"करनाल का युद्ध": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "सिक्के" to "सिक़्क़े") |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
*सआदत ख़ा भी मीर बख़्शी बनना चाहता था, लेकिन जब वह इस पद से वंचित रह गया, तो उसने [[नादिरशाह]] को धन का लालच देकर [[दिल्ली]] पर आक्रमण करने को कहा। | *सआदत ख़ा भी मीर बख़्शी बनना चाहता था, लेकिन जब वह इस पद से वंचित रह गया, तो उसने [[नादिरशाह]] को धन का लालच देकर [[दिल्ली]] पर आक्रमण करने को कहा। | ||
*नादिरशाह ने दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया, तथा वह [[20 मार्च]], 1739 को दिल्ली पहुँचा। | *नादिरशाह ने दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया, तथा वह [[20 मार्च]], 1739 को दिल्ली पहुँचा। | ||
*दिल्ली में नादिरशाह के नाम का 'खुतबा' (प्रशंसात्मक रचना) पढ़ा गया तथा | *दिल्ली में नादिरशाह के नाम का 'खुतबा' (प्रशंसात्मक रचना) पढ़ा गया तथा सिक़्क़े जारी किए गए। | ||
*[[22 मार्च]], 1739 ई. को एक सैनिक की हत्या की अफवाह के कारण नादिरशाह ने दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दे दिया। | *[[22 मार्च]], 1739 ई. को एक सैनिक की हत्या की अफवाह के कारण नादिरशाह ने दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दे दिया। | ||
*उसने दिल्ली को खूब लूटा, उसने बादशाह ख़ाँ से 20 करोड़ रुपये की माँग की। | *उसने दिल्ली को खूब लूटा, उसने बादशाह ख़ाँ से 20 करोड़ रुपये की माँग की। | ||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
*इसके अतिरिक्त [[कश्मीर]] तथा [[सिन्धु नदी]] के पश्चिमी प्रदेश [[नादिरशाह]] को मिल गये। | *इसके अतिरिक्त [[कश्मीर]] तथा [[सिन्धु नदी]] के पश्चिमी प्रदेश [[नादिरशाह]] को मिल गये। | ||
*थट्टा और उसके अधीनस्थ बन्दरगाह भी उसे दे दिये गये। | *थट्टा और उसके अधीनस्थ बन्दरगाह भी उसे दे दिये गये। | ||
*नादिरशाह ने मुहम्मदशाह को मुग़ल साम्राट घोषित कर दिया तथा [[ख़ुत्बा]] पढ़ने और | *नादिरशाह ने मुहम्मदशाह को मुग़ल साम्राट घोषित कर दिया तथा [[ख़ुत्बा]] पढ़ने और सिक़्क़े जारी करने का अधिकार पुनः लौटा दिया। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
14:37, 11 फ़रवरी 2013 का अवतरण
करनाल का युद्ध 24 फ़रवरी, 1739 ई. को नादिरशाह और मुहम्मदशाह के मध्य लड़ा गया।
- नादिरशाह के आक्रमण से भयभीत होकर मुहम्मदशाह 80 हज़ार सेना लेकर 'निज़ामुलमुल्क', 'कमरुद्दीन' तथा 'ख़ान-ए-दौराँ' के साथ आक्रमणकारी का मुकाबला करने के लिए चल पड़ा।
- शीघ्र ही सहादत ख़ाँ भी उससे आ मिला। करनाल युद्ध तीन घण्टे तक चला।
- इस युद्ध में ख़ान-ए-दौराँ युद्ध में लड़ते हुए मारा गया, जबकि सहादत ख़ाँ बन्दी बना लिया गया।
- इस दौरान निज़ामुलमुल्क ने शान्ति की भूमिका निभाई।
- सम्राट मुहम्मदशाह, निज़ामुलमुल्क की इस सेवा से बहुत प्रसन्न हुआ और उसे 'मीर बख़्शी' के पद पर नियुक्त कर दिया, क्योंकि ख़ान-ए-दौराँ की मृत्यु के बाद यह पद रिक्त हो गया था।
- सआदत ख़ा भी मीर बख़्शी बनना चाहता था, लेकिन जब वह इस पद से वंचित रह गया, तो उसने नादिरशाह को धन का लालच देकर दिल्ली पर आक्रमण करने को कहा।
- नादिरशाह ने दिल्ली की ओर प्रस्थान कर दिया, तथा वह 20 मार्च, 1739 को दिल्ली पहुँचा।
- दिल्ली में नादिरशाह के नाम का 'खुतबा' (प्रशंसात्मक रचना) पढ़ा गया तथा सिक़्क़े जारी किए गए।
- 22 मार्च, 1739 ई. को एक सैनिक की हत्या की अफवाह के कारण नादिरशाह ने दिल्ली में कत्लेआम का आदेश दे दिया।
- उसने दिल्ली को खूब लूटा, उसने बादशाह ख़ाँ से 20 करोड़ रुपये की माँग की।
- इस माँग को पूरा न कर पाने के कारण बादशाह ख़ाँ ने विष खाकर आत्महत्या कर ली।
- नादिरशाह दिल्ली में 57 दिन तक रहा और वापस जाते समय वह अपार धन के साथ 'तख़्त-ए-ताऊस' तथा कोहिनूर हीरा भी ले गया।
- मुग़ल सम्राट ने अपनी पुत्री का विवाह नादिरशाह के पुत्र 'नासिरुल्लाह मिर्ज़ा' से कर दिया।
- इसके अतिरिक्त कश्मीर तथा सिन्धु नदी के पश्चिमी प्रदेश नादिरशाह को मिल गये।
- थट्टा और उसके अधीनस्थ बन्दरगाह भी उसे दे दिये गये।
- नादिरशाह ने मुहम्मदशाह को मुग़ल साम्राट घोषित कर दिया तथा ख़ुत्बा पढ़ने और सिक़्क़े जारी करने का अधिकार पुनः लौटा दिया।
|
|
|
|
|