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भिंडरावाले को ऐसा लग रहा था कि, उनके नेतृत्व में पंजाब अपना एक अलग अस्तित्व बना लेगा। यह काम वह हथियारों के बल पर कर सकता है। यह इंदिरा गाँधी की ग़लती थी कि, 1981 से लेकर 1984 ई. तक उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान के लिए कोई युक्तियुक्त कार्रवाई नहीं की। इस संबंध में कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि, इंदिरा गाँधी शक्ति के बल पर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती थीं। वह [[पंजाब]] के अलगाववादियों को वार्ता के माध्यम से समझाना चाहती थीं। लेकिन कुछ राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि, 1985 ई. में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गाँधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं, ताकि उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हो सके।
भिंडरावाले को ऐसा लग रहा था कि, उनके नेतृत्व में पंजाब अपना एक अलग अस्तित्व बना लेगा। यह काम वह हथियारों के बल पर कर सकता है। यह इंदिरा गाँधी की ग़लती थी कि, 1981 से लेकर 1984 ई. तक उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान के लिए कोई युक्तियुक्त कार्रवाई नहीं की। इस संबंध में कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि, इंदिरा गाँधी शक्ति के बल पर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती थीं। वह [[पंजाब]] के अलगाववादियों को वार्ता के माध्यम से समझाना चाहती थीं। लेकिन कुछ राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि, 1985 ई. में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गाँधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं, ताकि उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हो सके।
====भारतीय सेना का अभियान====
====भारतीय सेना का अभियान====
ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि 3 जून, 1984 को [[भारतीय सेना]] ने [[स्वर्ण मंदिर अमृतसर|स्वर्ण मंदिर]] पर घेरा डालकर भिंडरावाले और उसके समर्थकों के विरुद्ध निर्णायक जंग लड़ने का निश्चय किया। उनके द्वारा आत्मसमर्पण न किए जाने पर 5 जून, 1984 को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश कर लिया। तब भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने भारतीय सेना पर हमला किया। भारतीय सेना ने भी जवाब में कार्रवाई की और इस मुहिम को "ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार" का नाम दिया गया। यह ऑपरेशन क़ामयाब रहा। भिंडरावाले और उसके कट्टर समर्थकों की मौत हो गई। बाद में मालूम हुआ कि भिंडरावाले ने पवित्र स्वर्ण मंदिर को आतंक का गढ़ बना लिया था। वहाँ से आधुनिक हथियार प्राप्त हुए। फिर स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त करवा लिया गया।
ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि 3 जून, 1984 को [[भारतीय सेना]] ने [[स्वर्ण मंदिर अमृतसर|स्वर्ण मंदिर]] पर घेरा डालकर भिंडरावाले और उसके समर्थकों के विरुद्ध निर्णायक जंग लड़ने का निश्चय किया। उनके द्वारा आत्मसमर्पण न किए जाने पर 5 जून, 1984 को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश कर लिया। तब भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने भारतीय सेना पर हमला किया। भारतीय सेना ने भी जवाब में कार्रवाई की और इस मुहिम को "ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार" का नाम दिया गया। यह ऑपरेशन कामयाब रहा। भिंडरावाले और उसके कट्टर समर्थकों की मौत हो गई। बाद में मालूम हुआ कि भिंडरावाले ने पवित्र स्वर्ण मंदिर को आतंक का गढ़ बना लिया था। वहाँ से आधुनिक हथियार प्राप्त हुए। फिर स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त करवा लिया गया।
==सिक्ख समाज की नाराज़गी==
==सिक्ख समाज की नाराज़गी==
'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' से [[सिक्ख]] समुदाय इस समय काफ़ी आक्रोशित था। उन्हें लगता था कि स्वर्ण मंदिर पर हमला करना उनके [[सिक्ख धर्म|धर्म]] पर हमला करने के समान है। इंदिरा गाँधी को गुप्तचर संस्था 'रॉ' ने आगाह कर दिया था कि, सिक्खों में भारी रोष है और उन्हें अपनी सिक्योरिटी में सिक्खों को स्थान नहीं देना चाहिए। लेकिन इंदिरा गाँधी ने उस परामर्श पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनका मानना था कि, 'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' उस समय की मांग थी और उनकी सिक्खों के साथ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।
'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' से [[सिक्ख]] समुदाय इस समय काफ़ी आक्रोशित था। उन्हें लगता था कि स्वर्ण मंदिर पर हमला करना उनके [[सिक्ख धर्म|धर्म]] पर हमला करने के समान है। इंदिरा गाँधी को गुप्तचर संस्था 'रॉ' ने आगाह कर दिया था कि, सिक्खों में भारी रोष है और उन्हें अपनी सिक्योरिटी में सिक्खों को स्थान नहीं देना चाहिए। लेकिन इंदिरा गाँधी ने उस परामर्श पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनका मानना था कि, 'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' उस समय की मांग थी और उनकी सिक्खों के साथ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

13:27, 24 नवम्बर 2012 का अवतरण

ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार 5 जून, 1984 ई. को भारतीय सेना के द्वारा चलाया गया था। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य आतंकवादियों की गतिविधियों को समाप्त करना था। पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सिर उठाने लगी थीं और उन ताकतों को पाकिस्तान से हवा मिल रही थी। पंजाब में भिंडरावाले का उदय इंदिरा गाँधी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के कारण हुआ था। अकालियों के विरुद्ध भिंडरावाले को स्वयं इंदिरा गाँधी ने ही खड़ा किया था। लेकिन भिंडरावाले की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं देश को तोड़ने की हद तक बढ़ गई थीं। जो भी लोग पंजाब में अलगाववादियों का विरोध करते थे, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता था।

राजनीतिज्ञ विचार

भिंडरावाले को ऐसा लग रहा था कि, उनके नेतृत्व में पंजाब अपना एक अलग अस्तित्व बना लेगा। यह काम वह हथियारों के बल पर कर सकता है। यह इंदिरा गाँधी की ग़लती थी कि, 1981 से लेकर 1984 ई. तक उन्होंने पंजाब समस्या के समाधान के लिए कोई युक्तियुक्त कार्रवाई नहीं की। इस संबंध में कुछ राजनीतिज्ञों का कहना है कि, इंदिरा गाँधी शक्ति के बल पर समस्या का समाधान नहीं करना चाहती थीं। वह पंजाब के अलगाववादियों को वार्ता के माध्यम से समझाना चाहती थीं। लेकिन कुछ राजनीति विश्लेषक मानते हैं कि, 1985 ई. में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले इंदिरा गाँधी इस समस्या को सुलझाना चाहती थीं, ताकि उन्हें राजनीतिक लाभ प्राप्त हो सके।

भारतीय सेना का अभियान

ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि 3 जून, 1984 को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर पर घेरा डालकर भिंडरावाले और उसके समर्थकों के विरुद्ध निर्णायक जंग लड़ने का निश्चय किया। उनके द्वारा आत्मसमर्पण न किए जाने पर 5 जून, 1984 को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में प्रवेश कर लिया। तब भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने भारतीय सेना पर हमला किया। भारतीय सेना ने भी जवाब में कार्रवाई की और इस मुहिम को "ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार" का नाम दिया गया। यह ऑपरेशन कामयाब रहा। भिंडरावाले और उसके कट्टर समर्थकों की मौत हो गई। बाद में मालूम हुआ कि भिंडरावाले ने पवित्र स्वर्ण मंदिर को आतंक का गढ़ बना लिया था। वहाँ से आधुनिक हथियार प्राप्त हुए। फिर स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त करवा लिया गया।

सिक्ख समाज की नाराज़गी

'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' से सिक्ख समुदाय इस समय काफ़ी आक्रोशित था। उन्हें लगता था कि स्वर्ण मंदिर पर हमला करना उनके धर्म पर हमला करने के समान है। इंदिरा गाँधी को गुप्तचर संस्था 'रॉ' ने आगाह कर दिया था कि, सिक्खों में भारी रोष है और उन्हें अपनी सिक्योरिटी में सिक्खों को स्थान नहीं देना चाहिए। लेकिन इंदिरा गाँधी ने उस परामर्श पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनका मानना था कि, 'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' उस समय की मांग थी और उनकी सिक्खों के साथ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

इंदिरा गाँधी की मृत्यु

सिक्ख समुदाय में भारी रोष व्याप्त था। उस रोष की परिणति 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गाँधी की नृशंस हत्या के रूप में सामने आई। उनके ही सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। इंदिरा गाँधी की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। लेकिन अपराह्न 3 बजे के आस-पास उनकी मृत्यु की सूचना प्रसारित की गई। यह सुनकर सारा देश सन्न रह गया। किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा था। कि इंदिरा गाँधी की मृत्यु हो चुकी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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