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-समाज सेवा | -समाज सेवा | ||
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{'कठिन काव्य का प्रेत' किस [[कवि]] को कहा जाता हैं? | {'कठिन काव्य का प्रेत' किस [[कवि]] को कहा जाता हैं? | ||
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||[[चित्र:Keshavdas.jpg|right|100px|right]][[हिन्दी]] में सर्वप्रथम केशवदास जी ने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें 'कठिन काव्य के प्रेत' कह कर पुकारा जाता है, किंतु उनका महत्त्व बिल्कुल समाप्त नहीं हो जाता। भाव और [[रस]] कवित्व की [[आत्मा]] है। केशव अपने रचना-चमत्कार द्वारा श्रोता और पाठकों को चमत्कृत करने के प्रयास में रहे हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केशवदास]] | ||[[चित्र:Keshavdas.jpg|right|100px|right]][[हिन्दी]] में सर्वप्रथम केशवदास जी ने ही काव्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय पद्धति से विवेचन किया। यह ठीक है कि उनके काव्य में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और पांडित्य प्रदर्शन के कारण उन्हें 'कठिन काव्य के प्रेत' कह कर पुकारा जाता है, किंतु उनका महत्त्व बिल्कुल समाप्त नहीं हो जाता। भाव और [[रस]] कवित्व की [[आत्मा]] है। केशव अपने रचना-चमत्कार द्वारा श्रोता और पाठकों को चमत्कृत करने के प्रयास में रहे हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[केशवदास]] | ||
{[[हिन्दी]] में स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले अक्षर क्या कहलाते हैं? | {[[हिन्दी]] में स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले [[अक्षर]] क्या कहलाते हैं? | ||
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+[[स्वर (व्याकरण)|स्वर]] | +[[स्वर (व्याकरण)|स्वर]] | ||
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-[[स्वर (व्याकरण)|स्वर]] | -[[स्वर (व्याकरण)|स्वर]] | ||
+[[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] | +[[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] | ||
-वर्ण | -[[वर्णमाला (व्याकरण)|वर्ण]] | ||
-[[अक्षर]] | -[[अक्षर]] | ||
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+[[अवधी भाषा|अवधी]] | +[[अवधी भाषा|अवधी]] | ||
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||[[भारत]] में [[अवध]] क्षेत्र में बोली जाने वाली [[भाषा]] 'अवधी' कहलाती है, जो [[हिन्दी]] की एक उपभाषा है। अवधी का प्राचीन [[साहित्य]] बड़ा संपन्न है। इसमें भक्तिकाव्य और प्रेमाख्यान काव्य दोनों का विकास हुआ है। भक्तिकाव्य का शिरोमणि [[ग्रंथ]] [[गोस्वामी तुलसीदास]] कृत ‘[[रामचरितमानस]]’ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अवधी भाषा|अवधी]] | ||[[भारत]] में [[अवध]] क्षेत्र में बोली जाने वाली [[भाषा]] '[[अवधी भाषा]]' कहलाती है, जो [[हिन्दी]] की एक उपभाषा है। अवधी का प्राचीन [[साहित्य]] बड़ा संपन्न है। इसमें भक्तिकाव्य और प्रेमाख्यान काव्य दोनों का विकास हुआ है। भक्तिकाव्य का शिरोमणि [[ग्रंथ]] [[गोस्वामी तुलसीदास]] कृत ‘[[रामचरितमानस]]’ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अवधी भाषा|अवधी]] | ||
{जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ व्यक्त किए हों, तो वह कौन-सा [[अलंकार]] होता है? | {जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ व्यक्त किए हों, तो वह कौन-सा [[अलंकार]] होता है? | ||
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-[[मृगावती]] | -[[मृगावती]] | ||
+[[रामचरित मानस]] | +[[रामचरित मानस]] | ||
||[[चित्र:Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg|right| | ||[[चित्र:Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg|right|100px|रामचरितमानस]]'रामचरितमानस' [[तुलसीदास]] की सबसे प्रमुख कृति है। इसकी रचना संवत 1631 ई. की [[रामनवमी]] को [[अयोध्या]] में प्रारम्भ हुई थी, किन्तु इसका कुछ अंश [[काशी]] ([[वाराणसी]]) में भी निर्मित हुआ था। यह रचना [[अवधी]] में लिखी गयी है। इसके मुख्य [[छन्द]] [[चौपाई]] और [[दोहा]] हैं,बीच-बीच में कुछ अन्य प्रकार के भी छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्राय: 8 या अधिक अर्द्धलियों के बाद दोहा होता है और इन दोहों के साथ कड़वक संख्या दी गयी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[रामचरित मानस]] | ||
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07:54, 6 दिसम्बर 2011 का अवतरण
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