"महाभारत सामान्य ज्ञान 8": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|अर्जुन तथा श्रीकृष्ण]][[युधिष्ठिर]] के लिए एक सुन्दर व आलौकिक सभा-भवन का निर्माण मय दानव द्वारा किया गया था। शुभ मुहूर्त में सभा-भवन की नींव डाली गई थी। धीरे-धीरे सभा-भवन बनकर तैयार हो गया, जो स्फटिक शिलाओं से बना हुआ था। यह भवन शीशमहल-सा चमक रहा था। इसी भवन में महाराज युधिष्ठिर राजसिंहासन पर आसीन हुए। कुछ समय बाद महर्षि [[नारद]] सभा-भवन में पधारे। उन्होंने युधिष्ठिर को '[[राजसूय यज्ञ]]' करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने [[कृष्ण]] को बुलवाया तथा 'राजसूय यज्ञ' के बारे में पूछा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत]] | ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|अर्जुन तथा श्रीकृष्ण]][[युधिष्ठिर]] के लिए एक सुन्दर व आलौकिक सभा-भवन का निर्माण मय दानव द्वारा किया गया था। शुभ मुहूर्त में सभा-भवन की नींव डाली गई थी। धीरे-धीरे सभा-भवन बनकर तैयार हो गया, जो स्फटिक शिलाओं से बना हुआ था। यह भवन शीशमहल-सा चमक रहा था। इसी भवन में महाराज युधिष्ठिर राजसिंहासन पर आसीन हुए। कुछ समय बाद महर्षि [[नारद]] सभा-भवन में पधारे। उन्होंने युधिष्ठिर को '[[राजसूय यज्ञ]]' करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने [[कृष्ण]] को बुलवाया तथा 'राजसूय यज्ञ' के बारे में पूछा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत|सभा पर्व]] | ||
{[[वन पर्व महाभारत|महाभारत वन पर्व]] के अंतर्गत कितने अध्याय हैं? | {[[वन पर्व महाभारत|महाभारत वन पर्व]] के अंतर्गत कितने अध्याय हैं? | ||
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||[[चित्र:Tusker-Elephant.jpg|right|100px|हाथी]]गुरु [[द्रोणाचार्य]] ने महाभयंकर युद्ध का श्रीगणेश किया। जो रथी सामने आता, वही मारा जाता। [[श्रीकृष्ण]] ने [[पांडव|पांडवों]] को समझा-बुझाकर तैयार कर लिया कि वे द्रोण तक [[अश्वत्थामा]] की मृत्यु का समाचार पहुंचा दें, जिससे कि युद्ध में द्रोण की रूचि समाप्त हो जाय। भीम ने [[मालव]] नरेश इन्द्रवर्मा के 'अश्वत्थामा' नामक [[हाथी]] का वध कर दिया। फिर [[भीम]] ने द्रोण को 'अश्वत्थामा मारा गया' समाचार दिया। द्रोण ने उस पर विश्वास न कर [[युधिष्ठिर]] से समाचार की सच्चाई जाननी चाही। युधिष्ठिर अपनी सत्यप्रियता के लिए विख्यात थे। श्रीकृष्ण के अनुरोध पर उन्होंने ज़ोर से कहा- "अश्वत्थामा मारा गया है।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[चित्र:Tusker-Elephant.jpg|right|100px|हाथी]]गुरु [[द्रोणाचार्य]] ने महाभयंकर युद्ध का श्रीगणेश किया। जो रथी सामने आता, वही मारा जाता। [[श्रीकृष्ण]] ने [[पांडव|पांडवों]] को समझा-बुझाकर तैयार कर लिया कि वे द्रोण तक [[अश्वत्थामा]] की मृत्यु का समाचार पहुंचा दें, जिससे कि युद्ध में द्रोण की रूचि समाप्त हो जाय। भीम ने [[मालव]] नरेश इन्द्रवर्मा के 'अश्वत्थामा' नामक [[हाथी]] का वध कर दिया। फिर [[भीम]] ने द्रोण को 'अश्वत्थामा मारा गया' समाचार दिया। द्रोण ने उस पर विश्वास न कर [[युधिष्ठिर]] से समाचार की सच्चाई जाननी चाही। युधिष्ठिर अपनी सत्यप्रियता के लिए विख्यात थे। श्रीकृष्ण के अनुरोध पर उन्होंने ज़ोर से कहा- "अश्वत्थामा मारा गया है।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीम]] | ||
{यह ज्ञात हो जाने पर कि [[कर्ण]] [[पाण्डव|पाण्डवों]] का भाई था, [[युधिष्ठिर]] ने किसे शाप दिया? | {यह ज्ञात हो जाने पर कि [[कर्ण]] [[पाण्डव|पाण्डवों]] का भाई था, [[युधिष्ठिर]] ने किसे शाप दिया? | ||
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-[[कर्ण]] | -[[कर्ण]] | ||
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||[[चित्र:Dronacharya.jpg|right|100px|धृष्टद्युम्न के हाथों द्रोणाचार्य का वध]][[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] द्वारा रात में किये गए आक्रमण से [[कौरव]] बहुत क्रोधित थे। युद्ध के 15वें दिन [[द्रोणाचार्य]] भी क्रोध से भरे हुए थे। उन्होंने हज़ारों [[पांडव]] सैनिकों को मार डाला तथा [[युधिष्ठिर]] की रक्षा में खड़े [[द्रुपद]] तथा [[विराट]] दोनों का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के इस रूप को देखकर [[कृष्ण]] भी चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने [[अर्जुन]] से कहा कि वे आचार्य को यह समाचार दें कि [[अश्वत्थामा]] का निधन हो गया है। अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोण पर्व महाभारत]] | ||[[चित्र:Dronacharya.jpg|right|100px|धृष्टद्युम्न के हाथों द्रोणाचार्य का वध]][[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] द्वारा रात में किये गए आक्रमण से [[कौरव]] बहुत क्रोधित थे। युद्ध के 15वें दिन [[द्रोणाचार्य]] भी क्रोध से भरे हुए थे। उन्होंने हज़ारों [[पांडव]] सैनिकों को मार डाला तथा [[युधिष्ठिर]] की रक्षा में खड़े [[द्रुपद]] तथा [[विराट]] दोनों का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के इस रूप को देखकर [[कृष्ण]] भी चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने [[अर्जुन]] से कहा कि वे आचार्य को यह समाचार दें कि [[अश्वत्थामा]] का निधन हो गया है। अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण पर्व]] | ||
{[[महाभारत]] युद्ध के कौन-से दिन पितामह [[भीष्म]] शर-शैय्या को प्राप्त हुए? | {[[महाभारत]] युद्ध के कौन-से दिन पितामह [[भीष्म]] शर-शैय्या को प्राप्त हुए? | ||
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-[[अश्वत्थामा]] | -[[अश्वत्थामा]] | ||
-[[संजय]] | -[[संजय]] | ||
||[[चित्र:Karn1.jpg|right|100px|अर्जुन द्वारा कर्ण का वध]]कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाने पर, वह पहिये को निकालने के लिये रथ से नीचे उतरा। [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को समझाया और उससे कहा कि यही समय है, [[कर्ण]] पर [[बाण अस्त्र|बाण]] चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही [[कौरव|कौरवों]] में हाहाकार मच गया। रात को [[दुर्योधन]] चिंताग्रस्त था। [[कृपाचार्य]] ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि अभी आप हैं, [[अश्वत्थामा]] हैं और सेनापति [[शल्य]] भी हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[चित्र:Karn1.jpg|right|100px|अर्जुन द्वारा कर्ण का वध]]कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाने पर, वह पहिये को निकालने के लिये रथ से नीचे उतरा। [[श्रीकृष्ण]] ने [[अर्जुन]] को समझाया और उससे कहा कि यही समय है, [[कर्ण]] पर [[बाण अस्त्र|बाण]] चलाओ, नहीं तो कर्ण का वध नहीं कर पाओगे। अर्जुन ने वैसा ही किया। कर्ण का सिर धड़ से अलग हो गया। कर्ण के मरते ही [[कौरव|कौरवों]] में हाहाकार मच गया। रात को [[दुर्योधन]] चिंताग्रस्त था। [[कृपाचार्य]] ने समझाया कि अब पांडवों से संधि कर ली जाए, किन्तु दुर्योधन अभी भी युद्ध के पक्ष में था। दुर्योधन ने कहा कि अभी आप हैं, [[अश्वत्थामा]] हैं और सेनापति [[शल्य]] भी हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृपाचार्य]] | ||
{[[मगध]] नरेश [[जरासंध]] ने [[मथुरा]] पर कितनी बार चढ़ाई की थी? | {[[मगध]] नरेश [[जरासंध]] ने [[मथुरा]] पर कितनी बार चढ़ाई की थी? | ||
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+[[भीम]] | +[[भीम]] | ||
-[[युधिष्ठिर]] | -[[युधिष्ठिर]] | ||
||[[चित्र:Bhim-Dushasan.jpg|right|100px|भीम द्वारा दुशासन का वध]][[दुर्योधन]] के कहने पर [[दुशासन]] [[द्रौपदी]] के [[वस्त्र]] उतारने लगा। द्रौपदी को इस संकट की घड़ी में [[श्रीकृष्ण]] की याद आई। उसने श्रीकृष्ण से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की और सभा में एक चमत्कार हुआ। दुशासन जैसे-जैसे द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता, वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र खींचते-खींचते दुशासन थककर बैठ गया। इसी समय [[भीम]] ने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुशासन की छाती चीरकर उसके गरम ख़ून से अपनी प्यास नहीं बुझाऊँगा, तब तक इस संसार को छोड़कर पितृलोक को नहीं जाऊँगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[चित्र:Bhim-Dushasan.jpg|right|100px|भीम द्वारा दुशासन का वध]][[दुर्योधन]] के कहने पर [[दुशासन]] [[द्रौपदी]] के [[वस्त्र]] उतारने लगा। द्रौपदी को इस संकट की घड़ी में [[श्रीकृष्ण]] की याद आई। उसने श्रीकृष्ण से अपनी लाज बचाने की प्रार्थना की और सभा में एक चमत्कार हुआ। दुशासन जैसे-जैसे द्रौपदी का वस्त्र खींचता जाता, वैसे-वैसे वस्त्र भी बढ़ता जाता। वस्त्र खींचते-खींचते दुशासन थककर बैठ गया। इसी समय [[भीम]] ने प्रतिज्ञा की कि जब तक दुशासन की छाती चीरकर उसके गरम ख़ून से अपनी प्यास नहीं बुझाऊँगा, तब तक इस संसार को छोड़कर पितृलोक को नहीं जाऊँगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दुशासन]] | ||
{[[कर्ण]] के वध के उपरान्त किसके कहने पर [[दुर्योधन]] ने [[शल्य]] को सेनापति नियुक्त किया? | {[[कर्ण]] के वध के उपरान्त किसके कहने पर [[दुर्योधन]] ने [[शल्य]] को सेनापति नियुक्त किया? | ||
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||[[चित्र:Bhishma2.jpg|right|100px|शर-शैय्या पर पितामह भीष्म]][[युधिष्ठिर]] तथा शेष [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने भी शेय्या पर पड़े हुए पितामह [[भीष्म]] के चरण-स्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को तरह-तरह के उपदेश दिए। अगले दिन जब [[सूर्य]] 'उत्तरायण' हो गया, उचित समय जानकर युधिष्ठिर सभी भाइयों, [[धृतराष्ट्र]], [[गांधारी]] एवं [[कुंती]] को साथ लेकर भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर-शैय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को [[चंदन]] की चिता पर रखा तथा [[अंत्येष्टि संस्कार|दाह-संस्कार]] किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[चित्र:Bhishma2.jpg|right|100px|शर-शैय्या पर पितामह भीष्म]][[युधिष्ठिर]] तथा शेष [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने भी शेय्या पर पड़े हुए पितामह [[भीष्म]] के चरण-स्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को तरह-तरह के उपदेश दिए। अगले दिन जब [[सूर्य]] 'उत्तरायण' हो गया, उचित समय जानकर युधिष्ठिर सभी भाइयों, [[धृतराष्ट्र]], [[गांधारी]] एवं [[कुंती]] को साथ लेकर भीष्म के पास पहुँचे। भीष्म ने सबको उपदेश दिया तथा अट्ठावन दिन तक शर-शैय्या पर पड़े रहने के बाद महाप्रयाण किया। सभी लोग भीष्म को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को [[चंदन]] की चिता पर रखा तथा [[अंत्येष्टि संस्कार|दाह-संस्कार]] किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म]] | ||
{रणभूमि में [[श्रीकृष्ण]] के विराट स्वरूप के दर्शन [[अर्जुन]] के अतिरिक्त और किसने किये? | {रणभूमि में [[श्रीकृष्ण]] के विराट स्वरूप के दर्शन [[अर्जुन]] के अतिरिक्त और किसने किये? | ||
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-[[धृष्टद्युम्न]] ने | -[[धृष्टद्युम्न]] ने | ||
+[[श्रीकृष्ण]] ने | +[[श्रीकृष्ण]] ने | ||
||[[चित्र:Radha-Krishna-1.jpg|right|100px|राधा-कृष्ण]]श्रीकृष्ण ने [[जरासंध]] के कारागार से सभी बंदी राजाओं को मुक्त कर दिया तथा [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में शामिल होने का निमंत्रण दिया और जरासंध के पुत्र 'सहदेव' को [[मगध]] की राजगद्दी पर बिठाया। [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] चारों दिशाओं में गए तथा सभी राजाओं को युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। देश-देश के राजा [[यज्ञ]] में शामिल होने के लिए आये। [[भीष्म]] और [[द्रोण]] को यज्ञ की कार्य-विधि का निरीक्षण करने का कार्य सौंपा गया तथा [[श्रीकृष्ण]] ने स्वयं [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के चरण धोने का कार्य स्वीकार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[चित्र:Radha-Krishna-1.jpg|right|100px|राधा-कृष्ण]]श्रीकृष्ण ने [[जरासंध]] के कारागार से सभी बंदी राजाओं को मुक्त कर दिया तथा [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में शामिल होने का निमंत्रण दिया और जरासंध के पुत्र 'सहदेव' को [[मगध]] की राजगद्दी पर बिठाया। [[भीम]], [[अर्जुन]], [[नकुल]] और [[सहदेव]] चारों दिशाओं में गए तथा सभी राजाओं को युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। देश-देश के राजा [[यज्ञ]] में शामिल होने के लिए आये। [[भीष्म]] और [[द्रोण]] को यज्ञ की कार्य-विधि का निरीक्षण करने का कार्य सौंपा गया तथा [[श्रीकृष्ण]] ने स्वयं [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] के चरण धोने का कार्य स्वीकार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीकृष्ण]] | ||
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08:57, 21 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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