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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[युधिष्ठिर]] के लिए सभा-भवन का निर्माण किसने किया था?
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| -[[गन्धर्व|गन्धर्वों]] ने
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| +मय दानव ने
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| -[[अश्विनीकुमार|अश्विनीकुमारों]] ने
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| -लोकपालों ने
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| ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|अर्जुन तथा श्रीकृष्ण]][[युधिष्ठिर]] के लिए एक सुन्दर व आलौकिक सभा-भवन का निर्माण मय दानव द्वारा किया गया था। शुभ मुहूर्त में सभा-भवन की नींव डाली गई थी। धीरे-धीरे सभा-भवन बनकर तैयार हो गया, जो स्फटिक शिलाओं से बना हुआ था। यह भवन शीशमहल-सा चमक रहा था। इसी भवन में महाराज युधिष्ठिर राजसिंहासन पर आसीन हुए। कुछ समय बाद महर्षि [[नारद]] सभा-भवन में पधारे। उन्होंने युधिष्ठिर को '[[राजसूय यज्ञ]]' करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने [[कृष्ण]] को बुलवाया तथा 'राजसूय यज्ञ' के बारे में पूछा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सभा पर्व महाभारत|सभा पर्व]]
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| {[[वन पर्व महाभारत|महाभारत वन पर्व]] के अंतर्गत कितने अध्याय हैं?
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| +315
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| -316
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| -321
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| -311
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| {[[भीम]] द्वारा मारा गया 'अश्वत्थामा' नाम का [[हाथी]] किस राजा का था?
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| -[[विराट]]
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| +इन्द्रवर्मा
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| -[[प्रद्युम्न]]
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| -[[अभिमन्यु]]
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| ||[[चित्र:Tusker-Elephant.jpg|right|100px|हाथी]]गुरु [[द्रोणाचार्य]] ने महाभयंकर युद्ध का श्रीगणेश किया। जो रथी सामने आता, वही मारा जाता। [[श्रीकृष्ण]] ने [[पांडव|पांडवों]] को समझा-बुझाकर तैयार कर लिया कि वे द्रोण तक [[अश्वत्थामा]] की मृत्यु का समाचार पहुंचा दें, जिससे कि युद्ध में द्रोण की रूचि समाप्त हो जाय। भीम ने [[मालव]] नरेश इन्द्रवर्मा के 'अश्वत्थामा' नामक [[हाथी]] का वध कर दिया। फिर [[भीम]] ने द्रोण को 'अश्वत्थामा मारा गया' समाचार दिया। द्रोण ने उस पर विश्वास न कर [[युधिष्ठिर]] से समाचार की सच्चाई जाननी चाही। युधिष्ठिर अपनी सत्यप्रियता के लिए विख्यात थे। श्रीकृष्ण के अनुरोध पर उन्होंने ज़ोर से कहा- "अश्वत्थामा मारा गया है।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीम]]
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| {यह ज्ञात हो जाने पर कि [[कर्ण]] [[पाण्डव|पाण्डवों]] का भाई था, [[युधिष्ठिर]] ने किसे शाप दिया?
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| -[[कुन्ती]] को
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| +नारी जाति को
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| -[[गांधारी]] को
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| -[[द्रौपदी]] को
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| ||[[महाभारत]] युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए कौरवपक्षीय नर-नारी, जिनमें [[धृतराष्ट्र]] तथा [[गांधारी]] प्रमुख थे तथा [[श्रीकृष्ण]], [[सात्यकि]] और [[पांडव|पांडवों]] सहित [[द्रौपदी]], [[कुन्ती]] तथा [[पांचाल]] विधवाएँ [[कुरुक्षेत्र]] पहुँचे। वहाँ [[युधिष्ठिर]] ने मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्र वर्ग के) [[अंत्येष्टि संस्कार|दाह-संस्कार]] एवं [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]] किया। [[कर्ण]] को याद कर युधिष्ठिर बहुत विचलित हो उठे। मां कुंती से बार-बार कहते रहे- "काश, तुमने हमें पहले बता दिया होता कि कर्ण हमारे भाई थे।" अंत में हताश, निराश और दुखी होकर उन्होंने नारी जाति को शाप दिया कि वे भविष्य में कभी भी कोई गुह्य रहस्य नहीं छिपा पायेंगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[युधिष्ठिर]]
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| {[[द्रौपदी]] के [[पिता]] [[द्रुपद]] का वध किसके हाथों हुआ?
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| -[[दुर्योधन]]
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| -[[जयद्रथ]]
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| -[[कर्ण]]
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| +[[द्रोणाचार्य]]
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| ||[[चित्र:Dronacharya.jpg|right|100px|धृष्टद्युम्न के हाथों द्रोणाचार्य का वध]][[भीम]] के पुत्र [[घटोत्कच]] द्वारा रात में किये गए आक्रमण से [[कौरव]] बहुत क्रोधित थे। युद्ध के 15वें दिन [[द्रोणाचार्य]] भी क्रोध से भरे हुए थे। उन्होंने हज़ारों [[पांडव]] सैनिकों को मार डाला तथा [[युधिष्ठिर]] की रक्षा में खड़े [[द्रुपद]] तथा [[विराट]] दोनों का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के इस रूप को देखकर [[कृष्ण]] भी चिंतित हो उठे। उन्होंने सोचा कि पांडवों की विजय के लिए द्रोणाचार्य की मृत्यु आवश्यक है। उन्होंने [[अर्जुन]] से कहा कि वे आचार्य को यह समाचार दें कि [[अश्वत्थामा]] का निधन हो गया है। अर्जुन ने ऐसा झूठ बोलने से इंकार कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण पर्व]]
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| {[[महाभारत]] युद्ध के कौन-से दिन पितामह [[भीष्म]] शर-शैय्या को प्राप्त हुए? | | {[[महाभारत]] युद्ध के कौन-से दिन पितामह [[भीष्म]] शर-शैय्या को प्राप्त हुए? |
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| {{महाभारत सामान्य ज्ञान}} | | {{महाभारत सामान्य ज्ञान}} |
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| {{प्रचार}}
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