व्यर्थ गर्जना नहीं किया करते। - वाल्मीकि
* हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। - शेख सादी
* जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। - वेदव्यास
* उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता। - अज्ञात
* कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन, ये एक बार टूटने पर पहले जैसे नहीं रह जाते। अत: सावधानी बरतनी चाहिए। - लोकोक्ति
 
===हर शरीर में सात ऋषि हैं===
* प्रत्येक शरीर में सात ऋषि हैं। ये सातों प्रमाद रहित हो कर उसका रक्षण करते हैं। जब ऋषि सोने जाते हैं, तब भी भीतर बैठे देव जागते हैं और इस यज्ञशाला की रक्षा करते हैं। - यजुर्वेद
* अपनी छाया से मार्ग के परिश्रम को दूर करने वाले, प्रचुर मात्रा में अत्यधिक मधुर फलों से युक्त, सुपुत्रों के समान आश्रम के वृक्षों पर उनके अतिथियों की पूजा का भार स्थिति है। - कालिदास
* जीवन को सुंदर बनाने वाला प्रत्येक विचार वेद ही है। - साने गुरु जी
* अलमारियों में बंद वेदान्त की पुस्तकों से काम न चलेगा, तुम्हें उसको आचरण में लाना होगा। - रामतीर्थ
* उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। - अज्ञात
 
===हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें===
* मेरा मुकुट मेरे हृदय में है, न कि सिर पर। मेरा मुकुट न तो हीरों से जटित है और न ही रत्न जटित। मेरा मुकुट दिखाई भी नहीं देता। मेरे मुकुट का नाम है संतोष, और राजा लोग कदाचित ही इसे धारण करते हैं। ~ शेक्सपियर
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।  ~ सोमदेव  
* अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।  ~ सोमदेव  
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है।  ~ भागवत  
* जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है।  ~ भागवत  
* मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है।  ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
* प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
* हम देवों की शुभ मति के अधीन रहें। ~ ऋग्वेद


===हर ढंग सच हो सकता है===
===मन से सत्य शुद्ध होता है===
* सच्ची संस्कृति मस्तिष्क, हृदय और हाथ का अनुशासन है।  ~ शिवानंद
* जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।  ~ मनुस्मृति
* सच हजार ढंग से कहा जा सकता है, फिर भी उसका हर ढंग सच हो सकता है। ~ विवेकानंद
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
* अपनी बुद्धि से साधु होना कहीं अच्छा है, बजाय कि पराई बुद्धि से राजा बनना। ~ उड़िया लोकोक्ति
* शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार
* मन में संयमित शक्ति ही ऊपर उठकर बौद्धिक बल में परिणत होती है।  ~ कर्त्तव्य दर्शन
* शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता हे और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेदव्यास


===हर भूल कुछ न कुछ सिखा देती है===
===मन को शुभ संकल्प बनाओ===
* यदि तुम भूलों को रोकने के लिए द्वार बंद कर दोगे तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। ~ भागवत
* सोई हुई आत्मा को जगाने के लिए भूलें एक प्रकार की दैविक यंत्रणाएं जो हमें सदा के लिए सतर्क कर देती हैं। ~ प्रेमचंद
* इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। ~ अलंकारसर्वस्व
* दूसरों की भूलों से बुद्धिमान लोग अपनी भूलें सुधारते हैं। ~ साइरस
* जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। ~ अज्ञात
* यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ शिक्षा दे सकती है। ~ डिकेंस
* हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋगवेद


===हिम्मत और हौसला से मुश्किल आसान===
===मुहब्बत रूह की खुराक===
* हिम्मत और हौसला मुश्किल को आसान कर सकते हैं, आंधी और तूफान से बचा सकते हैं, मगर चेहरे को खिला सकना उनके सार्मथ्य से बाहर है।  ~ प्रेमचंद  
* मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है।  ~ प्रेमचंद  
* सब दुर्बलता और सब बंधन कल्पना है। उससे एक शब्द कहो और वह लापता हो जाएगी। ~ विवेकानंद
* प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है।  ~ महात्मा गांधी
* जो मनुष्य भीरु है, वह छोटे-छोटे कार्यों को भी बहुत बड़े कार्य समझता है। और जो साहसी होता है, वह बहुत बड़े कार्यों को भी छोटे छोटे कार्य ही समझता है। ~ मुतनब्बी
* प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। ~ जयशंकर प्रसाद
* वह सच्चा साहसी है जो मनुष्यों पर आने वाली भारी से भारी विपत्ति को बुद्धिमत्तापूर्वक सह सकता है।  ~ शेक्सपियर
* प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। ~ रामचंद शुक्ल
* कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है।  ~ ठाकुर गोपालशरण सिंह


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===महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें===
===यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण===
* विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। ~ महात्मा गांधी  
* मनुष्य श्रद्धा से संसार प्रवाह को पार कर जाता है। - सुत्तनिपात
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। ~ अज्ञात
* हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए जो स्वयं ही नहीं अपने आसपास को भी प्रकाशित करती है। - महात्मा गांधी  
* किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए।  ~ भागवत
* सब लोग हृदय के दृढ़ संकल्प से श्रद्धा की उपासना करते हैं, क्योंकि श्रद्धा से ही ऐश्वर्य प्राप्त होता है। - ऋगवेद
* विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। ~ बाण
* यदि प्रेम स्वप्न है तो श्रद्धा जागरण। - रामचंद्र शुक्ल
* श्रद्धा या आस्था के बिना जीवन-दृष्टि तो नहीं होती, जीने का ढर्रा या नक्शा-भर बन सकता है। - अज्ञेय
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। - समर्थ रामदास
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। - काका कालेलकर


===योग्यता और व्यक्तित्व===
===मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर===
* न कोई किसी का मित्र है, न कोई किसी का शत्रु। संसार में व्यवहार से ही लोग मित्र और शत्रु होते हैं।- नारायण पंडित
* ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है।  ~ भर्तृहरि
* किसी मनुष्य का स्वभाव उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। - अरस्तू
* प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की।  ~ प्रेमचंद
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष की पूर्ति प्रतिष्ठा के द्वारा होती है। - मोहन राकेश
* मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। ~ विवेकानंद
* दीपक के नीचे का अंधकार दूर करने के लिए दूसरा दीपक जलाने का प्रयत्न करना चाहिए। - संस्कृत लोकोक्ति
* मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है। ~ वेदव्यास
* किसी भी मूल्य पर शांति सदा अच्छी नहीं होती। वास्तविक वस्तु जीवन है, न कि शांति और नीरवता। - लाला लाजपतराय
* दार्शनिक विवाद में अधिकतम लाभ उसे होता है, जो हारता है। क्योंकि वह अधिकतम सीखता है। - एपिक्युरस


===योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है===
===मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे===
* व्यक्ति की पूजा की बजाय गुण-पूजा करनी चाहिए। व्यक्ति तो गलत साबित हो सकता है और उसका नाश तो होगा ही, गुणों का नाश नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
* कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति
* योग्यता एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है।  ~ मोहन राकेश
* ऐच्छिक प्रेम उत्तम है, परंतु बिना याचना के दिया हुआ प्यार बेहतर है।  ~ शेक्सपियर
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
* प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है।  ~ महात्मा गांधी
* अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
* मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे। ~ मारकस आंटोनियस
* जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। ~ अज्ञेय


===ये तीन दुर्लभ हैं===
===मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं===
* संसार में दो वस्तुएं बहुत ही कम पाई जाती हैं। एक तो शुद्ध कमाई का धन, दूसरे, सत्य- शिक्षक मित्र। ~ अबुल जवायज
* निरंतर अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं।  ~ तिरुवल्लुवर
* ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। ~ शंकराचार्य
* परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ सोमदेव
* जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है।  ~ क्षेमेंद्र
* परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है।  ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
* स्वभावत : कुटिल पुरुष द्वारा किया गया विद्या का अभ्यास दुष्टता को बढ़ाने वाला ही होता है।  ~ मुरारि
* जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है।  ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड


===ये तो पहिए के घेरे के समान हैं===
===मनुष्य अकेला आता है===
* दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं।  ~ कालिदास
* मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं।  ~ मत्स्य पुराण
* इस संसार में दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प हैं। इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योगवासिष्ठ
* परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
* बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे। ~ वेदव्यास
* तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है।  ~ शिव
* जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख स्वयं को भी प्राप्त होता है।  ~ अज्ञात
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
* विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है।  ~ प्रेम चंद


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===मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है===
===लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता है===
* मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। - वेदव्यास
* आज का अंडा आने वाले कल की मुर्गी से अधिक अच्छा होता है। - तुर्की लोकोक्ति
* वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना एक फैशन ही है। - डिजरायली
* ज्यों-ज्यों लाभ होता है त्यों-त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। - उत्तराध्ययन
* जो भविष्य का भय नहीं करता वही वर्तमान का आनंद ले सकता है। - टॉमस फुलर
* वर्तमान तो कर्म चाहता है, स्वप्न नहीं, यथार्थ के दर्शन चाहता है। - हरिकृष्ण प्रेमी
* हर स्थिति नहीं, हर क्षण अनंत मूल्य का है, क्योंकि यह संपूर्ण अनंतता का प्रतिनिधि है। - गेटे
* 'आज' निश्चित है, जो 'कल' है, वह अनिश्चित है। - शतपथ
 
===लक्ष्मी का निवास===
* उत्साही, आलस्यहीन, बहादुर और पक्की मित्रता निभाने वाले मनुष्य के पास लक्ष्मी निवास करने के लिए स्वयं चली आती है। - नारायण पंडित
* परिस्थितियां ही मनुष्य में साहस का संचार करती हैं। - हरिकृष्ण प्रेमी
* दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। - अज्ञात
* जो मारता है वह सबल है, जो भय करता है वह निर्बल है। - यशपाल
* कायरता की भांति वीरता भी संक्रामक होती है। - प्रेमचंद
 
===लोभ कभी बूढ़ा नहीं होता===
* इंसान अगर लालच को ठुकरा दे, तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है, क्योंकि संतोष ही इंसान का माथा ऊंचा रख सकता है।  ~ सादी
* गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती हैं परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता, उस प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए, पर लोभी तृप्त नहीं होता।  ~ वेदव्यास
* जिसमें लोभ है, उसे दूसरे अवगुण की क्या आवश्यकता?  ~ भर्तृहरि
* मनुष्य बूढ़ा हो जाता है परंतु लोभ बूढ़ा नहीं होता।  ~ सुदर्शन
 
===लोकनिंदा का भय क्यों होना चाहिए और क्यों नहीं===
* लघुता में प्रभुता का निवास है और प्रभुता, लघुता का भवन है। दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं भी नहीं पहनता।  ~ दयाराम
* लोकनिंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य मार्ग में बाधक हो तो उससे डरना कायरता है।  ~ प्रेमचंद
* ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ होता है। इस तरह से लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है।  ~ उत्तराध्ययन
* प्रकृति-पुरुष के संयोग से ब्रह्मांड की रचना ही रासलीला है। इस रासलीला में परमात्मा की सहचरी माया या प्रकृति ही राधा है।  ~ गंगेश्वरानंद
* काम करने का इच्छुक किंतु काम पाने में असमर्थ व्यक्ति संभवत: इस विश्व में भाग्य की असमानता द्वारा प्रदर्शित करुणतम दृश्य है।  ~ कार्लाइल
 
===लज्जा और संकोच करने पर ही शील===
* ऐसा विनय प्रवंचकों का आवरण है, जिसमें शील न हो। शील तो परस्पर सम्मान की घोषणा करता है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाता।  ~ विवेकानंद
* जल से शरीर शुद्ध होता है, मन सत्य से शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।  ~ मनुस्मृति
* शील अपरिमित बल है। शील सर्वोत्तम शस्त्र है। शील श्रेष्ठ आभूषण है और रक्षा करनेवाला अद्भुत कवच है।  ~ थेर गाथा
* लज्जा और संकोच करने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है।  ~ विसुद्ध्मिग्ग
 
==ब==
===बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है===
* बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
* बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
* किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
* जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी
 
===बुराई के बीज===
* बुराई के बीज चाहे गुप्त से गुप्त स्थान में बोओ, वह स्थान किले की तरह चाहे सुरक्षित ही क्यों न हो, पर प्रकृति के अत्यंत कठोर , निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य कानून के अनुसार तुम्हें ब्याज सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा।  ~ स्वामी रामतीर्थ
* सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है।  ~ रामचन्द्र शुक्ल
* मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव समाज पर एक लांछन है।  ~ विवेकानंद
* जिस आदमी का मान उसके अपने ख्याल से मर चुका है, वह जितनी हानि अपने को पहुंचा सकता है उतनी दूसरा कोई और नहीं पहुंचा सकता।  ~ महात्मा गांधी
 
===बिना त्याग के धन की शोभा नहीं===
* बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती।  ~ अग्नि पुराण
* रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना।  ~ महात्मा गांधी
* दुखती आंखों वाले को सामने रखी दीपशिखा अच्छी नहीं लगती है।  ~ कालिदास
* लोभी न परमार्थ को समझता है और न धर्म को।  ~ इतिवुत्तक
* राग मिलाने वाला वासना है और द्वेष अलग करने वाली।  ~ रामचंद्र शुक्ल
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष
 
===बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है===
* दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है - मन से दुखों की चिंता न करना।  ~ वेदव्यास
* 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो।  ~ डिजरायली
* बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है।  ~ बेकन
* शरीर जल से पवित्र होता है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है।  ~ मनुस्मृति
* परोपकार के लिए कुछ छल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है।  ~ प्रेमचंद
 
===बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक===
* मनुष्य को कभी अपना अनादर नहीं करना चाहिए। जो स्वयं अपना अनादर करता है, उसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता।  ~ वेदव्यास
* जिस प्रकार दीवाल पर फेंकी गेंद अपने ऊपर आ गिरती है उसी प्रकार दूसरे के लिए चाही हुई हानि अपने ऊपर आ पड़ती है।  ~ सोमदेव
* भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है।  ~ नारायण पंडित
* जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है।  ~ बाणभट्ट
* प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं।  ~ विलियम ब्लेक
* जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं।  ~ एमर्सन
 
===बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत करें===
* दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कहें कि यदि वे मित्र बन जाएं तो आपको लज्जित न होना पड़े।  ~ शेख सादी
* कर्णि, नालीक और नाराच नामक बाणों को शरीर से निकाल सकते हैं, पर कटु वचन रूपी बाण नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि वह हृदय के भीतर धंस जाता है।  ~ वेदव्यास
* हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं।  ~ वाल्मीकि
* जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं।  ~ ऋग्वेद
 
===बलवान का बल उसकी विनयशीलता===
* बलवान का बल उसकी विनयशीलता में है। शत्रुओं को परिवतिर्त करने के लिए बुद्धिमान का शस्त्र यही है।  ~ तिरुवल्लुवर
* विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं।  ~ शूद्रक
* दयालुता से दयालुता का और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है।  ~ सैमुअल स्माइल्स
* पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल।  ~ बल्लाल
* समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है।  ~ चाणक्यनीति
===बेवकूफी से अश्रद्धा अच्छी===
* अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है।  ~ काका कालेकर
* चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हैं।  ~ समर्थ रामदास
* मनुष्य की श्रद्धा जितनी तीव्र होती है, उतनी ही अधिक वह मनुष्य की बुद्धि को पैनी और प्रखर बनाती है। जब श्रद्धा अंधी हो जाती है, तब वह मर जाती है।  ~ महात्मा गांधी
* मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है।  ~ मिलिंदप्रश्न
 
===बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है===
* जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां धान्य भविष्य के लिए संगृहित किया हुआ है, जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं- वहां मानो लक्ष्मी स्वयंमेव आई हुई है।  ~ चाणक्यनीति
* बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है।  ~ सत्य साईं बाबा
* मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं।  ~ श्रीहर्ष
* लोक-निंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य-मार्ग में बाधक है तो उससे डरना कायरता है।  ~ प्रेमचंद
* वचन का पालन करने वाला कंजूस की भांति तोल कर अपने मुख से शब्द निकालता है।  ~ महात्मा गांधी
 
==ज्ञ==
===ज्ञान का लक्ष्य चरित्र-निर्माण===
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो, उतना ही वह कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
* अपने अज्ञान का आभाष होना ही ज्ञान की तरफ एक बड़ा कदम है। - डिजराइली
* ज्ञान का सार यह है कि ज्ञान रहते उसका प्रयोग करना चाहिए और उसके अभाव में अपनी अज्ञानता स्वीकार कर लेनी चाहिए। - कन्फ्यूशस
* ज्ञान अनुभव की बेटी है। - कहावत
* ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। - महात्मा गांधी
 
===ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है===
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं।  ~ मज्झिमनिकाय
* जल से शरीर शुद्ध होता है, मन सत्य से शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है।  ~ मनुस्मृति
* लज्जा और संकोच होने पर ही शील उत्पन्न होता है और ठहरता है।  ~ विसुद्धिमग्ग
* शील की सदृशता पहले कभी न देखे हुए व्यक्ति को भी हृदय के समीप कर देती है।  ~ बाणभट्ट
* शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है।  ~ क्षेमेंद्र
 
===ज्ञान से मन शांत===
* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।  ~ वेदव्यास  
* जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।  ~ वेदव्यास  
* प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। ~ वाल्मीकि
* जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। ~ गौतम बुद्ध
* मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
* जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता। ~ माघ


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===मनुष्य गोत्र और धन से शुद्ध नहीं होता===
===रुपया वापस दिया जा सकता है, लेकिन===
* सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है।  ~ पतंजलि
* जब हम अपने पैर की धूल से भी अधिक अपने को नम्र समझते हैं तो ईश्वर हमारी सहायता करता है।  ~ महात्मा गांधी
* शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। ~ मिल्टन
* किसी का रुपया वापस दिया जा सकता है, परंतु सहानुभूति के दो शब्द वह ऋण है जिसे चुकाना मनुष्य के सार्मथ्य के बाहर है। ~ सुदर्शन
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिम निकाय
* दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। ~ प्रेमचंद
* किसी के धन का लालच मत करो। ~ ईशावास्योपनिषद्
* सम्मान सच्चे परिश्रम में है। ~ जी. क्लीवलैंड


===राज्य का अस्तित्व===
===मान-बड़ाई मीठी छुरी है===
* राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
* प्रशंसा कीजिए जब हम दौड़ें, सांत्वना दीजिए जब हम गिरें, प्रोत्साहित कीजिए जब हमारा पुनरुत्थान हो, किंतु भगवान के लिए हमें बढ़ने दीजिए। ~ एडमंड बर्क
* विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो।  ~ अज्ञात
* देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता।  ~ ऋग्वेद
* जैसे शरीर बिना कहे ही अपने अधीन होता है, उसी प्रकार सज्जन लोग भी प्रेमी जनों के वश में रहते हैं। ~ बाणभट्ट
* तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है।  ~ रवींद्रनाथ टैगोर
* अपनी डिगनिटी को बनाए रखने के लिए मैं सदा संतोष की धूप में खड़ा रहता हूं और स्वयं को इच्छाओं की छाया से दूर रखता हूं। ~ ब्रह्माकुमार
* ईश्वर के सामने सिर झुकाने से ही क्या बनता है, जब हृदय अशुद्ध हो।  ~ गुरुनानक
* मान-बड़ाई मीठी छुरी है। विष भरा सोने का घड़ा है।  ~ शिव
* अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उडि़या लोकोक्ति


===राजलक्ष्मी तो चंचल होती है===
===मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए===
* प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का अपना हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। ~ चाणक्य
* जो दूसरों में दोष निकालते हैं, वे अपने दोषों से अनभिज्ञ रहते हैं। ~ वेमना
* राजलक्ष्मी तो सर्प की जिह्वा के समान चंचल होती है।  ~ भास
* धन तो असमय के मेघ के समान अकस्मात आता है और चला जाता है।  ~ सोमदेव
* राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीने के लिए नहीं। ~ अरस्तू
* किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
* वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है।  ~ अज्ञात
* यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा?  ~ कालिदास
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए।  ~ धनपाल
* जहां धन होता है, वहां त्याग-बुद्धि नहीं होती है। जहां शौर्य होता है, वहां विवेक शून्य होता है।  ~ पानुगंटि


===रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता===
===मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है===
* गूंगा कौन है? जो समयानुसार प्रिय वाणी बोलना नहीं जानता।  ~ अमोघवर्ष
* पार्थिव सुख ही एक मात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है।  ~ शरतचंद
* दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है।  ~ अज्ञात
* निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। ~ वेदव्यास
* भली प्रकार प्रयुक्त की गई वाणी को विद्वानों ने कामनापूर्ण करनेवाली कामधेनु कहा है। ~ दण्डी
* दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में, दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है। ~ विसुद्धिमग्ग
* प्रियजन द्वारा कही गई प्रिय बातें प्रियतर होती हैं। ~ भास
* मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है।  ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
* शुद्ध आशय हो तो रूखे वचन को भी सज्जन रूखा नहीं समझता है।  ~ अश्वघोष


===रंगना है तो प्रेम-रंग में रंगो===
===मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है===
* अगर अपने आपको किसी रंग में रंगना है तो प्रेम-रंग में रंग, क्योंकि इस रंग में रंगा हुआ मनुष्य मृत्यु के बंधनों से छूट जाता है।  ~ सनाई
* भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
* प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता, दिखाया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम
* उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है।  ~ भट्टनारायण
* प्रेम के कारण कड़ुवी वस्तुएं मीठी हो जाती हैं। प्रेम के स्वभाव के कारण तांबा सोना बन जाता है। ~ मौलाना रूम
* यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
* जहां प्रीति होती है, वहां नीति नहीं ठहरती और जहां नीति होती है, वहां प्रीति नहीं रहती। ~ दयाराम
* पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो। ~ यूरोपिडीज
* सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है। ~ जयशंकर प्रसाद


===रुपया और भय सगे भाई हैं===
===मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है===
* अपने उपायों से ही उपकारी का उपकार करना चाहिए। उपकार बड़ा है या छोटा- इस प्रकार का विद्वानों का विशेष आग्रह नहीं होता। ~ श्रीहर्ष
* प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
* धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
* वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कालरिज
* पूर्णतया निंदित या पूर्णतया प्रशंसित पुरुष न था, न होगा, न आजकल है।  ~ धम्मपद
* जो जिसका प्रिय व्यक्ति है, वह उसका कोई विलक्षण धन है। प्रिय व्यक्ति कुछ करता हुआ भी सामीप्यादि दुखों को दूर कर देता है।  ~ भवभूति
* मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है।  ~ विवेकानंद
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है।  ~ भास
* रुपया और भय संसार में साथ ही आते हैं और साथ ही चले जाते हैं। ऐसा ज्ञात होता है मानो वे दोनों सगे भाई हैं। ~ सनाई
* यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन नहीं हुई है तो तुम कदापि दूसरों के हृदय प्रभावित नहीं कर सकते। ~ गेटे
* धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। ~ प्रेमचंद
* प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं करता। ~ जयशंकर प्रसाद
* तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखेगे। ~ महात्मा गांधी
* मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है। ~ भास
* धन की कमी होने पर कोमलता रहती है, पर उसके बढ़ते ही उसकी जगह कठोरता लेने लगती है। ~ अज्ञात
* बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं।  ~ सोमेश्वर
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ - पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात


==क्ष==
===महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके===
===क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है===
* जो प्रकृति से ही महान हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक)ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती। ~ चाणक्य
* जो मनुष्य मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूं, क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला कहा जा सकता है। ~ गौतम बुद्ध
* संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। ~ विष्णु शर्मा
* क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। ~ वेदव्यास
* विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। ~ इत्तिवृत्तक
* क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है।  ~ जयशंकर प्रसाद
* मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। ~ गुरुदत्त
* यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करे तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना ही वीरों का काम है, परंतु यदि अपमान करने वाला बलवान हो तो उसे अवश्य दंड दो।  ~ गुरु गोविंद सिंह
 
==श्र==
===श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं===
* विप्रों का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चंद्रमा है पर शील सबका आभूषण है। - बृहस्पतिनीतिसार
* वास्तव में शुभ और अशुभ दोनों एक ही हैं और हमारे मन पर अवलंबित हैं। मन जब स्थिर और शांत रहता है, तब शुभाशुभ कुछ भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। - विवेकानंद
* शोक करनेवाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। - वेदव्यास
* श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। - महात्मा गांधी
* जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं । - वेदव्यास
* सब रसों में सत्य का रस ही अधिक स्वादिष्ट है। - सुत्तनिपात
* ऐसा सत्य वचन बोलना चाहिए, जो हित, मित और ग्राह्य हो। - प्रश्नव्याकरण सूत्र
* गुण से रूप की, सदाचार से कुल की और सफलता से विद्या की शोभा होती है। - अज्ञात
 
===श्रम से सब कार्य सिद्ध===
* जो श्रम नहीं करता, देवता उसके साथ मैत्री नहीं करते। ~ ऋग्वेद
* श्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ करने से नहीं।  ~ हितोपदेश
* श्रम आत्मा के लिए रसायन का काम करता है। श्रम ही मनुष्य की आत्मा है।  ~ स्वामी कृष्णानंद
* श्रम की पूजा करो। उसकी पूजा करनेवाला त्रिकाल में भी कभी निराश नहीं होता।  ~ राम प्रताप त्रिपाठी
 
===श्रेष्ठ वही है जो पराये को अपना ले===
* सत्यप्रतिज्ञ श्रेष्ठ व्यक्ति को कटु वचन कह कर भी कौन क्षुब्ध कर सकता है? (कोई नहीं)।  ~ माघ
* मुक्ति चाहने वाले विरक्त लोगों को भी अच्छे लोगों के प्रति पक्षपात होता है।  ~ भारवि
* जिनका शम-दम आदि गुणों के विषय में संतोष नहीं है, जिनका ज्ञान के प्रति अनुराग है तथा जिनको सत्य के आचरण का ही व्यसन है, वे ही वास्तव में मनुष्य हैं, दूसरे पशु हैं।  ~ योगवासिष्ठ
* पूर्ण मनुष्य वही है जो पूर्ण होने पर और बड़ा होने पर भी नम्र रहता हो और सेवा में निमग्न रहता हो।  ~ शब्सतरी
* वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो पराये को अपना बना ले। ~ विमल मित्र


===श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है===
* धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी, ये सब मनुष्य के साथ शील के आधार पर रहते हैं।  ~ वेदव्यास
* कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन - इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं।  ~ मज्झिमनिकाय
* ऐश्वर्य का आभूषण सज्जनता है, शौर्य का वाक संयम, ज्ञान का शांति और विनय तथा सार्मथ्य का आभूषण क्षमा है।  ~ भर्तृहरि
* श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है।  ~ महात्मा गांधी
===श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है===
* अन्य व्यक्ति को तुम कम से कम एक मुस्कान तो दे ही सकते हो - प्रेम और आनंद से भरी मुस्कान। यह उसके मन पर लदा चिंताओं का बोझ हटा देगी।  ~ स्वामी रामदास
* वही प्रशंसनीय है जो विपत्ति में अपना स्वभाव नहीं छोड़ता।  ~ प्रकाशवर्ष
* सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता। उसे तो पैदा करती है उसकी धरती जिस पर वह पैदा होता है।  ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
* श्रद्धा और सत्य के जोड़े से मनुष्य स्वर्ग लोक को भी जीत लेता है।  ~ ऐतरेय ब्राह्माण
===श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है===
* जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो।  ~ खलील जिब्रान
* श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी
* उस मनुष्य पर विश्वास करो जो बोलने में संकोच करता है और कार्य में परिश्रमी व तत्पर है।  ~ जॉर्ज सांतायना
* जो व्यक्ति अपना पक्ष छोड़कर दूसरे पक्ष से मिल जाता है, वह अपने पक्ष के नष्ट हो जाने पर स्वयं भी परपक्ष द्वारा नष्ट कर दिया जाता है।  ~ वाल्मीकि
==फ==
===फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा===
* इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा।  ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
* शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता।  ~ अज्ञात
* संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान पाप है।  ~ लोकमान्य तिलक
* मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है।  ~ जयशंकर प्रसाद


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15:21, 22 अक्टूबर 2011 का अवतरण

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अनमोल वचन

डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है

  • डरपोक प्राणियों में सत्य भी गूंगा हो जाता है। वही सीमेंट जो ईंट पर चढ़कर पत्थर हो जाता है, मिट्टी पर चढ़ा दिया जाए तो मिट्टी हो जाएगा। ~ प्रेमचंद
  • डर रखने से हम अपनी जिंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। ~ विनोबा भावे
  • तब तक ही भय से डरना चाहिए जब तक कि वह पास नहीं आ जाता। परंतु भय को अपने निकट देखकर प्रहार करके उसे नष्ट करना ही ठीक है। ~ चाणक्य

डॉक्टर आशावादी होते हैं

  • डॉक्टर असंख्य गलतियां करते हैं। इलाज के मामले में वे आदतन आशावादी होते हैं, लेकिन इलाज के नतीजों के मामले में उतने ही निराशावादी नजर आते हैं। ~ सैम्युअल बटलर
  • डॉक्टर ज्यादातर मायनों में वकीलों जैसे ही होते हैं। उनके बीच अकेला फर्क यह होता है कि वकील सिर्फ आपको लूटते हैं, जबकि डॉक्टर लूटने के बाद आपको मार भी डालते हैं। ~ एंटन चेखव
  • डॉक्टर बीमार को काटते, मारते और टॉर्चर करते हैं, और इस किस्म की अपनी सेवाओं के बदले में मोटी फीस भी वसूलते हैं। ~ हेराक्लिटस ऑफ इफेसस
  • बीमारी से भी कहीं ज्यादा खौफ डॉक्टर से खाया जाना चाहिए। ~ एक लैटिन कहावत
  • डॉक्टर की कामयाबी को सूरज देखता है, लेकिन उसकी नाकामी को जमीन छिपा लेती है। ~ एक फ्रांसीसी कहावत

तीन प्रकार के इंसान

  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी समझ से इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच- विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है, जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किसके लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेद व्यास

तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है

  • सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है। ~ अज्ञात
  • तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
  • संवेदनशील बनो पर निर्मल भी। प्रेमी बनो पर पवित्र भी। ~ बायरन
  • अपनी पवित्रता के संबंध में सज्जनों का चित्त ही साक्षी है। ~ श्रीहर्ष
  • ईश्वर को सिर झुकाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक

तृष्णा संतोष की बैरिन है

  • तृष्णा संतोष की बैरिन है, यह जहां पांव जमाती है, संतोष को भगा देती है। ~ सुदर्शन
  • जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मजदूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। ~ वेदव्यास
  • जिस जगह मान नहीं, जीविका नहीं, बंधु नहीं और विद्या का भी लाभी नहीं है, वहां नहीं रहना चाहिए। ~ चाणक्य
  • त्रुटि निकालना सरल है, अच्छा कार्य करना कठिन है। ~ प्लूटार्क

तुम आगे बढ़े चलो

  • फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो। तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • आशा उत्साह की जननी है। आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालक शक्ति है। ~ प्रेमचंद्र
  • जब शरीर में सात्विक रस रूपी मेघ बरसते हैं, तब आयु रूपी नदी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। ~ संत ज्ञानेश्वर

तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम

  • अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है। ~ महात्मा गांधी
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है। ~ दीनानाथ दिनेश
  • सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो। ~ स्वामी शंकराचार्य
  • ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है। ~ चाणक्य

दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करो

  • लोगों के साथ व्यवहार करते समय हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम तर्कशास्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं कर रहे हैं। हम ऐसे लोगों के साथ व्यवहार कर रहे हैं, जिनमें मानसिक आवेश है, पक्षपात है और जो गर्व एवं अहंकार से संचरित होते हैं। ~ डेल कारनेगी
  • सच्चे और सरल कर्म को जानना आसान काम नहीं है। न्यायोचित कर्मानुकूल व्यवहार करने पर ही सच्चे और सरल कर्म को जाना जा सकता है। ~ रस्किन
  • दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा कि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ करें। ~ बाइबिल
  • महापुरुष अपनी महत्ता का परिचय छोटे मनुष्यों के साथ किए गए अपने व्यवहार से देते हैं। ~ कार्लाइल

दूसरों का भरोसा मत करो

  • अगर संसार में तीन करोड़ ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक तुम्हारा कोई उद्धार नहीं कर सकता, इसलिए दूसरों का भरोसा मत करो। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। ~ अज्ञात
  • मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। ~ महात्मा गांधी

दूसरों की महानता को गौरव देनी ही असली महानता है

  • विवाद और असहमति किसी भी क्रियाशील समाज की प्राणशक्ति हैं। ~ ह्युबर्ट हम्फ्री
  • स्वभाव में शक्ति, मन में बुद्धि, हृदय में प्रेम- ये भव्य मानवता की त्रयी हैं। ~ अरविंद
  • दूसरों में महानता देख पाना और उन्मुक्त हृदय से उन्हें उसका गौरव देना मनुष्य की महानता की कसौटी है। ~ रस्किन
  • धन में अनासक्ति, गुणों से मोह, पराए दुख में अधीन होना और अपने ऊपर पड़े दुख में महान धैर्य- धारण करना, ये गुण महापुरुषों में जन्म से ही होते हैं। ~ वल्लभदेव

दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है

  • कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • धन्य है वह जो किसी बात की आशा नहीं करता, क्योंकि उसे कभी निराश नहीं होना है। ~ अलेक्जेंडर पोप
  • सच्चा सौहार्द वह होता है, जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ जयशंकर प्रसाद
  • दूसरों को प्रसन्न रखने की कला स्वयं प्रसन्न होने में है। सौम्य होने का अर्थ है स्वयं व दूसरों से संतुष्ट होना। ~ हैजलिट

दो प्रकार के सच

  • सर्वोपरि दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। ~ रामतीर्थ
  • तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की ही अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ करते हैं। ~ खलील जिब्रान
  • जब तू दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। ~ नवविधान

दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं

  • जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता। ~ वेदव्यास
  • मनुष्य की जिह्वा छोटी होती है, पर वह बड़े-बड़े दोष कर बैठती है। ~ इस्माइल इबन् अबीबकर
  • वाणी मधुर हो तो सब वश में हो जाते हैं। वाणी कटु हो तो सब शत्रु हो जाते हैं। ~ हिंदी लोकोक्ति
  • दो चीजें बुद्धि की लज्जा हैं- बोलने के समय चुप रहना और चुप रहने के समय बोलना। ~ शेख सादी

दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प

  • दुराग्रह से ग्रस्त चित्त वालों के लिए सुभाषित व्यर्थ है। ~ माघ
  • जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख दुख परिणाम में मिलता है। ~ अज्ञात
  • दुख या सुख किसी पर सदा ही नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभी नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
  • इस संसार में दुख अनंत हैं तथा सुख अत्यल्प है, इसलिए दुखों से घिरे सुखों पर दृष्टि नहीं लगानी चाहिए। ~ योगवाशिष्ठ
  • पार्थिव सुख ही एकमात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए, दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है। ~ शरतचंद

दुख में मिलते हैं ईश्वर

  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन। ~ वेदव्यास
  • धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा आपात स्थिति में होती है। ~ तुलसीदास
  • ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दुख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दुख का साथी ईश्वर है। ~ रामचंद डोंगरे
  • स्वेच्छा से ग्रहण किए हुए दुख को ऐश्वर्य के समान भोगा जा सकता है। ~ शरत

दुख-दर्द जीनियस के भाग्य में होते हैं

  • तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्वक कदम बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो जब तुम उस तरफ सिर्फ लंगड़ाते हुए जाते हो। इस तरह जानेवाले भी पीछे की तरफ नहीं जाते, आगे ही बढ़ते हैं। ~ खलील जिब्रान
  • दुख-दर्द, नि:संगता और अकेलापन, ये जीनियस के भाग्य में होते हैं, क्योंकि वह काल के विरुद्ध सोचता है। ~ दिनकर
  • अन्य के भीतर प्रवेश करने की शक्ति और अन्य को संपूर्ण रूप से अपना बना लेने का जादू ही प्रतिभा का सर्वस्व और वैशिष्ट्य है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • जब प्रकृति को कोई कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन

दुख का दर्शन

  • पहले से ही अधिक दुखी व्यक्ति को दुख के अन्य कारण दुखी नहीं करते। ~ भानुदत्त
  • दुख स्वयं ही एक औषधि है। ~ विलियम कोपर
  • तुम्हारा दुख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है। ~ खलील जिब्रान
  • दुख के सिवा और किसी उपाय से हम अपनी शक्ति को नहीं जान सकते, और अपनी शक्ति को जितना ही कम करके जानेंगे, आत्मा का गौरव भी उतना ही कम करके समझेंगे। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • दुख से दुखित न होने वाले उस दुख को ही दुखद कर देंगे। ~ तिरुवल्लुवर

दुखी के प्रति करुणा

  • सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
  • यह मेरा बंधु है और यह नहीं है, यह क्षुद्र चित्त वालों की बात होती है। उदार चित्त वालों के लिए तो सारा संसार ही अपना कुटुंब है। ~ महोपनिषद
  • समग्र विश्व एक ही परिवार है। सारे वर्णभेद असत्य हैं। प्रेम बंधन ही बहुमूल्य है। ~ गुरजाडा अप्पाराव
  • एक पंथ बनाते ही तुम विश्वबंधुता के विरुद्ध हो जाते हो। जो सच्ची विश्वबंधुता की भावना रखते हैं, वे अधिक बोलते नहीं, उनका कर्म बोलता है। ~ विवेकानंद

दुख के भीतर मुक्ति है

  • जरूरी नहीं कि जो रूप-रंग में ठीक हो, वह सद्गुण संपन्न भी हो। ~ शेख सादी
  • जिस उद्देश्य के लिए जो वस्तु उपयोगी है, उसके लिए वह अच्छी और सुंदर है। पर जिसके लिए वह अनुपयोगी है, उसके लिए वह बुरी और कुरूप। ~ सुकरात
  • सुन लो पलटू भेद यह, हंसी बोले भगवान। दुख के भीतर मुक्ति है, सुख में नरक निदान। ~ पलटू साहब
  • सत्य की बात तो सभी कहते हैं, पर उसका पालन कुछ ही लोग करते हैं। ~ जार्ज बर्कली
  • नि:स्पृह मुनि शत्रुओं की उपेक्षा कर शांति से सफलता प्राप्त करते हैं, किंतु राजा नहीं। ~ भारवि

दुख या सुख सदा नहीं रहते

  • दुख या सुख किसी पर सदा नहीं रहते। ये तो पहिए के घेरे के समान कभ नीचे, कभी ऊपर यों ही होते रहते हैं। ~ कालिदास
  • प्रत्येक व्यक्ति का सुख-दुख अपना-अपना है। ~ आचारांग
  • सुख तो स्वभाव से ही अल्पकालिक होते हैं और दुख छीर्घकालिक। ~ बाणभट्ट
  • सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य को चाहिए कि वह दुख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़े। ~ जातक

दैव का भरोसा, कौन करता है

  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
  • भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योगवासिष्ठ
  • पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है। ~ वेदव्यास
  • भाग्य, पुरुषार्थ और काल तीनों संयुक्त हाकर मनुष्य को फल देते हैं। ~ मत्स्यपुराण
  • जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा भी पुरुषार्थ सफल हो जाता है। ~ शुक्रनीति

दीर्घायु होना सब चाहते हैं

  • सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुख प्रतिकूल है। वध अप्रिय है, जीना प्रिय है। सब जीव दीर्घायु होना चाहते हैं। ~ भगवान महावीर
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। ~ अज्ञात

दानशीलता हृदय का गुण है

  • दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडीसन
  • दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं। ~ स्थानांग
  • दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है। ~ जातक
  • प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। ~ विमानवत्थु

दिन को प्रेम से प्रारंभ करो

  • सभी प्रकार की घृणा का अर्थ है आत्मा के द्वारा आत्मा का हनन। इसलिए प्रेम ही जीवन का यथार्थ नियामक है। प्रेम की अवस्था को प्राप्त करना ही सिद्धावस्था है। ~ विवेकानंद
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असंत को संत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद
  • दिन को प्रेम से प्रारंभ करो, दिन को प्रेम से भरो, दिन को प्रेम से बिताओ, दिन को प्रेम से समाप्त करो- यही परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है। ~ सत्य साईं
  • प्रेम की मृत्यु नहीं होती, प्रेम अमृत रहता है। ~ उमाशंकर जोशी

दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला

  • दरिद्र कौन है? भारी तृष्णा वाला। और धनवान कौन है? जिसे पूर्ण संतोष है। ~ शंकराचार्य
  • कठिनाइयों का मुकाबला करो, चाहे सारी दुनिया दुश्मन ही क्यों न बन जाए। ~ मैजिनी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • सुवासना और दुर्वासना- ये दोनों मोक्ष और बंधन के मूल कारण हैं। ~ माधवदेव
  • विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
  • विपत्ति में अपनी प्रकृति बदल लेना अच्छा है पर अपने आश्रय के प्रतिकूल चेष्टा करना सर्वथा गलत है। ~ अभिनंद

धन का उपयोग

  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडेल होल्म्स

धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है

  • धन वह है जो हाथ में हो, मित्र वह है जो विपत्ति में हमेशा साथ दे, रूप वह है जहां गुण है, विज्ञान वह है जहां धर्म हो। ~ हाल सातवाहन
  • आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। ~ महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। ~ प्रेमचंद
  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
  • धन जब बढ़ता है, मद भी साथ-साथ चढ़ता है। मद के प्रकोप से दुर्गुण और भी बढ़ते हैं। धन के निकल जाने पर मद उतर जाता है। उसके अभाव में दुर्गुण भी अदृश्य हो जाते हैं। ~ वेमना

धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो

  • धन अधिक होने पर नम्रता धारण करो, वह जरा कम पड़ने पर अपना सिर ऊंचा बनाए रखो। ~ तिरुवल्लुवर
  • मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। ~ वेदव्यास
  • हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। ~ महात्मा गांधी
  • स्वधर्म के प्रति प्रेम, परधर्म के प्रति आदर और अधर्म के प्रति उपेक्षा करनी चाहिए। ~ विनोबा

धन की तीन गति- दान, भोग और नाश

  • दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। ~ भर्तृहरि
  • मोहांध तथा अविवेकी के समीप लक्ष्मी अधिक समय नहीं टिकती। ~ कथासरित्सागर
  • अधन ही जीव का धन है, धन आधा धन है, धान्य महद् धन है तथा विद्या तप और कीर्ति अतिधन हैं। ~ भगदत्त जल्हण
  • संसार में धनियों के प्रति गैर मनुष्य भी स्वजन जैसा आचरण करते हैं। ~ विष्णु शर्मा

धन का अर्जन और रक्षण करो

  • संपत्ति तो जन्म, मृत्यु वृद्धावस्था, शोक और राग के बीज का उत्तम अंकुर है। इसके प्रभाव में अंधा हुआ मानव मुक्ति के मार्ग को नहीं देख सकता। ~ देवीभागवत
  • धन का अर्जन, वर्धन और रक्षण करना चाहिए। बिना कमाये खाया जाता हुआ धन सुमेरुवत होने पर भी नष्ट हो जाता है। ~ शाड़ंधर-पद्धति
  • तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखोगे। ~ महात्मा गांधी
  • धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें तो यह कोई महंगा सौदा नहीं। ~ प्रेमचंद

धन आता-जाता रहता है

  • जैसे रथ का पहिया इधर-उधर नीचे-ऊपर घूमता रहता है, वैसे ही धन भी विभिन्न व्यक्तियों के पास आता-जाता रहता है, वह कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। ~ ऋग्वेद
  • हे राजन्, क्षण भर का समय है ही क्या, यह समझने वाला मनुष्य मूर्ख होता है। और एक कौड़ी है ही क्या, यह सोचने वाला दरिद्र हो जाता है। ~ नारायण पंडित
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ करदंड कई बार उतनी समस्याओं से रक्षा नहीं करता, जितनी कि थकान उत्पन्न कर देता है। ~ कालिदास
  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुन: किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। ~ वेदव्यास

धन पाला हुआ शत्रु

  • जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते। ~ भगवान बुद्ध
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं, संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। ~ एक चीनी कहावत
  • 'कृपया' और 'धन्यवाद'- ये ऐसी रेजगारी हैं जिनके द्वारा हम सामाजिक प्राणी होने का मूल्य चुकाते हैं। ~ गार्डनर
  • अच्छी नसीहत मानना अपनी योग्यता बढ़ाना है। ~ सोलन
  • यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। ~ वेदव्यास

धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है

  • हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। ~ महात्मा गांधी
  • सारे ही धर्म एक समान बात करते हैं। मनुष्यता के ऊंचे गुणों को विकसित करना ही धर्म का उद्देश्य है। ~ हरिकृष्ण 'प्रेमी'
  • धर्म संपूर्ण जीवन की पद्धति है। धर्म जीवन का स्वभाव है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ कार्य तो धर्म की मौजूदगी में करें और बाकी कामों के समय उसे भूल जाएं। ~ दिनकर
  • जितने बंधे - बंधाए नियम और आचार हैं उनमें धर्म अंटता नहीं। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी

धर्म व्यवहार अधिक है

  • मनुष्य में जो स्वाभाविक बल है, उसकी अभिव्यक्ति धर्म है। ~ विवेकानंद
  • जब करुणा प्राणों में बस जाती है, तभी धर्म मनुष्य को सुलभ होता है। ~ दुर्गा भागवत
  • मनुष्य की सभी वृत्तियों का चरम प्रकाश धर्म में होता है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर
  • धर्म विश्वास की अपेक्षा व्यवहार अधिक है। ~ राधाकृष्णन
  • धर्म के विषय में जोर-जबर्दस्ती ठीक नहीं होती। ~ कुरान

धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं

  • वही बात बोलनी चाहिए जिससे न स्वयं को कष्ट हो और न दूसरों को ही। वस्तुत: सुभाषित वाणी ही श्रेष्ठ वाणी है। ~ थेरगाथा
  • धर्म करना चाहिए, अधर्म नहीं। प्रिय करना चाहिए, अप्रिय नही। सत्य करना चाहिए, असत्य नहीं। ~ संयुत्तनिकाय
  • जो मनुष्य देश और काल के ज्ञान से रहित, परिणाम में कटु, अप्रिय, अपने लिए लघुताकारक और अकारण वचन बोलता है, उसका वह वचन नहीं, विष है। ~ विष्णु शर्मा
  • न्यून वाणी मूर्खो की समझ में नहीं आती और अधिक बोलना विद्वानों को उद्विग्न करता है। ~ धनंजय

धर्म का अर्थ

  • धर्म का अर्थ कर्मकांड नहीं होता, वह हमारे हृदय की संचित ऊर्जा है जो सबके कल्याण के लिए उद्यम करती है। ~ विवेकानंद
  • विनय के बिना संपत्ति क्या? चंद्रमा के बिना रात क्या? ~ भामह
  • हमारी श्रद्धा अखंड बत्ती जैसी होनी चाहिए। वह हमको तो प्रकाश देती ही है, आसपास भी देती है। ~ महात्मा गांधी
  • स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। ~ वेदव्यास
  • अगर मूर्ख, लोभ और मोह के पंजे में फंस जाएं तो वे क्षम्य हैं, परंतु विद्या और सभ्यता के उपासकों की स्वार्थांधता अत्यंत लज्जाजनक है। ~ प्रेमचंद्र

धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं

  • धर्म से अर्थ उत्पन होता है। धर्म से सुख होता है। धर्म से मनुष्य सब कुछ प्राप्त करता है। धर्म जगत का सार है। ~ वाल्मीकि
  • जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं। ~ प्रेमचंद
  • धर्म की शक्ति ही अनेक जीवन की शक्ति है, धर्म की दृष्टि ही जीवन की दृष्टि है। ~ राधाकृष्णन

धोखा देने वाला धोखा खाता है

  • हम संसार को गलत पढ़ते हैं और कहते हैं कि वह हमें धोखा देता है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • धोखा देने वाला धोखा खाता है, दूसरों के रास्ते में गड्ढा खोदने वाले को कुआं तैयार मिलता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। ~ महात्मा गांधी
  • यदि तू अपने हृदय में फूल का विचार करेगा तो फूल हो जाएगा और यदि उसी के प्रेमी बुलबुल में ध्यान लगाएगा तो बुलबुल बन जाएगा। ~ जामी
  • विपत्ति में भी जिसकी बुद्धि कार्यरत रहती है, वही धीर है। ~ सोमदेव

धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है

  • प्रतिष्ठा बनने में कई वर्ष लग जाते हैं, कलंक एक पल में लग जाता है। ~ सुदर्शन
  • प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं लिए चलती है। ~ विल्मट
  • धैर्य प्रतिभा का आवश्यक अंग है। ~ डिजरायली
  • महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। ~ नेहरू
  • जिसे हम प्यार करते हैं उसी के अनुसार हमारा रूप और आकार निर्मित होता है। ~ गेटे

धीरज हो तो दरिद्रता भी शोभायमान

  • धीरज होने से दरिद्रता भी शोभा देती है, धुले हुए होने से जीर्ण वस्त्र भी अच्छे लगते हैं, घटिया भोजन भी गर्म होने से सुस्वादु लगता है और सुंदर स्वाभाव के कारण कुरूपता भी शोभा देती है। ~ चाणक्यनीति
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक करते हैं। ~ वेदव्यास
  • जो हानि हो चुकी है, उसके लिए शोक करना, अधिक हानि को निमंत्रित करना है। ~ शेक्सपियर
  • शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शैनकीयनीतिसार

धीर पुरुष अस्थिर नहीं होता

  • अच्छे लोग जिस बात को अपने ऊपर लेते हैं, उसका निर्वाह करते हैं। ~ बिल्हन
  • अपना अहित करनेवाले के साथ भी जो सद्व्यवहार करता है, उसे ही सज्जन 'साधु' कहते हैं। ~ विष्णु शर्मा
  • तीर्थों के सेवन का फल समय आने पर मिलता है, किंतु सज्जनों की संगति का फल तुरंत मिलता है। ~ चाणक्य
  • सज्जन नारियल के समान ऊपर से कठोर, किंतु भीतर से कोमल होते हैं। ~ नारायण पंडित
  • वास्तव में धीर पुरुष वे ही हैं, जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता। ~ कालिदास

निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है

  • निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। ~ अज्ञात
  • अगर तुम्हारे एक शब्द से भी किसी को पीड़ा पहुंचती है तो तुम अपनी सब नेकी नष्ट हुई समझो। ~ संत तिरुवल्लुवर
  • अपनी बात के धनी लोगों के निश्चय मन को और नीचे गिरते हुए पानी के वेग को भला कौन फेर सकता है। ~ कालिदास
  • नेक बनने में सारी आयु लग जाती है, बदनाम होने में तो एक दिन भी नहीं लगता। ऊपर चढ़ना कैसा कठिन है, इसमें कितना समय लगता है? मगर गिरना कितना आसान है, इसमें परिश्रम नहीं करना पड़ता। ~ सुदर्शन

निंदा सहना

  • जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। ~ वेदव्यास
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नई दिशाओं में अपनी राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • हमारा गौरव कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि प्रत्येक बार उठ खड़े होने में है। ~ कन्फ्यूशस
  • यदि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे गुणों की प्रशंसा करें तो दूसरे के गुणों को मान्यता दो। ~ चाणक्य
  • चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। ~ महात्मा गांधी

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ वेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित

न मित्र न शत्रु

  • न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। ~ वेदव्यास
  • महान लोगों की पराजित शत्रुओं से स्थायी शत्रुता नहीं होती। ~ भट्टाचार्य
  • गुप्त या प्रकट रूप से, बहुत या थोड़ा, स्वयं या दूसरे के द्वारा किया गया शत्रुओं का अपकार बहुत आनंद देता है। ~ भट्टनारायण
  • अहिंसा अच्छी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन शत्रुहीन होना उससे भी बड़ी बात है। ~ विमल मित्र
  • नम्रता कठोरता से, जल चट्टान से और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस

नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है

  • किसी मनुष्य का स्वभाव ही उसे विश्वसनीय बनाता है, न कि उसकी संपत्ति। ~ अरस्तू
  • अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। ~ वेदव्यास
  • अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। ~ धम्मपद
  • ज्यों - ज्यों लाभ होता है, त्यों - त्यों लोभ होता है। इस प्रकार लाभ से लोभ निरंतर बढ़ता जाता है। ~ उत्तराध्ययन
  • नम्रता कठोरता से अधिक शक्तिशाली है, जल चट्टान से अधिक शक्तिशाली है और प्रेम बल से अधिक शक्तिशाली है। ~ हरमन हेस

निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति

  • यदि कोई मनुष्य निश्चिंतताओं से प्रारंभ करेगा तो अंत संदेहों में होगा, लेकिन वह यदि वह संदेहों से प्रारंभ कर सके तो अंत में उसे निश्चिंततओं की प्राप्ति होगी। ~ बेकन
  • निश्चय के बल से ही फल की प्राप्ति होती है। ~ तुकाराम
  • निष्काम होकर नित्य अपना काम करनेवाले की गोद में ही उत्सुक होकर सफलता आती है। ~ भारवि
  • केवल वही व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य कर सकता है, जो पूर्णतया नि:स्वार्थी है। ~ विवेकानंद

नूर फ़कीर जानै नहीं

  • नूर फ़कीर जानै नहीं, जात बरन एक राम। तुव चरनन में आय के, मन मिल्यौ बिसराम।। ~ नूरूद्दीन
  • किसके कुल में दोष नहीं है, कौन व्याधि से पीड़ित नहीं है, कौन कष्ट में नहीं पड़ता और लक्ष्मी निरंतर किसके पास रहती है? ~ बृहस्पति नीति सार
  • अपने को विद्वान मानने वाले जिसे अयोग्य सिद्ध करते हैं, विधाता विजय की नियति से हठात उसी में शुभ रख देता है। ~ कल्हण
  • उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) पहले नवपल्लवयुक्त पलाशवन वाली विकसित, पराग से परिपूर्ण कमलों वाली तथा पुष्पसुगंधों मतवाली हुई वसंत ऋतु को देखा। ~ माघ
  • वर्तमान को असाधारण संकट से ग्रस्त बताना भी एक तरह का फैशन ही है। ~ डिजरायली

निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है

  • मेघ वर्षा करते समय यह नहीं देखता कि भूमि उपजाऊ है या ऊसर। वह दोनों को समान रूप से सींचता है। गंगा का पवित्र जल उत्तम और अधम का विचार किए बिना सबकी प्यास बुझाता है। ~ तुकाराम
  • जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करता है, वही मनुष्य कहलाता है और जो स्वार्थवश परहानि करता है, वह पशुओं से भी गया-बीता है। ~ दयानंद
  • बल तथा कोश से संपन्न महान व्यक्तियों का महत्व ही क्या यदि उन्होंने दूसरों के कष्ट का उसी क्षण विनाश नहीं किया। ~ सोमदेव
  • उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात

नीति का जानकार

  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु ज्यादातर लोग उसके प्रयोग से विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। ~ pवेदव्यास
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मनिर्भर बनाना है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है। ~ नारायण पंडित

निष्कपट प्रेम

  • निष्कपट प्रेम किसी भी कपट को नहीं सह सकता है। ~ चैतन्यचंदोदयम्
  • विद्वानों के मुख से सहसा बातें बाहर नहीं निकलतीं और यदि कहीं निकली तो हाथी के दांत की तरह कभी परावर्तित नहीं होतीं। ~ भामिनी-विलास
  • बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है। ~ व्यास
  • गुणियों को भी अपने रूप का ज्ञान दूसरों के द्वारा ही होता है। वे स्वयं अपने गुणों को नहीं जान सकते, नेत्र अपने गौरव का अनुभव तब तक नहीं कर सकते, जब तक कि उनके सामने दर्पण न रखा जाए। ~ कविता-कौमुदी

नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है

  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख। ~ धम्मपद
  • मनुष्य पराक्रम के द्वारा दुखों से पार पाता है और प्रज्ञा से परिशुद्ध होता है। ~ सुत्तनिपात
  • सभी प्रकार के बलों में नैतिक बल ही सर्वश्रेष्ठ है। ~ पिंगलि सूरना
  • घृणा और द्वेष जो बढ़ा है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। ~ प्रेमचंद
  • गलती से जिनको तुम 'पतित' कहते हो, वे वे हैं जो 'अभी उठे नहीं' हैं। ~ रामतीर्थ

प्रेम के मार्ग में चतुराई बुरी है

  • प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज है। ~ मौलाना रूम
  • प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएं हैं। ~ जॉर्ज हरबर्ट
  • हितकारी और मनोरम बात दुर्लभ होती है। ~ भारवि
  • कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, विद्या ही उसे पूजनीय बनाती है। ~ चाणक्य
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है। ~ कालिदास
  • किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं हैं, उसमें धैर्य की आवश्यकता भी पड़ती है। ~ गेटे
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। - जेम्स ऐंथनी फ्राउड
  • जिसमें उन्नति कर सकने की क्षमता है, उसी पर विपत्तियां भी आती हैं। ~ वल्लभदेव
  • जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ता है। ~ विवेकानंद
  • जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। केवल पुन: किया हुआ पुण्य ही बुद्धि को बढ़ाता है। ~ वेदव्यास

प्रेम में स्मृति का ही सुख है

  • प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। ~ महात्मा गांधी
  • जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। ~ प्रेमचंद
  • प्रेम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थ और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थ है, वहां प्रेम नहीं है। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • प्रेम में द्वेष की गुंजाइश ही नहीं, प्रेम में अहम-भाव नहीं, प्रेम सब कुछ सहन करता और मान लेता है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम एक बीज है जो एक बार जम कर बड़ी मुश्किल से उखड़ता है। ~ प्रेमचंद

प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं है

  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरु जी
  • जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहीं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे। ~ प्रेमचंद
  • प्रेम कभी अपने को नहीं पहचानता। दूसरे के लिए सदा उन्मत्त रहता है। स्वार्थपरता और प्रेम परस्पर विरोधी हैं। जहां स्वार्थपरता है वहां प्रेम नहीं है। ~ अश्विनीकुमार दत्त
  • प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। ~ जयशंकर प्रसाद

प्रेम से दास होना, मानो मुक्त होना

  • हम प्रेम से जिसके दास होते हैं, वह हमारा भी दास हो जाता है। प्रेम से दास होना मानो एक प्रकार से मुक्त होना है। ~ साने गुरुजी
  • जिसका मन जिससे लग गया, वह उसी में रूप-गुण सब कुछ देखता है। प्रेम स्वाधीन को पराधीन कर सकता है। स्नेह के अतिरिक्त यह सामर्थ्य किसमें है? ~ दयाराम
  • स्वयं डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को भी डरा देता है। ~ प्रश्नव्याकरणसूत्र

प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए

  • जितना दिखाते हो उससे अधिक तुम्हारे पास होना चाहिए, जितना जानते हो उससे कम तुम्हें बोलना चाहिए। ~ शेक्सपियर
  • बंधन बहुत तरह के हैं, पर प्रेम की डोर से बंध जाना तो कुछ और ही है। ~ अज्ञात
  • संसार में स्नेह के बंधनपाश लोहे से भी बढ़कर कठोर होते हैं। ~ बाणभट्ट
  • अतिशय प्रेम अनेक बार परिचित वस्तु को भी नया-नया कर देता है। ~ माघ
  • प्रेम की परीक्षा प्रेम से ही होनी चाहिए। ~ कालिदास

प्रेम का एक कण संसार पर भारी

  • नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्धत होता है। ~ नारायण पंडित
  • जो वासना से बंधा है, वही 'बद्ध' है और वासना का क्षय ही मोक्ष है। ~ मुक्तिकोपनिषद्
  • प्रेम का एक कण भी सारे संसार से बढ़कर मूल्य रखता है। ~ फरीदुद्दीन अत्तार
  • सबसे पहले आत्मविश्वास करना सीखो। आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की सीढ़ी है। ~ स्वामी विवेकानंद

प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है

  • सच्ची बड़ाई उसी की है जिसकी शत्रु भी सराहना करें। ~ रहीम
  • प्रेम चंद्रमा के समान है। अगर वह बढ़ेगा नहीं तो घटना शुरू हो जाएगा। ~ सीगर
  • जहां प्रेम और भक्ति नहीं, वहां परमात्मा नहीं। ~ गुरु रामदास
  • प्रेम आंखों से नहीं, मन से देखता है। ~ शेक्सपियर
  • प्रेम वही है जो अपनी शक्ति से अरूप में रूप भर दे। ~ अमृतलाल नागर

प्रेम की शक्ति

  • जगत में जो भी उन्नति वह प्रेम की शक्ति से ही हुई है। दोष बता बताकर कभी भी अच्छा काम नहीं किया जा सकता। ~ विवेकानंद
  • प्रेम बोला नहीं जा सकता, बताया नहीं जा सकता। प्रेम चित्त से चित्त का अनुभव है। ~ तुकाराम
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय। ~ बंकिमचंद्र

प्रेम के बिना पृथ्वी कब्र है

  • बिना प्रेम किए मर जाने से ज्यादा दुखद कुछ कोई और नहीं हो सकता। लेकिन इससे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह है कि जिसे आप प्रेम करते हों, उसे बिना यह बताए ही दुनिया से विदा हो जाएं, कि आप उससे प्रेम करते थे। ~ अज्ञात
  • प्रेम निकाल दो तो यह पृथ्वी कब्र है। ~ रॉबर्ट ब्राउनिंग
  • जितनी गहराई, ऊंचाई और विस्तार तक मेरी आत्मा जा सकती है, वहां तक मैं तुमसे प्रेम करती हूं। ~ एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग
  • जे दिन गए तुम्हइं बिनु देखे, से बिरंचि मम गिनइ न लेखे। (जो दिन तुम्हें देखे बिना गए, विधाता उन्हें मेरे भाग्य में न गिने।) ~ तुलसी
  • हाउ सैड ऐंड बैड ऐंड मैड इट वाज़ बट स्टिल हाउ इट वाज़ स्वीट (कितना बुरा, उदास और पागल नुमाफिर भी कितना मीठा वह एहसास) ~ कोलरिज

प्रेम से शांत होता है वैर

  • संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होते। प्रेम से ही वैर शांत होता है। ~ धम्मपद
  • तृण वृत्ति वाले मृग, जल वृत्ति वाले मीन और संतोष वृत्ति वाले सज्जनों के भी इस संसार में शिकारी, मछुवा और चुगलखोर बिना कारण के ही वैरी रहते हैं। ~ भर्तृहरि
  • व्यंग्य वचन दूसरों का हृदय छेदने में तीर का काम करते हैं। ~ अज्ञात

प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है

  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
  • सुरूप हो या कुरूप, जिसकी जिसमें मनोगति है, वही उसके लिए उर्वशी है। ~ अतिरात्रयाजी
  • परस्पर न मिलते हुए, दूरस्थित प्राणियों में भी स्नेह देखा जाता है, जैसे सूर्य गगन तल में रहता है, परंतु नीचे पृथ्वी पर कमलिनी विकसित होती है। ~ नयनंदी
  • प्रेम कभी दावा नहीं करता। वह तो हमेशा देता है। ~ महात्मा गांधी

प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तो

  • जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो, तब तुम अपने आप से, एक दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। ~ खलील जिब्रान
  • सीखे गए को भूल जाने पर भी जो कुछ बच रहता है, वही शिक्षा है। ~ स्किनर
  • सब कुछ अपने संकल्प द्वारा ही छोटा या बड़ा बन जाता है। ~ योग वसिष्ठ
  • दूध का आश्रय लेने वाला पानी दूध हो जाता है। ~ विष्णु शर्मा
  • वह वैभव, जिसका कभी पतन संभव न हो, साधुओं और फकीरों का ही है। ~ हाफिज
  • समृद्धि शक्ति भर दुर्गुणों को खोज निकालती है। परंतु विपत्ति शक्ति भर गुणों को खोज निकालती है। ~ बेकन

प्रेमी हृदय उदार होता है

  • प्रेमी हृदय उदार होता है, वह दया और क्षमा का सागर है, ईर्ष्या और दंभ के नाले उसमें मिल कर उसे विशाल बना देते हैं। ~ प्रेमचंद
  • जो कर्म छोड़ता है, वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है, वह चढ़ता है। ~ गांधी
  • जो फल को जाने बिना ही कर्म की ओर दौड़ता है, वह फल प्राप्ति के अवसर पर केवल शोक का भागी होता है- जैसे कि पलाश को सींचनेवाला पुरुष उसका फल न पाने पर खिन्न होता है। ~ वाल्मीकि

प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है

  • प्रिय बोलना सज्जनों की कुल विद्या है। ~ बाणभट्ट
  • अतिशय संपन्नता को पाकर भी गर्वरहित लोग किसी को तनिक नहीं भूलते। ~ माघ
  • यह स्त्री है, यह पुरुष है- यह निरर्थक बात है। वास्तव में तो सत्पुरुषों का चरित्र ही पूजा योग्य होता है। ~ कालिदास
  • सज्जन लोग रत्न पाकर उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने प्रसन्न उस रत्न को किसी निर्लोभ पात्र को देकर होते हैं। ~ भास
  • जो धर्माचरण करता है, जीव मात्र के प्रति तितिक्षा रखता है, जो अन्यों से तप्त किए जाने पर भी तप्त नहीं होता, वही मनुष्य श्रेय का पात्र है। ~ मत्स्यपुराण

प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं

  • भोग ही प्रेम का प्रधान लक्षण नहीं है। उसका एक प्रधान लक्षण है कि वह आनंद से दुख को स्वीकार कर लेता है क्योंकि दुख और त्याग से ही प्रेम की सार्थकता है। ~ विमल मित्र
  • प्रिय व्यक्ति की मृत्यु होती है, प्रेम की नहीं। वह अ-मृत है। ~ उमाशंकर जोशी
  • प्रेम किसी को अपने सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने-आपके सिवा कुछ लेता है। ~ खलील जिब्रान
  • प्रेम कर्कश को मधुर बना देता है, असत को सत बनाता है, पापी को पुण्यवान बनाता है और अंधकार को प्रकाशमय बनाता है। ~ बंकिमचंद्र
  • प्रेम मन की सबसे अच्छी दुर्बलता है। ~ ड्राइडेन

प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है

  • चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। ~ कालिदास
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन

पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है

  • दूसरों पर दोषारोपण नहीं करोगे तो तुम पर भी दोषारोपण नहीं किया जाएगा। दूसरों पर क्रोध नहीं करोगे तो तुम पर भी क्रोध नहीं किया जाएगा। और दूसरों को क्षमा करोगे तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा। ~ नवविधान
  • यदि किसी को दूध नहीं दे सकते, तो मत दो। मगर छाछ देने में क्या हर्ज़ है? यदि किसी भूखे को अन्न देने में समर्थ नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर प्यासे को पानी तो पिला सकते हो। ~ तुकाराम
  • पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और अंत में उसको स्वीकार कर लिया जाता है। ~ स्वामी विवेकानंद
  • असंयमी विद्वान अंधा मशालदार है। ~ शेख सादी
  • यदि तुम स्वतंत्र नहीं हो सकते, तो जितने हो सकते हो, उतने ही हो जाओ। ~ एमर्सन

पहले जैसी स्थिति

  • हर मन एक माणिक्य है, उसे दुखाना किसी भी तरह अच्छा नहीं। ~ शेख फरीद
  • पढ़ना सुलभ है, पर उसका पालन करना दुर्लभ है। ~ लल्लेश्वरी
  • कांच का कटोरा, नेत्रों का जल, मोती और मन: ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकते। ~ लोकोक्ति
  • राम नाम के बल पर अधर्म मत करो। राम नाम स्मरण के साथ-साथ शुद्ध कर्म भी करना आवश्यक है। ~ एकनाथ

प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है

  • असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा
  • जब प्रकृति को कोई महान कार्य संपन्न कराना होता है तो वह उसको करने के लिए एक प्रतिभा का निर्माण करती है। ~ एमर्सन
  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ
  • प्रतिभा धैर्य की महान क्षमता मात्र है। ~ बफां
  • प्रतिभा स्वतंत्रता के वातावरण में ही मुक्त सांस ले सकती है। ~ जॉन स्टुअर्ट मिल्स

प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता

  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं है। जो परिश्रमी है, वही प्राप्त करता है। ~ शाह अब्दुल लतीफ
  • उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं। ~ अज्ञात
  • असाधारण प्रतिभा को चमत्कारिक वरदान की आवश्यकता नहीं होती और साधारण को अपनी त्रुटियों की इतनी पहचान नहीं होती कि वह किसी पूर्णता के वरदान के लिए साधना करे। ~ महादेवी वर्मा
  • प्रतिभा, जिसका अर्थ है सबसे पहले कष्ट उठाने की अलौकिक क्षमता। ~ कार्लाइल

प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती

  • उत्कृष्ट मनुष्यों को उनका असाधारण चरित्र प्रतिष्ठा देता है, उनका कुल नहीं। ~ वल्लभदेव
  • प्रतिभा जाति पर निर्भर नहीं करती। जो परिश्रमी है, वही सब कुछ प्राप्त करता है। ~ महादेवी वर्मा
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात
  • जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं। ~ मिल्टन

प्रीति नहीं प्रयोजन ने किया बेड़ा गर्क

  • आप दूसरों को तभी ऊपर उठा सकते हैं, जब आप स्वयं भी ऊपर उठ चुके हों। ~ शिवानंद
  • दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है। केवल उतना ही याद रखती है जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी फेंक कर आगे बढ़ जाती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • प्रीति की अपेक्षा प्रयोजन ने ही आज मनुष्य को सबसे अधिक ग्रस लिया है। ~ विमल मित्र
  • मानव स्वभाव है, वह अपने सुख को विस्तृत करना चाहता है। और भी, केवल अपने सुख से ही सुखी नहीं होता, कभी-कभी दूसरों को दुखी करके, अपमानित करके, अपने मान को, सुख को प्रतिष्ठित करता है। ~ जयशंकर प्रसाद

'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय'

  • इंद्रिय-जय से विनय प्राप्त होती है, विनय से प्रकृष्ट गुण प्राप्त होते हैं, प्रकृष्ट गुणों से लोकप्रियता प्राप्त होती है और लोकप्रियता से मनुष्य संपत्ति प्राप्त करता है। ~ अलंकारसर्वस्व
  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। ~ भागवत
  • 'प्राय:' का अर्थ 'तप' है और चित्त का अर्थ 'निश्चय' है। तप और निश्चय के संयोग से 'प्रायश्चित' होता है। ~ आंगिरसस्मृति
  • आरंभ न करना अच्छा है, पर आरंभ करके छोड़ना ठीक नहीं। ~ बोधिचर्यावतार

परोपकार का आचरण मत त्यागो

  • मनुष्य सुख और दुख सहने के लिए बनाया गया है, किसी एक से मुंह मोड़ लेना कायरता है। ~ भगवतीचरण वर्मा
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चन्द्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है। ~ सुप्रभाचार्य
  • अधिक धनसंपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है, वह सदा निर्धन है। धन से रहित रहने पर भी जो संतुष्ट है, वह सदा धनी है। ~ अश्वघोष
  • संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी
  • शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। ~ अज्ञात

परोपकार से पुण्य होता है

  • जिनका मन कपटरहित है, वे ही प्राणिमात्र पर दया करते हैं। ~ क्षेमेंद्र
  • दयालु लोगों का शरीर परोपकार से सुशोभित होता है, चंदन से नहीं। ~ भर्तृहरि
  • परोपकार से पुण्य होता है और परपीड़न से पाप। ~ पंचतंत्र
  • वृक्ष अपने सिर पर सूर्य की प्रचंड धूप सहता है, किंतु अपने आश्रितों की गर्मी अपनी छाया से दूर करता है। ~ कालिदास
  • त्याग ही एकमात्र प्रशंसायोग्य गुण है। अन्य गुणों के समुदाय से क्या प्रयोजन। ~ आचार्य नारायण राम

परोपकार का आचरण मत त्यागो

  • मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
  • विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेमचंद
  • किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
  • तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव

परोपकार ही धर्म है

  • परोपकार ही धर्म है, परपीड़न ही पाप। ~ विवेकानंद
  • छिपाने के द्वारा पाप का पोषण किया जाता है और उसे जीवित रखा जाता है। ~ वर्जिल
  • भय और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते। ~ रामतीर्थ
  • दूसरों के पाप गिनाने से पहले अपने पाप गिनो। ~ काजी नजरुल इस्लाम

परंपरा और विद्रोह

  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, परायी बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उड़िया लोकोक्ति
  • जो भलाई करना चाहता है, वह द्वार खटखटाता है। और जो प्रेम करता है, उसे द्वार खुला मिलता है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
  • परंपरा और विद्रोह, जीवन में दोनों का स्थान है। परंपरा घेरा डालकर पानी को गहरा बनाती है। विद्रोह घेरों को तोड़कर पानी को चौड़ाई में ले जाता है। ~ रामधारी सिंह दिनकर
  • किसी कार्य के लिए कला और विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी जरूरत पड़ती है। ~ गेटे

परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है

  • परंपरा रोकती है, विद्रोह आगे बढ़ना चाहता है। इस संघर्ष के बाद जो प्रगति होती है, वही असली प्रगति है। ~ दिनकर
  • परंपरा अतीत की स्मृति नहीं है, बल्कि जीवंत आत्मा का सतत आवास है। ~ राधाकृष्णन
  • परंपरा बंधन नहीं है, वह मनुष्य की मुक्ति (अपने लिए ही नहीं, सबके लिए मुक्ति) की निरंतर तलाश है। ~ विद्यानिवास मिश्र
  • आरोग्य परम लाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम बंधु है, निर्वाण परम सुख है। ~ धम्मपद

पत्नी और पति

  • पति होने की तुलना में प्रेमी होना कहीं आसान है। इसकी सीधी सी वजह यह है कि हर दिन अक्लमंदी की बात कहना समय-समय पर कुछ प्यारी-प्यारी बातें कहते रहने की तुलना में कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। ~ बाल्जाक
  • हर किसी को देखकर मुस्कराओ। अपनी पत्नी को देखकर, बच्चे को देखकर, एक-दूसरे को देखकर मुस्कराओ, चाहे सामने कोई भी क्यों न हो। इससे आप सभी में एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ेगा। ~ मदर टेरेसा
  • अपनी सर्वोच्च स्थिति में यदि हमें अपनी पत्नी या पति को खोना पड़ता है तो इसमें एक अप्रसन्न विवाह के सिवाय खोने को और कुछ भी नहीं होता। उसे खोकर हम स्वयं को प्राप्त करते हैं। लेकिन कोई विवाह यदि दो ऐसे लोगों के बीच होता है, जो खुद को खोज चुके हैं तो यहां से एक प्यारे से एडवेंचर की शुरुआत होती है, जिसमें हरीकेन वगैरह भी शामिल होते हैं। ~ रिचर्ड बाख
  • जब एक स्त्री दूसरा विवाह करती है तो ऐसा वह अपने पहले पति से नफरत की वजह से करती है। जब एक पुरुष दूसरा विवाह करता है तो ऐसा वह अपनी पहली पत्नी को दिलोजान से चाहने की वजह से करता है। स्त्रियां अपनी किस्मत आजमाती हैं, पुरुष अपनी किस्मत दांव पर लगाते हैं। ~ ऑस्कर वाइल्ड
  • पति वह है जो प्रेमी के सारे स्नायु निचुड़ जाने के बाद बचा रह जाता है। ~ हेलन रौलां

परिवर्तन ही सृष्टि है

  • परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है। ~ महात्मा गांधी
  • परोपकार के लिए कुछ जाल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है। ~ प्रेमचंद

पूजा हमेशा गुण की होती है

  • गुण की पूजा सर्वत्र होती है, बड़ी संपत्ति की नहीं। ठीक वैसे ही जैसे पूर्ण चंद्रमा उतना वंदनीय नहीं है जितना निर्दोष द्वितीया का क्षीण चंद्रमा। ~ चाणक्य
  • जो अपनी ही आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष में समभाव रखता है, वही पूज्य है। ~ भगवान महावीर
  • सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात

प्राप्त धन का उपयोग करने में दो भूलें

  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • मनुष्य क्षमा कर सकता है, देवता नहीं कर सकता। मनुष्य हृदय से लाचार है, देवता नियम का कठोर प्रवर्त्तयिता। मनुष्य नियम से विचलित हो सकता है, पर देवता की कुटिल भृकुटि नियम की निरंतर रखवाली के लिए तनी ही रहती है। मनुष्य इसलिए बड़ा है, क्योंकि वह गलती कर सकता है। और देवता इसलिए बड़ा होता है क्योंकि वह नियम का नियंता है। ~ हजारी प्रसाद द्विवेदी
  • मेरी सम्मति में इंसान तीन प्रकार के होते हैं। एक वे जो जीवन को कोसते हैं। दूसरे वे जो उसे आशीर्वाद देते हैं। और तीसरे वे जो इस पर सोच विचार करते हैं। मैं पहले प्रकार के इंसानों से उनकी दुखी अवस्था, दूसरे प्रकार के इंसानों से उनकी शुभ भावना और तीसरे प्रकार के इंसानों से उनकी बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम करता हूं। ~ खलील जिब्रान
  • जंगली पशु क्रीड़ा के लिए कभी किसी की हत्या नहीं करते। मानव ही वह प्राणी है जिसके लिए अपने साथी प्राणियों की यंत्रणा तथा मृत्यु मनोरंजक होती है। ~ जेम्स एंथनी फ्राउड

पतित होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है

  • बच्चों का हृदय कोमल थाला है, चाहे इसमें कटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे। ~ जयशंकर प्रसाद
  • सद्बुद्धि वाले पुरुष को अल्प सुख एवं अधिक क्लेश वाला कार्य नहीं करना चाहिए। ~ अचिन्त्यानन्द वर्णी
  • मरुस्थल की मरीचिका जैसी लक्ष्मी बुद्धिमान को मोहित नहीं कर पाती। ~ सोमदेव
  • बुद्धिमान वे हैं, जिनकी दृष्टि में कांच कांच है और मणि मणि। ~ भल्लट भट्ट
  • पतित अथवा पथभ्रष्ट होकर भी बुद्धिमान पुरुष पुन: उठ जाता है। ~ क्षेमेंद्र

प्रसन्न देवता सद्बुद्धि देते हैं

  • जो कायर है, जिसमें पराक्रम का नाम नहीं है, वही दैव का भरोसा करता है। ~ वाल्मीकि
  • कुल के कारण कोई बड़ा नहीं होता, कर्म ही उसे हेय या पूजनीय बनाता है। ~ चाणक्य
  • राज्य का अस्तित्व अच्छे जीवन के लिए होता है, केवल जीवन के लिए नहीं। ~ अरस्तू
  • देवता प्रसन्न होने पर कुछ नहीं देते, केवल सद्बुद्धि ही प्रदान करते हैं। ~ श्री हर्ष
  • राज्य छाते के समान होता है, जिसका अपने हाथ में पकड़ा हुआ दंड थकान को उतना दूर नहीं करता, जितना कि थकान उत्पन्न करता है। ~ कालिदास

पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए

  • ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते। न वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों के हाथों ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आंखों से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान बिखेरता है। ~ खलील जिब्रान
  • दानशीलता हृदय का गुण है, हाथों का नहीं। ~ एडिसन
  • यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए। ~ लाओ-त्से
  • दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। ~ तुकाराम
  • तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवीन्द्रनाथ ठाकुर

पाना है, तो देना सीखो

  • जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है। ~ महात्मा गांधी
  • सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • यदि तुम पाना चाहते हो तो पहले तुम्हें देना चाहिए। ~ लाओ - त्से

प्रतीक्षा भी सेवा

  • जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं। ~ मिल्टन
  • काया के पिंजरे चाहे जितने रंगों के हों, पर मन का पंछी तो सबमें एक ही जैसा है। ~ अमृतलाल नागर
  • यदि मन में प्रपंच हो तो मन में भगवान का वास नहीं हो सकता, और यदि मन में भगवान हों तो प्रपंच हो नहीं सकता। ~ दयाराम
  • जब तक अन्त:करण दिव्य और उज्ज्वल न हो, वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता। ~ प्रेमचंद

पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं

  • यह संपत्ति क्या है? केवल कुछ चीजें, जिन्हें तुम इस भय से कि इनकी कल तुम्हें जरूरत पड़ सकती है, संचित करते हो और जिनकी रखवाली करते हो। ~ खलील जिब्रान
  • मेरे विचार से जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है, वह चिंतन और कर्म द्वारा कदापि महान नहीं बन सकता। ~ सुभाषचंद बोस
  • छोटी वस्तुओं का समूह कार्यसाधक होता है। तिनकों से बनी रस्सी से मतवाले हाथी बांध लिए जाते हैं। ~ नारायण पंडित
  • कितना भी पांडित्य हो, थोड़ी सी रसज्ञता की कमी से वह निरर्थक हो जाता है। ~ मारन वेंकटय्या
  • पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल, अन्न और सुभाषित। मूर्ख लोग ही पाषाण खंडों को रत्नों का नाम देते हैं। ~ चाणक्यनीति
  • जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है। ~ महात्मा गांधी

पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है

  • समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मजबूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। ~ भास
  • मेरे विचार में तो पीड़क होने से पीड़ित होना कहीं श्रेष्ठ है। धन खोकर अगर हम अपनी आत्मा को पा सकें, तो यह कोई महंगा सौदा नहीं है। ~ प्रेमचंद
  • दूसरों की प्राण रक्षा से बढ़कर संसार में कोई पुण्य नहीं है। ~ बाणभट्ट
  • पुण्य रूपी वृक्ष में तत्काल ही अचिंतनीय फल उत्पन्न होते हैं। ~ सोमदेव
  • पीड़ा का सीमातीत हो जाना ही उसकी चिकित्सा है। जैसे बिंदु का समुद्र में विलीन होना ही उसका सुख व विश्राम पा जाना है। ~ गालिब

पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें

  • तुम में सर्वप्रिय बनने की इच्छा होनी चाहिए। ऐसा करो, जिससे सामान्य लोग तुम्हें पसंद करें। यदि तुम यह सोचते हो कि पीठ पीछे किसी मोमिन, यहूदी या ईसाई की बुराई करने से लोग तुम्हें भला मान लेंगे, तो तुम लोगों का मिजाज नहीं समझते। ~ उमर खैयाम
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करें। यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। ~ मनुस्मृति
  • युवक नियमों को जानता है, परंतु वृद्ध मनुष्य अपवादों को जानता है। ~ ओलिवर वेंडल होम्स
  • संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परन्तु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं। ~ कल्हण
  • कामना सरलता से लोभ बन जाती है और लोभ वासना बन जाता है। ~ सत्य साईं बाबा

पीड़ितों की सेवा

  • जिसे मेरी सेवा करनी है वह पीड़ितों की सेवा करे। ~ गौतम बुद्ध
  • सेवा हृदय और आत्मा को पवित्र करती है। सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है। ~ स्वामी शिवानंद
  • सेवा उसकी करो जिसे सेवा की जरूरत है। जिसे सेवा की जरूरत नहीं उसकी सेवा करना ढोंग है, दंभ है। ~ महात्मा गांधी
  • निष्ठावंत और निष्काम सेवा ज्यादा दिन एकाकी नहीं रहने पाती। ~ विनोबा

परिचय के पीछे स्वार्थ न हो

  • प्रियतम की स्मृति भक्तों का परम धन है जो ज्ञान उन्हें इस धन से वंचित करता हुआ रस शून्य बनाने की प्रेरणा देता है उनकी दृष्टि में वह सर्वथा घातक है। ~ राम किंकर उपाध्याय
  • पराजय से सत्याग्रही और अहिंसक की आत्मा को निराशा नहीं होती। उससे तो कार्य-क्षमता और लगन बढ़ती है और सत्य से मनुष्य की बुद्धि परिष्कृत होकर उसका मार्ग-दर्शन करती है। ~ महात्मा गांधी
  • किसी को अपना परिचय देना बुरा नहीं है, बुरा तभी है जब वह किसी स्वार्थ या अहंकार से दिया जाता है। ~ अज्ञात

पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है

  • मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंसता है, तब वह उसी में और भी लिपटता जाता है, उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की श्रृंखला बन जाती है। उसी के नए-नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • जिस कार्य में आत्मा का पतन हो, वही पाप है। ~ महात्मा गांधी
  • पापों की स्मृति पापों से भयानक होती है। ~ सुदर्शन

पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं

  • पुरुषार्थी ही श्रेष्ठ आनंद पाते हैं। ~ अथर्ववेद
  • जहां पवित्र बुद्धि होती है, वहां सारी कामनाएं सिद्ध होती हैं। ~ ऋग्वेद
  • तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। ~ मनुस्मृति

प्रार्थना

  • प्रार्थना तभी प्रार्थना है जब वह अपने आप हृदय से निकलती है। ~ महात्मा गांधी
  • दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं। ~ विनोबा
  • क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • गलती कोई भी मनुष्य कर सकता है परंतु मूर्ख के सिवा कोई उसे जारी नहीं रख सकता। ~ सिसरो
  • जिन्हें कहीं से प्रशंसा नहीं मिलती, वे आत्म प्रशंसा करते हैं। ~ अज्ञात

प्रार्थना धर्म का निचोड़ है

  • प्रार्थना धर्म का निचोड़ है। प्रार्थना याचना नहीं है, यह तो आत्मा की पुकार है। प्रार्थना दैनिक दुर्बलताओं की स्वीकृति है, यह हृदय के भीतर चलने वाले अनुसंधानों का नाम है। ~ महात्मा गांधी
  • मैं भगवान से अष्टसिद्धि या मोक्ष की कामना नहीं करता। मेरी यही एक प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अंत:करण में स्थित होकर मैं ही उनके समस्त दुखों को सहूं। ~ श्रीमद्भागवत
  • बारिश का परिणाम शरीर पर और उसके द्वारा मन पर होता है तो प्रार्थना का परिणाम हृदय के द्वारा आत्मा पर होता है। ~ विनोबा

प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है

  • सब जगह पुरुष ही पंडित (बुद्धिमान)नहीं होता। जिस-तिस विषय में विलक्षण स्त्रियां भी पंडित होती हैं। ~ जातक
  • निरंतर परिश्रम करने वाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। ~ तिरुवल्लुवर
  • वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं, नदियां परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर परोपकार के लिए ही है। ~ अज्ञात
  • जो दिन हमें प्रसन्नता प्रदान करते हैं, वे दिन हमें बुद्धिमान बनाते हैं। ~ जॉन मेसफील्ड
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं, हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • हमारे भीतर जो प्राण शक्ति है, उसी का नाम अमृत है। ~ वासुदेवशरण अग्रवाल
  • जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुसार लक्ष्मी आती है, त्याग के अनुसार कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुसार विद्या प्राप्त होती है और कर्म के अनुसार बुद्धि बनती है। ~ अज्ञात
  • वही अच्छी प्रार्थना है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कॉलरिज

प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है

  • मन को विषाद ग्रस्त नहीं बनाना चाहिए। विषाद में बहुत बड़ा दोष है। जैसे क्रोध में भरा हुआ सांप बालक को काट खाता है, उसी प्रकार विषाद व्यक्ति का नाश कर डालता है। ~ वाल्मीकि
  • वृक्ष अपने सिर पर गर्मी सह लेता है लेकिन अपनी छाया से औरों को गर्मी से बचाता है। ~ कालिदास
  • विपत्ति आती है और चली जाती है, वीर वही है जो धीर रहे और न्याय, सचाई का त्याग न करे। ~ सुदर्शन
  • प्राणों का मोह त्याग करना, वीरता का रहस्य है। ~ जयशंकर प्रसाद

पड़ोसी भाई से कहीं उत्तम है

  • प्रेम करने वाला पड़ोसी दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है। ~ चाणक्य
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास
  • वैरी भी अद्भुत कार्य करने पर प्रशंसा के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • जीवन एक कहानी के सदृश है- वह कितनी लंबी है नहीं, वरन कितनी अच्छी है, यह विचारणीय विषय है। ~ सेनेका

परिश्रम के स्वार्जित भोजन से सबसे मधुर

  • चाहे सूखी रोटी ही क्यों न हो, परिश्रम के स्वार्जित भोजन से मधुर और कुछ नहीं होता। ~ तिरुवल्लुवर
  • करुणा करने वालों का शरीर परोपकारों से शोभा पाता है, चंदन से नहीं। ~ भतृहरि
  • वृक्ष फल लगने पर झुक जाते हैं। मेघ नए जलों से भरने पर नीचे दूर तक लटक जाते हैं। सत्पुरुष समृद्धियां पाने पर विनम्र हो जाते हैं। परोपकारियों का यही स्वभाव है। ~ कालिदास
  • परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है। ~ भारवि

फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा

  • इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाप प्रारब्ध से होते हैं। पाप होते हैं मनुष्य की आसक्ति से। और उनका फल तो मनुष्य को भोगना ही पड़ेगा। ~ हनुमान प्रसाद पोद्दार
  • शरीर से तभी पाप होते हैं जब वे मन में होते हैं। छोटे बच्चे के मन में काम नहीं होता। वह युवतियों के वक्ष पर खेलता है, उसके शरीर में कोई विकार नहीं होता। ~ अज्ञात
  • संसार में प्राणी स्वतंत्र और स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने के लिए आए हैं। उनको स्वार्थ के लिए कष्ट पहुंचाना महान पाप है। ~ लोकमान्य तिलक
  • मनुष्य जब एक बार पाप के नागपाश में फंस जाता है, तब वह उसी में और लिपटता जाता है। उसी के प्रगाढ़ आलिंगन में सुखी होने लगता है। पापों की एक श्रृंखला बन जाती है। फिर उसी के नए - नए रूपों पर आसक्त होना पड़ता है। ~ जयशंकर प्रसाद

बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं है

  • बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान और चतुराई में भी है। - महात्मा गांधी
  • बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट में नहीं है, जिसकी आत्मा पवित्र है वही बड़ा है। - प्रेमचंद
  • किसी आदमी की बुराई-भलाई उस समय तक मालूम नहीं होती जब तक कि वह बातचीत न करे। - बालकृष्ण भट्ट
  • जो मनुष्य तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं। - शेख सादी

बुराई के बीज

  • बुराई के बीज चाहे गुप्त से गुप्त स्थान में बोओ, वह स्थान किले की तरह चाहे सुरक्षित ही क्यों न हो, पर प्रकृति के अत्यंत कठोर, निर्दय, अमोघ, अपरिहार्य कानून के अनुसार तुम्हें ब्याज सहित कर्मों का मूल्य चुकाना होगा। ~ स्वामी रामतीर्थ
  • सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता का सा धैर्य और कोमलता होती है। ~ रामचन्द्र शुक्ल
  • मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव समाज पर एक लांछन है। ~ विवेकानंद
  • जिस आदमी का मान उसके अपने ख्याल से मर चुका है, वह जितनी हानि अपने को पहुंचा सकता है उतनी दूसरा कोई और नहीं पहुंचा सकता। ~ महात्मा गांधी

बिना त्याग के धन की शोभा नहीं

  • बिना त्याग के धन की शोभा नहीं होती। ~ अग्नि पुराण
  • रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना। ~ महात्मा गांधी
  • दुखती आंखों वाले को सामने रखी दीपशिखा अच्छी नहीं लगती है। ~ कालिदास
  • लोभी न परमार्थ को समझता है और न धर्म को। ~ इतिवुत्तक
  • राग मिलाने वाला वासना है और द्वेष अलग करने वाली। ~ रामचंद्र शुक्ल
  • मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है, परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष

बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है

  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना। ~ वेदव्यास
  • 99 फीसदी अवस्थाओं में कोई भी मनुष्य खुद को दोषी नहीं ठहराता, चाहे उसकी कितनी ही भयंकर भूल क्यों न हो। ~ डिजरायली
  • बुरा आदमी तब और भी बुरा है जब वह साधु बनने का स्वांग रचता है। ~ बेकन
  • शरीर जल से पवित्र होता है, मन सत्य से, आत्मा धर्म से और बुद्धि ज्ञान से पवित्र होती है। ~ मनुस्मृति
  • परोपकार के लिए कुछ छल भी करना पड़े तो वह आत्मा की हत्या नहीं है। ~ प्रेमचंद

बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक

  • मनुष्य को कभी अपना अनादर नहीं करना चाहिए। जो स्वयं अपना अनादर करता है, उसे उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त नहीं होता। ~ वेदव्यास
  • जिस प्रकार दीवाल पर फेंकी गेंद अपने ऊपर आ गिरती है उसी प्रकार दूसरे के लिए चाही हुई हानि अपने ऊपर आ पड़ती है। ~ सोमदेव
  • भीतर से कुटिल और बाहर से क्षमा-युक्त व्यक्ति निश्चय ही सर्व अनर्थकारी होता है। ~ नारायण पंडित
  • जल और अग्नि के समान धर्म और क्रोध का एक स्थान पर रहना स्वभाव-विरुद्ध है। ~ बाणभट्ट
  • प्रेम संयम और तप से उत्पन्न होता है। भक्ति साधना से प्राप्त होती है, श्रद्धा के लिए अभ्यास और निष्ठा की जरूरत होती है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • मूर्ख की सफलताओं की अपेक्षा बुद्धिमानों की गलतियां अधिक मार्गदर्शक होती हैं। ~ विलियम ब्लेक
  • जैसे मनुष्यों की प्रार्थनाएं उनकी इच्छा का रोग हैं, वैसे ही उनके मतवाद उनकी बुद्धि के रोग हैं। ~ एमर्सन

बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत करें

  • दो बैर करने वालों के बीच में बात ऐसे कहें कि यदि वे मित्र बन जाएं तो आपको लज्जित न होना पड़े। ~ शेख सादी
  • कर्णि, नालीक और नाराच नामक बाणों को शरीर से निकाल सकते हैं, पर कटु वचन रूपी बाण नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि वह हृदय के भीतर धंस जाता है। ~ वेदव्यास
  • हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले, दोनों दुर्लभ हैं। ~ वाल्मीकि
  • जैसे सत्तू को सूप से परिष्कृत करते हैं, वैसे ही मेधावी जन अपनी बुद्धि से अपनी वाणी को परिष्कृत कर प्रस्तुत करते हैं। ~ ऋग्वेद

बलवान का बल उसकी विनयशीलता

  • बलवान का बल उसकी विनयशीलता में है। शत्रुओं को परिवतिर्त करने के लिए बुद्धिमान का शस्त्र यही है। ~ तिरुवल्लुवर
  • विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं। ~ शूद्रक
  • दयालुता से दयालुता का और विश्वास से विश्वास का जन्म होता है। ~ सैमुअल स्माइल्स
  • पृथ्वी पर ये तीनों व्यर्थ हैं- प्रतिभाशून्य की विद्या, कृपण का धन और डरपोक का बाहुबल। ~ बल्लाल
  • समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है। ~ चाणक्यनीति

बेवकूफी से अश्रद्धा अच्छी

  • अश्रद्धा की अपेक्षा श्रद्धा अच्छी है। लेकिन बेवकूफी की अपेक्षा तो अश्रद्धा ही अच्छी है। ~ काका कालेकर
  • चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हैं। ~ समर्थ रामदास
  • मनुष्य की श्रद्धा जितनी तीव्र होती है, उतनी ही अधिक वह मनुष्य की बुद्धि को पैनी और प्रखर बनाती है। जब श्रद्धा अंधी हो जाती है, तब वह मर जाती है। ~ महात्मा गांधी
  • मन में प्रसन्नता और बड़ी आकांक्षा पैदा कर देना श्रद्धा की पहचान है। ~ मिलिंदप्रश्न

बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है

  • जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां धान्य भविष्य के लिए संगृहित किया हुआ है, जहां स्त्री-पुरुष में कलह नहीं- वहां मानो लक्ष्मी स्वयंमेव आई हुई है। ~ चाणक्यनीति
  • बुद्धिमत्ता का लक्ष्य स्वतंत्रता है। संस्कृति का लक्ष्य पूर्णता है। ज्ञान का लक्ष्य प्रेम है। शिक्षा का लक्ष्य चरित्र है। ~ सत्य साईं बाबा
  • मनुष्य वस्त्रों के बिना तो शोभित हो सकता है परंतु लज्जा व धैर्य से रहित होने पर नहीं। ~ श्रीहर्ष
  • लोक-निंदा का भय इसलिए है कि वह हमें बुरे कामों से बचाती है। अगर वह कर्त्तव्य-मार्ग में बाधक है तो उससे डरना कायरता है। ~ प्रेमचंद
  • वचन का पालन करने वाला कंजूस की भांति तोल कर अपने मुख से शब्द निकालता है। ~ महात्मा गांधी

भलाई का जीवन

  • दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। ~ उमर खैयाम
  • नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। ~ प्रेमचंद
  • भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्टल नारायण दासु
  • अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। ~ तिक्कना
  • जिससे बहुत लोग भयभीत रहते हैं, वह स्वयं भी बहुतों से भयभीत रहता है। ~ पब्लिलियस साइरस

भलाई करने वाला भलाई सिखाता है

  • चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला रहता। ~ कालिदास
  • प्रिय कठिनाई से प्राप्त होता है। फिर कठिनाई से वश में होता है। फिर जैसा हृदय है, वैसा नहीं होता तो वह प्राप्त होकर भी अप्राप्त है। ~ हालसातवाहन
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं हृदय से होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • जो मेरे साथ भलाई करता है, वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
  • साधु स्वाद के लिए भोजन न करे, जीवन यात्रा के निर्वाह के लिए करे। ~ उत्तराध्ययन

भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं

  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। ~ बाल्मीकि
  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्रनाथ
  • जो आदर्श हमने सच्चे अंत:करण से बनाया है, मन वचन और काया एक करके जिस आदर्श की सृष्टि की है, वह अवश्य ही हमारे सामने सत्य के रूप में प्रकट होगा। ~ स्वेट मार्डेन

भूखा मनुष्य

  • जो निषिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीनतर होते जाते हैं। ~ तांड्य महाब्राह्मण
  • केवल अपनी प्रशंसा करने से मूर्ख जगत में ख्याति नहीं पा सकता। गुफा में छिपे रहने पर भी विद्वान की सर्वत्र प्रसिद्धि होती है। ~ महाभारत
  • संपत्ति और विपत्ति में महापुरुषों का व्यवहार एक सा रहता है। सूर्य उदय के समय रक्त वर्ण का होता है और अस्त के समय भी रक्त वर्ण का ही होता है। ~ पंचतंत्र
  • अवस्था के अनुरूप ही वेष होना चाहिए। ~ चाणक्यनीति
  • भूखा मनुष्य कौन-सा पाप नहीं कर सकता? ~ हितोपदेश

भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग करते हैं

  • भाग्य की कल्पना मूढ़ लोग करते हैं। बुद्धिमान तो पुरुषार्थ के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं। ~ योगवासिष्ठ
  • मेधावी पुरुष, थोड़ी सी भी आग को फूंक मार कर बढ़ा लेने की भांति, थोड़े से मूल धन से अपने को उन्नत कर लेता है। ~ जातक
  • अपने उपाय से ही उपकारी का उपाय करना चाहिए। उपकार बड़ा है या छोटा- इस प्रकार का विद्वानों का विशेष आग्रह नहीं होता। ~ श्रीहर्ष
  • प्राणी अकेले जन्म लेता है और अकेले मरता है। वह अकेले ही पुण्य और पाप का फल भोगता है। ~ भागवत
  • ठीक समय पर प्रारंभ की गई नीतियां अवश्य ही फल प्रदान करती हैं। ~ कालिदास

भविष्य को वर्तमान ही खरीदता है

  • जीवित रहने को तो कीट-पतंगे भी रहते हैं, किंतु मनुष्य को कीट-पतंगों की भांति नहीं जीना चाहिए। ~ हरिकृष्ण प्रेमी
  • हम ऐसा मानने की गलती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। ~ महात्मा गांधी
  • भविष्य को वर्तमान ही खरीदता है। ~ जॉनसन
  • दूसरे को चुप करने के लिए पहले खुद चुप हो जाओ। ~ सेनेका
  • प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, मोह प्रतिदान चाहता है। ~ अश्विनी कुमार दत्त

भलाई करो इसी में कल्याण है

  • भलाई से बढ़कर जीवन और बुराई से बढ़कर मृत्यु नहीं है। ~ आदिभट्ल नारायण दासु
  • अगर तुम किसी की भलाई करते हो तो इह और पर दोनों लोकों में तुम्हारी भलाई होती है। ~ तिक्कना
  • नेकी अगर करने वालों के दिल में रहे तो नेकी है, बाहर निकल जाए तो बदी है। ~ प्रेमचंद
  • जो मेरे साथ भलाई करता हे वह मुझे भला होना सिखा देता है। ~ टामस फुलर
  • दूसरे का बुरा चाहने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त नहीं कर सकता। ~ उमर खैयाम

भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां?

  • आपदा ही एक ऐसी वस्तु है, जो हमें अपने जीवन को गहराइयों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। ~ विवेकानंद
  • भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति को विवेक कहां? ~ माघ
  • मैंने सत्य को पा लिया, ऐसा मत कहो, बल्कि कहो, मैंने अपने मार्ग पर चलते हुए आत्मा के दर्शन किए हैं। ~ खलील जिब्रान
  • अनिष्ट से यदि इष्ट सिद्धि हो भी जाए, तो भी उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। ~ नारायण पंडित
  • न पहले कभी हुआ और न किसी ने देखा, सोने के मृग की कभी बात भी नहीं हुई, फिर भी राम को सुवर्ण मृग का लोभ हुआ। विनाश काल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। ~ चाणक्य नीति

भूतकाल स्वप्न और भविष्यकाल अनुमान

  • जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में समभाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। ~ वेदव्यास
  • जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है। ~ आचारांग
  • भूतकाल स्वप्न है और भविष्य काल अनुमान है और वह समय जो वर्तमान है, उसे गनीमत समझ। ~ फारसी लोकोक्ति
  • सभ्यताओं का जन्म असाधारण रूप से कठिन परिवेशों में होता है, न कि असाधारण रूप से सरल परिवेशों में। ~ आर्नोल्ड टायनबी
  • दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है। ~ विसुद्धिमग्ग

भाग्य साथ है तो थोड़ा पुरुषार्थ भी सफल

  • भय से तब तक डरना चाहिए जब तक भय नहीं आया। भय उत्पन्न हो जाने पर निर्भीक के समान रहना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार
  • भाग्य की कल्पना मूढ़ लो ही करते हैं और भाग्य पर आश्रित होकर वे अपना नाश कर लेते हैं। बुद्धिमान लोग तो पुरुषार्थ द्वारा ही उत्कृष्ट पद को प्राप्त करते हैं। ~ योगवशिष्ठ
  • जैसे बीज खेत में बोए बिना निष्फल रहता है, उसी तरह पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी सिद्ध नहीं होता। ~ वेदव्यास
  • जब भाग्य अनुकूल रहता है, तब थोड़ा पुरुषार्थ भी सफल हो जाता है। ~ शुक्रनीति

भगवान तुम्हारे सामने है

  • मनुष्य के अंतर में शुभ और अशुभ दोनों तरह की वृत्तियां हैं। लेकिन अंतरतम में तो शुभ ही भरा है। प्रार्थना से उस अंतरतम में प्रवेश होता है। ~ विनोबा
  • भक्ति अपने सुख के लिए हुआ करती है, दुनिया को दिखाने के लिए नहीं। जहां दिखावे का भाव हैं वहां कृत्रिमता है। ~ हनुमान प्रसाद
  • भगवान तुम्हारे सामने है। संसार से पीठ मोड़ो, वह तुम्हें अपने सामने खड़ा दिखाई देगा। ~ सत्य साईं बाबा
  • यदि तुम भूलों को रोकने के लिए दरवाजा ही बंद कर दोगे, तो सत्य भी बाहर रह जाएगा। ~ रवींद्र
  • जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। ~ इमर्सन

मनुष्य की चाहत

  • एकाएक बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए। सम्यक विचार न करना परम आपत्ति का उत्पादक होता है। गुण के ऊपर अपने आप को समर्पण करने वाली संपत्तियां विचारवान पुरुष को स्वयं मनोनीत करती हैं। ~ भारवि
  • मनुष्य जितना चाहता है, उतनी ही उसकी प्राप्त करने की शक्ति बढ़ती जाती है। अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है। उसे स्वीकार कर के उसकी गुलामी करना ही कायरपन है। ~ शरतचंद्र
  • जो नेक काम करता है और नाम की इच्छा नहीं करता उसकी चित्त-शुद्धि होती जाती है। उसका काम सहज ही परमशक्ति को अर्पण हो जाता है। ~ विनाबा भावे
  • कार्य उसी का सिद्ध होता है जो समय को विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दांव पर विचार कर खेलता है। ~ वृंद

मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है

  • मृत्यु देह के लिए अनमोल वरदान है। ~ स्वामी हरिहर चैतन्य
  • जिस देह से श्रम नहीं होता, पसीना नहीं निकलता, सौंदर्य उस देह को छोड़ देता है। ~ लक्ष्मीनारायण मिश्र
  • दुखियों की दशा वही जानता है, जो अपनी परिस्थितियों से दुखी हो गया हो। ~ शेख सादी
  • यदि तुम छोटे बालकों के समान नहीं बनोगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाओगे। ~ नवविधान
  • समृद्धियां पराक्रमी मनुष्य के साथ रहती हैं, अनुत्साही मनुष्य के साथ नहीं। ~ भारवि

मन नहीं मरता तो माया नहीं मरती

  • जब तक मन नहीं मरता, माया नहीं मरती। ~ गुरु नानक
  • जिसने कभी कोई शत्रु नहीं बनाया, उसका कोई मित्र भी नहीं बनता है। ~ टेनिसन
  • अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। ~ सोमदेव
  • जितने से काम चल जाए उतना ही शरीरधारियों का अपना है। ~ भागवत
  • प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। ~ वेद व्यास

मन से सत्य शुद्ध होता है

  • जल से शरीर शुद्ध होता है, मन से सत्य शुद्ध होता है, विद्या और तप से भूतात्मा तथा ज्ञान से बुद्धि शुद्ध होती है। ~ मनुस्मृति
  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिमनिकाय
  • शेष ऋण, शेष अग्नि तथा शेष रोग पुन: पुन: बढ़ते हैं, अत: इन्हें शेष नहीं छोड़ना चाहिए। ~ शौनकीयनीतिसार
  • शोक करने वाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता हे और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। ~ वेदव्यास

मन को शुभ संकल्प बनाओ

  • आयु, श्री, कीर्ति, ऐश्वर्य आदि मनुष्य को उसी प्रकार बिना चाहे प्राप्त होते हैं, जैसे इनके विपरीत वस्तुएं न चाहने पर भी प्राप्त होती हैं। ~ भागवत
  • इंद्रियों पर विजय पाने से विनय प्राप्त होता है, विनय से गुण, गुणों से लोकप्रियता और लोकप्रियता से धन की प्राप्ति होती है। ~ अलंकारसर्वस्व
  • जैसा उद्योग होता है, उसी के अनुरूप धन की प्राप्ति होती है। त्याग के अनुरूप ही कीर्ति फैलती है, अभ्यास के अनुरूप विद्या की प्राप्ति होती है और कर्म के अनुरूप बुद्धि। ~ अज्ञात
  • हे परमेश्वर! हमारे मन को शुभ संकल्प वाला बनाओ, हमें सुखदायी बल व कर्मशक्ति प्रदान करो। ~ ऋगवेद

मुहब्बत रूह की खुराक

  • मुहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृत की बूंद है जो मरे हुए भावों को जिंदा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिंदगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक बरकत है। ~ प्रेमचंद
  • प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम चतुर मनुष्य के लिए नहीं, वह तो शिशु से सरल हृदयों की वस्तु है। ~ जयशंकर प्रसाद
  • प्रेम को व्याधि के रूप में देखने की अपेक्षा हम संजीवनी शक्ति के रूप में देखना अधिक पसंद करते हैं। ~ रामचंद शुक्ल
  • कैसा अचरज है कि मैं न जान पाया कभी/ मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित चोर है। ~ ठाकुर गोपालशरण सिंह

महान कार्य के लिए शत्रुओं से भी संधि कर लें

  • विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। ~ महात्मा गांधी
  • दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। ~ अज्ञात
  • किसी महान कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिए। ~ भागवत
  • विपत्ति के पीछे विपत्ति और संपत्ति के पीछे संपत्ति आती है। ~ बाण

मनुष्य परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर

  • ऐश्वर्य का भूषण, सज्जनता-शूरता का मित-भाषण, ज्ञान का शांति, कुल का भूषण विनय, धन का उचित व्यय, तप का अक्रोध, समर्थ का क्षमा और धर्म का भूषण निश्छलता है। यह तो सबका पृथक-पृथक हुआ, परंतु सबसे बढ़कर सबका भूषण शील है। ~ भर्तृहरि
  • प्रेम की रोटियों में अमृत रहता है, चाहे वह गेहूं की हों या बाजरे की। ~ प्रेमचंद
  • मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है। ~ विवेकानंद
  • मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है। ~ वेदव्यास

मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देने वाले से भी प्रेम करे

  • कोई भीतरी कारण ही पदा को परस्पर मिलाता है, बाहरी गुणों पर प्रीति आश्रित नहीं होती। ~ भवभूति
  • ऐच्छिक प्रेम उत्तम है, परंतु बिना याचना के दिया हुआ प्यार बेहतर है। ~ शेक्सपियर
  • प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है। ~ महात्मा गांधी
  • मनुष्य का कर्तव्य है कि कष्ट देनेवाले से भी प्रेम करे। ~ मारकस आंटोनियस
  • जहां प्रेम जितना उग्र होता है वहां वैसी ही तीखी घृणा भी होती है। ~ अज्ञेय

मेहनती भाग्य को भी परास्त कर देते हैं

  • निरंतर अथक परिश्रम करनेवाले भाग्य को भी परास्त कर देते हैं। ~ तिरुवल्लुवर
  • परिश्रमी धीर व्यक्ति को इस जगत में कोई वस्तु अप्राप्य नहीं है। ~ सोमदेव
  • परिश्रम ही हर सफलता की कुंजी है और वही प्रतिभा का पिता है। ~ कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
  • जंग लग कर नष्ट होने की अपेक्षा जीर्ण होकर नष्ट होना अधिक अच्छा है। ~ बिशप रिचर्ड कंबरलैंड

मनुष्य अकेला आता है

  • मनुष्य इस संसार में अकेला ही जन्मता है और अकेला ही मर जाता है। एक धर्म ही उसके साथ-साथ चलता है, न तो मित्र चलते हैं और न बांधव। कार्यों में सफलता, सौभाग्य और सौंदर्य सब कुछ धर्म से ही प्राप्त होते हैं। ~ मत्स्य पुराण
  • परोपकार का आचरण मत त्यागो। संसार क्षणिक है। जब चंद्रमा और सूर्य भी अस्त हो जाते हैं, तब अन्य कौन स्थिर है? ~ सुप्रभाचार्य
  • तुम्हारा मन शुद्ध है, तो तुम्हारे लिए जगत शुद्ध है। ~ शिव
  • किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है, मक्कारी है। ~ प्रेम चंद

मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है

  • जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। ~ वेदव्यास
  • हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्म के लिए प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है। ~ वाल्मीकि
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। ~ रवींद्रनाथ ठाकुर

मनुष्य गोत्र और धन से शुद्ध नहीं होता

  • सुखी के प्रति मित्रता, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यात्मा के प्रति हर्ष और पापी के प्रति उपेक्षा की भावना करने से चित्त प्रसन्न व निर्मल होता है। ~ पतंजलि
  • शांति की अपनी विजयें होती हैं, जो युद्ध की अपेक्षा कम कीर्तिमयी नहीं होतीं। ~ मिल्टन
  • कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन- इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं, गोत्र और धन से नहीं। ~ मज्झिम निकाय
  • किसी के धन का लालच मत करो। ~ ईशावास्योपनिषद्

मान-बड़ाई मीठी छुरी है

  • प्रशंसा कीजिए जब हम दौड़ें, सांत्वना दीजिए जब हम गिरें, प्रोत्साहित कीजिए जब हमारा पुनरुत्थान हो, किंतु भगवान के लिए हमें बढ़ने दीजिए। ~ एडमंड बर्क
  • देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता। ~ ऋग्वेद
  • तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। ~ रवींद्रनाथ टैगोर
  • ईश्वर के सामने सिर झुकाने से ही क्या बनता है, जब हृदय अशुद्ध हो। ~ गुरुनानक
  • मान-बड़ाई मीठी छुरी है। विष भरा सोने का घड़ा है। ~ शिव
  • अपनी बुद्धि से साधु होना अच्छा, पराई बुद्धि से राजा होना अच्छा नहीं है। ~ उडि़या लोकोक्ति

मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए

  • जो दूसरों में दोष निकालते हैं, वे अपने दोषों से अनभिज्ञ रहते हैं। ~ वेमना
  • धन तो असमय के मेघ के समान अकस्मात आता है और चला जाता है। ~ सोमदेव
  • किसी कार्य के लिए कला एवं विज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, उसमें धैर्य की भी आवश्यकता पड़ती है। ~ गेटे
  • यदि पर्वत भी वृक्ष के समान आंधी में हिल उठे, तो उन दोनों में अंतर ही क्या रहा? ~ कालिदास
  • यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं, तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
  • जहां धन होता है, वहां त्याग-बुद्धि नहीं होती है। जहां शौर्य होता है, वहां विवेक शून्य होता है। ~ पानुगंटि

मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है

  • पार्थिव सुख ही एक मात्र सुख नहीं है- बल्कि धर्म के लिए दूसरों के लिए उस सुख को उत्सर्ग कर देना ही श्रेय है। ~ शरतचंद
  • निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। ~ वेदव्यास
  • दुखी सुख की इच्छा करता है। सुखी और अधिक सुख चाहता है। वास्तव में, दुख के प्रति उपेक्षा भाव रखना ही सुख है। ~ विसुद्धिमग्ग
  • मनुष्य के दुख से दुखी होना ही सच्चा सुख है। ~ हजारीप्रसाद द्विवेदी

मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है

  • भाग्य पर भरोसा रखकर बैठने वाले आलसी मनुष्यों को त्याग कर लक्ष्मी सदा परिश्रम करने में तत्पर लोगों को खोज कर उनका वरण कर लेती है। ~ मत्स्यपुराण
  • उच्च या नीच कुल में जन्म होना भाग्य के अधीन है, मेरे अधीन तो पुरुषार्थ है। ~ भट्टनारायण
  • यद्यपि सब कर्म देवाधीन हैं तथापि मनुष्य को अपना कार्य करना ही चाहिए। ~ धनपाल
  • पहले स्वयं पुरुषार्थ करो, फिर भगवान को पुकारो। ~ यूरोपिडीज
  • सौभाग्य और दुर्भाग्य मनुष्य की दुर्बलता के नाम हैं। मैं तो पुरुषार्थ को ही सबका नियामक समझता हूं। पुरुषार्थ ही सौभाग्य को खींच लाता है। ~ जयशंकर प्रसाद

मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है

  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • वही अच्छी प्रार्थना करता है जो महान और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। ~ कालरिज
  • जो जिसका प्रिय व्यक्ति है, वह उसका कोई विलक्षण धन है। प्रिय व्यक्ति कुछ न करता हुआ भी सामीप्यादि दुखों को दूर कर देता है। ~ भवभूति
  • मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है। ~ भास
  • यदि बात तुम्हारे हृदय से उत्पन नहीं हुई है तो तुम कदापि दूसरों के हृदय प्रभावित नहीं कर सकते। ~ गेटे
  • प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं करता। ~ जयशंकर प्रसाद
  • मिथ्या प्रशंसा बहुत कष्टप्रद होती है। ~ भास
  • बैरी भी अद्भुत कार्य करने पर स्तुति के पात्र बन जाते हैं। ~ सोमेश्वर
  • सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ - पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात

महान वह है, जो गलत रास्ते से लौट सके

  • जो प्रकृति से ही महान हैं उनके स्वाभाविक तेज को किसी (शारीरिक)ओज-प्रकाश की अपेक्षा नहीं रहती। ~ चाणक्य
  • संपत्ति और विपत्ति में एक समान आचरण करनेवाले ही महान कहलाते हैं। ~ विष्णु शर्मा
  • विष के एक घड़े से समुद्र को दूषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि समुद्र अत्यंत महान और विशाल है। वैसे ही महापुरुष को किसी की निंदा दूषित नहीं कर सकती। ~ इत्तिवृत्तक
  • मैं महान उसको मानता हूं जो स्वत: अपना मार्ग बनाते हैं, परंतु कहीं मिथ्या मार्ग पर चल पड़ें तो लौट आने का साहस और बुद्धि भी रखते हैं। ~ गुरुदत्त



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