"वाराणसी/संस्कृति": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Art-Varanasi.jpg|thumb|200px|वाद्य बजाते हुए कलाकार, [[वाराणसी]]]]  
[[चित्र:Banaras-Hindu-University.jpg|thumb|250px|[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]]]
[[वाराणसी]] की [[कला]] और [[संस्कृति]] अद्वितीय है। यह वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है जिसकी वजह से यह [[भारत]] की सांस्कृतिक राजधानी कहलाती है। [[पुरातत्त्व]], पौराणिक कथाओं, [[भूगोल]], कला और [[इतिहास]] का एक संयोजन वाराणसी [[भारतीय संस्कृति]] को एक महान केंद्र बनाता है। हालांकि वाराणसी मुख्य रूप से [[हिंदू धर्म]] और [[बौद्ध धर्म]] के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन वाराणसी में पूजा और धार्मिक संस्थाओं के कई धार्मिक विश्वासों की झलक पा सकते हैं।
[[वाराणसी]] पूर्व से ही विद्या और शिक्षा के क्षेत्र में एक अहम प्रचारक और केन्द्रीय संस्था के रूप में स्थापित था। मध्यकाल के दौरान [[उत्तर प्रदेश]] में उदार परम्परा का संचालन था। वाराणसी 'हिन्दू शिक्षा केन्द्र' के रूप में विश्वव्यापक हुआ। वाराणसी के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 'इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ़ सैकेंडरी एजुकेशन' <ref>आई.सी.एस.ई</ref>, 'केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड' <ref>सी.बी.एस.ई</ref> या 'उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद' <ref>यू.पी.बोर्ड</ref> से सहबद्ध हैं। प्राचीन काल से ही लोग यहाँ [[दर्शन शास्त्र]], [[संस्कृत]], [[खगोल विज्ञान|खगोल शास्त्र]], सामाजिक ज्ञान एवं धार्मिक शिक्षा आदि के ज्ञान के लिये आते रहे हैं। '''भारतीय परंपरा में प्रायः वाराणसी को सर्वविद्या की राजधानी कहा गया है।''' वाराणसी में एक जामिया सलाफ़िया भी है, जो सलाफ़ी इस्लामी शिक्षा का केन्द्र है।
====काशी हिन्दू विश्वविद्यालय====
{{मुख्य|काशी हिन्दू विश्वविद्यालय}}
काशी या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय [[वाराणसी]] में स्थित एक [[केन्द्रीय विश्वविद्यालय]] है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन 1915) के अंतर्गत हुई थी। पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रारम्भ 1904 ई. में किया, जब काशी नरेश 'महाराज प्रभुनारायण सिंह' की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। 1905 ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, 1906 ई. में [[कुंभ]] मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर [[भारत]] भर से आई जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया।  [[डा. ऐनी बेसेंट]] काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं। इन्हीं दिनों [[दरभंगा]] के राजा महाराज 'रामेश्वर सिंह' भी [[काशी]] में 'शारदा विद्यापीठ' की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डा. बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप 'बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी' की 15 दिसंबर, 1911 को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर 'सुंदरलाल' सचिव, महाराज 'प्रभुनारायण सिंह', 'पं. मदनमोहन मालवीय' एवं 'डा. ऐनी बेसेंट' सम्मानित सदस्य थीं।<ref name="bhu">{{cite web |url=http://historybhu.blogspot.com|title=काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना|accessmonthday=7 फ़रवरी |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=historybhu.blogspot.com|language=[[हिन्दी]]}}</ref> 


वाराणसी, भारतीय कला और संस्कृति का पूरा एक संग्रहालय प्रस्तुत करता है। वाराणसी में इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलते पैटर्न और आंदोलनों को महसूस कर सकते हैं। सदियों से वाराणसी ने मास्टर कारीगरों का उत्पादन किया है और और अपनी सुंदर साड़ी, हस्तशिल्प, वस्त्र, खिलौने, गहने, धातु का काम, मिट्टी और लकड़ी और अन्य शिल्प के लिए नाम और प्रसिद्धि अर्जित की है।
तत्कालीन शिक्षामंत्री 'सर हारकोर्ट बटलर' के प्रयास से 1915 ई. में केंद्रीय विधानसभा से 'हिन्दू यूनिवर्सिटी ऐक्ट' पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल 'लॉर्ड हार्डिंज' ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। 4 जनवरी, 1916 ई. [[वसंत पंचमी]]  के दिन समारोह [[वाराणसी]] में [[गंगा नदी|गंगा]] तट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज 'प्रभुनारायण सिंह' द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी से सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद, वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। [[महात्मा गाँधी|गांधी]] जी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गांधी जी ने डा. बेसेंट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में राजा-रजवाड़ों, सामंतों तथा देश के अनेक गण्यमान्य लोगों के बीच, अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें एक ओर ब्रिटिश सरकार की और दूसरी ओर हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे, देशी रियासतों के शासकों की घोर भर्त्सना की गई थी।


वाराणसी ने कई प्रसिद्ध विद्वानों और बुद्धिजीवियों, जो गतिविधि के संबंधित क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ गये है, को जन्म दिया है। वाराणसी, एक अद्वितीय सामाजिक और सांस्कृतिक कपड़े प्रस्तुत करता है। [[संगीत]], नाटक, और मनोरंजन  वाराणसी के साथ पर्याय रहे है। बनारस लंबे समय से अपने संगीत, मुखर और वाद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध रहा है और अपने खुद के नृत्य परंपराओं, वाराणसी लोक संगीत और नाटक, मेलों और त्योहारों, अखाड़े, खेल आदि का एक बहुत ही पुराना केन्द्र रहा है।
डा. बेसेंट द्वारा समर्पित 'सेंट्रल हिन्दू कॉलेज' में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का विधिवत शिक्षणकार्य, 1 अक्टूबर, 1917 से आरंभ हुआ। 1916 ई. में आई बाढ़ के कारण स्थापना स्थल से हटकर कुछ पश्चिम में 1,300 एकड़ भूमि में निर्मित वर्तमान विश्वविद्यालय में सबसे पहले इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण हुआ और फिर आर्ट्स कॉलेज, साइंस कॉलेज आदि का निर्माण हुआ। 1921 ई से विश्वविद्यालय की पूरी पढ़ाई 'कमच्छा कॉलेज' से स्थानांतरित होकर नए भवनों में होने लगी। इसका उद्घाटन 13 दिसंबर, 1921 को 'प्रिंस ऑफ वेल्स' ने किया था।<ref name="bhu"></ref>
==संगीत==
[[चित्र:Sampurnanand-Sanskrit-University.jpg|thumb|left|220px|[[सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय]]]]
[[चित्र:Ustad-Bismillah-khan.jpg|thumb|उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां]]
[[मदनमोहन मालवीय|पंडित मदनमोहन मालवीय]] ने 84 साल पहले [[1916]] में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। तब इसका कुल मिलाकर एक ही कॉलेज था- सेंट्रल हिन्दू कॉलेज और आज यह विश्वविद्यालय 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिसमें 100 से भी अधिक विभाग हैं। इसे एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय होने का गौरव हासिल है। महामना पंडित मालवीय के साथ ही [[सर्वपल्ली राधाकृष्णन]] और एनी बेसेंट ने भी विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और लंबे समय तक विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।
*[[वाराणसी]] गायन एवं [[वाद्य कला|वाद्य]] दोनों ही विद्याओं का केंद्र रहा है।
*सुमधुर ठुमरी भारतीय कंठ संगीत को वाराणसी की विशेष देन है। इसमें धीरेंद्र बाबू, बड़ी मोती, छोती मोती, सिद्धेश्वर देवी, रसूलन बाई, काशी बाई, अनवरी बेगम, शांता देवी तथा इस समय गिरिजा देवी आदि का नाम समस्त [[भारत]] में बड़े गौरव एवं सम्मान के साथ लिया जाता है।
*इनके अतिरिक्त बड़े रामदास तथा श्रीचंद्र मिश्र, गायन कला में अपना सानी नहीं रखते।
*[[तबला]] वादकों में कंठे महाराज, अनोखे लाल, गुदई महाराज, कृष्णा महाराज देश- विदेश में अपना नाम कर चुके हैं।  
*[[शहनाई]] वादन एवं [[नृत्य]] में भी [[काशी]] में नंद लाल, [[उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ]] तथा सितारा देवी जैसी प्रतिभाएँ पैदा हुई हैं।
==मनोरंजन==
====फ़िल्में====
भारतीय सिनेमा में वाराणसी की संस्कृति और उसकी पृष्ठभूमि पर आधारित कई फ़िल्मों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। जिनमें से कुछ प्रमुख फ़िल्में निम्नलिखित हैं-
[[चित्र:Mystic-Love-Story.jpg|thumb|120px|बनारस – ए मिस्टिक लव स्टोरी]]
; बनारस – ए मिस्टिक लव स्टोरी


'''बनारस – ए मिस्टिक लव स्टोरी''' बनारस शहर में बनी एक [[हिन्दी]] फ़िल्म है। इस फ़िल्म में बनारस की गलियों, घाटों और मंदिरों को एक प्रेम कहानी में पिरोया गया है। आठ करोड़ की लागत वाली इस फ़िल्म में नसीरुद्दीन शाह, डिंपल कपाड़िया, उर्मिला मातोंडकर, अस्मित पटेल और आकाश खुराना ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाई हैं। [[चित्र:Joi-Baba-Felunath.jpg|thumb|left|120px|जोइ बाबा फेलुनाथ]]  
====सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय====
{{Main|सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय}}
'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' की स्थापना 1791 ई. में [[भारत]] के [[गवर्नर-जनरल]] [[लॉर्ड कॉर्नवॉलिस]] ने की थी। वाराणसी का यह प्रथम महाविद्यालय था। जे म्योर, आई.सी.एस इस महाविद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य, [[संस्कृत]] प्राध्यापक थे।
====महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ====
[[चित्र:Mahatma-Gandhi-Kashi-Vidyapeeth.JPG|thumb|250px|[[महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ]]]]
{{Main|महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ}}
वाराणसी का यह एक मानित राजपत्रित विश्वविद्यालय है। इस विद्यापीठ का नाम [[भारत]] के राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] के नाम पर है। इस विद्यापीठ में गाँधी जी के सिद्धांतों का पालन किया जाता है।
====केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान====
यह इंस्टीट्यूट [[सारनाथ]] में स्थित है। यहाँ पर परंपरागत तिब्बती पठन-पाठन को आधुनिक शिक्षा के साथ वरीयता दी जाती है। 'उदय प्रताप महाविद्यालय' एक स्वायत्त महाविद्यालय है, जहाँ आधुनिक [[बनारस]] के उपनगरीय छात्रों हेतु क्रीड़ा एवं [[विज्ञान]] का केन्द्र है। [[वाराणसी]] में बहुत से निजी एवं सार्वजनिक संस्थान है, जहाँ [[हिन्दू]] धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था है। इन विश्वविद्यालयों के अलावा शहर में कई स्नातकोत्तर एवं स्नातक महाविद्यालय भी हैं, जैसे- अग्रसेन डिग्री कॉलेज, हरिशचंद्र डिग्री कॉलेज, आर्य महिला डिग्री कॉलेज एवं स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट।


;जोइ बाबा फेलुनाथ
'''जोइ बाबा फेलुनाथ''' ([[1979]]) [[भारत रत्न]] सम्मानित निर्देशक [[सत्यजीत रे]] द्वारा निर्देशित एक बांग्ला फ़िल्म है। इस फ़िल्म के अभिनेता सौमित्र चटर्जी, संतोष दत्ता, सिद्दार्थ चटर्जी, [[उत्पल दत्त]] आदि हैं। यह फ़िल्म सत्यजीत राय के प्रसिद्ध उपन्यास '''फ़ेलुदा''' पर आधारित है।
[[चित्र:Khaike paan.jpg|thumb|120px|खई के पान बनारस वाला]]
; डॉन (1978)
[[1978]] की सुपरहिट [[हिन्दी]] फ़िल्म डॉन का गाना '''खई के पान बनारस वाला''' [[अमिताभ बच्चन]] के साथ '''बनारसी पान''' की प्रशंसा में गाया गया था और बहुत लोकप्रिय हुआ था।
==खानपान==
[[चित्र:Paan-Wala-Varanasi.jpg|thumb|पान वाला, वाराणसी]]
वाराणसी में बहुत से भोजनालय हैं, जहाँ पर स्वादिष्ट भोजन मिलता है।
;जयपुरिया होटल
जयपुरिया होटल वाराणसी में गोदौलिया चौक के पास स्थित है। इस होटल में बहुत स्‍वादिष्‍ट भोजन मिलता है। यहाँ पर ख़ास थाली मिलती है। इसमें तीन [[सब्जियाँ|सब्‍जी]], [[दाल]], कढ़ी, रोटी, [[चावल]], सलाद तथा पापड़ होता है। इस भोजनालय की ख़ास बात है कि यहाँ भोजन लकड़ी के आग पर बनाया जाता है। इस भोजन को बनाने में प्‍याज और लहसुन का भी उपयोग नहीं होता है।
;कचौड़ी-सब्‍जी
वाराणसी के लोग नाश्‍ते में बहुधा कचौड़ी-सब्‍जी खाना पसंद करते हैं। यहाँ के लोग कचौड़ी-सब्‍जी के साथ [[जलेबी]] खाते हैं।
;विश्‍वनाथ साहब होटल
विश्‍वनाथ साहब होटल गोदौलिया चौक के पास स्थित है। यहाँ देशी घी की कचौड़ी-सब्‍जी प्रसिद्ध है। इस होटल के पास 'काशी चाट भंडार' है। काशी चाट भंडार की चाट बहुत स्‍वादिष्‍ट होती है।
;बनारसी पान
{{मुख्य|पान}}
बनारसी पान दुनिया भर में मशहूर है। बनारसी पान चबाना नहीं पड़ता। यह मुँह में जाकर धीरे-धीरे घुलता है और मन को भी सुवासित कर देता है। वाराणसी आने वालों में [[पान]] खाने का शौक़ रखने वाले को '''बनारसी पान''' ज़रुर खाना चाहिए। [[हिन्दी]] की सुपरहिट फ़िल्म डॉन का गाना '''खई के पान बनारस वाला''' जो [[अमिताभ बच्चन]] पर चित्रांकित किया गया था, '''बनारसी पान''' की प्रशंसा में गाया गया था और बहुत लोकप्रिय हुआ था।
==बनारसी साड़ी==
{{Main|बनारसी साड़ी}}
*बनारसी साड़ियाँ दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। [[लाल रंग|लाल]], [[लाल रंग|हरी]] और अन्य गहरे [[रंग|रंगों]] की ये साड़ियां [[हिंदू]] परिवारों में किसी भी शुभ अवसर के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
*उत्तर [[भारत]] में अधिकांश बहू-बेटियाँ बनारसी साड़ी में ही विदा की जाती हैं।
*बनारसी साड़ियों की कारीगरी सदियों पुरानी है।
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{वाराणसी}}
{{वाराणसी}}
[[Category:वाराणसी]][[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश की संस्कृति]] [[Category:संस्कृति कोश]]
[[Category:वाराणसी]][[Category:उत्तर प्रदेश में शिक्षा]]
[[Category:संगीत कोश]]
[[Category:शिक्षा कोश]]
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08:55, 3 नवम्बर 2011 का अवतरण

वाराणसी विषय सूची
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

वाराणसी पूर्व से ही विद्या और शिक्षा के क्षेत्र में एक अहम प्रचारक और केन्द्रीय संस्था के रूप में स्थापित था। मध्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में उदार परम्परा का संचालन था। वाराणसी 'हिन्दू शिक्षा केन्द्र' के रूप में विश्वव्यापक हुआ। वाराणसी के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 'इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ़ सैकेंडरी एजुकेशन' [1], 'केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड' [2] या 'उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद' [3] से सहबद्ध हैं। प्राचीन काल से ही लोग यहाँ दर्शन शास्त्र, संस्कृत, खगोल शास्त्र, सामाजिक ज्ञान एवं धार्मिक शिक्षा आदि के ज्ञान के लिये आते रहे हैं। भारतीय परंपरा में प्रायः वाराणसी को सर्वविद्या की राजधानी कहा गया है। वाराणसी में एक जामिया सलाफ़िया भी है, जो सलाफ़ी इस्लामी शिक्षा का केन्द्र है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

काशी या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन 1915) के अंतर्गत हुई थी। पं. मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रारम्भ 1904 ई. में किया, जब काशी नरेश 'महाराज प्रभुनारायण सिंह' की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। 1905 ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, 1906 ई. में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आई जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। डा. ऐनी बेसेंट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थीं। इन्हीं दिनों दरभंगा के राजा महाराज 'रामेश्वर सिंह' भी काशी में 'शारदा विद्यापीठ' की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालयों की योजना परस्पर विरोधी थी, अत: मालवीय जी ने डा. बेसेंट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप 'बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी' की 15 दिसंबर, 1911 को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर 'सुंदरलाल' सचिव, महाराज 'प्रभुनारायण सिंह', 'पं. मदनमोहन मालवीय' एवं 'डा. ऐनी बेसेंट' सम्मानित सदस्य थीं।[4]

तत्कालीन शिक्षामंत्री 'सर हारकोर्ट बटलर' के प्रयास से 1915 ई. में केंद्रीय विधानसभा से 'हिन्दू यूनिवर्सिटी ऐक्ट' पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल 'लॉर्ड हार्डिंज' ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी। 4 जनवरी, 1916 ई. वसंत पंचमी के दिन समारोह वाराणसी में गंगा तट के पश्चिम, रामनगर के समानांतर महाराज 'प्रभुनारायण सिंह' द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी से सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद, वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। गांधी जी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गांधी जी ने डा. बेसेंट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में राजा-रजवाड़ों, सामंतों तथा देश के अनेक गण्यमान्य लोगों के बीच, अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें एक ओर ब्रिटिश सरकार की और दूसरी ओर हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे, देशी रियासतों के शासकों की घोर भर्त्सना की गई थी।

डा. बेसेंट द्वारा समर्पित 'सेंट्रल हिन्दू कॉलेज' में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का विधिवत शिक्षणकार्य, 1 अक्टूबर, 1917 से आरंभ हुआ। 1916 ई. में आई बाढ़ के कारण स्थापना स्थल से हटकर कुछ पश्चिम में 1,300 एकड़ भूमि में निर्मित वर्तमान विश्वविद्यालय में सबसे पहले इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण हुआ और फिर आर्ट्स कॉलेज, साइंस कॉलेज आदि का निर्माण हुआ। 1921 ई से विश्वविद्यालय की पूरी पढ़ाई 'कमच्छा कॉलेज' से स्थानांतरित होकर नए भवनों में होने लगी। इसका उद्घाटन 13 दिसंबर, 1921 को 'प्रिंस ऑफ वेल्स' ने किया था।[4]

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय

पंडित मदनमोहन मालवीय ने 84 साल पहले 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। तब इसका कुल मिलाकर एक ही कॉलेज था- सेंट्रल हिन्दू कॉलेज और आज यह विश्वविद्यालय 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। जिसमें 100 से भी अधिक विभाग हैं। इसे एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय होने का गौरव हासिल है। महामना पंडित मालवीय के साथ ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन और एनी बेसेंट ने भी विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और लंबे समय तक विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय

'सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय' की स्थापना 1791 ई. में भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने की थी। वाराणसी का यह प्रथम महाविद्यालय था। जे म्योर, आई.सी.एस इस महाविद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य, संस्कृत प्राध्यापक थे।

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ

वाराणसी का यह एक मानित राजपत्रित विश्वविद्यालय है। इस विद्यापीठ का नाम भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नाम पर है। इस विद्यापीठ में गाँधी जी के सिद्धांतों का पालन किया जाता है।

केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान

यह इंस्टीट्यूट सारनाथ में स्थित है। यहाँ पर परंपरागत तिब्बती पठन-पाठन को आधुनिक शिक्षा के साथ वरीयता दी जाती है। 'उदय प्रताप महाविद्यालय' एक स्वायत्त महाविद्यालय है, जहाँ आधुनिक बनारस के उपनगरीय छात्रों हेतु क्रीड़ा एवं विज्ञान का केन्द्र है। वाराणसी में बहुत से निजी एवं सार्वजनिक संस्थान है, जहाँ हिन्दू धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था है। इन विश्वविद्यालयों के अलावा शहर में कई स्नातकोत्तर एवं स्नातक महाविद्यालय भी हैं, जैसे- अग्रसेन डिग्री कॉलेज, हरिशचंद्र डिग्री कॉलेज, आर्य महिला डिग्री कॉलेज एवं स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आई.सी.एस.ई
  2. सी.बी.एस.ई
  3. यू.पी.बोर्ड
  4. 4.0 4.1 काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना (हिन्दी) (पी.एच.पी) historybhu.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 7 फ़रवरी, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख