"आशा का दीपक -रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर
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थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है। | थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है। | ||
चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से; | चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से; | ||
चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण- | चमक रहे पीछे मुड़ देखो चरण-चिह्न जगमग से। | ||
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नही है; | बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नही है; | ||
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है। | थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है। |
10:58, 1 मार्च 2012 का अवतरण
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वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नही है; |
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