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महाभारत में मुंगेर शहर को मोदागिरि कहा गया है- | [[महाभारत]] में मुंगेर शहर को 'मोदागिरि' कहा गया है-'अथ मोदागिरौ चैव राजानं बलवत्तरम् पांडवो बाहुवीर्येण निजधान महामृघे'<ref>वन. 30,21</ref> अर्थात् पूर्व दिशा की दिग्विजय यात्रा में [[मगध]] पहुँचने के उपरान्त मोदागिरि के अत्यन्त बलवान नरेश को भुजाबल से युद्ध में मार गिराया। इसका वर्णन [[गिरिव्रज]] (राजगीर) के पश्चात् है तथा इसके उल्लेख के पहले [[भीम (पांडव)|भीम]] की [[कर्ण]] पर विजय का वर्णन है। किंवदन्ती के अनुसार मुंगेर की नींव डालने वाला चंद्र नामक राजा था। नगर के निकट सीताकुण्ड नामक स्थान है। जहाँ कहा जाता है कि [[सीता]] अपने दूसरे वनवास काल में [[अग्नि]] प्रवेश के लिए उतरी थी। [[चंडी]] स्थान भी प्राचीन स्थल है। एक किंवदन्ती में मुंगेर का वास्तविक नाम मुनिगृह भी बताया जाता है। कहते हैं कि यहीं पहाड़ी पर [[मुदगल मुनि]] का निवास स्थान होने से ही यह स्थान [[मुदगल]] नगरी कहलाता था। किन्तु इसका सम्बन्ध महाभारत के मोदागिरि से जोड़ना अधिक समीचीन है। [[कनिंघम]] के मत में 7वीं शती में [[युवानच्वांग]] ने इस स्थान को लोहानिनिला (लावणनील) कहा है। 10वीं शती में [[पाल वंश|पाल वंशी]] [[देवपाल (पाल वंश)|देवपाल]] का यहाँ पर राज था, जैसा कि उसके ताभ्राट्ट लेख में वर्णित है। मुंगेर में [[मुस्लिम]] बादशाहों ने भी काफ़ी समय तक अपना मुख्य प्रशासन केन्द्र बनाया था, जिसके फलस्वरूप यहाँ पर उस समय के कई अवशेष हैं। [[मुग़ल|मुग़लों]] के समय का एक ज़िला भी उल्लेखनीय है। यह [[गंगा]] के तट पर बना है। इसके उत्तर पश्चिम के कोने में कष्टतारिणी नामक गंगा घाट है। जहाँ 10वीं शती का एक अभिलेख है। क़िले से आधा मील पर 'मान पत्थर' है, जो गंगा के अन्दर एक चट्टान है। कहा जाता है कि इस पर [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के पदचिह्न बने हैं। क़िले के पश्चिम की ओर मुल्ला सईद का मक़बरा है। ये अशरफ़ नाम से [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में कविता लिखते थे और [[औरंगज़ेब]] की पुत्री जेबुन्निसा के काव्य गुरु भी थे। इनका मूल निवास स्थान केस्पियन सागर के पास मजनदारन नामक स्थान था। [[अकबर]] के समय में [[टोडरमल]] ने [[बंगाल]] के विद्रोहियों को दबाने के लिए अभियान का मुख्य केन्द्र मुंगेर में बनाया था। [[शाहजहाँ]] के पुत्र [[शाहशुजा]] ने उत्तराधिकार युद्ध के समय इस स्थान में दो बार शरण ली थी। कुछ विद्वानों का मत है कि मुंगेर का एक नाम 'हिरण्यपर्वत' भी है, जो सातवीं शती या उसके निकटवर्ती काल में प्रचलित था। | ||
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13:18, 18 दिसम्बर 2011 का अवतरण
मुंगेर कई पहाड़ियों से धिरा हुआ नगर है। कर्णपुर की पहाड़ी महाभारत के कर्ण से सम्बन्धित बताई जाती है। महाभारत के उपर्युक्त प्रसंग में भी कर्ण और भीम का युद्ध मुंगेर के उल्लेख से ठीक पूर्व वर्णित है।
स्थापना
भारत के प्राचीन अंग साम्राज्य बिहार का प्रमुख केन्द्र मुंगेर शहर एवं ज़िला है। मुंगेर ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय, बिहार राज्य, पूर्वोत्तर भारत, गंगा नदी पर स्थित है। कहा जाता है कि मुंगेर की स्थापना गुप्त शासकों ने चौथी शताब्दी में की थी। यहाँ एक क़िला है, जिसमें मुस्लिम संत शाह मुश्क नफ़ा जिनकी मृत्यु 1497 में हुई थी, की मज़ार है। 1793 में बंगाल के नवाब मीर क़ासिम ने मुंगेर को अपनी राजधानी बना कर यहाँ शस्त्रागार और कई महलों का निर्माण करवाया। 1864 में यहाँ नगरपालिका का गठन हुआ।
इतिहास
महाभारत में मुंगेर शहर को 'मोदागिरि' कहा गया है-'अथ मोदागिरौ चैव राजानं बलवत्तरम् पांडवो बाहुवीर्येण निजधान महामृघे'[1] अर्थात् पूर्व दिशा की दिग्विजय यात्रा में मगध पहुँचने के उपरान्त मोदागिरि के अत्यन्त बलवान नरेश को भुजाबल से युद्ध में मार गिराया। इसका वर्णन गिरिव्रज (राजगीर) के पश्चात् है तथा इसके उल्लेख के पहले भीम की कर्ण पर विजय का वर्णन है। किंवदन्ती के अनुसार मुंगेर की नींव डालने वाला चंद्र नामक राजा था। नगर के निकट सीताकुण्ड नामक स्थान है। जहाँ कहा जाता है कि सीता अपने दूसरे वनवास काल में अग्नि प्रवेश के लिए उतरी थी। चंडी स्थान भी प्राचीन स्थल है। एक किंवदन्ती में मुंगेर का वास्तविक नाम मुनिगृह भी बताया जाता है। कहते हैं कि यहीं पहाड़ी पर मुदगल मुनि का निवास स्थान होने से ही यह स्थान मुदगल नगरी कहलाता था। किन्तु इसका सम्बन्ध महाभारत के मोदागिरि से जोड़ना अधिक समीचीन है। कनिंघम के मत में 7वीं शती में युवानच्वांग ने इस स्थान को लोहानिनिला (लावणनील) कहा है। 10वीं शती में पाल वंशी देवपाल का यहाँ पर राज था, जैसा कि उसके ताभ्राट्ट लेख में वर्णित है। मुंगेर में मुस्लिम बादशाहों ने भी काफ़ी समय तक अपना मुख्य प्रशासन केन्द्र बनाया था, जिसके फलस्वरूप यहाँ पर उस समय के कई अवशेष हैं। मुग़लों के समय का एक ज़िला भी उल्लेखनीय है। यह गंगा के तट पर बना है। इसके उत्तर पश्चिम के कोने में कष्टतारिणी नामक गंगा घाट है। जहाँ 10वीं शती का एक अभिलेख है। क़िले से आधा मील पर 'मान पत्थर' है, जो गंगा के अन्दर एक चट्टान है। कहा जाता है कि इस पर श्रीकृष्ण के पदचिह्न बने हैं। क़िले के पश्चिम की ओर मुल्ला सईद का मक़बरा है। ये अशरफ़ नाम से फ़ारसी में कविता लिखते थे और औरंगज़ेब की पुत्री जेबुन्निसा के काव्य गुरु भी थे। इनका मूल निवास स्थान केस्पियन सागर के पास मजनदारन नामक स्थान था। अकबर के समय में टोडरमल ने बंगाल के विद्रोहियों को दबाने के लिए अभियान का मुख्य केन्द्र मुंगेर में बनाया था। शाहजहाँ के पुत्र शाहशुजा ने उत्तराधिकार युद्ध के समय इस स्थान में दो बार शरण ली थी। कुछ विद्वानों का मत है कि मुंगेर का एक नाम 'हिरण्यपर्वत' भी है, जो सातवीं शती या उसके निकटवर्ती काल में प्रचलित था।
यातायात और परिवहन
जमालपुर तथा सिमलतला महत्त्वपूर्ण रेल और वाणिज्यिक केंन्द्र हैं।
कृषि और खनिज
चावल, मक्का, गेंहू, चना और तिलहन यहाँ की मुख्य फ़सलें हैं।
उद्योग व व्यवसाय
प्रमुख रेल, सड़क और स्टीमर संपर्क से जुड़ा यह स्थान एक महत्त्वपूर्ण अनाज मड़ी है। यहाँ उद्योगों में आग्नेययास्त्र व तलवार निर्माण और आबनूस का काम शामिल है। इस शहर में भारत के विशालतम सिगरेट कारख़ानों में से एक स्थित है। यहाँ अभरक, स्लेट और चूना पत्थर का खनन होता है।
शिक्षण संस्थान
यहाँ पर प्रसिद्ध योग विश्वविद्यालय है।
जनसंख्या
2001 की जनगणना के अनुसार इस ज़िले की कुल जनसंख्या 11,35,499 है व नगर की कुल जनसंख्या 1,87,311 है।
पर्यटन
मुंगेर में ऐतिहासिक क़िला है। यहाँ पर सीताकुंड नामक प्रमुख कुंड है। मुंगेर से 6 कि.मी. पूर्व में स्थित सीता कुंड मुंगेर आनेवाले पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस कुंड का नाम पुरुषोत्तम राम की धर्मपत्नी सीता के नाम पर रखा गया है। कहा जाता है कि जब राम सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाकर लाए थे तो उनको अपनी को पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी। धर्मशास्त्रों के अनुसार अग्नि परीक्षा के बाद सीता माता ने जिस कुंड में स्नान किया था यह वही कुंड है। इस कुंड को बिहार राज्य पर्यटन मंत्रालय ने एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया है। इस कुंड को गर्म कुंड के नाम से भी जाना जाता है जिसका तापमान कभी-कभी 138° फॉरेनहाइट तक गर्म हो जाता है।
क्षेत्रफल
मुंगेर ज़िले का क्षेत्रफल 7,928 वर्ग किमी है और यह गंगा नदी के दक्षिण में फैले जलोढ़ मैदान में अवस्थित है। सुदूर दक्षिण में खड़गपुर की वनाच्छादित पहाड़ियां, जो की 490 मीटर ऊंची है, और यहीं पर छोटा नागपुर का पठार है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 747-748 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
- भारत ज्ञानकोश से पेज संख्या 372
संबंधित लेख
- ↑ वन. 30,21